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ABP NDTV AAJ TAK TIMES NOW NEWS EXPRESS NEWS NATION


ABP NDTV AAJ TAK TIMES NOW NEWS EXPRESS NEWS NATION etc CHANNELS वालों से एक ही बात पुछना चाहता हुँ की अल्पसंख्यको को लेकर जो ततपरता दिखती है परनतु वो ही ततपरता बहुसंख्यको को लेकर नही दिखती।जो भी जवाब आप लोगो ने अब तक स्वयं में ही cbi or jury बनकर दिये है व देते हो वो सभी को मालुम है, इसीलिये तो जवाब मुझे बिना किसी लीपापोती, तर्क व घुमाफिराकर या गढ़े मुर्दे उखाड़ कर नही चाहिये वरन सटीक व स्पष्ट जवाब चाहिये,कयोकि अल्पसंख्यकों के द्वारा बहुसंख्यको के साथ उन्होंने जो भी ग़लत क्रूरता अन्याय आदि करा सो करा,परनतु उन विषयों पर आप कितना काम मेहनत व डिबेट लगातार कर रहे है जिससे लगे की आप सच्चे पत्रकार ही नही वरन जागरूक भारतीय भी है-
१-विस्थापित कशमीरी हिन्दुओं को दुबारा कश्मीर मे बसाने के लिये आपने क्या व किस तरह से जतन कर रहे है व क्यों नही मुहीम चलाई जा रही ???
२-उतर पूर्व मे सैकड़ों विस्थापित हिन्दुओ के लिये मुहिम..???
३-युनीफारम कोड पर मुहीम आपके द्वारा क्यों नही चलाई जा रही???
४-आप सच को सच व ग़लत को ग़लत नही कह कर वरन मनमुताबिक उसे घुमाफिराकर डिबेट का हिस्सा बना देते है???
५-आप सकारात्मक आलोचना नही करके नकारात्मक व आक्रामक रवैया अख़्तियार किये रखते हो जिससे विपरीत प्रभाव पडता है???
६-सरकारी नीतियों की सकारात्मक आलोचना या सुझाव देना ठीक है, परनतु कमर कसकर नकारात्मक आलोचना डिबेट के बहाने छीछालीदर करना व छोटी छोटी बातों पर ज़बरदस्त खिंचाई क्यों ???
७-केवल TRP ही सब कुछ है ? सूर्य नमसकार का विरोध एवं वनदेमातरम व झण्डे के अपमान पर आप उसे बताते नही या सरसरी तौर ही बतायेंगे क्यों??
८-धर्म परिवर्तन मुद्दे पर कानुन बनाने पर विपक्ष द्वारा यु टर्न लेने पर आपके द्वारा इस केस को आरोप प्रत्यारोप तक सीमित कर दिया गया जबकि इसे कानुन पास करवाने का मुद्दा बनाने की मुहीम चलानी चाहिये थी ???
९-गोधरा कांड मे अल्पसंख्यको के द्वारा सर्वपरथम साठ हिन्दुओ को जलाया गया उसका कोई विशेष ज़िक्र नही वरन तदुपरानत भड़की हिसां को आज तक पीट रहे है उन साठ को लेकर मुहिम क्यों नहीं ???
१०- केजरीवाल जी ने २०११ मे एक ही नारे पर ज़ोर दिया था की जनलोकपाल लाना है कांग्रेस मुक्त भारत बनाना है परनतु अचानक ये नारा छोड़ बीजेपी उस पर भी मोदी जी के पीछे पड़ गये।
११-किसी नेता ने क्या कह दिया या नही इस पर डिबेट करना खिंचाई करना,ज़बरदस्ती बाल की खाल निकालते हुवे डिबेट का विषय बनाते हुवे खिंचाई करना आदि पर ऐसा क्यों??? क्या इससे मीडिया की इमेज अचछी बनती है, कया देश विदेश की बहुत सारी ख़बरों का अकाल पड़ गया???
१२- बहुसखयक कुछ भी ग़लत करे या बोल दे उसकी लेनी देनी कर देते है, परनतु अल्पसंख्यक कुछ भी करे या बोले हलके से लेकर रफ़ा दफ़ा करेंगे, जैसे आज़मंखान,ओवेशी ने तो इतनी गम्भीर बात बहुसखयको के ख़िलाफ़ कही कि 15 मिनट पुलिस को दूर रखे आदि….??? परनतु इन पर डिबेट खिंचाई छीछालीदर आदि कुछ नही..???
१३-ISIS BOKO HARAM etc terrorist groups आदि जिस ढंग से अमानवीय क्रूरता का प्रदर्शन कर रहे है इसके एवज़ मे उनके विरूद्ध किसी भी भारतीय मुसलिम समुदाय के संगठन ने आज तक कठोरता से उच्च स्वर मे आवाज उठाते हुवे आतंकवादी संगठनों के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कोई मुहीम नही चलाई। (व्यक्तिगत आवाज ऐसे मौक़ों पर गौण हो जाती है।) क्या मीडिया वालों ने मुसलिम समाज की इस चुप्पी व धर्मभीरूता पर कोई मुहिम चलाई.???
१४- व्यक्तिगत मोदी जी कमीयो के पुतले है या बुदधीमान ईमानदार साहसी जीवट वाले व्यक्तित्व??
१५-पिछली सरकार मे हमारे देश की छवि विदेशों मे कया थी?? उस समय वर्ल्ड बैंक ने कया कहा था ???
१६- सरकार की अचछी नीतियों को जनता से अवगत करवाना, यदि कुछ कमी है तो उसे सरलता से बताकर छोड़ देना, यदि कमी फिर भी दूर नही हो तब मुहीम छेड़ना चाहिये परनतु छीछालीदर नही करना, कया नकारात्मक ही रूख अपनाये रखना ही पत्रकारिता है???
१७-अब देश मे बच्चों को मालुम पड़ रहा है कि देश की आज़ादी मे गांधी व नेहरू के अलावा असंख्य देशभक्तों का हाथ है, नेहरू व गांधी के नाम के अलावा और नाम की चर्चा नही, कया इस पर मुहीम चलाई???
१८- पड़ोसी देशों से त्रस्त हमारे देश के जवानों द्वारा कोई भी कार्यवाही पर विपक्ष की तरह हाय तौबा क्यों ? उनकी हौसलाअफजाई की बजाय कया सेना को भी राजनेता समझ रखा है???
१९-सच कहुं बातें बहुत है परनतु आपमें व बिग बास मे कोई अन्तर नही है आप राजनैतिक क्षेत्र मे मंथरा व शकुनि दोनो हो जबकि बिग बास मे उपरोक्त चरित्र बनने के लिये टॉसक दिया जाता है।

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ताजमहल एक शिव मंदिर


ताजमहल एक शिव मंदिर
“ताजमहल में शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है”

श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक “Tajmahal is a Hindu Temple Palace” में 100 से भी अधिक प्रमाण देकर सिद्ध किया कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक जी ने भारत के विकृत इतिहास को पुर्नोत्‍थान और सही दिशा में ले जाने का किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है, उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नागेश ओक जी का नाम लिया जाता है।

सरकार ”ताजमहल”की जाँच कराये.कब तक हम गुलामी का झूठा इतिहास पढेगे. यह राष्‍ट्रीय शर्म है ?
”Tajmahal is a Hindu Temple” श्री पी.एन. ओक ने लिखा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये प्रमाणों का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार हैं –

”ताजमहल” के नाम पर प्रमाण >>> – (क्रम संख्‍या 1 से 8 तक)

1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।

2. शब्द ताजमहल के अंत में आये ‘महल’ मुस्लिम शब्द है ही नहीं, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो।

3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताजमहल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्कसम्मत नहीं है – पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से “मुम” को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता।

4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात् यदि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)।

5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख ‘ताज-ए-महल’ के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का ही प्रयोग किया है।

6. मकब़रे को कब्रगाह ही समझना चाहिये, न कि महल। इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है।

7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है।

8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़ल व्याख्या ढूंढना ही असंगत है। ‘ताज’ और ‘महल’ दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।

फिर उन्‍होने इसको मंदिर कहे जाने की बातो को तर्कसंगत तरीके से बताया है (क्रम संख्‍या 9 से 17 तक)

9. ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है। तेजोमहालय मंदिर में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे।

10. संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता।

11. देखने वालों ने अवलोकन किया होगा कि तहखाने के अंदर कब्र वाले कमरे में केवल सफेद संगमरमर के पत्थर लगे हैं जबकि अटारी व कब्रों वाले कमरे में पुष्प लता आदि से चित्रित पच्चीकारी की गई है। इससे साफ जाहिर होता है कि मुमताज़ के मक़बरे वाला कमरा ही शिव मंदिर का गर्भगृह है।

12. संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।

13. ताजमहल के रख-रखाव तथा मरम्मत करने वाले ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कि प्राचीन पवित्र शिव लिंग तथा अन्य मूर्तियों को चौड़ी दीवारों के बीच दबा हुआ और संगमरमर वाले तहखाने के नीचे की मंजिलों के लाल पत्थरों वाले गुप्त कक्षों, जिन्हें कि बंद (seal) कर दिया गया है, के भीतर देखा है।

14. भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रतीत होता है कि तेजोमहालय उर्फ ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से शाहज़हां ने उस पर कब्ज़ा किया, उसकी पवित्रता और हिंदुत्व समाप्त हो गई।

15. वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में ‘तेज-लिंग’ का वर्णन आता है। ताजमहल में ‘तेज-लिंग’ प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था।

16. आगरा नगर, जहां पर ताजमहल स्थित है, एक प्राचीन शिव पूजा केन्द्र है। यहां के धर्मावलम्बी निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में। पिछले कुछ सदियों से यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हो पा रही है। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।

17. आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है। जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं। The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे। अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे। इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था।

भारतीय प्रामाणिक दस्तावेजो से यह मकबरा नहीं सिद्ध होता है ( क्रम संख्‍या18 से 24 तक)

18. बादशाहनामा, जो कि शाहज़हां के दरबार के लेखाजोखा की पुस्तक है, में स्वीकारोक्ति है (पृष्ठ 403 भाग 1) कि मुमताज को दफ़नाने के लिये जयपुर के महाराजा जयसिंह से एक चमकदार, बड़े गुम्बद वाला विशाल भवन (इमारत-ए-आलीशान व गुम्ब़ज) लिया गया जो कि राजा मानसिंह के भवन के नाम से जाना जाता था।

19. ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है। पहली बात तो यह है कि शिलालेख उचित व अधिकारिक स्थान पर नहीं है। दूसरी यह कि महिला का नाम मुमताज़-उल-ज़मानी था न कि मुमताज़ महल। तीसरी, इमारत के 22 वर्ष में बनने की बात सारे मुस्लिम वर्णनों को ताक में रख कर टॉवेर्नियर नामक एक फ्रांसीसी अभ्यागत के अविश्वसनीय रुक्के से येन केन प्रकारेण ले लिया गया है जो कि एक बेतुकी बात है।

20. शाहजादा औरंगज़ेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी को कम से कम तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक वृतान्तों में दर्ज किया गया है, जिनके नाम ‘आदाब-ए-आलमगिरी’, ‘यादगारनामा’ और ‘मुरुक्का-ए-अकब़राबादी’ (1931 में सैद अहमद, आगरा द्वारा संपादित, पृष्ठ 43, टीका 2) हैं। उस चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगज़ेब ने खुद लिखा है कि मुमताज़ के सातमंजिला लोकप्रिय दफ़न स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगज़ेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान जारी किया और बादशाह से सिफ़ारिश की कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहज़हाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी।

21. जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ने अपनी दैनंदिनी में 18 दिसंबर, 1633 को जारी किये गये शाहज़हां के ताज भवन समूह को मांगने के बाबत दो फ़रमानों (नये क्रमांक आर. 176 और 177) के विषय में लिख रखा है। यह बात जयपुर के उस समय के शासक के लिये घोर लज्जाजनक थी और इसे कभी भी आम नहीं किया गया।

22. राजस्थान प्रदेश के बीकानेर स्थित लेखागार में शाहज़हां के द्वारा (मुमताज़ के मकबरे तथा कुरान की आयतें खुदवाने के लिये) मरकाना के खदानों से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने बाबत जयपुर के शासक जयसिंह को जारी किये गये तीन फ़रमान संरक्षित हैं। स्पष्टतः शाहज़हां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्ज़ा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहज़हां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा (मुमताज़ के मकब़रे के ढोंग पर कुरान की आयतें खोदने का अपवित्र काम करने के लिये) शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने शाहज़हां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा। और इसीलिये पत्थर देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा दिया।

23. शाहज़हां ने पत्थर और शिल्पियों की मांग वाले ये तीनों फ़रमान मुमताज़ की मौत के बाद के दो वर्षों में जारी किया था। यदि सचमुच में शाहज़हां ने ताजमहल को 22 साल की अवधि में बनवाया होता तो पत्थरों और शिल्पियों की आवश्यकता मुमताज़ की मृत्यु के 15-20 वर्ष बाद ही पड़ी होती।

24. और फिर किसी भी ऐतिहासिक वृतान्त में ताजमहल, मुमताज़ तथा दफ़न का कहीं भी जिक्र नहीं है। न ही पत्थरों के परिमाण और दाम का कहीं जिक्र है। इससे सिद्ध होता है कि पहले से ही निर्मित भवन को कपट रूप देने के लिये केवल थोड़े से पत्थरों की जरूरत थी। जयसिंह के सहयोग के अभाव में शाहज़हां संगमरमर पत्थर वाले विशाल ताजमहल बनवाने की उम्मीद ही नहीं कर सकता था।

विदेशी और यूरोपीय अभ्यागतों के अभिलेख द्वारा मत स्‍पष्‍ट करना ( क्रम संख्‍या 25 से 29 तक)
25. टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी था, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को ‘ताज-ए-मकान’, जहाँ पर विदेशी लोग आया करते थे जैसे कि आज भी आते हैं, के पास दफ़नाया था ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। वह आगे और भी लिखता है कि केवल चबूतरा बनाने में पूरी इमारत बनाने से अधिक खर्च हुआ था। शाहज़हां ने केवल लूटे गये तेजोमहालय के केवल दो मंजिलों में स्थित शिवलिंगों तथा अन्य देवी देवता की मूर्तियों के तोड़फोड़ करने, उस स्थान को कब्र का रूप देने और वहाँ के महराबों तथा दीवारों पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिये ही खर्च किया था। मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़फोड़ कर छुपाने और मकब़रे का कपट रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे।

26. एक अंग्रेज अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं।

27. डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है कि मानसिंह का भवन, जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है, शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है। शाहज़हां के दरबार का लेखाजोखा रखने वाली पुस्तक, बादशाहनामा में किस मुमताज़ को उसी मानसिंह के भवन में दफ़नाना दर्ज है।

28. बेर्नियर नामक एक समकालीन फ्रांसीसी अभ्यागत ने टिप्पणी की है कि गैर मुस्लिम लोगों का (जब मानसिंह के भवन को शाहज़हां ने हथिया लिया था उस समय) चकाचौंध करने वाली प्रकाश वाले तहखानों के भीतर प्रवेश वर्जित था। उन्होंने चांदी के दरवाजों, सोने के खंभों, रत्नजटित जालियों और शिवलिंग के ऊपर लटकने वाली मोती के लड़ियों को स्पष्टतः संदर्भित किया है।

29. जॉन अल्बर्ट मान्डेल्सो ने (अपनी पुस्तक `Voyages and Travels to West-Indies’ जो कि John Starkey and John Basset, London के द्वारा प्रकाशित की गई है) में सन् 1638 में (मुमताज़ के मौत के केवल 7 साल बाद) आगरा के जन-जीवन का विस्तृत वर्णन किया है परंतु उसमें ताजमहल के निर्माण के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि सामान्यतः दृढ़तापूर्वक यह कहा या माना जाता है कि सन् 1631 से 1653 तक ताज का निर्माण होता रहा है।

संस्कृत शिलालेख का प्रमाण >>> ( क्रम संख्‍या 30)

30. एक संस्कृत शिलालेख भी ताज के मूलतः शिव मंदिर होने का समर्थन करता है। इस शिलालेख में, जिसे कि गलती से बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है (वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंजिल स्थित कक्ष में संरक्षित है) में संदर्भित है, “एक विशाल शुभ्र शिव मंदिर भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।” शाहज़हां के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को ताजमहल के वाटिका से उखाड़ दिया गया। इस शिलालेख को ‘बटेश्वर शिलालेख’ नाम देकर इतिहासज्ञों और पुरातत्वविज्ञों ने बहुत बड़ी भूल की है क्योंकि क्योंकि कहीं भी कोई ऐसा अभिलेख नहीं है कि यह बटेश्वर में पाया गया था। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम ‘तेजोमहालय शिलालेख’ होना चाहिये क्योंकि यह ताज के वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहज़हां के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था।

शाहज़हां के कपट का एक सूत्र Archealogiical Survey of India Reports (1874 में प्रकाशित) के पृष्ठ 216-217, खंड 4 में मिलता है जिसमें लिखा है, great square black balistic pillar which, with the base and capital of another pillar….now in the grounds of Agra,…it is well known, once stood in the garden of Tajmahal”.

थॉमस ट्विनिंग की अनुपस्थित गजप्रतिमा के सम्‍बन्‍ध में कथन (क्रम संख्‍या 31)

31. ताज के निर्माण के अनेक वर्षों बाद शाहज़हां ने इसके संस्कृत शिलालेखों व देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तथा दो हाथियों की दो विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं के साथ बुरी तरह तोड़फोड़ करके वहाँ कुरान की आयतों को लिखवा कर ताज को विकृत कर दिया, हाथियों की इन दो प्रतिमाओं के सूंड आपस में स्वागतद्वार के रूप में जुड़े हुये थे, जहाँ पर दर्शक आजकल प्रवेश की टिकट प्राप्त करते हैं वहीं ये प्रतिमाएँ स्थित थीं। थॉमस ट्विनिंग नामक एक अंग्रेज (अपनी पुस्तक “Travels in India A Hundred Years ago” के पृष्ठ 191 में) लिखता है, “सन् 1794 के नवम्बर माह में मैं ताज-ए-महल और उससे लगे हुये अन्य भवनों को घेरने वाली ऊँची दीवार के पास पहुँचा। वहाँ से मैंने पालकी ली और….. बीचोबीच बनी हुई एक सुंदर दरवाजे जिसे कि गजद्वार (‘COURT OF ELEPHANTS’) कहा जाता था की ओर जाने वाली छोटे कदमों वाली सीढ़ियों पर चढ़ा।”

कुरान की आयतों के पैबन्द (क्रम संख्‍या 32 व 33 द्वारा)
32. ताजमहल में कुरान की 14 आयतों को काले अक्षरों में अस्पष्ट रूप में खुदवाया गया है किंतु इस इस्लाम के इस अधिलेखन में ताज पर शाहज़हां के मालिकाना ह़क होने के बाबत दूर दूर तक लेशमात्र भी कोई संकेत नहीं है। यदि शाहज़हां ही ताज का निर्माता होता तो कुरान की आयतों के आरंभ में ही उसके निर्माण के विषय में अवश्य ही जानकारी दिया होता।

33. शाहज़हां ने शुभ्र ताज के निर्माण के कई वर्षों बाद उस पर काले अक्षर बनवाकर केवल उसे विकृत ही किया है ऐसा उन अक्षरों को खोदने वाले अमानत ख़ान शिराज़ी ने खुद ही उसी इमारत के एक शिलालेख में लिखा है। कुरान के उन आयतों के अक्षरों को ध्यान से देखने से पता चलता है कि उन्हें एक प्राचीन शिव मंदिर के पत्थरों के टुकड़ों से बनाया गया है।

वैज्ञानिक पद्धति कार्बन 14 द्वारा जाँच >>>>>>

34. ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़े के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहज़हां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहज़हां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।

बनावट तथा वास्तुशास्त्रीय तथ्य द्वारा जॉच (क्रम संख्‍या 35 से 39 तक)

35. ई.बी. हॉवेल, श्रीमती केनोयर और सर डब्लू.डब्लू. हंटर जैसे पश्चिम के जाने माने वास्तुशास्त्री, जिन्हें कि अपने विषय पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, ने ताजमहल के अभिलेखों का अध्ययन करके यह राय दी है कि ताजमहल हिंदू मंदिरों जैसा भवन है। हॉवेल ने तर्क दिया है कि जावा देश के चांदी सेवा मंदिर का ground plan ताज के समान है।

36. चार छोटे छोटे सजावटी गुम्बदों के मध्य एक बड़ा मुख्य गुम्बद होना हिंदू मंदिरों की सार्वभौमिक विशेषता है।

37. चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार स्तम्भों से दिन में चौकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ये स्तम्भ भवन के पवित्र अधिसीमाओं का निर्धारण का भी करती थीं। हिंदू विवाह वेदी और भगवान सत्यनारायण के पूजा वेदी में भी चारों कोणों में इसी प्रकार के चार खम्भे बनाये जाते हैं।

38. ताजमहल की अष्टकोणीय संरचना विशेष हिंदू अभिप्राय की अभिव्यक्ति है क्योंकि केवल हिंदुओं में ही आठ दिशाओं के विशेष नाम होते हैं और उनके लिये खगोलीय रक्षकों का निर्धारण किया जाता है। स्तम्भों के नींव तथा बुर्ज क्रमशः धरती और आकाश के प्रतीक होते हैं। हिंदू दुर्ग, नगर, भवन या तो अष्टकोणीय बनाये जाते हैं या फिर उनमें किसी न किसी प्रकार के अष्टकोणीय लक्षण बनाये जाते हैं तथा उनमें धरती और आकाश के प्रतीक स्तम्भ बनाये जाते हैं, इस प्रकार से आठों दिशाओं, धरती और आकाश सभी की अभिव्यक्ति हो जाती है जहाँ पर कि हिंदू विश्वास के अनुसार ईश्वर की सत्ता है।

39. ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करता है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिमालय में स्थित हिंदू तथा बौद्ध मंदिरों में भी देखे गये हैं। ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग बड़े प्यार के साथ परंतु गलती से इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था। जबकि इस लोकप्रिय मानना के विरुद्ध यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है. गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद ‘अल्लाह’ शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में ‘अल्लाह’ शब्द कहीं भी नहीं है।

ठोस प्रमाण >>> (क्रमांक 40 से 48 तक)

40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे।

41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है।

42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।

43. जहाँ पर आज मुमताज़ का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जा सकता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है।

44. ताज के इस पवित्र स्थान में चांदी के दरवाजे और सोने के कठघरे थे जैसा कि हिंदू मंदिरों में होता है। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली में मोती और रत्नों की लड़ियाँ भी लटकती थीं। ये इन ही वस्तुओं की लालच थी जिसने शाहज़हां को अपने असहाय मातहत राजा जयसिंह से ताज को लूट लेने के लिये प्रेरित किया था।

45. पीटर मुंडी, जो कि एक अंग्रेज था, ने सन् में, मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही चांदी के दरवाजे, सोने के कठघरे तथा मोती और रत्नों की लड़ियों को देखने का जिक्र किया है। यदि ताज का निर्माणकाल 22 वर्षों का होता तो पीटर मुंडी मुमताज़ की मौत के एक वर्ष के भीतर ही इन बहुमूल्य वस्तुओं को कदापि न देख पाया होता। ऐसी बहुमूल्य सजावट के सामान भवन के निर्माण के बाद और उसके उपयोग में आने के पूर्व ही लगाये जाते हैं। ये इस बात का इशारा है कि मुमताज़ का कब्र बहुमूल्य सजावट वाले शिव लिंग वाले स्थान पर कपट रूप से बनाया गया।

46. मुमताज़ के कब्र वाले कक्ष फर्श के संगमरमर के पत्थरों में छोटे छोटे रिक्त स्थान देखे जा सकते हैं। ये स्थान चुगली करते हैं कि बहुमूल्य सजावट के सामान के विलोप हो जाने के कारण वे रिक्त हो गये।

47. मुमताज़ की कब्र के ऊपर एक जंजीर लटकती है जिसमें अब एक कंदील लटका दिया है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था।

48. ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहज़हां के प्रेमाश्रु बताया जाने लगा।

ताजमहल में खजाने वाला कुआँ

49. तथाकथित मस्ज़िद और नक्कारखाने के बीच एक अष्टकोणीय कुआँ है जिसमें पानी के तल तक सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह हिंदू मंदिरों का परंपरागत खजाने वाला कुआँ है। खजाने के संदूक नीचे की मंजिलों में रखे जाते थे जबकि खजाने के कर्मचारियों के कार्यालय ऊपरी म

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अपने सच्चे इतिहास को जानो


अपने सच्चे इतिहास को जानो

अपने सच्चे इतिहास को जानो
दोस्तो, मुहम्मद गजनवी नेँ भारत पर कई हमले किये थे। और गुजरात के सोमनाथ मन्दिर पर उसके हमले काफी कुख्यात है। परन्तु शहर ‘गजनी’ एक हिन्दू राजा “गज सिँह” का बसाया हुआ है। तवारीख-ए-जैसलमेर के पृष्ठ संख्या 9,10 का
एक दोहा बड़ा प्रसिद्ध है-
तीन सत्त अतसक धरम, वैशाखे सित तीन।
रवि रोहिणि गजबाहु नै गजनी रची नवीन।।
यानि गजबाहु नेँ युधिष्ठिर संवत्‌ 308 मेँ गजनी शहर को बसाया था।
प्रसिद्ध अरबी इतिहासकार याकूबी के अनुसार नवीँ शती मेँ भारत की सीमायेँ ईरान तक थी। 712-13 ई॰ मेँ सिँध पर मुसलमानो का अधिकार हो गया पर हिन्दुओँ ने उन्हे चैन से बैठने दिया और ये अधिकार अधूरा ही रहा। लेकिन सिँध की विजय से उत्साहित होकर बुखारा बगदाद के खलीफा बलदीन नेँ अपने गुलाम सेनापति यदीद खाँ को मेवाड़ राजस्थान पर बड़ी विजय के लिए भेजा। उस समय चित्तौड़गढ़ का शासक वीरमान सिँह था और उनके सेनानायक थे ‘बप्पा रावल’ जो खुद उनके भांजे थे। उन्होनेँ आगे बढ़कर यदीद खाँ की सेना का सामना किया, चित्तौड़गढ़ की सहायता मेँ अजमेर, गुजरात, सौराष्ट्र की राजपूत सेनायेँ भी आ गयी।
बड़ा भयानक युद्ध हुआ, हाथी धोड़ो की लाशो के ढेर लग गये, राजपूतोँ की तलवारेँ उन विधर्मियोँ को ऐसे काट रही थी जैसे किसान अपनी फसल बचाने को खर-पतवार काटता है। एक तरफ यदि इस्लामी जेहादी जुनून था तो दूसरी तरफ राष्ट्रधर्म रक्षा की भावना, एक तरफ हवस और लूटपाट थी तो दूसरी तरफ मातृभूमि का रक्षा का संकल्प। अतः युद्ध बप्पा को विजय मिली। बप्पा रावल केवल एक अजेय योद्धा ही नही दूरदर्शी राजनैतिज्ञ भी था। उसने भाग रहे दुश्मनोँ का पीछा किया और उन्हेँ गजनी मेँ जा घेरा। गजनी को वो अपने पूर्वजो की विरासत मानता था। उस समय गजनी का शासक शाह सलीम था, उसने बड़ी सेना के बप्पा से मुकाबला किया लेकिन बप्पा के सामने टिक न सका। जान बचाने के वास्ते अपनी बेटी की शादी बप्पा से करदी। गजनी के सिँहासन पर बैठकर बप्पा ने ईराक, ईरान तक भगवा फहराया, जिसकी पुष्टि अबुल फजल ने भी की है। प्रसिद्ध अग्रेँज इतिहासकार कर्नल.टाड के अनुसार बप्पा ने कई अरबी युवतियोँ से विवाह करके 32 सन्तानेँ पैदा जो आज अरब मेँ नौशेरा पठान के नाम से जाने जाते हैँ।
अफसोस की बात है दोस्तो कि आजादी के बाद सेक्युलरिज्म के नाम हमारे
सच्चे इतिहास को दबा दिया गया।

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राजस्थान की शौर्य गाथा


राजस्थान की शौर्य गाथा 🔘🔲
शूरवीर हिंदूओ के 11 महान सत्य
🔘 1. चित्तौड़ के जयमाल मेड़तिया ने एक
ही झटके में हाथी का सिर काट डाला था ।
🔘 2. करौली के जादोन राजा अपने सिंहासन पर
बैठते वक़्त अपने दोनो हाथ जिन्दा शेरों पर रखते
थे ।
🔘 3. जोधपुर के जसवंत सिंह के 12 साल के
पुत्र पृथ्वी सिंह ने हाथोँसे औरंगजेब के खूंखार
भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था ।
🔘 4. राणा सांगा के शरीर पर युद्धोंके छोटे-
बड़े 80 घाव थे। युद्धों में घायल होने के कारण
उनके एक हाथ नहीं था, एक पैर नही था, एक
आँख नहीं थी। उन्होंने अपने जीवन-काल में 100
से भी अधिक युद्ध लड़े थे ।
🔘 5. एक राजपूत वीर जुंझार जो मुगलों से
लड़ते वक्त शीश कटने के बाद भी घंटे तक लड़ते
रहे आज उनका सिर बाड़मेर में है,
जहाँ छोटा मंदिर हैं और धड़ पाकिस्तान में है।
🔘 6. रायमलोत कल्ला का धड़, शीश कटने के
बाद लड़ता-लड़ता घोड़े पर पत्नी रानी के पास
पहुंच गया था तब रानी ने गंगाजल के छींटे डाले
तब धड़ शांत हुआ।
🔘 7. चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में
जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने की वजह से
कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे। ये
देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज
भगवान की याद आ गयी थी, जंग में दोनों के सर
काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और
राजपूतों की फौज ने दुश्मन को मार गिराया। अंत
में अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित हो कर
जयमाल और कल्ला जी की मूर्तियाँ आगरा के
किले में लगवायी थी।
🔘 8. राजस्थान पाली में आउवा के ठाकुर
खुशाल सिंह 1877 में अजमेर जा कर अंग्रेज
अफसर का सर काट कर ले आये थे और
उसका सर अपने किले के बाहर लटकाया था, तब
से आज दिन तक उनकी याद में मेला लगता है।
🔘 9. महाराणा प्रताप के भाले का वजन
सवा मन (लगभग 50 किलो ) था, कवच
का वजन 80 किलो था। कवच, भाला, ढाल और
हाथ में तलवार का वजन मिलाये तो लगभग
200 किलो था। उन्होंने तलवार के एक ही वार
से बख्तावर खलजी को टोपे, कवच, घोड़े सहित
एक ही झटके में काट दिया था।
🔘 10. सलूम्बर के नवविवाहित रावत रतन
सिंह चुण्डावत जी ने युद्ध जाते समय मोह-वश
अपनी पत्नी हाड़ा रानी की कोई
निशानी मांगी तो रानी ने सोचा ठाकुर युद्ध में मेरे
मोह के कारण नही लड़ेंगे तब रानी ने निशानी के
तौर पर अपना सर काट के दे दिया था।
अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका कर
मुग़ल सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और
वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृ भूमि के लिए
शहीद हो गये थे।
🔘 11. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से
20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से
85000 सैनिक थे। फिर भी अकबर की मुगल
सेना पर राजपूत भारी पड़े थे।
धन्य थे वो हिन्दुस्तान के वीर राजपूत,
हमें अपने हिंदू होने पर गर्व है
॥॥ जय श्री राम ॥॥

|| || Jay Mataji || ||         please share it’s fast fast fast 💪💪👉👉👉⛳⛳⛳

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हल्‍दी वाला दूध पीने के 7 लाभ


हल्‍दी वाला दूध पीने के 7 लाभ
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   बहुत फायदेमंद हैं हल्‍दी वाला दूध। दूध जहां कैल्शियम से भरपूर होता है वहीं दूसरी तरफ हल्‍दी में एंटीबायोटिक होता है। दोनों ही आपके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। और अगर दोनों को एक साथ मिला लिया जाये तो इनके लाभ दोगुना हो जायेगें। आइए हल्‍दी वाले दूध के ऐसे फायदों को जानकर आप इसे पीने से खुद को रोक नहीं पायेगें ।

1.सांस संबंधी समस्‍याओं में लाभकारी
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हल्दी में एंटी-माइक्रोबियल गुण होते है, इसलिए इसे गर्म दूध के साथ लेने से दमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों में कफ और साइनस जैसी समस्याओं में आराम होता है।  यह मसाला आपके शरीर में गरमाहट लाता है और फेफड़े तथा साइनस में जकड़न से तुरन्त राहत मिलती है। साथ ही यह बैक्टीरियल और वायरल संक्रमणों से लड़ने में मदद करता है
2. मोटापा कम करें
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हल्दी वाले दूध को पीने से शरीर में जमी अतिरिक्त चर्बी घटती है। इसमें मौजूद कैल्शियम और मिनिरल और अन्‍य पोषक तत्व वजन घटाने में मदगार होते है।

3. हडि्डयों को मजबूत बनाये
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दूध में कैल्शियम और हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट की मौजूदगी के कारण हल्दी वाला दूध पीने से हडि्डयां मजबूत होती है और साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। हल्दी वाले दूध को पीने से हड्डियों में होने वाले नुकसान और ऑस्टियोपोरेसिस की समस्‍या में कमी आती है ।

4. खून साफ करें
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आयुर्वेदिक परम्‍परा में हल्‍दी वाले दूध को एक बेहतरीन रक्त शुद्ध करने वाला माना जाता है। यह रक्त को पतला कर रक्त वाहिकाओं की गन्दगी को साफ करता है। और शरीर में रक्त परिसंचरण को मजबूत बनाता है।

5. पाचन संबंधी समस्‍याओं में लाभकारी
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हल्‍दी वाला दूध एक शक्तिशाली एंटी-सेप्टिक होता है। यह आंतों को स्‍वस्‍थ बनाने के साथ पेअ के अल्‍सर और कोलाइटिस के उपचार में भी मदद करता है। इसके सेवन से पाचन बेहतर होता है और अल्‍सर, डायरिया और अपच की समस्‍या नहीं होती है।

6. दर्द कम करें
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हल्दी वाले दूध के सेवन से गठिया का निदान होता हैं। साथ ही इसका रियूमेटॉइड गठिया के कारण होने वाली सूजन के उपचार के लिये प्रयोग किया जाता है। यह जोड़ो और मांसपेशियों को लचीला बनाता हकै जिससे दर्द कम हो जाता है

7. गहरी नींद में सहायक
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हल्‍दी शरीर में ट्रीप्टोफन नामक अमीनो अम्ल को बनाता है जो शान्तिपूर्वक और गहरी नींद में सहायक होता है। इसलिए अगर आप रात में ठीक से सो नहीं पा रहें है या आपको बैचेनी हो रही है तो सोने से आधा घंटा पहले हल्दी वाला दूध पीएं। इससे आपको गहरी नींद आएगी और नींद ना आने की समस्या दूर हो जाएगी।

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घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र


‘घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र’
एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो हरएक को जरूर पढ़ना चाहिए –

श्री घनश्यामदास बिर्ला का अपने बेटे के नाम लिखा हुवा पत्र इतिहास के सर्वश्रेष्ठ पत्रों में से एक माना जाता है l विश्व में जो दो सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श पत्र माने गए है उनमें एक है ‘अब्राहम लिंकन का पुत्र के शिक्षक के नाम पत्र’ और दूसरा है ‘घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र’ (कै. घनश्यामदासजी बिड़ला का, अपने पुत्र श्री बसंत कुमार बिड़ला के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र )l –

चि. बसंत…..

यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।

धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं की धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो की अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो। अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे l

भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है l सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है l मैंने देखा है की स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होनेपर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना हैं।

– घनश्यामदास बिड़ला

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एक सेठ था, वो दिन-रात


👒एक सेठ था, वो दिन-रात
💖काम-धँधा बढ़ाने में लगा रहता था,
💛उसको शहर का सबसे
💛अमीर आदमी बनना था।
💚धीरे-धीरे वह नगर सेठ बन गया।
💚इस कामयाबी की ख़ुशी में
💘उसने एक शानदार घर बनवाया।
💘गृह प्रवेश के दिन
✌उसने एक बहुत बड़ी पार्टी दी
✋और जब सारे मेहमान चले गए तो
👉वो अपने कमरे में सोने के लिए गया।
👎वो जैसे ही बिस्तर पर लेटा
👂एक आवाज़ उसके कानो में पड़ी..
💺मैं तुम्हारी आत्मा हूँ,
💺और अब मैं तुम्हारा
💺शरीर छोड़ कर जा रही हूँ !
🚀सेठ घबरा के बोला,
🚀अरे तुम ऐसा नहीं कर सकती,
🚀तुम्हारे बिना तो मैं तो मर ही जाऊँगा,
🚁देखो मैंने कितनी बड़ी
🚁कामयाबी हांसिल की है,
🚁तुम्हारे लिए करोड़ों रूपये का
✈घर बनवाया है,
✈इतनी सारी सुख-सुविधाएं
✈सिर्फ तुम्हारे लिए ही तो हे।
🔋यहाँ से मत जाओ।
🔋आत्मा बोली,
🔋मेरा घर तो तुम्हारा स्वस्थ शरीर था,
📺पर करोड़ों कमाने के चक्कर में
📺तुमने इस अमूल्य शरीर का ही
📺नाश कर डाला,
💊तुम्हें ब्लड प्रेशर, डायबिटीज,
💊थायरॉइड, मोटापा, कमर दर्द
💊आदि बीमारियों ने घेर लिया है।
📡तुम ठीक से चल नहीं पाते,
📡रात को तुम्हे नींद नहीं आती,
📡तुम्हारा दिल भी कमजोर हो चुका है, ⏰तनाव की वजह से ना जाने
⏰और कितनी बीमारियों का
⏰घर बन चुका है
📢तुम्हारा शरीर।तुम ही बताओ
📢क्या तुम ऐसे किसी घर में
📢रहना चाहोगे जहाँ
📷चारो तरफ  कमजोर दिवारें हो,
📷गंदगी हो, जिसकी छत टपक रही हो,
📷जिसके खिड़की दरवाजे टूटे हों,
📹नहीं रहना चाहोगे ना!!…
📹इसलिए मैं भी
📹ऐसी जगह नहीं रह सकती।…
🎥और ऐसा कहते हुए आत्मा
🎥सेठ के शरीर से निकल गयी…
🎥सेठ की मृत्यु हो गयी।
⛵मित्रों, ये कहानी
⛵बहुत से लोगों की हकीकत है,
⛵ऐसा नहीं हे कि आप
☎अपनी मंजिल पर मत पहुँचिये,
☎पर जो भी करिये
☎स्वास्थ्य को सबसे ऊपर रखिये,
💻नहीं तो सेठ की तरह
💻मंजिल पा लेने के बाद भी
💻अपनी सफलता का लुत्फ नहीं उठा पाएँगे
। ॥आनंदम्
O
🌷👏👏🌹🙏🙏🌹👏👏
दुनियाँ के लिए आप
एक व्यक्ति हैं ।
लेकिन परिवार के लिए आप
पूरी दुनियाँ हैं ।।
….आप अपना ख्याल रखें.

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हिन्दू समाज अपने इतिहास के प्रति ही नकारात्मक हो गया है।


हिन्दू समाज अपने इतिहास के प्रति ही नकारात्मक
हो गया है। जिस को देखो वो 800 साल या 1300 साल
की गुलामी की बात करता है।
लोग अपने इतिहास से इतने अनभिज्ञ है की भले
ही उनके पूर्वज गुलाम न रहे हो लेकिन वो खुद
मानसिक रूप से गुलाम हो गए है। ये मानसिक
गुलामी 800 साल या 1300 साल
नही बल्कि 60 साल
पुरानी ही हैँ।
भारत अगर 800 या 1300 साल ग़ुलाम रहता तो आज देश में
हिन्दुओ का नामो निशान ना होता। लेकिन दुर्भाग्य है
की औपनिवेशिक और वामपंथी इतिहास पढ़
पढ़ के हमारी मानसिकता अपने
ही पूर्वजो के गौरवशाली संघर्ष को अपमानित
करने की हो गई हैँ।
दुनिया की किसी और सभ्यता ने इस्लाम
का इतनी सफलतापूर्वक
सामना नही किया जैसा हमने किया है।
भारत में इस्लाम के आगमन के 1100 वर्ष के बाद
भी 1800ई में भारतीय उपमहाद्विप में
मुसलमानों की संख्या 15% से भी कम
थी, बटवारे के समय यह 25% तक पहुँच गई
थी जो आज 40% से ऊपर है। साफ़ है भारत में
मुस्लिम जनसँख्या के बढ़ने का कारण धर्म परिवर्तन से
ज्यादा उनकी जन्म दर है। बहरहाल, हमें
हमेशा 800 साल या 1300
की ग़ुलामी का पाठ जो अँगरेज़ हमे पढ़ा गये,
हम उसे ही पढ़े जा रहे है और इसमें वामपंथियो और
AMU वालोँ ने ये और जोड़ दिया की भारत में इस्लाम के
आगमन से ही आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक
क्रांति हुई, उससे पहले भारत में घोर अंधकार युग था।
हमारी पाठ्य पुस्तकों में
7वीं शताब्दी में सिंध पर अरबो का आक्रमण
और हिंदुओं की हार पढ़ाया जाता है,फिर
सीधे 12वीं शताब्दी में
तुर्को की जीत। बीच में ये जरूर
बता दिया जाता है की इस काल में बहुत सारे राजपूत
राज्य थे जो आपस में लड़ते रहते थे। लेकिन ये
नहीँ बताया जाता की स्पेन तक विजय करने
वाले अरब 7वीं शताब्दी में सिंध में आकर
आगे क्यों नही बढ़ पाए? सिंध में पहली बार
मुसलमानों के आक्रमण के बाद उन्हें 500 साल क्यों लग गए
दिल्ली तक पहुँचने में? अनगिनत बार
राजपूतों द्वारा अरबो और तुर्को की पराजय के बारे में
नही बताया जाता। हां महमूद ग़जनी के
आक्रमणों की चर्चा जरूर होती है लेकिन
उनकी नही जिसमे उसकी हार
हो।
फिर 1204 से 1526 के युग को भारत में सल्तनत युग बता कर
पढ़ाया जाता है जबकि इस काल में इस सल्तनत का वास्तविक शाशन
दिल्ली से 100 कोस तक ही था और इस
100 कोस की सल्तनत का इतिहास
ही भारत का इतिहास बन जाता है। इस दौरान अनेक छोटे
छोटे राज्य स्थापित हुए। लेकिन उनके बारे में बहुत कम
बताया जाता है। उस काल में उत्तर भारत में हिंदुओं का सबसे
बड़ा राज्य मेवाड़ था। उसके बारे में पहला उल्लेख मिलता है जब
ख़िलजी के हाथो मेवाड़ का विध्वंस होता है, उसके बाद
सीधे 1526 में अचानक से राणा सांगा पैदा हो जाते हैँ,
जो दिल्ली की मुस्लिम
सत्ता को चुनौती दे रहे होते हैं। ये मेवाड़
जिसका विध्वंस हो गया था ये इतना ताकतवर कब हो गया?
मालवा और ग्वालियर में इतने ताकतवर हिन्दू राज्य कब और कैसे बन
गए? मारवाड़ और आमेर का उतथान कब हुआ? कितने अनगिनत
युद्धों में राजपूतो ने मुस्लिम शाशकों को हराया,
13वीं सदी के setback के बाद
14वीं-15वीं सदी में कितने
संघर्षो के बाद उत्तर और दक्षिण भारत में सफलतापूर्वक हिन्दू
राज्य बनाए गए, इनके बारे में
कहीँ नही बताया जाता। हम लोगो को सिर्फ
हमारी हार पढाई जाती है।
ना हमारी उससे ज्यादा मिली हुई
जीत के बारे में बताया जाता और ना हमारे सफल संघर्ष के
बारे में।
जागो हिन्दू जागो।

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