भगवान शिव का वाहन – ‘नंदी’
की उत्पत्ती कथा !
पुराणों में यह कथा मिलती है कि शिलाद मुनि के
ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख
उनके पितरोंने अपनी चिंता उनसे व्यक्त
की। शिलाद निरंतर योग तप आदि में व्यस्त रहने के
कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे ।
अतः उन्होंने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से
प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान
मांगा। इंद्र ने इसमें असर्मथता प्रकट की तथा भगवान
शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। तब शिलाद ने कठोर
तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया और उनके
ही समान मृत्युहीन तथा दिव्य पुत्र
की मांग की।
भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने
का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को एक
बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा।
उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के
दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजे जिन्होंने
नंदी को देखकर
भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु
है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव
की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए
वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। भगवान
शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए व दर्शन वरदान दिया-
वत्स नंदी ! तुम मृत्यु से भयमुक्त, अमर और
अदु:खी हो। मेरे अनुग्रह से तुम्हे, जन्म और मृत्यु
किसी से भी भय नहीं होगा।”
भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण
गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणोंके अधिपति के रूप में
नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह
नंदी नंदीश्वर हो गए।
मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ
नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर का वरदान है
कि जहा पर नंदी का निवास
होगा वहा उनका भी निवास होगा। तभी से
हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने
नंदी की स्थापना की जाती है।
मित्रो, शिवजी का वाहन
नंदी पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम का प्रतीक
है। नंदी का एक संदेश यह भी है
कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है, ठीक
उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन
है। जैसे नंदी की दृष्टि शिव
की ओर होती है, उसी तरह
हमारी दृष्टि भी आत्मा की ओर
होनी चाहिये। हर व्यक्ति को अपने
दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए
अच्छी भावना रखना चाहिए। नंदी यह
संकेत देता है कि शरीर का ध्यान
आत्मा की ओर होने पर ही हर
व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है।
इसे ही सामान्य भाषा में मन का स्वच्छ होना कहते
हैं। जिससे शरीर भी स्वस्थ होता है और
शरीर के निरोग रहने पर ही मन
भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस
प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर
कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाते हुए
मनुष्य अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।