Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

!! महाभारत युद्ध का समय !!


!!  महाभारत युद्ध का समय  !!

• महाभारत युद्ध को आमतौर पर वैदिक युग में लगभग ३१०० ईसा पूर्व के समय का माना जाता है। अधिकतर पश्चिमी विद्वान् इसे १००० ईसा पूर्व से १५०० ईसा पूर्व मानते है विद्वानों ने इसकी तिथि निर्धारित करने के लिये इसमें वर्णित सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहणों के बारे में अध्ययन किया है और इसे ३१ वीं सदी ईसा पूर्व का मानते हैं,लेकिन मतभेद अभी भी जारी है। इसकी कई भारतीय और पश्चिमी विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न तिथियाँ निर्धारित की गयी हैं-----

• विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ वराहमिहिर के अनुसार महाभारत युद्ध २४४९ ईसा पूर्व हुआ था।

• विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध १८ फ़रवरी ३१०२ ईसा पूर्व में हुआ था। 

• चालुक्य राजवंश के सबसे महान् सम्राट् पुलकेसि २ के ५वी शताब्दी के ऐहोल अभिलेख में यह बताया गया है कि भारत युद्ध को हुए ३,७३५ वर्ष बीत गए हैं, इस दृष्टि से महाभारत का युद्ध ३१०० ईसा पूर्व लड़ा गया होगा। 

• पुराणों की मानें तो यह युद्ध १९०० ईसा पूर्व हुआ था, पुराणों में दी गई विभिन्न राज वंशावलियों को यदि चन्द्रगुप्त मौर्य से मिला कर देखा जाये तो १९०० ईसा पूर्व की तिथि निकलती है, परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य १५०० ईसा पूर्व में हुआ था, यदि यह माना जाये तो ३१०० ईसा पूर्व की तिथि निकलती है क्योंकि यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक "इंडिका" में जिस चन्द्रगुप्त का उल्लेख किया है वो गुप्त वंश का राजा चन्द्रगुप्त भी हो सकता है। 

• अधिकतर पश्चिमी यूरोपीय विद्वानों जैसे मायकल विटजल के अनुसार भारत युद्ध १२०० ईसा पूर्व में हुआ था, जो इसे भारत में लौह युग (१२००-८०० ईसा पूर्व) से जोड़कर देखते हैं। 

• कुछ पश्चिमी यूरोपीय विद्वानों जैसे पी वी होले महाभारत में वर्णित ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय स्थितियों का अध्ययन करने के बाद इसे १३ नवंबर ३१४३ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं।

• अधिकतर भारतीय विद्वान् जैसे बी ऐन अचर, एन एस राजाराम, के. सदानन्द, सुभाष काक ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के आधार पर इसे ३०६७ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं।

• भारतीय विद्वान् पी वी वारटक महाभारत में वर्णित ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के आधार पर इसे १६ अक्तूबर ५५६१ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं। 

• कुछ विद्वानों जैसे पी वी वारटक  के अनुसार यूनान के राजदूत मेगस्थनीजअपनी पुस्तक "इंडिका" में अपनी भारत यात्रा के समय जमुना(यमुना) के तट पर बसे मेथोरा(मथुरा) राज्य में शूरसेनियों से मिलने का वर्णन करते है,

 मेगस्थनीज यह बताते है कि ये शूरसेनी किसी हेराकल्स नामक देवता की पुजा करते थे और ये हेराकल्स काफी चमत्कारी पुरुष होता था तथा चन्द्रगुप्त से १३८ पीढ़ियों पहले था। हेराकल्स ने कई विवाह किए और कई पुत्र उत्पन्न किए। परन्तु उसके सभी पुत्र आपस में युद्ध करके मारे गये। यहाँ यह साफ है कि ये हेराकल्स श्रीकृष्ण ही थे, विद्वान् इसे हरिकृष्ण कह कर श्रीकृष्ण से जोडते है क्योंकि श्रीकृष्ण चन्द्रगुप्त से १३८ पीढ़ियों पहले थे तो अगर एक पीढ़ी को २०-३० वर्ष दें तो ३१००-५६०० ईसा पूर्व श्रीकृष्ण का जन्म समय निकलता है अत इस हिसाब से ५६००-३१०० ईसा पूर्व के समय महाभारत का युद्ध हुआ होगा।

• मोहनजोदड़ो में १९२७ में मैके द्वारा किये गये पुरातात्विक उत्खनन में मिली एक पत्थर की टेबलेट में एक छोटे बालक को दो पेड़ों को खींचता दिखाया गया है और उन पेड़ों से दो पुरुषों को निकलकर उस बालक को प्रणाम करते हुए भी दिखाया गया है, यह दृश्य भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की यमलार्जुन-लीला से समानता दिखाता है, अत कई विद्वान् यह मानते है कि मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोग महाभारत की कथाओं से परिचित थे। इस कारण भी इस युद्ध को ३००० ईसा पूर्व माना गया है।

!! महाभारत युद्ध का समय !!

• महाभारत युद्ध को आमतौर पर वैदिक युग में लगभग ३१०० ईसा पूर्व के समय का माना जाता है। अधिकतर पश्चिमी विद्वान् इसे १००० ईसा पूर्व से १५०० ईसा पूर्व मानते है विद्वानों ने इसकी तिथि निर्धारित करने के लिये इसमें वर्णित सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहणों के बारे में अध्ययन किया है और इसे ३१ वीं सदी ईसा पूर्व का मानते हैं,लेकिन मतभेद अभी भी जारी है। इसकी कई भारतीय और पश्चिमी विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न तिथियाँ निर्धारित की गयी हैं—–

• विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ वराहमिहिर के अनुसार महाभारत युद्ध २४४९ ईसा पूर्व हुआ था।

• विश्व विख्यात भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध १८ फ़रवरी ३१०२ ईसा पूर्व में हुआ था।

• चालुक्य राजवंश के सबसे महान् सम्राट् पुलकेसि २ के ५वी शताब्दी के ऐहोल अभिलेख में यह बताया गया है कि भारत युद्ध को हुए ३,७३५ वर्ष बीत गए हैं, इस दृष्टि से महाभारत का युद्ध ३१०० ईसा पूर्व लड़ा गया होगा।

• पुराणों की मानें तो यह युद्ध १९०० ईसा पूर्व हुआ था, पुराणों में दी गई विभिन्न राज वंशावलियों को यदि चन्द्रगुप्त मौर्य से मिला कर देखा जाये तो १९०० ईसा पूर्व की तिथि निकलती है, परन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य १५०० ईसा पूर्व में हुआ था, यदि यह माना जाये तो ३१०० ईसा पूर्व की तिथि निकलती है क्योंकि यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक “इंडिका” में जिस चन्द्रगुप्त का उल्लेख किया है वो गुप्त वंश का राजा चन्द्रगुप्त भी हो सकता है।

• अधिकतर पश्चिमी यूरोपीय विद्वानों जैसे मायकल विटजल के अनुसार भारत युद्ध १२०० ईसा पूर्व में हुआ था, जो इसे भारत में लौह युग (१२००-८०० ईसा पूर्व) से जोड़कर देखते हैं।

• कुछ पश्चिमी यूरोपीय विद्वानों जैसे पी वी होले महाभारत में वर्णित ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय स्थितियों का अध्ययन करने के बाद इसे १३ नवंबर ३१४३ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं।

• अधिकतर भारतीय विद्वान् जैसे बी ऐन अचर, एन एस राजाराम, के. सदानन्द, सुभाष काक ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के आधार पर इसे ३०६७ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं।
• भारतीय विद्वान् पी वी वारटक महाभारत में वर्णित ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय गणनाओं के आधार पर इसे १६ अक्तूबर ५५६१ ईसा पूर्व में आरम्भ हुआ मानते हैं।

• कुछ विद्वानों जैसे पी वी वारटक के अनुसार यूनान के राजदूत मेगस्थनीजअपनी पुस्तक “इंडिका” में अपनी भारत यात्रा के समय जमुना(यमुना) के तट पर बसे मेथोरा(मथुरा) राज्य में शूरसेनियों से मिलने का वर्णन करते है,

मेगस्थनीज यह बताते है कि ये शूरसेनी किसी हेराकल्स नामक देवता की पुजा करते थे और ये हेराकल्स काफी चमत्कारी पुरुष होता था तथा चन्द्रगुप्त से १३८ पीढ़ियों पहले था। हेराकल्स ने कई विवाह किए और कई पुत्र उत्पन्न किए। परन्तु उसके सभी पुत्र आपस में युद्ध करके मारे गये। यहाँ यह साफ है कि ये हेराकल्स श्रीकृष्ण ही थे, विद्वान् इसे हरिकृष्ण कह कर श्रीकृष्ण से जोडते है क्योंकि श्रीकृष्ण चन्द्रगुप्त से १३८ पीढ़ियों पहले थे तो अगर एक पीढ़ी को २०-३० वर्ष दें तो ३१००-५६०० ईसा पूर्व श्रीकृष्ण का जन्म समय निकलता है अत इस हिसाब से ५६००-३१०० ईसा पूर्व के समय महाभारत का युद्ध हुआ होगा।

• मोहनजोदड़ो में १९२७ में मैके द्वारा किये गये पुरातात्विक उत्खनन में मिली एक पत्थर की टेबलेट में एक छोटे बालक को दो पेड़ों को खींचता दिखाया गया है और उन पेड़ों से दो पुरुषों को निकलकर उस बालक को प्रणाम करते हुए भी दिखाया गया है, यह दृश्य भगवान श्रीकृष्ण की बचपन की यमलार्जुन-लीला से समानता दिखाता है, अत कई विद्वान् यह मानते है कि मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोग महाभारत की कथाओं से परिचित थे। इस कारण भी इस युद्ध को ३००० ईसा पूर्व माना गया है।

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PK किसके दबाव में रिलीज़ हुइ ‪#‎Pk‬ ?


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किसके दबाव में रिलीज़ हुइ ‪#‎Pk‬ ?
रिलीस को सेंसर बोर्ड के हि सदस्य ने किया था कड़ा विरोध। आपत्तीओ के साथ सुचना प्रसारण मंत्रालय को भी लिखा था पत्र। देखे आपत्ति के डॉकुमेंटस। @aamir_khan

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PK पीके में लगा है ISI का पैसा : सुब्रह्मण्यम स्वामी


पीके में लगा है ISI का पैसा : सुब्रह्मण्यम स्वामी

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समाचार

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subramanian-swamyनई दिल्ली : लगातार फिल्म पीके के खिलाफ चल रहे विरोध के बीच आज सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुदर्शन न्यूज को बयान दिया है। स्वामी का कहना है की फिल्म पीके को बनाने में आईएसआई का पैसा लगा है। साथ ही स्वामी का कहना है की एनआईए अभिनेता आमिर खान ने पूछताछ करें।

आपको बता दें की हाल ही में आई फिल्म पीके का देशभर में विरोध हो रहा है। जगह-जगह लोगों ने फिल्म पीके के खिलाफ सिनेमाघरों के बाहर प्रदर्शन किया है। आपको बता दें की फिल्म पीके में आमिर के खिलाफ हिंदू देवी देवतओं का अपमान करने के आरोप लगे हैं।

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संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति


संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति
अरविंद फाउंडेशन इंडियन कल्चर, पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा के अनुसार, नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उनके अनुसार, संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। परंतु देश का दुर्भाग्य देखिए विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था।
इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू की। नासा के मिशन संस्कृत की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि 20 साल से नासा संस्कृत पर काफी पैसा और मेहनत कर चुकी है। साथ ही इसके कंप्यूटर प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा का भी उल्लेख है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि संस्कृत पढ़ने से गणित और विज्ञान की शिक्षा में आसानी होती है, क्योंकि इसके पढ़ने से मन में एकाग्रता आती है। वर्णमाला भी वैज्ञानिक है। इसके उच्चारण मात्र से ही गले का स्वर स्पष्ट होता है। रचनात्मक और कल्पना शक्ति को बढ़ावा मिलता है। स्मरण शक्ति के लिए भी संस्कृत काफी कारगर है। मिश्रा ने बताया कि कॉल सेंटर में कार्य करने वाले युवक-युवती भी संस्कृत का उच्चारण करके अपनी वाणी को शुद्ध कर रहे हैं। न्यूज रीडर, फिल्म और थिएटर के आर्टिस्ट के लिए यह एक उपचार साबित हो रहा है। अमेरिका में संस्कृत को स्पीच थेरेपी के रूप में स्वीकृति मिल चुकी है।

Writer : Farhana Taj…….. my loving didi…

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राष्ट्रों के संस्कृतनिष्ठ प्राचीन नाम


राष्ट्रों के संस्कृतनिष्ठ प्राचीन नाम
संसार के तमाम देशों के एक से अधिक नाम हैं। अपने देश भारत के ही भारत, इंडिया, हिन्दुस्तान आदि नाम हैं। लेकिन मूलतः जो प्राचीन नाम हैं, वे सब संस्कृत से निकले हैं और शेष शब्द उसके ही पर्यायवाची एवं अपभ्रंश शब्द हैं। जेकालियट ने पृथ्वी के समस्त देशों के नाम संस्कृत के ही बताएं हैं:
देश संस्कृत का नाम
स्वीडन स्वेदन
नार्वे नारावाज (मल्लाहों का देश)
ईरान आर्यान
इजिप्त अजप्त
यूनान यवन
जर्मन शर्मन
डेनमार्क धनमार्ग
आयरलैंड आर्याखंड
अफगान अपगान
फारस वार्ष
रसिया ऋषीय
बल्गारिया बालिगिरीय
प्रशिया प्रऋषीय
जार्डन जर्नादन
उरुग्वे उरुग्वः
ग्वाटेमाला गौतमालय
फलस्तीन पुलस्तिन
वियना (विंडोवन) वृंदावन
हंगेरी शंृगेरी
अंगुल अंगुल (इंग्लैंड को पहले अंगुल कहा जाता था)
‘स्थान’ अर्थात् ‘स्तान’ अन्त्य पदवाले सभी क्षेत्रा संस्कृत-मूलक हैं: जैसे हिन्दुस्तान, अर्वस्तान, अफगानिस्तान, ब्लूचिस्तान आदि।
‘विया’ उर्फ ‘इया’ अन्त्य-पद संस्कृत सूचक है, जैसे रशिया, साइबेरिया (शिविरों का देश)।
‘रान’ शब्द से अन्त होने वाले नगर-उपनगर जैसे तेहरान आदि पूर्व काल में वनों एवं अरण्यों के द्योतक हैं। वीरान आदि शब्द हिन्दी में भी उद्घाटित हो गए हैं।
संस्कृत में एक शब्द ‘अणिक’ है, जिसके पर्यायवाची शब्द सेना, फौज हैं। इसलिए ‘अणिका’ अन्त्य-पद वाले नगर जैसे सलोनिका, वेरोनिका आदि संस्कृत के ही हैं।
‘तल’ अर्थात् समुद्रतल या धरातल जैसे संस्कृत शब्दों से ही कई देशों के नाम पड़े हैं, जैसे तेल अवीव, तेल अमरना इत्यादि।
‘राम’ रामायण के प्रसिद्ध पात्र हैं और उन्हें ईश्वर का अवतार माना जाता है। यही कारण है कि उनके नाम पर विश्वभर में अनेक देश और नगर बसाए गए, जैसे इटली में रोम, जर्मनी में रामस्टीन, बेल्जियम में राम टेम्पिल, फलस्तीन में रामल्ला इत्यादि।
हैम्पशायर, वारविकशायर आदि नामों में ‘शायर’ अन्त्य-पद के प्रतिरूप भारत में रामेश्वर, त्रयम्बकेश्वर, महाबलेश्वर आदि में मिलते हैं। भगवान का अर्थद्योतक ईश्वर आमतौर पर भगवान् शिव का संकेतक है। इंग्लैंड में यही अंत्य-पद शायर उच्चारण किया जाता है। देवेनशायर शब्द निश्चित रूप से देवनेश्वर शब्द ही है। ‘बुरी’/‘बरी’ अंत्य पदों वाले शब्द परी या पुरी का मृदु-तर उच्चारण है। जिस प्रकार ब्रिटेन में वाटरबरी, ऐन्सबरी आदि स्थल हैं, उसी प्रकार भारत में कृष्णापुरी, द्वारकापुरी आदि शब्द हैं। वाटरबरी तो जलपुरी का यथार्थ पर्यायवाची शब्द ही है। ‘बोरा’ या ‘बोरो’ शब्द संस्कृत के ‘पुरा’ का मृदु-तर अल्प-प्राण उच्चारण है। सिंहपुर से सिंगापोर। ‘प्रिन्सेज़ रिसबोरो’ इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध नगर है, यह राजर्षिपुर अर्थात् ऋषि जैसा सम्राट ही है। ब्रिटेन में लंकाशायर संस्कृत शब्द लंकेश्वर है और लंकास्टर शब्द संस्कृत का लंकास्त्रा है। साउथम्पटन आदि में पटन शब्द संस्कृत का पट्नम ही है, भारत में दक्षिण-पट्नम आदि देख सकते हैं।
‘ब्रिज’ संस्कृत शब्द वज्र है, जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रस्थान करने का द्योतक है। ब्रिज यानी कि पुल संस्कृत से ही उत्पन्न है। इसी संदर्भ में आप कैम्ब्रिज शब्द देख सकते हैं, जो पुराणों का संवज्र शब्द ही है। टेम्स नदी तमसा नदी है, जिसका उल्लेख वाल्मीकी रामायण में भी है।

Writer : Farhana Taj….. and yes ek baar firse… this is my loving didi

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वेदों में है ब्रह्मांड का ध्वनि विज्ञान


Farhana Taj
वेदों में है ब्रह्मांड का ध्वनि विज्ञान

वेद ज्ञान को आधार मान कर न्यूलैंड के एक वैज्ञानिक स्टेन क्रो ने एक डिवाइस विकसित कर लिया। ध्वनि पर आधारित इस डिवाइस से मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाती है। इस बिजली की आवश्यकता नहीं होती है। भारत के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओमप्रकाश पांडे के मुताबिक इस डिवाइस का नाम भी ‘ओम’ डिवाइस रखा गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को अपौरुष भाषा इसलिए कहा जाता है कि इसकी रचना ब्रह्मांड की ध्वनियों से हुई है।
उन्होंने बताया कि गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारों और से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती है तो उनका पृथ्वी के आठ बसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है।
उन्होंने बताया कि ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को नासा ने भी माना है। इसलिए यह बात साबित होती है कि वैदिक काल में ब्रह्मांड में होने वाली ध्वनियों का ज्ञान ऋषियों को था।
वेद का प्रत्येक शब्द योगिक है। जैसे कुरान में अकबर का नाम होने से कुरान को मुगल बादशाह अकबर के बाद का नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार कृष्ण, अर्जुन, भारद्वाज आदि नाम वेदों में होने से उनको वेद से पहले नहीं माना जा सकता। वेदों के शब्द पहले के और मनुष्यों के बाद के हैं। योगिक अर्थ की एक झलक इस प्रकार है :
भारद्वाज=मन, अर्जुन=चन्द्रमा, कृष्ण=रात्रि।

जिन्होंने योगिक अर्थो को समझा उन्होंने ऐसी-ऐसी खोज की, भला कैसी? तो जानिए..

1 प्लास्टिक सर्जरी : माथे की त्वचा द्वारा नाक
की मरम्मत
सुश्रुत (4000 -2000 ईसापूर्व )
एक जर्मन विज्ञानी (1968 )
2 कृत्रिम अंग ऋग्वेद (1-116-15)
3 गुणसूत्र गुणाविधि – महाभारत
4 गुणसूत्रों की संख्या 23 महाभारत
5 कान की भोतिक रचना (Anatomy) ऋग्वेद
6 गर्भावस्था के दूसरे महीने में भ्रूण
के ह्रदय की शुरुआत
ऐतरेय उपनिषद 6000
7 महिला अकेले से वंशवृद्धि प्रजनन – कुंती और
माद्री :- पांडव महाभारत : टेस्ट ट्यूब बेबी
8 अ) केवल डिंब(ovum) से ही महाभारत Not possible yet
9 ब) केवल शुक्राणु से ही ऋग्वेद & महाभारत Not possible yet
10 c) डिंब व शुक्राणु दोनों से महाभारत Steptoe, 1979
11 भ्रूणविज्ञान ऐतरेय उपनिषद
12 विट्रो में भ्रूण का विकास महाभारत
13 पेड़ों और पौधों में जीवन महाभारत Bose,19th century.
14 मस्तिष्क के 16 कार्य ऐतरेय उपनिषद 19-20th Century
15 जानवर की क्लोनिंग (कत्रिम उत्पति ) ऋग्वेद —
16 मनुष्य की क्लोनिंग मृत राजा वीणा से पृथु अभी तक नही
17 अश्रु – वाहिनी आंख को नाक से जोडती है
Halebid,Karnataka के शिव मंदिर में एक व्यक्ति को द्वार चौखट में दर्शाया गया है
20th century AD
18. कंबुकर्णी नली (Eustachian Tube ) आंतरिक
कान को ग्रसनी (pharynx) से जोड़ती है
Halebid,Karnataka के शिव मंदिर में शिव गणों को द्वार चौखट में दर्शाया गया है
20th century AD
19 श्याम विविर (Black Holes) Vishvaruchi (मांडूक्य उपनिषद) 20th Century
20 सूरज की किरणों में सात रंग ऋग्वेद (8-72-16)

Farhana Taj
वेदों में है ब्रह्मांड का ध्वनि विज्ञान

वेद ज्ञान को आधार मान कर न्यूलैंड के एक वैज्ञानिक स्टेन क्रो ने एक डिवाइस विकसित कर लिया। ध्वनि पर आधारित इस डिवाइस से मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाती है। इस बिजली की आवश्यकता नहीं होती है। भारत के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओमप्रकाश पांडे के मुताबिक इस डिवाइस का नाम भी 'ओम' डिवाइस रखा गया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को अपौरुष भाषा इसलिए कहा जाता है कि इसकी रचना ब्रह्मांड की ध्वनियों से हुई है।
उन्होंने बताया कि गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारों और से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती है तो उनका पृथ्वी के आठ बसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है।
उन्होंने बताया कि ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को नासा ने भी माना है। इसलिए यह बात साबित होती है कि वैदिक काल में ब्रह्मांड में होने वाली ध्वनियों का ज्ञान ऋषियों को था।
वेद का प्रत्येक शब्द योगिक है। जैसे कुरान में अकबर का नाम होने से कुरान को मुगल बादशाह अकबर के बाद का नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार कृष्ण, अर्जुन, भारद्वाज आदि नाम वेदों में होने से उनको वेद से पहले नहीं माना जा सकता। वेदों के शब्द पहले के और मनुष्यों के बाद के हैं। योगिक अर्थ की एक झलक इस प्रकार है :
भारद्वाज=मन, अर्जुन=चन्द्रमा, कृष्ण=रात्रि।

जिन्होंने योगिक अर्थो को समझा उन्होंने ऐसी-ऐसी खोज की, भला कैसी? तो जानिए..

1 प्लास्टिक सर्जरी : माथे की त्वचा द्वारा नाक
की मरम्मत
सुश्रुत (4000 -2000 ईसापूर्व )
एक जर्मन विज्ञानी (1968 )
2 कृत्रिम अंग ऋग्वेद (1-116-15)
3 गुणसूत्र गुणाविधि - महाभारत
4 गुणसूत्रों की संख्या 23 महाभारत
5 कान की भोतिक रचना (Anatomy) ऋग्वेद
6 गर्भावस्था के दूसरे महीने में भ्रूण
के ह्रदय की शुरुआत
ऐतरेय उपनिषद 6000
7 महिला अकेले से वंशवृद्धि प्रजनन - कुंती और
माद्री :- पांडव महाभारत : टेस्ट ट्यूब बेबी
8 अ) केवल डिंब(ovum) से ही महाभारत Not possible yet
9 ब) केवल शुक्राणु से ही ऋग्वेद & महाभारत Not possible yet
10 c) डिंब व शुक्राणु दोनों से महाभारत Steptoe, 1979
11 भ्रूणविज्ञान ऐतरेय उपनिषद
12 विट्रो में भ्रूण का विकास महाभारत
13 पेड़ों और पौधों में जीवन महाभारत Bose,19th century.
14 मस्तिष्क के 16 कार्य ऐतरेय उपनिषद 19-20th Century
15 जानवर की क्लोनिंग (कत्रिम उत्पति ) ऋग्वेद ---
16 मनुष्य की क्लोनिंग मृत राजा वीणा से पृथु अभी तक नही
17 अश्रु - वाहिनी आंख को नाक से जोडती है
Halebid,Karnataka के शिव मंदिर में एक व्यक्ति को द्वार चौखट में दर्शाया गया है
20th century AD
18. कंबुकर्णी नली (Eustachian Tube ) आंतरिक
कान को ग्रसनी (pharynx) से जोड़ती है
Halebid,Karnataka के शिव मंदिर में शिव गणों को द्वार चौखट में दर्शाया गया है
20th century AD
19 श्याम विविर (Black Holes) Vishvaruchi (मांडूक्य उपनिषद) 20th Century
20 सूरज की किरणों में सात रंग ऋग्वेद (8-72-16)
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