भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी मोक्ष देने वाली एकादशी की महिमा.
महाराज युधिष्ठिर को जब यह पता चला कि श्रीकृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं तो वह उनसे विभिन्न पूजा-संस्कारों के बारे में विमर्श करने लगे. युधिष्ठिर ने मार्गशीर्ष एकादशी की महिमा के बारे में भगवान से पूछा?
भगवान श्रीकृष्ण ने पूर्व जन्म के पापों को नष्ट करने वाली मोक्षदा एकादशी के बारे में बताते हुए गोकुल के राजा वैखानस की कहानी सुनाई.
राजा वैखानस अपनी प्रजा की देखभाल संतान की तरह करते थे. उनकी प्रजा प्रसन्न थी. एक बार वैखानस ने सपना देखा कि उसके पिता नरक भोग रहे हैं. राजा दुखी हुआ.
उसने राज्य के सभी विद्वानों, ब्राह्मणों को अपना सपना बताकर कहा कि उसे नरक में पड़े अपने पिता की मुक्ति करानी है. आप लोग उपाय बताएं.
ब्राह्मणों ने राजा को पर्वत ऋषि से मिलकर हल पूछने को कहा. वैखानश पर्वत ऋषि के आश्रम गए और सपने की बात कह सुनाई. पर्वत मुनि ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोगकर पता लगाया कि आखिर किस पाप के कारण उसके पिता को नरक झेलना पड़ रहा है.
ऋषि ने बताया- आपके पिता की पूर्व जन्म में दो पत्नियां थीं. वह अपनी एक पत्नी से ज्यादा प्रेम करते थे. उस पत्नी के साथ उन्होंने पूरा सांसारिक सुख भोगा और पुत्र भी दिया किंतु दूसरी पत्नी को पुत्र तक देने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि पहली रानी ऐसा नहीं चाहती थीं.
न्यायप्रिय और प्रजापालक राजा ने पत्नी का रति निमंत्रण ठुकराकर उसके साथ अन्याय किया. इस पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा.
राजा ने मुनि से उपाय पूछा. मुनि ने राजा को कहा कि आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उसके पुण्य अपने पिता को दान कर दें. इससे उनकी नर्क से मुक्ति हो जाएगी.
मुनि की सलाह पर राजा ने पूरे परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और पुण्य पिता को अर्पण कर दिया. इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई.
श्रीकृष्ण भगवान ने युधिष्ठिर को यह कथा मार्गशीर्ष एकादशी को सुनाई थी. मोक्ष देने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है.