क्या हिन्दू माताओं को पता है कि रानी पद्मिनी ने खुद को अलाउद्दीन खिलजी के सुपुर्द करने के बजाय किस तरह चलती चिता में कूद कर जौहर कर लेना पसंद किया था ? क्या हिन्दू माताओं को पता है कि एक राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान भी होता था जिसने आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी को युद्ध में 16 बार परास्त किया था और हर बार रहम की भीख मांगने वाले गौरी की जान बख्श दी । लेकिन एक गद्दार के कारण जब वह 17वी बार गौरी से हार गया तो सजा ए मौत देने के पहले गौरी ने पृथ्वी राज का शब्द भेदी बाण चलाने का कौशल देखना चाहा । उसकी आँखों में गर्म लोहे की सलाखें भोक कर उसकी आँखें फोड दी फिर बजाए गये घंटे पर शब्द भेदी बाण चलवा कर देखा। वहीं उसके पास ही उसके राजकवि चंद बरदाई भी मौजूद थे जिन्होंने दो लाइनें बोलकर राजा को बता दिया कि सुलतान मुहम्मद गौरी किस जगह और कितनी दूर बैठकर नजारा देख रहा है। फिर पृथ्वी राज चौहान ने ठीक निशाने पर बाण चला दिया जो सीधा गौरी के गले को भेद गया । अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में जब माताएँ खुद ही नहीं जानेगी तो बच्चों को क्या सुनाएंगी ? और जब हिन्दू बच्चे अपना गौरवशाली इतिहास नहीं जानेंगे और धरम निरपेक्ष शिक्षा उन्हें अकबर महान सिखाती रहेगी और अकबर जोधाबाई के किस्से सुनाती रहेगी तो जोधाबाई पर बनी फिल्में क्यों न हिट होती रहेंगी ? और तब फिर क्यों नहीं हिन्दू बेटियां एक के बाद एक जोधाबाई बनती रहेंगी ? कुछ दिन और इसी तरह धरम निरपेक्षता के तराने गाते रहिये फिर कोई बताने वाला भी न मिलेगा कि कभी यहां पद्मिनी जैसी नारी और पृथ्वी राज चौहान जैसे वीर भी हुए हैं । हम फिल्में चाहे न बना पाएं लेकिन हिन्दू समाज इतिहास के ऐसे पन्नों को नाट्य रूप में अगली पीढी को दिखा तो सकता है । जब वह अपने गौरवशाली इतिहास से परिचित हो जाएगा तो जोधाबाई पर बनी कोई फिल्म हिट न हो पाएगी। जब कमाई न होगी तो ऐसी फिल्में बननी भी बंद हो जाएंगी । काश कोई सोचता कोशिश करता कुछेक ऐतिहासिक फिल्में बनाता जिसमें जोधाबाई अकबर के बजाय पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी होते , एक तरफ पृथ्वी राज चौहान और चंद बरदाई होते और दूसरी तरफ मुहम्मद गौरी होता एक तरफ छत्रपति शिवाजी होते और दूसरी तरफ होता अफजल खां