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इन पेड़ों की जड़ों से हो सकता है भाग्योदय, जानिए प्राचीन उपाय


इन पेड़ों की जड़ों से हो सकता है भाग्योदय, जानिए प्राचीन उपाय
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इन पेड़ों की जड़ों से हो सकता है भाग्योदय, जानिए प्राचीन उपाय
आज के दौर में काफी लोग ज्योतिष विद्या को भी एक विज्ञान ही मानते हैं। इस विद्या से भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी मिल सकती है। साथ ही, जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने के उपाय भी मालूम किए जा सकते हैं। कुंडली के 12 घरों में ग्रहों की अच्छी-बुरी स्थिति के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति का भाग्योदय नहीं हो पाता है। यहां जानिए पेड़ों की जड़ों के उपाय, जिनसे ग्रह दोष दूर होते हैं और व्यक्ति का भाग्योदय हो सकता है…

अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना भी एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते हैं। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।

सभी ग्रहों का अलग-अलग पेड़ों से सीधा संबंध होता है। अत: इन पेड़ों की जड़ों को धारण करने से अशुभ ग्रहों के प्रभाव कम हो जाते हैं। धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं। यहां बताई जा रही जड़ें किसी भी पूजन सामग्री या ज्योतिष संबंधी सामग्रियों की दुकान से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं…

– यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
– चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।

– मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।

– बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
– गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।

– गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

-शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।
– कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।

– केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

यहां बताई गईं सभी जड़े बाजार से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं। सामान्यत: ज्योतिष संबंधी सामग्रियों के विक्रेताओं के यहां इस प्रकार जड़ें मिल सकती हैं। इसके अलावा कुछ वृद्ध लोगों को भी इन जड़ों की जानकारी हो सकती है। उनसे भी इस संबंध मदद प्राप्त की जा सकती है ताकि आपको ये जड़े मिल सके। साथ ही, इन जड़ों को धारण करने से पूर्व किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए।

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इन पेड़ों की जड़ों से हो सकता है भाग्योदय, जानिए प्राचीन उपाय
 आज के दौर में काफी लोग ज्योतिष विद्या को भी एक विज्ञान ही मानते हैं। इस विद्या से भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी मिल सकती है। साथ ही, जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने के उपाय भी मालूम किए जा सकते हैं। कुंडली के 12 घरों में ग्रहों की अच्छी-बुरी स्थिति के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति का भाग्योदय नहीं हो पाता है। यहां जानिए पेड़ों की जड़ों के उपाय, जिनसे ग्रह दोष दूर होते हैं और व्यक्ति का भाग्योदय हो सकता है...

अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना भी एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते हैं। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।

सभी ग्रहों का अलग-अलग पेड़ों से सीधा संबंध होता है। अत: इन पेड़ों की जड़ों को धारण करने से अशुभ ग्रहों के प्रभाव कम हो जाते हैं। धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं। यहां बताई जा रही जड़ें किसी भी पूजन सामग्री या ज्योतिष संबंधी सामग्रियों की दुकान से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं...

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
- चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।

- मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।

- बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
- गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।

- गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

-शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।
- कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।

- केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

यहां बताई गईं सभी जड़े बाजार से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं। सामान्यत: ज्योतिष संबंधी सामग्रियों के विक्रेताओं के यहां इस प्रकार जड़ें मिल सकती हैं। इसके अलावा कुछ वृद्ध लोगों को भी इन जड़ों की जानकारी हो सकती है। उनसे भी इस संबंध मदद प्राप्त की जा सकती है ताकि आपको ये जड़े मिल सके। साथ ही, इन जड़ों को धारण करने से पूर्व किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए।
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रावण की बात नहीं मानी शनि ने और मेघनाद की मृत्यु का बना योग


रावण की बात नहीं मानी शनि ने और मेघनाद की मृत्यु का बना योग
उज्जैन। शनि ने राशि बदल ली है और इस समय लोग यही जानना चाहते हैं कि शनि का उनकी राशि पर कैसा असर हो रहा है। काफी लोग कुंडली में शनि की स्थिति सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं आम लोग ही नहीं राक्षसराज रावण भी शनि की स्थिति को महत्वपूर्ण मानता था। शास्त्रों के अनुसार जब रावण के पुत्र मेघनाद का जन्म होने वाला था, तब रावण ने सभी ग्रहों को शुभ और सर्वश्रेष्ठ स्थिति में रहने का आदेश दिया था। उस समय शनि के अलावा शेष सभी ग्रह रावण की मनचाही स्थिति में आ गए थे। रावण ये बात जानता था कि शनि आयु के देवता हैं और वे आसानी से मेघनाद के लिए शुभ स्थिति निर्मित नहीं करेंगे। शनि ने अंतिम समय पर ऐसी स्थिति निर्मित कर दी थी, जिसके प्रभाव से मेघनाद लक्ष्मण के हाथों मारा गया था।
मेघनाद के लिए रावण की थी ये इच्छा
जब रावण और मंदोदरी के पुत्र मेघनाद का जन्म होने वाला था। तब रावण चाहता था कि उसका पुत्र अजेय हो, जिसे कोई भी देवी-देवता हरा न सके। रावण चाहता था कि उसका पुत्र दीर्घायु भी हो, उसकी मृत्यु हजारों वर्षों बाद ही हो। वह परम तेजस्वी, पराक्रमी, कुशल यौद्धा, ज्ञानी हो।

रावण की बात नहीं मानी शनि ने और मेघनाद की मृत्यु का बना योग
रावण था ज्योतिष का ज्ञाता
रावण प्रकांड पंडित और ज्योतिष का जानकार था। इसी कारण मेघनाद के जन्म के समय उसने ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रहों और नक्षत्रों को ऐसी स्थिति में बने रहने का आदेश दिया कि उसके पुत्र में वह सभी गुण आ जाए जो वह चाहता है।

रावण का प्रभाव इतना था कि सभी ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवता उससे डरते थे। इसी वजह से मेघनाद के जन्म के समय सभी ग्रह वैसी ही राशियों में स्थित हो गए जैसा रावण चाहता था। रावण ये बात जानता था कि शनि देव न्यायाधीश हैं और आयु के देवता हैं। शनि इतनी आसानी से रावण की बात नहीं मानेंगे। अत: रावण ने बल प्रयोग करते हुए शनि को भी ऐसी स्थिति में रखा, जिससे मेघनाद की आयु वृद्धि हो सके।

रावण की बात नहीं मानी शनि ने और मेघनाद की मृत्यु का बना योग
मेघनाद के जन्म के समय शनि ने नजरें कर ली थीं तिरछी
शनि न्यायाधीश हैं, अत: रावण की मनचाही स्थिति में रहते हुए भी उन्होंने ठीक मेघनाद के जन्म के समय अपनी नजरें तिरछी कर ली थीं। शनि की तिरछी नजरों के कारण ही मेघनाद अल्पायु हो गया। जब रावण को इस बात का अहसास हुआ तो वह शनि पर अत्यंत क्रोधित हो गया। क्रोधवश रावण ने शनिदेव के पैरों पर गदा से प्रहार कर दिया। इसी प्रहार की वजह से शनि देव लंगड़े हो गए। तब से शनि की चाल धीमी हो गई।
नौ ग्रहों में सबसे धीमी है शनि की चाल
ज्योतिष के अनुसार सभी नौ ग्रहों में शनि की चाल बहुत धीमी है। शनि एक राशि में करीब ढाई साल रुकता है। इस दौरानतीन राशि पर साढ़ेसाती और दो राशियों पर ढय्या रहती है।

रावण की बात नहीं मानी शनि ने और मेघनाद की मृत्यु का बना योग
मेघनाद था पराक्रमी और शक्तिशाली
शनि के अलावा शेष सभी ग्रहों की शुभ स्थिति के कारण मेघनाद बहुत पराक्रमी और शक्तिशाली था। रावण पुत्र ने देवराज इंद्र को भी परास्त कर दिया था। इसी वजह से मेघनाद का एक नाम इंद्रजीत भी पड़ा। शनि की तिरछी नजरों के कारण मेघनाद अल्पायु हो गया था। श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में लक्ष्मण के हाथों मेघनाद मारा गया।

जो लोग शनि देव से लंबी आयु और श्रेष्ठ जीवन का आशीर्वाद चाहते हैं, उन्हें कुछ उपाय करना चाहिए। आगे की स्लाइड पर जानिए शनि को प्रसन्न करने वाला उपाय..

रावण की बात नहीं मानी शनि ने और मेघनाद की मृत्यु का बना योग
ज्योतिष के अनुसार शनिदेव ही आयु के कारक देवता है। साथ ही, हमें प्राप्त होने वाले सुख-दुख भी काफी हद तक शनिदेव की स्थिति से ही प्रभावित होते हैं। यदि किसी की राशि में शनि की साढ़ेसाती या ढय्या चल रही है तो शनि को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए हैं।
शनि महाराज को प्रसन्न करने के लिए व्यक्ति को अपना आचरण पूरी तरह धार्मिक और पवित्र बनाए रखना चाहिए।
हर शनिवार तेल का दान करें। दान करने से पूर्व एक कटोरी में तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखें। इसके बाद तेल का दान कर दें।
शनि की साढ़ेसाती और ढय्या या अन्य कोई शनि दोष हो तो हर शनिवार को किसी भी पीपल के वृक्ष को दोनों हाथों से स्पर्श करें। साथ ही, पीपल की सात परिक्रमाएं करें। परिक्रमा करते समय शनिदेव का ध्यान करना चाहिए। शनि मंत्र (ऊँ शंशनैश्चराय नम:) का जप करें। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप भी किया जा सकता है। यह उपाय हर शनिवार को करते रहना चाहिए।
Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

पहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतार


पहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतार
बारिश का मौसम गुजरने के बाद ठंड का मौसम दस्तक दे रहा है। इस मौसम में लोग घूमना पसंद करते हैं।dainikbhaskar.com आपको बताने जा रहा है असीरगढ़ के किले के बारे में। जहां कहा जाता है आज भी अश्वत्थामा आज भी पूजा करते हैं।
इंदौर. भारत में मध्यप्रदेश राज्य के बुरहानपुर शहर के पास स्थित असीरगढ़ के किले में। लोक मान्यता है कि इस किले के गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में अश्वत्थामा अमावस्या व पूर्णिमा तिथियों पर शिव की उपासना और पूजा करते हैं।
सतपुड़ा पर्वत की गोद और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित है असीरगढ़ का किला। इस क्षेत्र में ताप्ती और नर्मदा नदी का संगम भी है। यह प्राचीन समय में दक्षिण भारत जाने के द्वार के रूप में भी जाना जाता था। इस किले व मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे करीबी स्थान बुरहानपुर शहर है। जहां से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर असीरगढ़ किले में यह मंदिर स्थित है। यहां पहुंचना मन में अध्यात्म के साथ रोमांच पैदा करता है। यह देश के सभी प्रमुख शहरों से आवागमन के साधनों से जुड़ा है। रेल मार्ग द्वारा खंडवा स्टेशन पहुंचकर भी यहां पहुंचा जा सकता है।
यह मंदिर बहुत पुराना है। यहां तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चढ़ाई करनी होती है। किंतु यहां पर पहुंचने पर विशेष आध्यात्मिक अनुभव होता है। मंदिर चारों ओर खाई व सुरंगो से घिरा है। माना जाता है इस खाई में बने गुप्त रास्ते से ही अश्वत्थामा मंदिर में आते-जाते हैं। इसके सबूत के रूप में मंदिर में सुबह गुलाब के फूल और कुंकुम दिखाई देते हैं।
माना जाता है कि अश्वत्थामा मंदिर के पास ही स्थित इस तालाब में स्नान करते हैं। उसके बाद शिव की आराधना करते हैं। इस मंदिर को लेकर लोक जीवन में एक भय भी फैला है कि अगर कोई अश्वत्थामा को देख लेता है तो उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। किंतु मंदिर के शिवलिंग के लिए धार्मिक आस्था है कि शिव के दर्शन से हर शिव भक्त लंबी उम्र पाने के साथ सेहतमंद रहता है।पहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतारपहाड़ियों पर है ये रहस्यमयी किला, अमावस की रात आता है शिव का अवतार
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ताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौत


ताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौत
(बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा) 
1 नवंबर को मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस है। इस मौके पर dainikbhaskar.com आज आपको बताने जा रहा है प्रदेश के बुरहानपुर में बेगम मुमताज महल के बारे में।
इंदौर। अपनी कई ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाने वाले मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में ही शाहजहां की बेगम मुमताज की असली कब्र है। बुरहानपुर में अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देने के दौरान मुमताज की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्हें छह महीने तक यहीं दफनाया गया। जिसके बाद उनकी कब्र को आगरा ले जाया गया।
जैनाबाद में है असली कब्र 
सम्राट शाहजहां की बेगम मुमताज की मौत न तो आगरा में हुई और न ही उसे वहां दफनाया गया। असल में मुमताज की मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की जैनाबाद तहसील में हुई थी। मुमताज की कब्र ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर आ गया था। उन दिनों मुमताज गर्भवती थी। सात जून 1631 में बच्चे को जन्म देते समय उसकी मौत हो गई। दूसरे दिन गुरुवार की शाम उसे वहीँ आहुखाना के बाग में दफना दिया गया। यह इमारत आज भी खस्ता हाल में है। इतिहासकारों के मुताबिक मुमताज की मौत के बाद शाहजहां का मन हरम में नहीं रम सका। कुछ दिनों के भीतर ही उसके बाल सफ़ेद हो गए। बादशाह जब तक बुरहानपुर में रहे नदी में उतरकर बेगम की कब्र पर हर जुमेरात को वहां गए। जिस जगह मुमताज की लाश रखी गई थी उसकी चारदीवारी में दीये जलाने के लिए आले बने हैं। यहां 40 दिन तक दीये जलाए गए। कब्र के पास एक इबादतगाह भी मौजूद है। एक दिन उसने मुमताज की कब्र पर हाथ रखकर कसम खाई कि तेरी याद में एक ऐसी इमारत बनवाऊंगा, जिसके बराबर की दुनिया में दूसरी नहीं होगी। बताते हैं कि शाहजहां की इच्छा थी कि ताप्ती नदी के तट पर ही मुमताज की स्मृति में एक भव्य इमारत बने। शाहजहां ने ईरान से शिल्पकारों को जैनाबाद बुलवाया। शिल्पकारों ने ताप्ती नदी के का निरीक्षण कर इस जगह पर कोई इमारत बनाने से मना कर दिया। तब शहंशाह ने आगरा की और रुख किया। जिस स्थान पर आज ताजमहल है उसको लेकर लोगों के अलग-अलग मत है।
लाश लाने में खर्च हुए आठ करोड़
कहा जाता है कि इसे बनाने के लिए ईरान, तुर्की, फ़्रांस और इटली से शिल्पकारों को बुलया गया। उस समय वेनिस से प्रसिद्ध सुनार व जेरोनियो को बुलवाया गया था. शिराज से उस्ताद ईसा आफंदी भी आए, जिन्होंने ताजमहल क रूपरेखा तैयार की थी। उसी के अनुरूप कब्र की जगह तय की गई। 22 सालों बाद जब इसका काम पूरा हो गया तो मुमताज के शव को पुनः दफनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। बुरहानपुर के जैनाबाद से मुमताज के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ आगरा ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना दिया गया। जुलूस पर उस समय आठ करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
बुरहानपुर में ही असली कब्र
बुहरानपुर स्टेशन से लगभग दस किलोमीटर दूर शहर के बीच बहने वाली ताप्ती नदी के उस पर जैनाबाद (फारुकी काल), जो कभी बादशाहों की शिकारगाह (आहुखाना) हुआ करता था। दक्षिण का सूबेदार बनाने के बाद शहजादा दानियाल ने इस जगह को अपने पसंद के अनुरूप महल, हौज, बाग-बगीचे के बीच नहरों का निर्माण करवाया। लेकिन 8 अप्रेल 1605 को मात्र तेईस साल की उम्र मे सूबेदार की मौत हो गई। इसके बाद आहुखाना उजड़ने लगा। जहांगीर के शासन काल में अब्दुल रहीम खानखाना ने ईरान से खिरनी एवं अन्य प्रजातियों के पौधे मंगवाकर आहुखाना को फिर से ईरानी बाग के रूप में विकसित कराया। इस बाग का नाम शाहजहां की पुत्री आलमआरा के नाम पर रखा गया।
बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हामिद लाहौरी साहब के मुताबिक शाहजहां की प्रेयसी मुमताज महल की जब प्रसव के दौरान मौत हो गई तो उसे यहीं पर स्थाई रूप से दफ़न कर दिया गया था। जिसके लिए आहुखाने के एक बड़े हौज़ को बंद करके तल घर बनाया गया और वहीँ पर मुमताज के जनाजे को छह माह रखने के बाद शाहजहां का बेटा शहजादा शुजा, सुन्नी बेगम और शाह हाकिम वजीर खान, मुमताज के शव को लेकर बुहरानपुर के इतवारागेट-दिल्ली दरवाज़े से होते हुए आगरा ले गए. जहां पर यमुना के तट पर स्थित राजा मान सिंह के पोते राजा जय सिंह के बाग में में बने ताजमहल में सम्राट शाहजहां की प्रेयसी एवं पत्नी मुमताज महल के जनाजे को दोबारा दफना दिया गया।ताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौतताजमहल में नहीं यहां दफनाई गई थीं मुमताज, बच्चे को जन्म देते हुई थी मौत
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हनुमानजी भी चकित रह गए थे, रावण की लंका में ये अनोखी चीजें देखकर!


हनुमानजी भी चकित रह गए थे, रावण की लंका में ये अनोखी चीजें देखकर!
उज्जैन। वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब हनुमानजी लंका पहुंचे तो उन्होंने देखा एक सुंदर भवन शोभा पा रहा है। यह भवन बहुत बड़ा है। उसकी लंबाई एक योजन और चौड़ाई आधे योजन यानी लंबाई लगभग 8 मील और चौड़ाई 4 मील की थी। राक्षस राज रावण का यह महल बहुत भव्य था।

सीता की खोज करते हुए जब हनुमान वहां पहुंचे तो रावण के इस सुंदर महल का अवलोकन करते हुए एक सुंदर गृह में जा पहुंचे जो राक्षस राज रावण का निजी निवास था। चार दांत व तीन दांत वाले हाथी उस भवन को चारों और से घेर कर खड़े थे। रावण का वह महल उसकी राक्षस जातियों की पत्नियों और हर कर लाई हुई राज कन्याओं से भरा था। रावण के उस महल की भव्यता अद्भुत थी। महल के अंदर अनेक गुप्त गृह और मंगल गृह बने हुए थे।

उस लंबे-चौड़े भवन में महल के बीच का भाग पुष्पक विमान था। जिसका निर्माण बहुत ही सुंदर ढंग से किया गया था। वह भवन मतवाले हाथियों से युक्त था। विश्वकर्मा ने बहुत ही दक्षता से उस गृह का निर्माण किया था। सोने और स्फटिक की खिड़कियां महल की खूबसूरती को चार-चांद लगा रही थी। उस भवन का फर्श मंहगे और बहुमूल्य मोतियों से बना था।

हनुमानजी भी चकित रह गए थे, रावण की लंका में ये अनोखी चीजें देखकर!

धर्म डेस्क|Nov 18, 2014, 09:48AM IST

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हनुमानजी भी चकित रह गए थे, रावण की लंका में ये अनोखी चीजें देखकर!
इसके बाद हनुमानजी को विशेष प्रकार की सुगंध का एहसास हुआ जो उनको अपनी तरफ खींच रही थी। हनुमानजी उस सुगंध की ओर चल पड़े। उन्होंने वहां एक बहुत बड़ी हवेली देखी। जो बहुत ही सुंदर थी। उसमें मणियों की सीढ़ियां बनी थी। मणियों और स्फटिक के बने खंबे थे।

उस हवेली में बहुमूल्य बिछौने बिछे हुए थे। स्वयं राक्षसराज रावण उसमें निवास करता था। हनुमानजी ने उस जगह को देखकर सोचा यह स्वर्ग लोक है। इन्द्र लोक है या देवलोक है। यह इंद्र पुर भी हो सकती है या ब्रह्मलोक भी हो सकता है। उन्हें उस महल की खूबसूरती को देखकर ये अनोखा भ्रम हुआ। वे अंतर ही नहीं कर पा रहे थे कि ये ऐश्वर्य ब्रह्मलोक का है या लंका का।

हनुमानजी ने कालीन पर बैठी हुई अनेक सुंदर स्त्रियों को देखा। वे स्त्रियां रंग-बिरंगे वस्त्र पहने और फूल मालाएं धारण किए हुए थीं। पवनकुमार ने उन सुंदरी युवतियों के चेहरे देखे, उनसे कमलो की सी सुगंध फैल रही थी। वे सारी स्त्रियां मदमस्त होकर बेहाल पड़ी थी। वे सभी रावण में इतनी आसक्त थी कि अपने पास सोई सौतो में भी उन्हें रावण दिखाई दे रहा था।

राजर्षियों, दैत्यों, गंधर्वों आदि की कन्याएं काम के वशीभूत होकर रावण की पत्नियां बन गई थी। उनमें से कुछ का रावण ने युद्ध की इच्छा से हरण किया था और कुछ खुद मोहित होकर उसकी सेवा में उपस्थित हो गई थी। कुछ आगे बढऩे पर हनुमानजी ने वीर राक्षसराज रावण को सोते देखा, वह सुंदर आभूषणों से विभूषित था।

हनुमानजी भी चकित रह गए थे, रावण की लंका में ये अनोखी चीजें देखकर!
उसके कानों में कुंडल झिलमिला रहे थे। उसकी आंखें लाल थी। उसके वस्त्र सुनहरे थे। वह रात को स्त्रियों के साथ क्रीड़ा कर मदिरा पान कर आराम कर रहा था। उसका पलंग बहुमूल्य रत्नों से जड़ा था। उस महल में वैसे तो अनेक स्त्रियां सो रही थी, लेकिन शय्या एकांत में बिछी थी। उस शैय्या पर सोई एक रूपवती स्त्री को हनुमानजी ने देखा। वह मोती और मणियों से जड़े हुए आभूषण पहने थी। उसका रंग गोरा था। उसमें गज़ब का आकर्षण दिखाई दे रहा था। उसका नाम मंदोदरी था। वह अपने मनोहर रूप से सुशोभित हो रही थी।
वह उस अंंत:पुर की स्वामिनी थी। हनुमानजी ने उसी को देखा। उसकी सुंदरता और आभूषणों को देखकर अनुमान लगाया कि यह सीताजी हैं। यह सोचकर वे आनंद से झूम उठे अपनी पूंछ को पटक कर चूमने लगे।

फिर उस समय वह विचार छोड़कर हनुमानजी अपनी स्वाभाविक स्थिति में आए और सीताजी के विषय में दूसरी तरह से सोचने लगे। उन्होंने सोचा सीताजी श्रीरामचंद्रजी से बिछुड़ गई हैं। वे इस दशा में न तो सो सकती हैं, न भोजन कर सकती हैं। न सिंगार कर सकती है। मदिरा का सेवन भी वे किसी प्रकार से भी नहीं कर सकती हैं। इसलिए यह सीता नहीं कोई दूसरी स्त्री है।

हनुमानजी भी चकित रह गए थे, रावण की लंका में ये अनोखी चीजें देखकर!
थोड़ा और आगे गए तो हनुमानजी ने रावण की पानभूमि यानी उसके महल की रसोई देखी जहां हिरण, भैसों व सूअरों का मांस रखा था। सोने के बड़े-बड़े बर्तनों में मोर, मुर्गा, सूअर, गेंडा, साही, हिरण का मांस भी देखा। वे अभी खाए नहीं गए थे। वहां कई तरह के भोजन सजे हुए पड़े थे। साथ ही, उनके साथ अनेक तरह की चटनियां थी। उस महल में कहीं पायल तो कहीं बाजूबंद पड़े थे। मदपान किए हुए पात्र यहां-वहां लुढ़क रहे थे।

पूरी पान भूमि को फूलों से सजाया गया था। उन सभी को देखकर महाकपि शंकित हो गए। उनके मन में ये संदेह हो गया कि इस तरह सोई हुई स्त्रियों को देखना अच्छा नहीं है। ये मेरे धर्म का विनाश कर देगा। फिर ये सोचने लगे कि प्रभु की आज्ञा के कारण यहां आया हूं और मेरे मन में कोई विकार नहीं है। मैंने साफ मन से रावण के अंत:पुर का अन्वेषण किया, यहां जानकी नहीं दिखाई देती हैं। उसके बाद हनुमानजी वहां से आगे बढ़े और दूसरी जगहों पर माता-सीता को खोजना आरंभ किया।

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इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!


इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!

इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(उदयपुर का चित्तौडगढ का किला।)
उदयपुर. पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करने वाला राजस्थान खुद में कई रोचक तथ्य छुपाए हुए है। यहां पर बने किलों का इतिहास हजारों साल पुराना है। उन्हीं किलों में से एक है चित्तौडगढ का किला। यह किला विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल है। इस किले के बारे में माना जाता है कि महाभारत के पात्र भीम ने यहां करीब 5000 वर्ष पूर्व एक किले का निर्माण करवाया था। वहीं इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण राजा चित्रांगद द्वारा सातवीं शताब्दी में करवाया गया था।
चित्तौडगढ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। यह 700 एकड़ में फैला हुआ है। यह धरती से 180 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ की शिखा पर बना हुआ है। माना जाता है कि पांडव के दूसरे भाई भीम जब संपत्ति की खोज में निकले तो रास्ते में उनकी एक योगी से मुलाकात हुई। उस योगी से भीम ने पारस पत्थर मांगा। इसके बदले में योगी ने एक ऐसे किले की मांग की जिसका निर्माण रातों-रात हुआ हो।
भीम ने अपने बल और भाइयों की सहायता से किले का काम लगभग समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ थोड़ा-सा कार्य शेष था। इतना देख योगी के मन में कपट उत्पन्न हो गया। उसने जल्दी सवेरा करने के लिए यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा। जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी। जहां भीम ने लात मारी वहां एक बड़ा सा जलाशय बन गया। आज इसे ‘भीमलात’ के नाम से जाना जाता है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
700 एकड़ में फैला है यह किला

चित्तौड़गढ़ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। यह 700 एकड़ में फैला हुआ है। यह किला 3 मील लंबा और आधे मील तक चौड़ा है। किले के पहाड़ी का घेरा करीब 8 मील का है। इसके चारो तरफ खड़े चट्टान और पहाड़ थे। साथ ही साथ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए लगातार सात दरवाजे कुछ अन्तराल पर बनाए गये थे। इन सब कारणों से किले में प्रवेश कर पाना शत्रुओं के लिए बेहद मुश्किल था।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(चित्तौड़गढ़ किले के अंदर कलिका माता का मंदिर।)
महावीर स्वामी का मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है

जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में ओसवाल महाजन गुणराज ने करवाया थ। हाल ही में जीर्ण-शीर्ण अवस्था प्राप्त इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग ने किया है। इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। आगे महादेव का मंदिर आता है। मंदिर में शिवलिंग है तथा उसके पीछे दीवार पर महादेव की विशाल त्रिमूर्ति है, जो देखने में समीधेश्वर मंदिर की प्रतिमा से मिलती है। कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को पाण्डव भीम अपने बाजूओं में बांधे रखते थे।

इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
विजय स्तम्भ

यह स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप अनुठा है। इसके प्रत्येक मंजिल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है। इसमें भगवानों के विभिन्न रुपों और रामायण तथा महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां खुदी हैं। कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंजिल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है। बिजली गिरने से एक बार इसके ऊपर की छत्री टूट गई थी, जिसकी महाराणा स्वरुप सिंह ने मरम्मत करायी।

इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- चित्तौड़गढ़ किले के किले के अंदर बना पानी का कुंड।)
मिट्टी से बनी चट्टान

किले के अंत में दीवार के 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है। यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊंचा उठवाया, ताकि किले पर आक्रमण कर सके। प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक-एक मोहर दी गई थी।

इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- चित्तौड़गढ़ के द्वार पाडन पोल की तस्वीर।)
पाडन पोल
इस किले में नदी के जल प्रवाह के लिए दस मेहरावें बनी हैं, जिसमें नौ के ऊपर के सिरे नुकीले हैं। यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहां तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- गणेश पोल।)
हनुमान पोल
दुर्ग के तृतीय प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास ही हनुमान जी का मंदिर है। हनुमान जी की प्रतिमा चमत्कारिक एवं दर्शनीय हैं।
गणेश पोल
हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है। इसके पास ही गणपति जी का मंदिर है।
जोड़ला पोल
यह दुर्ग का पांचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- राम पोल।)
लक्ष्मण पोल
दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।
राम पोल
लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है, जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं। यह दरवाजा किला का सातवां तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है। इस दरवाजे के बाद चढ़ाई समाप्त हो जाती है।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- चित्तौड़गढ़ किले के किले के अंदर बना पानी का कुंड।)
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- पदमिनी महल।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- पदमिनी महल के अंदर का नजारा।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- फतह प्रकाश पैलेस।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- गोमुख कुण्ड।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- किले का कुम्भा श्याम मंदिर।
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
(फोटो- पदमिनी पैलेस।)
इस किले में एक वीर ने मारी थी लात और बन गया एक बड़ा तालाब!
फोटो- राणा कुम्भा महल।
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क्या हिन्दू माताओं को पता है


क्या हिन्दू माताओं को पता है कि रानी पद्मिनी ने खुद को अलाउद्दीन खिलजी के सुपुर्द करने के बजाय किस तरह चलती चिता में कूद कर जौहर कर लेना पसंद किया था ? क्या हिन्दू माताओं को पता है कि एक राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान भी होता था जिसने आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी को युद्ध में 16 बार परास्त किया था और हर बार रहम की भीख मांगने वाले गौरी की जान बख्श दी । लेकिन एक गद्दार के कारण जब वह 17वी बार गौरी से हार गया तो सजा ए मौत देने के पहले गौरी ने पृथ्वी राज का शब्द भेदी बाण चलाने का कौशल देखना चाहा । उसकी आँखों में गर्म लोहे की सलाखें भोक कर उसकी आँखें फोड दी फिर बजाए गये घंटे पर शब्द भेदी बाण चलवा कर देखा। वहीं उसके पास ही उसके राजकवि चंद बरदाई भी मौजूद थे जिन्होंने दो लाइनें बोलकर राजा को बता दिया कि सुलतान मुहम्मद गौरी किस जगह और कितनी दूर बैठकर नजारा देख रहा है। फिर पृथ्वी राज चौहान ने ठीक निशाने पर बाण चला दिया जो सीधा गौरी के गले को भेद गया । अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में जब माताएँ खुद ही नहीं जानेगी तो बच्चों को क्या सुनाएंगी ? और जब हिन्दू बच्चे अपना गौरवशाली इतिहास नहीं जानेंगे और धरम निरपेक्ष शिक्षा उन्हें अकबर महान सिखाती रहेगी और अकबर जोधाबाई के किस्से सुनाती रहेगी तो जोधाबाई पर बनी फिल्में क्यों न हिट होती रहेंगी ? और तब फिर क्यों नहीं हिन्दू बेटियां एक के बाद एक जोधाबाई बनती रहेंगी ? कुछ दिन और इसी तरह धरम निरपेक्षता के तराने गाते रहिये फिर कोई बताने वाला भी न मिलेगा कि कभी यहां पद्मिनी जैसी नारी और पृथ्वी राज चौहान जैसे वीर भी हुए हैं । हम फिल्में चाहे न बना पाएं लेकिन हिन्दू समाज इतिहास के ऐसे पन्नों को नाट्य रूप में अगली पीढी को दिखा तो सकता है । जब वह अपने गौरवशाली इतिहास से परिचित हो जाएगा तो जोधाबाई पर बनी कोई फिल्म हिट न हो पाएगी। जब कमाई न होगी तो ऐसी फिल्में बननी भी बंद हो जाएंगी । काश कोई सोचता कोशिश करता कुछेक ऐतिहासिक फिल्में बनाता जिसमें जोधाबाई अकबर के बजाय पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी होते , एक तरफ पृथ्वी राज चौहान और चंद बरदाई होते और दूसरी तरफ मुहम्मद गौरी होता एक तरफ छत्रपति शिवाजी होते और दूसरी तरफ होता अफजल खां

Posted in गौ माता - Gau maata

पंचगव्य का उपयोग


भाई राजीव दिक्षीत
नियमीत रुपसे शरीर श्रम करना ::-
स्त्री के लिए शरीर श्रम :- घर में चटनी हात से खलबत्ते में बनाना, रोटी बनाना, कपडे धोना, जाता चलाना, दिन में 15 मिनट जाता चलाने से स्त्री के गर्भाशय का व्यायाम होता है I
पुरुष के लिए शरीर श्रम :- खेत में नांगर चलाना, जिन्हें नांगर चलाना संभव नहीं उन्हें सिडीया चढना और उतरना, ज्यादा से ज्यादा पैदल चलना 5-7 किलोमीटर यह श्रम करने चाहीए I
आयुर्वेदिक घरगुती उपाय
1) कच्चे लहसुन की 1-2 कली पिसकर प्रात:काल चाटने से उच्चरक्तदाब सामान्य होता है I
2) नारीयल पाणी में जीरा मिलाकर पिने से अतीसार में आराम मिलता है I
3) जुकाम में कच्चा प्याज काटकर खाने से नाक बहना बंद होता है I
4) निम की निंबोली खुन की खराबी को पूरी तरह से ठीक करती है I
5) खीर खाने से पित्त कम होता है I
पंचगव्य का उपयोग
1) गोमूत्र पित्ताशय (लीव्हर) को ठिक कर रक्त की शुध्दी करता है I
2) लाल, पिली देसी गाय का दूध पित्त नाशक होता है I
3) शक्कर मिला हुआ दही पिणे से रक्तदोष का नाश होता है I
4) माइग्रेन होनेपर देसी गाय का घी रामबाण इलाज है I
5) आग से जलजानेपर देसी गाय के गोबर का लेप लगायें आराम मिलेगा I
देसी गायीचे आजार
1) गोबर न करना या पतला करना I
2) आंखो का लाल हो जाना I
3) जल्दी-ज्दीला सांस लेना I
4) मूख सुखना I
5) मूख और नाक से पाणी गिरना I
शेतीचे महत्त्व ::–
भूमीची मशागत –
अमेरीकेतील संशोधनाने हे सिध्द केले आहे की, बैलाच्या श्वासोच्छश्वासाने पिकांचा दर्जा सुधारतो, तसेच ट्रॅक्टरने फक्त जमीनीत वरच्यावर फक्त कोरीव काम होते व खणलेली माती पुन्हा तिथेच टाकली जाते.
बैलाने केलेली नांगरणी अधीक श्रेष्ठ आहे. कारण यामध्ये ही खणलेली/उकरलेली माती बरोबर सरीच्या एकाच बाजुला टाकली जाते.
आपको कोई शारीरिक प्रोब्लेम हो तो Whats app पर कॉन्टॉक्ट करें 9922144444
www.krishnapriyagoshala.org

Krishnapriya Goshala's photo.
Krishnapriya Goshala's photo.
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Posted in ज्योतिष - Astrology

आइये जाने रात को झूठे बर्तन क्यों नहीं रखना चाहिए?


आइये जाने रात को झूठे बर्तन क्यों नहीं रखना चाहिए?

हमारे यहां दैनिक कार्यों से जुड़ी भी अनेक परंपराएं बनाई गई है। जैसे सुबह जल्दी उठना, नहाने के बाद ही मंदिर जाना या पूजा करना, शाम के समय सफाई नहीं करना व रात को झूठे बर्तन नहीं छोडऩा आदि। 

हमारे यहां बनाई गई ऐसी हर एक परंपरा के पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण भी जरूर छूपा होता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार रात्रि को झूठे बर्तन छोडऩा निषिद्ध माना गया है। क्योंकि इससे घर की सुख व समृद्धि नष्ट होती है और साथ ही घर में अलक्ष्मी का वास होता है।

इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि रात को घर में झूठे बर्तन रखने से उन बर्तनों में छोटे-छोटे बैक्टिरिया जन्म ले लेते हैं और रातभर में इनकी संख्या तेजी से बढऩे लगती है। सुबह इन बर्तनों की सफाई करने पर भी इनमें बैक्टिरिया रह जाते हैं जो बीमारियों का कारण बनते हैं। साथ ही अगर वास्तुशास्त्र के दृष्टीकोण से भी रात्रि को घर में बर्तन रखना शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा बढऩे लगती है और सकारात्मक ऊर्जा कम होने लगती है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि रात को झूठे बर्तन नहीं छोडऩा चाहिए।

नम्र निवेदन है की "हिंदुत्व" के अखंड और अनंत समुद्र की इन कुछ बूंदों को शेयर द्वारा अपने अन्य मित्रों तक भी गर्व से शेयर करें ... _/|\_

जय हिंदुत्व ...
जय हिन्द ... वन्देमातरम ...

आइये जाने रात को झूठे बर्तन क्यों नहीं रखना चाहिए?

हमारे यहां दैनिक कार्यों से जुड़ी भी अनेक परंपराएं बनाई गई है। जैसे सुबह जल्दी उठना, नहाने के बाद ही मंदिर जाना या पूजा करना, शाम के समय सफाई नहीं करना व रात को झूठे बर्तन नहीं छोडऩा आदि।

हमारे यहां बनाई गई ऐसी हर एक परंपरा के पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण भी जरूर छूपा होता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार रात्रि को झूठे बर्तन छोडऩा निषिद्ध माना गया है। क्योंकि इससे घर की सुख व समृद्धि नष्ट होती है और साथ ही घर में अलक्ष्मी का वास होता है।

इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि रात को घर में झूठे बर्तन रखने से उन बर्तनों में छोटे-छोटे बैक्टिरिया जन्म ले लेते हैं और रातभर में इनकी संख्या तेजी से बढऩे लगती है। सुबह इन बर्तनों की सफाई करने पर भी इनमें बैक्टिरिया रह जाते हैं जो बीमारियों का कारण बनते हैं। साथ ही अगर वास्तुशास्त्र के दृष्टीकोण से भी रात्रि को घर में बर्तन रखना शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा बढऩे लगती है और सकारात्मक ऊर्जा कम होने लगती है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि रात को झूठे बर्तन नहीं छोडऩा चाहिए।

नम्र निवेदन है की “हिंदुत्व” के अखंड और अनंत समुद्र की इन कुछ बूंदों को शेयर द्वारा अपने अन्य मित्रों तक भी गर्व से शेयर करें … _/|\_

जय हिंदुत्व …
जय हिन्द … वन्देमातरम …

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

EIGHT STATEMENTS ABOUT PANDIT JAWAHARLAL NEHRU BY HIS CONTEMPORARIES


EIGHT STATEMENTS ABOUT PANDIT JAWAHARLAL NEHRU BY HIS CONTEMPORARIES

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One of the significant things carefully buried by the Nehruvian ecosystem that monopolized the Indian public discourse for nearly six decades is the fact of how often and how sharply Jawaharlal Nehru was criticized in his own time by his colleagues within the party and the Government.The following is a random selection of eight such striking criticisms of Nehru by his own contemporaries:

1. I charge you with communalism because you are bringing forward a law about monogamy only for Hindu community. Take it from me that the Muslim community is prepared to have it but you are not brave enough to do it.

J.B. Kripalani, in 1955 during the parliamentary debate on the Hindu Code Bill.

2. The Prime Minister has practically helped the Chinese to bring their border down to the Indian border. Looking at all these it seems to me that it would be an act of levity not to believe that India, if it is not exposed to aggression right now, is exposed to aggression and that aggression might well be committed by people who always are in the habit of committing aggression….

Quoted from Dhananjay Keer’s Ambedkar, page 455

3. Just as in the days of the Mughals, ministers would play with the Nawab’s children, today you are being worshipped, and your worshippers have put up bholi-bhali Indu’s name for the post of the Congress president. And perhaps you have accepted it without blinking an eye……Please don’t be under the misapprehension that this lining up of supporters for the proposal to put up Indu’s name is entirely due to the force of her personality. It is being done hundred per cent to please you.”

Mahavir Tyagi’s letter translated in Papers of Jawaharlal Nehru edited by Madhavan Palat, under the auspices of the Nehru Memorial Museum and Library.

4. The discussion had scarcely begun when Jawaharlal Nehru flew into a rage and upbraided Sardar for his action and attitude towards Hyderabad. He also directed his wrath against V.P. Menon. He concluded his outburst with the remark that in future he would himself attend to all matters relating to Hyderabad. The vehemence of his attack, as well as its timing, shocked everyone present…….Shri V.P. Menon and H.M. Patel have borne out the truth of the foregoing incident.

K M Munshi, Pilgrimage to Freedom

5. When I was back in Delhi (after successful integration of Hyderabad) Sardar insisted that I should call on Jawaharlal Nehru as a matter of courtesy. When I went to the Prime Minister’s office in Parliament House, he came out in the ante-room and frigidly accosted me: “Hello Munshi”. “I have come to call on you, now that I am back in Delhi,” I said. He almost turned as if to go; then he turned round, shook hands with me and left. I told Sardar how sorry I was to have accepted his advice to see Jawaharlal Nehru. Sardar laughed and said: “Some of them are angry that you helped in liquidating the Ittehad power. Some others are angry that you did not allow them to remove the Nizam from Hyderabad straightway. Some cannot vent their anger on me, and therefore make you the target.”

K M Munshi, Pilgrimage to Freedom

6. To Pandit Nehru’s statement in the Indian Parliament in the prelude to the Sino-Indian War that “Not a blade of grass grows in Aksai Chin”, by which he attemptedto explain that Aksai Chin was a barren land and India had lost little by its occupation by China. Mahavir Tyagi replied, pointing to his own bald head: “Nothing grows here ..should it be cut off or given away to somebody else?

Sandhya Jain,  Our China policy is a saga of failures

7. The Sardar was favoured by the provincial Congress committees as the next party president, but Motilal Nehru wrote to Gandhiji asking that Jawaharlal should succeed him. Motilal wanted to see his son Congress chief before he died. My father agreed with Bapu that Motilalji’s wish be fulfilled…The influence of Mridula Sarabhai and Rafi Ahmad Kidwai on Nehru was to a large extent responsible for the rift between my father and Jawaharlal.

Maniben Patel in Sardar Patel’s Correspondence, Volume 10.

8.  I consider the Planning Commission not merely ill-timed but in its working and general set-up ill-conceived. The Planning Commission was tending to become a parallel cabinet…it would weaken the authority of the Finance Ministry and gradually reduce the Cabinet to practically a registering authority.

The Planning Commission was totally unnecessary and in fact hardly qualified for its work…there was a general tendency amongst the various Ministries to disregard the authority of the Standing Finance Committee and that some of the greatest offenders were the Ministers directly under the control of the Prime Minister. When departures from accepted practice were approved by the Prime Minister, it has a demoralizing effect on other departments of Government.

Dr. John Matthai, Finance Minister in a press statement issued upon his resignation. Quoted in  Sardar Patel’s Correspondence, Volume 10.