‘चतुर्विंशे युगे रामोवसिष्ठेन पुराधसा । सप्तमो रावणस्यार्थे जज्ञे दशरथात्मजः ।।’
(वायुपुराण, 98.72; मत्स्यमहापुराण, 47.245)
‘चतुर्विंशयुगे चापि विश्वामित्रपुर: सर: । रामो दशरथस्याथ पुत्र: पद्मायतेक्षणः ।।’
(हरिवंशपुराण, 1.41.121; ब्रह्माण्डमहापुराण, 104.11)
‘अस्मिन्मन्वन्तरे ऽतीतेचतुर्विंशतिकेयुगे । भवतीर्यरघुकुलगृहे दशरथस्यच ।।’
(पद्ममहापुराण, 8.66-67)
एकमात्र महर्षि वेदव्यासकृत ‘अध्यात्मरामायण’ (सुन्दरकाण्ड, 1.48) में उल्लेख है कि श्रीराम का जन्म 28वें चतुर्युग के त्रेता में हुआ था-
‘पुराहं ब्रह्मणा प्रोक्ता ह्यषविंशतिपर्यये । त्रेतायुगे दाशरथि रामो नारायणोऽव्ययः ।।’
किन्तु, विष्णुमहापुराण (3.3.18) में श्रीराम को स्पष्टतः 24वें त्रेतायुग में ही बताया गया है। विष्णुमहापुराण में 7वें वैवस्वत मन्वन्तर के गत 27 चतुर्युगों के एवं वर्तमान 28वें चतुर्युग के क्रमानुसार 28 वेदव्यासों के नाम गिनाए गये हैं। इसमें स्पष्ट रूप से अंकित है कि 24वें त्रेतायुग में हुए (24वें) वेदव्यास भृगुवंशीय ऋक्ष थे जो बाद में वाल्मीकि कहलाये-
‘ऋक्षोऽभुद्भार्गवस्तस्माद्वाल्मीर्किऽभिधीयते । तस्मादस्मत्पिता शक्तिर्व्यासस्मादहं मुने।।’
चूँकि रामकथा के अनुसार महर्षि वाल्मीकि और श्रीराम समकालीन थे और देवी सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही लव और कुश को जन्म दिया था, अतः विष्णुमहापुराण में संकलित वेदव्यासों की सूची से भी यह सिद्ध हो जाता है कि श्रीराम 24वें त्रेतायुग में अवतीर्ण हुए थे, 28वें में नहीं। महाभारत (शान्तिपर्व, 339.85) के अनुसार त्रेता और द्वापर की सन्धि में श्रीरामावतार सिद्ध होता है-
‘संध्यंशे समनुप्राप्ते त्रेतायां द्वापरस्य च । अहं दाशरथी रामोभविष्यामि जगत्पतिः ।।’
इस दृष्टि से विक्रम संवत् 2071 और ईसवी सन् 2014 तक श्रीरामजन्म के 1 करोड़ 81 लाख 49 हज़ार और 116 वर्ष होते हैं-
श्रीरामजन्मपर्यंत 24वाँ त्रेता, द्वापर, कलियुग 12,96,000 वर्ष
25, 26, 27वाँ चतुर्युग (3×43,20,000 वर्ष=) 1,29,60,000 वर्ष
28वाँ सत्ययुग, त्रेता, द्वापर 38,88,000 वर्ष
ईसवी सन् 2008 तक 28वाँ कलियुग (3102 + 2014) 5,116 वर्ष
1,81,49,116 वर्ष
सन् 2002 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के एक खोजी उपग्रह ने रामेश्वरम् से लंका तक विस्तृत 48 किमी. (30 मील) लंबे श्रीरामसेतु के चित्र लेकर सेतु निर्माण-काल 17,50,000 वर्ष पूर्व निर्धारित किया है। इस गणना से श्रीराम का समय अध्यात्मरामायण के मतानुसार 28वें त्रेतायुग के तृतीय चरण में सिद्ध हो जाता है-
किन्तु केवल इसी एकमात्र साक्ष्य के आधार पर श्रीराम को 28वें त्रेतायुग में नहीं घुसेड़ा जा सकता, क्योंकि एक तो पुरातात्त्विक सामग्रियों का तिथि-निर्धारण, और वही भी लाखों-करोड़ों वर्ष प्राचीन वस्तु का, अत्यन्त टेढ़ा कार्य है; इसमें भूल की पूरी-पूरी सम्भावना रहती है, यह बात प्रसिद्ध इतिहासकार डा. देवसहाय त्रिवेद ने अपने एक आलेख ‘कार्बन से तिथि-निर्धारण’ में स्वयं स्वीकार किया है। दूसरा, श्रीराम को 28वें त्रेतायुग में रखने पर सम्पूर्ण पुराण-साहित्य पर एक बड़ा प्रश्न-चिह्न लग सकता है, क्योंकि सारे पुराणों में प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय इतिहास का एक संयत लेखा प्रस्तुत करते हैं और इनके आधार पर भगवान् श्रीकृष्ण, महाभारत युद्ध और भगवान् बुद्ध के काल सहित अनेकानेक ऐतिहासिक गुत्थियों को सुलझाया जा चुका है। अतः हमें श्रीराम के कालखण्ड के लिये ‘नासा’ द्वारा निर्धारित तिथि 17,50,000 वर्ष पूर्व को न अपनाकर राम का समय 1,81,49,116 वर्ष पूर्व को अपनाना चाहिये। इतना तो अवश्य ही कहा जायेगा कि उपग्रह द्वारा खींचे गये चित्र, और उसके द्वारा निर्धारित राम के काल-निर्धारण ने राष्ट्रवादी इतिहासकारों को प्राचीन भारतीय इतिहास के काल-निर्धारण में अधिकाधिक अनुसन्धान के प्रति प्रेरित तो किया ही है, साथ ही उन दामपंथी-वामपंथी इतिहासकारों को करारा तमाचा भी लगाया है जो भारतीय इतिहास को चार-पाँच हज़ार वर्ष के भीतर ठूँसते रहे हैं। इतना ही नहीं, श्रीराम को 24वें त्रेतायुग में रखने का पुरातात्त्विक आधार भी प्राप्त है। वाल्मीकीयरामायण (सुन्दरकाण्ड) में लंका में पाये जानेवाले 4 दाँतोंवाले हाथियों का उल्लेख है-
‘वाजिहेषितसंघुष्टं नादितं भूषणैस्तथा । रथैर्यानैर्विमानैश्च तथा हयगजैः शुभैः ।।
वारणैश्च चतुर्दन्तैः श्वेताभ्रनिचयोपमः । भूषितै रुचिरद्वारं मत्तैश्च मृगपक्षिभिः ।।’
‘Encarta Encyclopædia’ के अनुसार 4 दाँतोंवाले हाथी ‘Mastodontoidea’ (Die Mastodonten) कहलाते थे जो इस पृथिवी पर 3.8 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व के मध्य तक विद्यमान थे । इनके लुप्त हो जाने पर ‘Mastodons’ नामक दो दाँतोंवाले हाथी आये । इस प्रमाण से भी सिद्ध होता है कि 4 दाँतोंवाले हाथी, जो 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व ही लुप्त हो गये, वे श्रीराम के समय (1,81,49,110 वर्ष पूर्व) अवश्य ही विद्यमान थे।
भगवान् श्रीरामचन्द्र की 1,81,49,116वीं जन्मोत्सव पर,
प्रेम से बोलो आनन्दकन्द भगवान् श्रीरामचन्द्र जी की जय !!!