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हिन्दू दाम्पत्य जीवन में आदर्श धर्मपत्नी का एक अन्यतम उदाहरण द्रष्टव्य है:



भारतीय इतिहासकारों का एक बड़ा वर्ग (दामपंथी इतिहासकारों का) राम को सन्देह और घृणा की दृष्टि से देखते हुए उनकी ऐतिहासिकता पर प्रश्न-चिह्न लगाता है। रामभक्त राष्ट्रवादी इतिहासकारोंका वर्ग भी राम के वास्तविक कालखण्ड से युगों दूर, पाँच-सात हज़ार वर्ष ई.पू. के आस-पास नाचता रहा है । यद्यपि कुछेक ने पौराणिक परम्परा के आधार पर राम के वास्तविक कालखण्ड तक पहुँचने का साहस अवश्य जुटाया है, तथापि ऐसे इतिहासकार सदैव उपेक्षित ही रहे हैं और उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती सिद्ध हुई है। श्रीराम त्रेतायुग में अवतरित हुए थे, यह सर्वमान्य तथ्य है । त्रेतायुग में स्वयं नारायण ने दशरथ के यहाँ ‘राम’ नाम से अवतार लिया था। किन्तु श्रीराम त्रेतायुग में ही नहीं, बल्कि 24वें त्रेतायुग में जन्मे थे-
‘चतुर्विंशे युगे रामोवसिष्ठेन पुराधसा । सप्तमो रावणस्यार्थे जज्ञे दशरथात्मजः ।।’
(वायुपुराण, 98.72; मत्स्यमहापुराण, 47.245)
‘चतुर्विंशयुगे चापि विश्वामित्रपुर: सर: । रामो दशरथस्याथ पुत्र: पद्मायतेक्षणः ।।’
(हरिवंशपुराण, 1.41.121; ब्रह्माण्डमहापुराण, 104.11)
‘अस्मिन्मन्वन्तरे ऽतीतेचतुर्विंशतिकेयुगे । भवतीर्यरघुकुलगृहे दशरथस्यच ।।’
(पद्ममहापुराण, 8.66-67)
एकमात्र महर्षि वेदव्यासकृत ‘अध्यात्मरामायण’ (सुन्दरकाण्ड, 1.48) में उल्लेख है कि श्रीराम का जन्म 28वें चतुर्युग के त्रेता में हुआ था-
‘पुराहं ब्रह्मणा प्रोक्ता ह्यषविंशतिपर्यये । त्रेतायुगे दाशरथि रामो नारायणोऽव्ययः ।।’
किन्तु, विष्णुमहापुराण (3.3.18) में श्रीराम को स्पष्टतः 24वें त्रेतायुग में ही बताया गया है। विष्णुमहापुराण में 7वें वैवस्वत मन्वन्तर के गत 27 चतुर्युगों के एवं वर्तमान 28वें चतुर्युग के क्रमानुसार 28 वेदव्यासों के नाम गिनाए गये हैं। इसमें स्पष्ट रूप से अंकित है कि 24वें त्रेतायुग में हुए (24वें) वेदव्यास भृगुवंशीय ऋक्ष थे जो बाद में वाल्मीकि कहलाये-
‘ऋक्षोऽभुद्भार्गवस्तस्माद्वाल्मीर्किऽभिधीयते । तस्मादस्मत्पिता शक्तिर्व्यासस्मादहं मुने।।’
चूँकि रामकथा के अनुसार महर्षि वाल्मीकि और श्रीराम समकालीन थे और देवी सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही लव और कुश को जन्म दिया था, अतः विष्णुमहापुराण में संकलित वेदव्यासों की सूची से भी यह सिद्ध हो जाता है कि श्रीराम 24वें त्रेतायुग में अवतीर्ण हुए थे, 28वें में नहीं। महाभारत (शान्तिपर्व, 339.85) के अनुसार त्रेता और द्वापर की सन्धि में श्रीरामावतार सिद्ध होता है-
‘संध्यंशे समनुप्राप्ते त्रेतायां द्वापरस्य च । अहं दाशरथी रामोभविष्यामि जगत्पतिः ।।’
इस दृष्टि से विक्रम संवत् 2071 और ईसवी सन् 2014 तक श्रीरामजन्म के 1 करोड़ 81 लाख 49 हज़ार और 116 वर्ष होते हैं-
श्रीरामजन्मपर्यंत 24वाँ त्रेता, द्वापर, कलियुग 12,96,000 वर्ष
25, 26, 27वाँ चतुर्युग (3×43,20,000 वर्ष=) 1,29,60,000 वर्ष
28वाँ सत्ययुग, त्रेता, द्वापर 38,88,000 वर्ष
ईसवी सन् 2008 तक 28वाँ कलियुग (3102 + 2014) 5,116 वर्ष
1,81,49,116 वर्ष
सन् 2002 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के एक खोजी उपग्रह ने रामेश्वरम् से लंका तक विस्तृत 48 किमी. (30 मील) लंबे श्रीरामसेतु के चित्र लेकर सेतु निर्माण-काल 17,50,000 वर्ष पूर्व निर्धारित किया है। इस गणना से श्रीराम का समय अध्यात्मरामायण के मतानुसार 28वें त्रेतायुग के तृतीय चरण में सिद्ध हो जाता है-
किन्तु केवल इसी एकमात्र साक्ष्य के आधार पर श्रीराम को 28वें त्रेतायुग में नहीं घुसेड़ा जा सकता, क्योंकि एक तो पुरातात्त्विक सामग्रियों का तिथि-निर्धारण, और वही भी लाखों-करोड़ों वर्ष प्राचीन वस्तु का, अत्यन्त टेढ़ा कार्य है; इसमें भूल की पूरी-पूरी सम्भावना रहती है, यह बात प्रसिद्ध इतिहासकार डा. देवसहाय त्रिवेद ने अपने एक आलेख ‘कार्बन से तिथि-निर्धारण’ में स्वयं स्वीकार किया है। दूसरा, श्रीराम को 28वें त्रेतायुग में रखने पर सम्पूर्ण पुराण-साहित्य पर एक बड़ा प्रश्न-चिह्न लग सकता है, क्योंकि सारे पुराणों में प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय इतिहास का एक संयत लेखा प्रस्तुत करते हैं और इनके आधार पर भगवान् श्रीकृष्ण, महाभारत युद्ध और भगवान् बुद्ध के काल सहित अनेकानेक ऐतिहासिक गुत्थियों को सुलझाया जा चुका है। अतः हमें श्रीराम के कालखण्ड के लिये ‘नासा’ द्वारा निर्धारित तिथि 17,50,000 वर्ष पूर्व को न अपनाकर राम का समय 1,81,49,116 वर्ष पूर्व को अपनाना चाहिये। इतना तो अवश्य ही कहा जायेगा कि उपग्रह द्वारा खींचे गये चित्र, और उसके द्वारा निर्धारित राम के काल-निर्धारण ने राष्ट्रवादी इतिहासकारों को प्राचीन भारतीय इतिहास के काल-निर्धारण में अधिकाधिक अनुसन्धान के प्रति प्रेरित तो किया ही है, साथ ही उन दामपंथी-वामपंथी इतिहासकारों को करारा तमाचा भी लगाया है जो भारतीय इतिहास को चार-पाँच हज़ार वर्ष के भीतर ठूँसते रहे हैं। इतना ही नहीं, श्रीराम को 24वें त्रेतायुग में रखने का पुरातात्त्विक आधार भी प्राप्त है। वाल्मीकीयरामायण (सुन्दरकाण्ड) में लंका में पाये जानेवाले 4 दाँतोंवाले हाथियों का उल्लेख है-
‘वाजिहेषितसंघुष्टं नादितं भूषणैस्तथा । रथैर्यानैर्विमानैश्च तथा हयगजैः शुभैः ।।
वारणैश्च चतुर्दन्तैः श्वेताभ्रनिचयोपमः । भूषितै रुचिरद्वारं मत्तैश्च मृगपक्षिभिः ।।’
‘Encarta Encyclopædia’ के अनुसार 4 दाँतोंवाले हाथी ‘Mastodontoidea’ (Die Mastodonten) कहलाते थे जो इस पृथिवी पर 3.8 करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व के मध्य तक विद्यमान थे । इनके लुप्त हो जाने पर ‘Mastodons’ नामक दो दाँतोंवाले हाथी आये । इस प्रमाण से भी सिद्ध होता है कि 4 दाँतोंवाले हाथी, जो 1.5 करोड़ वर्ष पूर्व ही लुप्त हो गये, वे श्रीराम के समय (1,81,49,110 वर्ष पूर्व) अवश्य ही विद्यमान थे।
भगवान् श्रीरामचन्द्र की 1,81,49,116वीं जन्मोत्सव पर,
प्रेम से बोलो आनन्दकन्द भगवान् श्रीरामचन्द्र जी की जय !!!
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भारते संस्कृता भाषा कामधेनुः प्रकीर्तिता जननी विश्वभाषाणां विज्ञानस्योपकारिणी



भारते संस्कृता भाषा कामधेनुः प्रकीर्तिता
जननी विश्वभाषाणां विज्ञानस्योपकारिणी
(भारतमें संस्कृत भाष कामधेनु समान सुप्रसिद्ध है | यह सम्पूर्ण विश्वकी भाषा है और विज्ञानका पोषण करेनवाली हैं !)
भविष्य में संस्कृत मुख्य भाषा के रूप में सामने आएगी। दूसरे देश के शिक्षाविद् व विशेषज्ञ इस भाषा में शोध करेंगे, जबकि हमें उसका अनुकरण करना होगा। आगामी १०-१५ वर्षों के बाद पूरे विश्व में संस्कृत का साम्राज्य स् See More
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खुद को दलित या मूलनिवासी कहने वाले पाखंडियो से मै ये


खुद को दलित या मूलनिवासी कहने वाले पाखंडियो से मै ये
पूंछना चाहूँगा की क्या उनका बाबा महाराजा गायकवाड का अहसान चुका सकता है। महाराजा गायकवाड ने ही पूरा खर्चा उठाया था आंबेडकर की पढाई का…..
आंबेडकर अगर आगे बढ़ा तो सिर्फ और
सिर्फ महाराजा गायकवाड की अनुकम्पा और
दया से….
इसीलिए संविधान को कॉपी पेस्ट करने की ताकत
उसमे आई। इतना पढ़ाने के बाद भी वो संविधान
को कॉपी पेस्ट करना ही सीख पाया …. हद है यार

— with Satendar Yadav and 20 others.

खुद को दलित या मूलनिवासी कहने वाले पाखंडियो से मै ये
पूंछना चाहूँगा की क्या उनका बाबा महाराजा गायकवाड का अहसान चुका सकता है। महाराजा गायकवाड ने ही पूरा खर्चा उठाया था आंबेडकर की पढाई का.....
आंबेडकर अगर आगे बढ़ा तो सिर्फ और
सिर्फ महाराजा गायकवाड की अनुकम्पा और
दया से....
इसीलिए संविधान को कॉपी पेस्ट करने की ताकत
उसमे आई। इतना पढ़ाने के बाद भी वो संविधान
को कॉपी पेस्ट करना ही सीख पाया .... हद है यार
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परमभागवत, आंजनेय श्रीहनुमज्जयन्ती (चैत्र शुक्ल पूर्णिमा) पर जानें कि उनकी १२ विशाल प्रतिमाएं कहाँ-कहाँ पर स्थित हैं और उनकी ऊंचाई कितनी है. इनमें से एक प्रतिमा दक्षिण अमेरिका के त्रिनिदाद और टोबैगो में भी है.



परमभागवत, आंजनेय श्रीहनुमज्जयन्ती (चैत्र शुक्ल पूर्णिमा) पर जानें कि उनकी १२ विशाल प्रतिमाएं कहाँ-कहाँ पर स्थित हैं और उनकी ऊंचाई कितनी है. इनमें से एक प्रतिमा दक्षिण अमेरिका के त्रिनिदाद और टोबैगो में भी है.
बुद्धिर्बलं यशो धैर्यं निर्भयत्वम् अरोगिता ।
अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्स्मरणात् भवेत् ॥
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एक अत्यंत आश्चर्यजनक तथ्य. कृपया अवश्य पढ़ें :



एक अत्यंत आश्चर्यजनक तथ्य. कृपया अवश्य पढ़ें :

आज से लगभग छः सौ वर्ष पूर्व सन्त रविदास (1388-1508) ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक परमपूज्य श्री माधवराव सदाशिवराव गोळवळकर उपाख्य ‘गुरुजी’ (1906-1973) के द्वारा राष्ट्रकार्य की भविष्यवाणी की थी :

‘यह विधि बीते काल कुछ, प्रगटें माधवराय ।
ऊँच-नीच बिसराय कर सबको देय मिलाय ।।
‘गुरु’ नाम से सब जग जानै, इनको ‘परम पूज्य’ अति मानै ।
सत्यपंथ का कर उद्धारा, देश धर्म का कर विस्तारा ।।
करै संगठन बन ब्रह्मचारी, उन समान कौउन उपकारी ।
ये कह मौन भये रविदासा, विनयपूर्ण मुनि प्रेम प्रकासा ।।’
-रविदास रामायण, २०७-२०९

संत रविदास ने कहा है कि कुछ काल बीतने के बाद देश में “माधवराय” नाम से एक संत प्रकट होंगे जो ऊँच-नीच का भेद भुलाकर सभी को गले लगाएंगे. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में किसी से भी उसकी जाति नहीं पूछी जाती है. “माधवराय” अथवा “माधवराव” को कालांतर में “गुरूजी” के नाम से जाना गया– यह तो सभी जानते हैं. इन्हें “परम पूज्य” भी कहा गया क्योंकि श्री गुरुजी संघ के द्वितीय सरसंघचालक थे और सरसंघचालक को “परम पूज्य” सम्बोधन प्राप्त है. गुरु जी के समय में संघकार्य का चतुर्दिक विस्तार हुआ था और संघ के अंतर्गत अनेकानेक अनुषांगिक संगठन स्थापित हुए. गुरूजी ने विवाह नहीं किया और ब्रह्मचारी बनकर देश-धर्म का कार्य करते रहे. ३३ वर्षों तक सरसंघचालक रहकर भारतमाता की ६६ बार प्रदक्षिणा की.

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राहुल गांधी का डी.एन.ए. कराना चाहिए कि उसका (असली) पिता कौन है.



राहुल गांधी का डी.एन.ए. कराना चाहिए कि उसका (असली) पिता कौन है. उसके संभावित पिता हैं: संजय गांधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, राजीव गांधी इत्यादि.
सोनिया का भारत में आगमन एक विषकन्या के रूप में हुआ है. जिन-जिन कांग्रेस नेताओं को सोनिया की सच्चाई के बारे में पता लगा, उन-उनको सोनिया ने चुन-चुनकर अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा दिया.
सोनिया भारत में रोमन कैथोलिक चर्च (वेटिकन सिटी) के प्रधान पोप (पाप के मसीहा) के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है. भारतीय राजनीति में आने के बाद सोनिया ने महाभारत के शकुनि की तरह कांग्रेस (कुरु) वंश को भीतर-भीतर समाप्त करना शुरू किया. क्रमश: १. संजय गांधी, २. इंदिरा गांधी, ३. राजीव गांधी, ४. ज्ञानी जैल सिंह, ५. राजेश पायलट और ६. माधवराव सिंधिया- ये सभी नेता सोनिया के आने के बाद येन-केन-प्रकारेण या तो एक्सीडेंट से मरे या मार दिए गए. कुछ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक परमपूज्य श्री कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन जी ने कहा था कि सोनिया ने इंदिरा गांधी की हत्या करवाई तो कॉंग्रेसी घबड़ा गए थे. इतनी सारी मौत महज एक संयोग नहीं हो सकती I

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इंडियन नेशनल कांग्रेस के राष्ट्रद्रोह का मुखर विरोध करनेवाले बड़े-बड़े भाजपा-नेता दुनिया से हमेशा के लिए उठा दिए गए हैं.



इंडियन नेशनल कांग्रेस के राष्ट्रद्रोह का मुखर विरोध करनेवाले बड़े-बड़े भाजपा-नेता दुनिया से हमेशा के लिए उठा दिए गए हैं.
जिस भारतीय जनसंघ की नीव पर भाजपा आज खड़ी है, उस जनसंघ के ३-३ राष्ट्रीय अध्यक्ष- १९५३ में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, १९६३ में प्रख्यात प्राच्यविद डा. आचार्य रघुवीर और १९६८ में प्रख्यात चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय मौत के घाट उतार दिए गए.
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रीनगर जेल की एक छोटी कोठरी में ठूंसकर मार दिया गया; डा. आचार्य रघुवीर को सड़क-एक्सीडेंट में उड़ा दिया गया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तो बड़ी नृशंस हत्या हुई. उनके तो हाथ-पैर मरोड़कर तोड़ डाले गए थे और चेहरे को भी विकृत कर दिया गया था ताकि उनकी पहचान न हो सके. यहाँ तक कि उनका मृत शरीर मुगलसराय रेलवे स्टेशन के यार्ड में लावारिस पड़ा मिला था. बड़ी मुश्किल से (नानाजी देशमुख की घड़ी से) उनकी पहचान हो पाई. परम पूज्यनीय श्री गुरुजी दीनदयाल जी की मृत्यु पर रो पड़े थे.
उक्त तीनों महान विभूतियों में से किसी की भी हत्या का रहस्य आज तक नहीं खुल पाया है.
श्री नरेन्द्र मोदी से अपेक्षा है कि उनके कार्यकाल में इन नेताओं की मृत्यु के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए सार्थक प्रयास किया जाएगा.

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अपने देश का नामकरण (भारतवर्ष) किस भरत के नाम पर हुआ ?



अपने देश का नामकरण (भारतवर्ष) किस भरत के नाम पर हुआ ? अनेक ‘विद्वान्’ डेढ़ सौ वर्ष से तोते की तरह रट रहे हैं कि दुष्यन्तपुत्र भरत (जो सिंह के दांत गिनता था) के नाम पर इस देश का नामकरण ‘भारत’ हुआ है। आइए, देखते हैं कि इस कथन में कितनी वास्तविकता है।
हमारे पुराणों में बताया गया है कि प्रलयकाल के पश्चात् स्वायम्भुव मनु के ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत ने रात्रि में भी प्रकाश रखने की इच्छा से ज्योतिर्मय रथ See More
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“भगत सिंह फांसी के 83 साल बाद साबित हो रहे हैं निर्दोष।”



“भगत सिंह फांसी के 83 साल बाद साबित हो रहे हैं निर्दोष।”
मैं पूछता हूँ कि यदि सरदार भगत सिंह निर्दोष थे तो खुदीराम बोस दोषी थे क्या ? रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिरी, अशफ़ाक़ुल्ला खान— ऐसे हजारों क्रांतिकारी हैं जो फांसी पर लटका दिए गए, ये सभी दोषी थे क्या ? इनपर जो आरोप लगाए गए थे, वे सही थे क्या ? इनपर जो मुकदमा चलाया गया था, उसके कागजात सही थे क्या ?
अंग्रेजों के शासनकाल म See More
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आइए, आज विश्वप्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर के बारे में जानते हैं.



आइए, आज विश्वप्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर के बारे में जानते हैं.
मदुरै (तमिलनाडु) में भारत का यह ७वा सबसे बड़ा मंदिर ४५ एकड़ भूमि में फैला है (देश के बहुत से लोगों का विश्वास है कि यह भारत का सबसे बड़ा मंदिर है). मंदिर का पूरा नाम “मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मन्दिर” या “मीनाक्षी अम्मां मन्दिर” है. यह मन्दिर भगवान शिव और देवी पार्वती, जो मीनाक्षी के नाम से जानी जाती थी, को समर्पित है। मीनाक्षी मन्दिर के केन्द्र See More