Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

ज्ञान की खोज में एक बार तीन साधु हिमालय पर जा पहुंचे।


तीन साधु

ज्ञान की खोज में एक बार तीन साधु हिमालय पर जा पहुंचे। वहां पहुंचकर तीनों साधुओं को बहुत भूख लगी। देखा तो उनके पास तो मात्र दो ही रोटियां थी। उन तीनों ने तय किया कि वो भूखे ही सो जाएंगे। ईश्वर जिसके सपने में आकर रोटी खाने का संकेत देंगे वो ही ये रोटियां खाएगा। ऐसा कहकर तीनों साधु सो गए।

आधी रात को तीनों साधु उठे और एक-दूसरे को अपना-अपना सपना सुनाने लगे। पहले साधु ने कहा- मैं सपने में एक अनजानी जगह पहुंचा वहां बहुत शांति थी और वहां मुझे ईश्वर मिले। और उन्होंने मुझे कहा कि तुमने जीवन में सदा त्याग ही किया है। इसलिए ये रोटियां तुम्हें ही खानी चाहिए।

दूसरे साधु ने कहा कि- मैंने सपने में देखा कि भूतकाल में तपस्या करने के कारण में महात्मा बन गया हूं और मेरी मुलाकात ईश्वर से होती है और वे मुझे कहते हैं कि लंबे समय तक कठोर तप करने के कारण रोटियों पर सबसे पहला हक तुम्हारा है, तुम्हारे मित्रों का नहीं।

अब तीसरे साधु की बारी थी उसने कहा मैंने सपने में कुछ नहीं देखा। क्योंकी मैने वो रोटियां खा ली हैं। यह सुनकर दोनों साधु क्रोधित हो गए। उन्होंने तीसरे साधु से पूछा- यह निर्णय लेने से पहले तुमने हमें क्यों नहीं उठाया? तब तीसरे साधु ने कहा कैसे उठाता? तुम दोनों तो ईश्वर से बातें कर रहे थे। लेकिन ईश्वर ने मुझे उठाया और भूखे मरने से बचा लिया।

बिल्कुल सही कहा गया है कि जीवन-मरण का प्रश्न हो तो कोई किसी का मित्र नहीं होता व्यक्ति वही काम करता है जिससे उसका जीवन बच सके।

तीन साधु

ज्ञान की खोज में एक बार तीन साधु हिमालय पर जा पहुंचे। वहां पहुंचकर तीनों साधुओं को बहुत भूख लगी। देखा तो उनके पास तो मात्र दो ही रोटियां थी। उन तीनों ने तय किया कि वो भूखे ही सो जाएंगे। ईश्वर जिसके सपने में आकर रोटी खाने का संकेत देंगे वो ही ये रोटियां खाएगा। ऐसा कहकर तीनों साधु सो गए। 

आधी रात को तीनों साधु उठे और एक-दूसरे को अपना-अपना सपना सुनाने लगे। पहले साधु ने कहा- मैं सपने में एक अनजानी जगह पहुंचा वहां बहुत शांति थी और वहां मुझे ईश्वर मिले। और उन्होंने मुझे कहा कि तुमने जीवन में सदा त्याग ही किया है। इसलिए ये रोटियां तुम्हें ही खानी चाहिए। 

दूसरे साधु ने कहा कि- मैंने सपने में देखा कि भूतकाल में तपस्या करने के कारण में महात्मा बन गया हूं और मेरी मुलाकात ईश्वर से होती है और वे मुझे कहते हैं कि लंबे समय तक कठोर तप करने के कारण रोटियों पर सबसे पहला हक तुम्हारा है, तुम्हारे मित्रों का नहीं। 

अब तीसरे साधु की बारी थी उसने कहा मैंने सपने में कुछ नहीं देखा। क्योंकी मैने वो रोटियां खा ली हैं। यह सुनकर दोनों साधु क्रोधित हो गए। उन्होंने तीसरे साधु से पूछा- यह निर्णय लेने से पहले तुमने हमें क्यों नहीं उठाया? तब तीसरे साधु ने कहा कैसे उठाता? तुम दोनों तो ईश्वर से बातें कर रहे थे। लेकिन ईश्वर ने मुझे उठाया और भूखे मरने से बचा लिया। 

बिल्कुल सही कहा गया है कि जीवन-मरण का प्रश्न हो तो कोई किसी का मित्र नहीं होता व्यक्ति वही काम करता है जिससे उसका जीवन बच सके।
Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

जेहादी अकबर को….. छठी का दूध याद दिल देने वाले हिन्दू वीर ….. महाराणा प्रताप के बारे में भला कौन नहीं जानता होगा….?????


जेहादी अकबर को..... छठी का दूध याद दिल देने वाले हिन्दू वीर ..... महाराणा प्रताप के बारे में भला कौन नहीं जानता होगा....?????

और... सच कहूँ तो निजी तौर पर मेरी यह मान्यता है कि..... जो वीर महाराणा प्रताप के बारे में नहीं जानता है.... अथवा, जिसे भी महाराणा प्रताप पर गर्व नहीं होता हो..... उसे एक बार अपना डीएनए जरूर चेक करवा लेना चाहिए....

क्योंकि.... जब-जब हिन्दुओं अथवा हिंदुस्तान का इतिहास लिखा जाएगा ...... महाराणा प्रताप की वीरता, उनका आत्मसम्मान एवं त्याग स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा ....!

किसी भी हिन्दू राष्ट्रवादी को यह जानकार बेहद गर्व होगा कि.....7 फ़ीट 5 इंच के महाराणा प्रताप .... जब अपने 10 किलो के जूते एवं 72 किलो के बाजूबंद पहनकर ...... हाथों में 80 किलो के भाला, 70 किलो के तलवार तथा 50 किलो के कटार लेकर ..... अपने चेतक पर..... अकबर नामक जेहादी की सेना से युद्ध करने जाते थे.... तो, मुस्लिमों की कंपकपी छूट जाती थी....!! 

दरअसल, जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ........ उस समय दिल्ली पर एक मुस्लिम जेहादी अकबर का शासन था.... और, अपने जेहादी मानसिकता के वशीभूत वह सभी हिन्दू राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर ... पूरे हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था....।
परन्तु.... महाराणा प्रताप ने ... उस जेहादी एवं महा-लीचड़ अकबर के सामने झुकने से इंकार कर दिया .... एवं, अपने मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि... जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा.......।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि..... महाराणा प्रताप से ... उस जेहादी अकबर की "इतनी फटती थी कि"........अकबर ने घोषणा कर रखी थी कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं..... तो आधे हिंदुस्तान के वारिस महाराणा प्रताप होंगे......... पर बादशाहत अकबर की रहेगी.....।

जिसके जवाब में....... प्रताप ने कहा था कि ......स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा..... लेकिन, अपने जीते-जी , उस जेहादी अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा।
और, इसी क्रम में महाराणा प्रताप..... अपने महल के छोड़कर ...... जंगल चले गए थे..... और, वहां कुछ दिन घास की रोटियां तक खाई थी.... 

जी हाँ.....मैं बात कर रहा हूँ मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा के बारे में........।
प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है...... मानो शरीर में नसें....।
इस गुफा में प्रवेश के तीन रास्ते हैं.........जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं हैं और, इसकी खासियत यह है कि .....बाहर से देखने में इसके रास्ते का द्वार किसी पत्थर के टीले की तरह दिखाई पड़ता है।
लेकिन , जैसे-जैसे हम अंदर जाते हैं..... रास्ता भी निकलता जाता हैं....।

यही कारण है कि..... यह अभी तक हर तरफ से सुरक्षित है... और, इसकी इसी खूबी के कारण.... महाराणा प्रताप ने इसे अपना शस्त्रागार बनाया था।

मैं याद दिला दूँ कि....
हल्दी घाटी में अकबर और प्रताप के बीच हुए युद्ध के दौरान.... इसी गुफा को प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था......।

और, यह युद्ध आज भी........ पूरे विश्व के लिए एक मिसाल है.....।
क्योंकि... इस युद्ध में महाराणा प्रताप और उनकी सेना की वीरता का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि......... इस युद्ध में जेहादी अकबर के 85 हजार और प्रताप के केवल 20 हजार सैनिक थे।

लेकिन फिर भी ... प्रताप ने इस युद्ध में अकबर को धूल चटा दिया था..... और, प्रताप का पराक्रम ऐसा था कि ..... अकबर की जेहादी सेना में हाहाकार मच गया था...!
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि....
महाराणा प्रताप का घोडा ""चेतक"" भी अनमोल था....और, एक पांव चोटिल होने के बाद भी प्रताप को पीठ पर लिए वह नाले को पार कर गया, लेकिन लाख प्रयत्नों के बाद भी जेहादी मुस्लिम सेना उस नाले को पार ना कर सकी....!!

हल्दी घाटी के युद्ध की याद दिलाती यह गुफा इतनी बड़ी है कि...... इसके अंदर घोड़ो को बांधने वाली अश्वशाला और रसोई घर भी है।

इस गुफा के अंदर वही अश्वशाला है.... जहां चेतक को बांधा जाता था, इसलिए यह जगह आज भी पूजा जाता है.....और , इसके पास ही मां हिंगलाज का स्थान है...।
हम हिन्दुओं को अपने पूर्वज महाराणा प्रताप एवं उनकी वीरता पर गर्व होनी चाहिए....!!
जय महाकाल...!!!

नोट: आज के मनहूस सेक्यूलरों को अपने पूर्वज महाराणा प्रताप से कुछ लेनी चाहिए कि..... महाराणा प्रताप ने अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए किस तरह महलों का वैभव त्यागकर .... गुफा में रहना एवं घास की रोटियां कहानी स्वीकार की , लेकिन मुस्लिमों की अधीनता स्वीकार नहीं की...!

लेकिन, आज उन्ही महाप्रतापी महाराणा प्रताप के वंशज .... अपने पूर्वजों के गौरव को धूल-धूसरित करते हुए..... महज चंद वोटों अथवा सिक्कों के लिए..... मुस्लिमों के बिस्तर पर अपनी बहन-बेटियों तक को भेजने के लिए उतारू रहते हैं....!!

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जेहादी अकबर को….. छठी का दूध याद दिल देने वाले हिन्दू वीर ….. महाराणा प्रताप के बारे में भला कौन नहीं जानता होगा….?????

और… सच कहूँ तो निजी तौर पर मेरी यह मान्यता है कि….. जो वीर महाराणा प्रताप के बारे में नहीं जानता है…. अथवा, जिसे भी महाराणा प्रताप पर गर्व नहीं होता हो….. उसे एक बार अपना डीएनए जरूर चेक करवा लेना चाहिए….

क्योंकि…. जब-जब हिन्दुओं अथवा हिंदुस्तान का इतिहास लिखा जाएगा …… महाराणा प्रताप की वीरता, उनका आत्मसम्मान एवं त्याग स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा ….!

किसी भी हिन्दू राष्ट्रवादी को यह जानकार बेहद गर्व होगा कि…..7 फ़ीट 5 इंच के महाराणा प्रताप …. जब अपने 10 किलो के जूते एवं 72 किलो के बाजूबंद पहनकर …… हाथों में 80 किलो के भाला, 70 किलो के तलवार तथा 50 किलो के कटार लेकर ….. अपने चेतक पर….. अकबर नामक जेहादी की सेना से युद्ध करने जाते थे…. तो, मुस्लिमों की कंपकपी छूट जाती थी….!!

दरअसल, जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ…….. उस समय दिल्ली पर एक मुस्लिम जेहादी अकबर का शासन था…. और, अपने जेहादी मानसिकता के वशीभूत वह सभी हिन्दू राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर … पूरे हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था….।
परन्तु…. महाराणा प्रताप ने … उस जेहादी एवं महा-लीचड़ अकबर के सामने झुकने से इंकार कर दिया …. एवं, अपने मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि… जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा…….।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि….. महाराणा प्रताप से … उस जेहादी अकबर की “इतनी फटती थी कि”……..अकबर ने घोषणा कर रखी थी कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं….. तो आधे हिंदुस्तान के वारिस महाराणा प्रताप होंगे……… पर बादशाहत अकबर की रहेगी…..।

जिसके जवाब में……. प्रताप ने कहा था कि ……स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा….. लेकिन, अपने जीते-जी , उस जेहादी अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा।
और, इसी क्रम में महाराणा प्रताप….. अपने महल के छोड़कर …… जंगल चले गए थे….. और, वहां कुछ दिन घास की रोटियां तक खाई थी….

जी हाँ…..मैं बात कर रहा हूँ मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा के बारे में……..।
प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है…… मानो शरीर में नसें….।
इस गुफा में प्रवेश के तीन रास्ते हैं………जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं हैं और, इसकी खासियत यह है कि …..बाहर से देखने में इसके रास्ते का द्वार किसी पत्थर के टीले की तरह दिखाई पड़ता है।
लेकिन , जैसे-जैसे हम अंदर जाते हैं….. रास्ता भी निकलता जाता हैं….।

यही कारण है कि….. यह अभी तक हर तरफ से सुरक्षित है… और, इसकी इसी खूबी के कारण…. महाराणा प्रताप ने इसे अपना शस्त्रागार बनाया था।

मैं याद दिला दूँ कि….
हल्दी घाटी में अकबर और प्रताप के बीच हुए युद्ध के दौरान…. इसी गुफा को प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था……।

और, यह युद्ध आज भी…….. पूरे विश्व के लिए एक मिसाल है…..।
क्योंकि… इस युद्ध में महाराणा प्रताप और उनकी सेना की वीरता का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि……… इस युद्ध में जेहादी अकबर के 85 हजार और प्रताप के केवल 20 हजार सैनिक थे।

लेकिन फिर भी … प्रताप ने इस युद्ध में अकबर को धूल चटा दिया था….. और, प्रताप का पराक्रम ऐसा था कि ….. अकबर की जेहादी सेना में हाहाकार मच गया था…!
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि….
महाराणा प्रताप का घोडा “”चेतक”” भी अनमोल था….और, एक पांव चोटिल होने के बाद भी प्रताप को पीठ पर लिए वह नाले को पार कर गया, लेकिन लाख प्रयत्नों के बाद भी जेहादी मुस्लिम सेना उस नाले को पार ना कर सकी….!!

हल्दी घाटी के युद्ध की याद दिलाती यह गुफा इतनी बड़ी है कि…… इसके अंदर घोड़ो को बांधने वाली अश्वशाला और रसोई घर भी है।

इस गुफा के अंदर वही अश्वशाला है…. जहां चेतक को बांधा जाता था, इसलिए यह जगह आज भी पूजा जाता है…..और , इसके पास ही मां हिंगलाज का स्थान है…।
हम हिन्दुओं को अपने पूर्वज महाराणा प्रताप एवं उनकी वीरता पर गर्व होनी चाहिए….!!
जय महाकाल…!!!

नोट: आज के मनहूस सेक्यूलरों को अपने पूर्वज महाराणा प्रताप से कुछ लेनी चाहिए कि….. महाराणा प्रताप ने अपने देश और धर्म की रक्षा के लिए किस तरह महलों का वैभव त्यागकर …. गुफा में रहना एवं घास की रोटियां कहानी स्वीकार की , लेकिन मुस्लिमों की अधीनता स्वीकार नहीं की…!

लेकिन, आज उन्ही महाप्रतापी महाराणा प्रताप के वंशज …. अपने पूर्वजों के गौरव को धूल-धूसरित करते हुए….. महज चंद वोटों अथवा सिक्कों के लिए….. मुस्लिमों के बिस्तर पर अपनी बहन-बेटियों तक को भेजने के लिए उतारू रहते हैं….!!

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डेढ़ सौ वर्षों में भारत को विभाजित कर कैसे बने 9 नए देश डेढ़ सौ वर्षों में भारत को विभाजित कर कैसे बने 9 नए देश


 

10303880_1507589596161708_6943404798112969412_n
सम्भवत: ही कोई पुस्तक (ग्रन्थ) होगी जिसमें यह वर्णन मिलता हो कि इन आक्रमणकारियों ने अफगानिस्तान, ब्रह्मदेश(बर्मा,म्यांमार), श्रीलंका (सिंहलद्वीप), नेपाल, तिब्बत (त्रिविष्टप), भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया। यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह भू-प्रदेश कब, कैसे गुलाम हुए और स्वतन्त्र हुए।
प्राय: पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। शेष इतिहास मिलता तो है परन्तु चर्चित नहीं है। सन 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है।
सम्पूर्ण पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इन्दू सरोवरम् जिसे आज हिन्दू महासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊँची चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदलने का कूटनीतिक षड्यंत्र रचा। हम पृथ्वी पर जिस भू-भाग अर्थात् राष्ट्र के निवासी हैं उस भू-भाग का वर्णन अग्नि, वायु एवं विष्णु पुराण में लगभग समानार्थी श्लोक के रूप में है :-
उत्तरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्।
वर्ष तद् भारतं नाम, भारती यत्र संतति।।
अर्थात् हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय पर्वत के दक्षिण में जो भू-भाग है उसे भारत कहते हैं और वहां के समाज को भारती या भारतीय के नाम से पहचानते हैं।
वर्तमान में भारत के निवासियों का पिछले सैकडों हजारों वर्षों से हिन्दू नाम भी प्रचलित है और हिन्दुओं के देश को हिन्दुस्तान कहते हैं। विश्व के अनेक देश इसे हिन्द व नागरिक को हिन्दी व हिन्दुस्तानी भी कहते हैं। बृहस्पति आगम में इसके लिए निम्न श्लोक उपलब्ध है :-
हिमालयं समारम्भ्य यावद् इन्दु सरोवरम।
तं देव निर्मित देशं, हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
अर्थात् हिमालय से लेकर इन्दु (हिन्द) महासागर तक देव पुरुषों द्वारा निर्मित इस भूगोल को हिन्दुस्तान कहते हैं। इन सब बातों से यह निश्चित हो जाता है कि भारतवर्ष और हिन्दुस्तान एक ही देश के नाम हैं तथा भारतीय और हिन्दू एक ही समाज के नाम हैं।
जब हम अपने देश (राष्ट्र) का विचार करते हैं तब अपने समाज में प्रचलित एक परम्परा रही है, जिसमें किसी भी शुभ कार्य पर संकल्प पढ़ा अर्थात् लिया जाता है। संकल्प स्वयं में महत्वपूर्ण संकेत करता है। संकल्प में काल की गणना एवं भूखण्ड का विस्तृत वर्णन करते हुए, संकल्प कर्ता कौन है ? इसकी पहचान अंकित करने की परम्परा है। उसके अनुसार संकल्प में भू-खण्ड की चर्चा करते हुए बोलते (दोहराते) हैं कि जम्बूद्वीपे (एशिया) भरतखण्डे (भारतवर्ष) यही शब्द प्रयोग होता है। सम्पूर्ण साहित्य में हमारे राष्ट्र की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिन्द महासागर का वर्णन है, परन्तु पूर्व व पश्चिम का स्पष्ट वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों अर्थात् एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है।
जब विश्व (पृथ्वी) का मानचित्र आँखों के सामने आता है तो पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि विश्व के भूगोल ग्रन्थों के अनुसार हिमालय के मध्य स्थल ‘कैलाश मानसरोवर’ से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इण्डोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश अर्थात् आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर हैं। हिमालय 5000 पर्वत शृंखलाओं तथा 6000 नदियों को अपने भीतर समेटे हुए इसी प्रकार से विश्व के सभी भूगोल ग्रन्थ (एटलस) के अनुसार जब हम श्रीलंका (सिंहलद्वीप अथवा सिलोन) या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर प्रस्थान करेंगे या दृष्टि (नजर) डालेंगे तो हिन्द (इन्दु) महासागर इण्डोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिन्दुओं के पश्चात् ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है।
इस प्रकार से हिमालय, हिन्द महासागर, आर्यान (ईरान) व इण्डोनेशिया के बीच के सम्पूर्ण भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्तान कहा जाता है। प्राचीन भारत की चर्चा अभी तक की, परन्तु जब वर्तमान से 3000 वर्ष पूर्व तक के भारत की चर्चा करते हैं तब यह ध्यान में आता है कि पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रांत यूनानी (रोमन ग्रीक) यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज आदि आए, इन सबका विश्व के सभी इतिहासकारों ने वर्णन किया। परन्तु सभी पुस्तकों में यह प्राप्त होता है कि आक्रान्ताओं ने भारतवर्ष पर, हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया है। सम्भवत: ही कोई पुस्तक (ग्रन्थ) होगी जिसमें यह वर्णन मिलता हो कि इन आक्रमणकारियों ने अफगानिस्तान, (म्यांमार), श्रीलंका (सिंहलद्वीप), नेपाल, तिब्बत (त्रिविष्टप), भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया। यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह भू-प्रदेश कब, कैसे गुलाम हुए और स्वतन्त्र हुए। प्राय: पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। शेष इतिहास मिलता तो है परन्तु चर्चित नहीं है। सन 1947 में विशाल भारतवर्ष का पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके पश्चात् सन 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। आगे लेख में सातों विभाजन कब और क्यों किए गए इसका संक्षिप्त वर्णन है।
सन् 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग कि.मी. था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग कि.मी. है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग कि.मी. बनता है।
भारतीयों द्वारा सन् 1857 के अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गए स्वतन्त्रता संग्राम (जिसे अंग्रेज ने गदर या बगावत कहा) से पूर्व एवं पश्चात् के परिदृश्य पर नजर दौडायेंगे तो ध्यान में आएगा कि ई. सन् 1800 अथवा उससे पूर्व के विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय देश नहीं थे। इनमें स्वतन्त्र राजसत्ताएं थीं, परन्तु सांस्कृतिक रूप में ये सभी भारतवर्ष के रूप में एक थे और एक-दूसरे के देश में आवागमन (व्यापार, तीर्थ दर्शन, रिश्ते, पर्यटन आदि) पूर्ण रूप से बे-रोकटोक था। इन राज्यों के विद्वान् व लेखकों ने जो भी लिखा वह विदेशी यात्रियों ने लिखा ऐसा नहीं माना जाता है। इन सभी राज्यों की भाषाएं व बोलियों में अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परम्पराएं भी समान हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ सम्प्रदाय में विविधताएं होते हुए भी एकता के दर्शन होते थे और होते हैं। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत इतर यानि विदेशी पंथ (मजहब-रिलीजन) आये तब अनेक संकट व सम्भ्रम निर्माण करने के प्रयास हुए।
सन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्व-मार्क्स द्वारा अर्थ प्रधान परन्तु आक्रामक व हिंसक विचार के रूप में मार्क्सवाद जिसे लेनिनवाद, माओवाद, साम्यवाद, कम्यूनिज्म शब्दों से भी पहचाना जाता है, यह अपने पांव अनेक देशों में पसार चुका था। वर्तमान रूस व चीन जो अपने चारों ओर के अनेक छोटे-बडे राज्यों को अपने में समाहित कर चुके थे या कर रहे थे, वे कम्यूनिज्म के सबसे बडे व शक्तिशाली देश पहचाने जाते हैं। ये दोनों रूस और चीन विस्तारवादी, साम्राज्यवादी, मानसिकता वाले ही देश हैं। अंग्रेज का भी उस समय लगभग आधी दुनिया पर राज्य माना जाता था और उसकी साम्राज्यवादी, विस्तारवादी, हिंसक व कुटिलता स्पष्ट रूप से सामने थी।
अफगानिस्तान :- सन् 1834 में प्रकिया प्रारम्भ हुई और 26 मई, 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात् पठान भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम से अलग हो गए तथा दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि अफगानिस्तान पर नियन्त्रण किसका हो ? अफगानिस्तान (उपगणस्तान) शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था। बादशाह शाहजहाँ, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
नेपाल :- मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य का सुगठन कर चुके थे। स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर नेपाल को एक स्वतन्त्र अस्तित्व प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में जहां आन्तरिक तनाव था, वहीं अंग्रेजी नियन्त्रण से कुछ में घोर बेचैनी भी थी। महाराजा त्रिभुवन सिंह ने 1953 में भारतीय सरकार को निवेदन किया था कि आप नेपाल को अन्य राज्यों की तरह भारत में मिलाएं। परन्तु सन 1955 में रूस द्वारा दो बार वीटो का उपयोग कर यह कहने के बावजूद कि नेपाल तो भारत का ही अंग है, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने पुरजोर वकालत कर नेपाल को स्वतन्त्र देश के रूप में यू.एन.ओ. में मान्यता दिलवाई। आज भी नेपाल व भारतीय एक-दूसरे के देश में विदेशी नहीं हैं और यह भी सत्य है कि नेपाल को वर्तमान भारत के साथ ही सन् 1947 में ही स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।
भूटान :- सन 1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियन्त्रण से रेजीडेंट के माध्यम से रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना प्रारम्भ किया। ये क्षेत्र(राज्य) भी स्वतन्त्रता सेनानियों एवं समय-समय पर हिन्दुस्तान के उत्तर दक्षिण व पश्चिम के भारतीय सिपाहियों व समाज के नाना प्रकार के विदेशी हमलावरों से युद्धों में पराजित होने पर शरणस्थली के रूप में काम आते थे। दूसरा ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक वे क्षेत्र खनिज व वनस्पति की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे। तीसरा यहां के जातीय जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय (हिन्दू) धारा से अलग कर मतान्तरित किया जा सकेगा। हम जानते हैं कि सन 1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक विस्तार कर नये आयामों की रचना कर डाली थी। सुदूर हिमालयवासियों में ईसाईयत जोर पकड़ रही थी।
तिब्बत :- सन 1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीनी साम्राज्यवादी सरकार व भारत के काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा जमाए अंग्रेज शासकों के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का निर्णय हुआ। हिमालय सदैव से ज्ञान-विज्ञान के शोध व चिन्तन का केंद्र रहा है। हिमालय को बांटना और तिब्बत व भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला।
अंग्रेज ईसाईयत हिमालय में कैसे अपने पांव जमायेगी, यह सोच रहा था परन्तु समय ने कुछ ऐसी करवट ली कि प्रथम व द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् अंग्रेज को एशिया और विशेष रूप से भारत छोड़कर जाना पड़ा। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने समय की नाजकता को पहचानने में भूल कर दी और इसी कारण तिब्बत को सन 1949 से 1959 के बीच चीन हड़पने में सफल हो गया। पंचशील समझौते की समाप्ति के साथ ही अक्टूबर सन 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर हजारों वर्ग कि.मी. अक्साई चीन (लद्दाख यानि जम्मू-कश्मीर) व अरुणाचल आदि को कब्जे में कर लिया। तिब्बत को चीन का भू-भाग मानने का निर्णय पं. नेहरू (तत्कालीन प्रधानमंत्री) की भारी ऐतिहासिक भूल हुई। आज भी तिब्बत को चीन का भू-भाग मानना और चीन पर तिब्बत की निर्वासित सरकार से बात कर मामले को सुलझाने हेतु दबाव न डालना बड़ी कमजोरी व भूल है। नवम्बर 1962 में भारत के दोनों सदनों के संसद सदस्यों ने एकजुट होकर चीन से एक-एक इंच जमीन खाली करवाने का संकल्प लिया। आश्चर्य है भारतीय नेतृत्व (सभी दल) उस संकल्प को शायद भूल ही बैठा है। हिमालय परिवार नाम के आन्दोलन ने उस दिवस को मनाना प्रारम्भ किया है ताकि जनता नेताओं द्वारा लिए गए संकल्प को याद करवाएं।
श्रीलंका व म्यांमार :- अंग्रेज प्रथम महायुद्ध (1914 से 1919) जीतने में सफल तो हुए परन्तु भारतीय सैनिक शक्ति के आधार पर। धीरे-धीरे स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु क्रान्तिकारियों के रूप में भयानक ज्वाला अंग्रेज को भस्म करने लगी थी। सत्याग्रह, स्वदेशी के मार्ग से आम जनता अंग्रेज के कुशासन के विरुद्ध खडी हो रही थी। द्वितीय महायुद्ध के बादल भी मण्डराने लगे थे। सन् 1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ सकता है। उनकी अपनी स्थलीय शक्ति मजबूत नहीं है और न ही वे दूर से नभ व थल से वर्चस्व को बना सकते हैं। इसलिए जल मार्ग पर उनका कब्जा होना चाहिए तथा जल के किनारों पर भी उनके हितैषी राज्य होने चाहिए। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतन्त्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन 1965 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। ये दोनों देश इन्हीं वर्षों को अपना स्वतन्त्रता दिवस मानते हैं। म्यांमार व श्रीलंका का अलग अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है।
पाकिस्तान, बांग्लादेश व मालद्वीप :- 1905 का लॉर्ड कर्जन का बंग-भंग का खेल 1911 में बुरी तरह से विफल हो गया। परन्तु इस हिन्दु मुस्लिम एकता को तोड़ने हेतु अंग्रेज ने आगा खां के नेतृत्व में सन 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना कर मुस्लिम कौम का बीज बोया। पूर्वोत्तर भारत के अधिकांश जनजातीय जीवन को ईसाई के रूप में मतान्तरित किया जा रहा था। ईसाई बने भारतीयों को स्वतन्त्रता संग्राम से पूर्णत: अलग रखा गया। पूरे भारत में एक भी ईसाई सम्मेलन में स्वतन्त्रता के पक्ष में प्रस्ताव पारित नहीं हुआ। दूसरी ओर मुसलमान तुम एक अलग कौम हो, का बीज बोते हुए सन् 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग खड़ी कर देश को नफरत की आग में झोंक दिया। अंग्रेजीयत के दो एजेण्ट क्रमश: पं. नेहरू व मो. अली जिन्ना दोनों ही घोर महत्वाकांक्षी व जिद्दी (कट्टर) स्वभाव के थे।अंग्रेजों ने इन दोनों का उपयोग गुलाम भारत के विभाजन हेतु किया। द्वितीय महायुद्ध में अंग्रेज बुरी तरह से आर्थिक, राजनीतिक दृष्टि से इंग्लैण्ड में तथा अन्य देशों में टूट चुके थे। उन्हें लगता था कि अब वापस जाना ही पड़ेगा और अंग्रेजी साम्राज्य में कभी न अस्त होने वाला सूर्य अब अस्त भी हुआ करेगा। सम्पूर्ण भारत देशभक्ति के स्वरों के साथ सड़क पर आ चुका था। संघ, सुभाष, सेना व समाज सब अपने-अपने ढंग से स्वतन्त्रता की अलख जगा रहे थे। सन 1948 तक प्रतीक्षा न करते हुए 3 जून, 1947 को अंग्रेज अधीन भारत के विभाजन व स्वतन्त्रता की घोषणा औपचारिक रूप से कर दी गयी। यहां यह बात ध्यान में रखने वाली है कि उस समय भी भारत की 562 ऐसी छोटी-बड़ी रियासतें (राज्य) थीं, जो अंग्रेज के अधीन नहीं थीं। इनमें से सात ने आज के पाकिस्तान में तथा 555 ने जम्मू-कश्मीर सहित आज के भारत में विलय किया। भयानक रक्तपात व जनसंख्या की अदला-बदली के बीच 14, 15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि में पश्चिम एवं पूर्व पाकिस्तान बनाकर अंग्रेज ने भारत का 7वां विभाजन कर डाला। आज ये दो भाग पाकिस्तान व बांग्लादेश के नाम से जाने जाते हैं। भारत के दक्षिण में सुदूर समुद्र में मालद्वीप (छोटे-छोटे टापुओं का समूह) सन 1947 में स्वतन्त्र देश बन गया, जिसकी चर्चा व जानकारी होना अत्यन्त महत्वपूर्ण व उपयोगी है। यह बिना किसी आन्दोलन व मांग के हुआ है।
भारत का वर्तमान परिदृश्य :- सन 1947 के पश्चात् फेंच के कब्जे से पाण्डिचेरी, पुर्तगीज के कब्जे से गोवा देव- दमन तथा अमेरिका के कब्जें में जाते हुए सिक्किम को मुक्त करवाया है। आज पाकिस्तान में पख्तून, बलूच, सिंधी, बाल्टीस्थानी (गिलगित मिलाकर), कश्मीरी मुजफ्फरावादी व मुहाजिर नाम से इस्लामाबाद (लाहौर) से आजादी के आन्दोलन चल रहे हैं। पाकिस्तान की 60 प्रतिशत से अधिक जमीन तथा 30 प्रतिशत से अधिक जनता पाकिस्तान से ही आजादी चाहती है। बांग्लादेश में बढ़ती जनसंख्या का विस्फोट, चटग्राम आजादी आन्दोलन उसे जर्जर कर रहा है। शिया-सुन्नी फसाद, अहमदिया व वोहरा (खोजा-मल्कि) पर होते जुल्म मजहबी टकराव को बोल रहे हैं। हिन्दुओं की सुरक्षा तो खतरे में ही है। विश्वभर का एक भी मुस्लिम देश इन दोनों देशों के मुसलमानों से थोडी भी सहानुभूति नहीं रखता। अगर सहानुभूति होती तो क्या इन देशों के 3 करोड़ से अधिक मुस्लिम (विशेष रूप से बांग्लादेशीय) दर-दर भटकते। ये मुस्लिम देश अपने किसी भी सम्मेलन में इनकी मदद हेतु आपस में कुछ-कुछ लाख बांटकर सम्मानपूर्वक बसा सकने का निर्णय ले सकते थे। परन्तु कोई भी मुस्लिम देश आजतक बांग्लादेशी मुसलमान की मदद में आगे नहीं आया। इन घुसपैठियों के कारण भारतीय मुसलमान अधिकाधिक गरीब व पिछड़ते जा रहा है क्योंकि इनके विकास की योजनाओं पर खर्च होने वाले धन व नौकरियों पर ही तो घुसपैठियों का कब्जा होता जा रहा है। मानवतावादी वेष को धारण कराने वाले देशों में से भी कोई आगे नहीं आया कि इन घुसपैठियों यानि दरबदर होते नागरिकों को अपने यहां बसाता या अन्य किसी प्रकार की सहायता देता। इन दर-बदर होते नागरिकों के आई.एस.आई. के एजेण्ट बनकर काम करने के कारण ही भारत के करोडों मुस्लिमों को भी सन्देह के घेरे में खड़ा कर दिया है। आतंकवाद व माओवाद लगभग 200 के समूहों के रूप में भारत व भारतीयों को डस रहे हैं। लाखों उजड़ चुके हैं, हजारों विकलांग हैं और हजारों ही मारे जा चुके हैं। विदेशी ताकतें हथियार, प्रशिक्षण व जेहादी, मानसिकता देकर उन प्रदेश के लोगों के द्वारा वहां के ही लोगों को मरवा कर उन्हीं प्रदेशों को बर्बाद करवा रही हैं। इस विदेशी षड्यन्त्र को भी समझना आवश्यक है।
सांस्कृतिक व आर्थिक समूह की रचना आवश्यक :- आवश्यकता है वर्तमान भारत व पड़ोसी भारतखण्डी देशों को एकजुट होकर शक्तिशाली बन खुशहाली अर्थात विकास के मार्ग में चलने की। इसलिए अंग्रेज अर्थात् ईसाईयत द्वारा रचे गये षड्यन्त्र को ये सभी देश (राज्य) समझें और साझा व्यापार व एक करन्सी निर्माण कर नए होते इस क्षेत्र के युग का सूत्रपात करें। इन देशों 10 का समूह बनाने से प्रत्येक देश का भय का वातावरण समाप्त हो जायेगा तथा प्रत्येक देश का प्रतिवर्ष के सैंकड़ों-हजारों-करोड़ों रुपये रक्षा व्यय के रूप में बचेंगे जो कि विकास पर खर्च किए जा सकेंगे। इससे सभी सुरक्षित रहेंगे व विकसित होंगे।

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Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

भृंगराज के उपयोग ….!


*भृंगराज के उपयोग ....!

*भृंगराज के पौधे वर्षा के मौसम में खेतों के किनारे ,रेल लाइन के किनारे, खाली पड़ी जमीन पर ,बाग़ बगीचों में खुद ही उग जाते हैं। ये हमेशा हरे रहते हैं।इनके फूल पत्ते तने जड़ सब उपयोगी हैं। इनकी झाड़ियाँ ज्यादा से ज्यादा आधा मीटर तक उंची मिलेंगी।

*भृंगराज का नाम आप लोगों के लिए नया नहीं है।

*केशों के लिए यह महत्वपूर्ण तो है ही लेकिन इसके अन्य औषधीय गुण शायद और ज्यादा महत्वपूर्ण लगते हैं मुझे। अकेले भृंगराज कायाकल्प करने में सक्षम है। अगर उसे सही तरीके से प्रयोग किया जाये तो।यहाँ तक कि कैंसर से आप इसके सहारे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते हैं।

1-पीलिया एक जानलेवा रोग है ,लेकिन आप रोगी को पूरे भृंगराज के पौधे का चूर्ण मिश्री के साथ खिला दीजिये 100 ग्राम चूर्ण पेट में पहुंचाते ही पीलिया ख़त्म . या फिर भृंगराज के पौधे को ही क्रश करके 10 ग्राम रस निकालिए ,उसमें 1 ग्राम काली मिर्च का पावडर मिलाकर मरीज को पिला दीजिये .दिन में 3 बार ,3 दिनों तक इस मिश्रण में थोड़ा मिश्री का चूर्ण भी मिला लीजियेगा ।

2-बाल काले रखने हैं तो भृंगराज की ताजी पत्तियों का रस रोजाना सिर पर मल कर सोयें।

3-गुदाभ्रंश हो गया हो तो भृंगराज की जड़ और हल्दी की चटनी को मलहम की तरह मलद्वार पर लगाए इससे कीड़ी काटने की बीमारी मेंभी आराम मिलता है .गुदा भ्रंश में मल द्वार थोड़ा बाहर निकल आता है.

4-पेट बहुत खराब हो तो भृंगराज कीपत्तियों का रस या चूर्ण दस ग्राम लीजिये उसे एक कटोरी दही में मिला कर खा जाएँ ,दिन में दो बार ३ दिनों तक .

5-आँखों की रोशनी तेज रखनी है तो भृंगराज की पत्तियों का ३ ग्राम पाउडर १ चम्मच शहद में मिला कर रोज सुबह खाली पेट खाएं।

6-भृंगराज सफ़ेद दाग का भी इलाज करता है मगर काली पत्तियो और काली शाखाओं वाला भृंगराज चाहिए।इसे आग पर सेंक कर रोज खाना होगा ,एक दिन में एक पौधा लगभग चार माह तक लगातार खाए।

7-जिन महिलाओं को गर्भस्राव की बिमारी है उन्हें गर्भाशय को शक्तिशाली बनाने के लिए भृंगराज की ताजी पत्तियों का ५-६ ग्राम रस रोज पीना चाहिये 1

8-त्रिफला के चूर्ण को भृंगराज के रस की ३ बार भावना देकर सुखा कर रोज आधा चम्मच पानी के साथ निगलने से बाल कभी सफ़ेद होते ही नही। इसे किसी जानकार वैद्य से ही तैयार कराइये.

9-अगर कोई तुतलाता हो तो इसके पौधे के रस में देशी घी मिला कर पका कर दस ग्राम रोज पिलाना चाहिए ,एक माह तक लगातार।

10-इसके रस में यकृत की सारी बीमारियाँ ठीक कर देने का गुण मौजूद है लेकिन जिस दिन इसका ताजा रस दस ग्राम पीजिये उस दिन सिर्फ दूध पीकर रहिये भोजन नहीं करना है ,यदि यह काम एक माह तक लगातार कर लिया जाय तो कायाकल्प भी सम्भव है।यह एक कठिन तपस्या है.

11-अब इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग सुनिए- बच्चा पैदा होने के बाद महिलाओं को योनिशूल बहुत परेशान करता है,उस दशा में भृंगराज के पौधे की जड़ और बेल के पौधे की जड़ का पाउडर बराबर मात्रा में लीजिये और शहद के साथ खिलाइये ,५ ग्राम पाउडर काफी होगा ,दिन में एक बार खाली पेट लेना है ७ दिनों तक...! .

*भृंगराज के उपयोग ….!

*भृंगराज के पौधे वर्षा के मौसम में खेतों के किनारे ,रेल लाइन के किनारे, खाली पड़ी जमीन पर ,बाग़ बगीचों में खुद ही उग जाते हैं। ये हमेशा हरे रहते हैं।इनके फूल पत्ते तने जड़ सब उपयोगी हैं। इनकी झाड़ियाँ ज्यादा से ज्यादा आधा मीटर तक उंची मिलेंगी।

*भृंगराज का नाम आप लोगों के लिए नया नहीं है।

*केशों के लिए यह महत्वपूर्ण तो है ही लेकिन इसके अन्य औषधीय गुण शायद और ज्यादा महत्वपूर्ण लगते हैं मुझे। अकेले भृंगराज कायाकल्प करने में सक्षम है। अगर उसे सही तरीके से प्रयोग किया जाये तो।यहाँ तक कि कैंसर से आप इसके सहारे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते हैं।

1-पीलिया एक जानलेवा रोग है ,लेकिन आप रोगी को पूरे भृंगराज के पौधे का चूर्ण मिश्री के साथ खिला दीजिये 100 ग्राम चूर्ण पेट में पहुंचाते ही पीलिया ख़त्म . या फिर भृंगराज के पौधे को ही क्रश करके 10 ग्राम रस निकालिए ,उसमें 1 ग्राम काली मिर्च का पावडर मिलाकर मरीज को पिला दीजिये .दिन में 3 बार ,3 दिनों तक इस मिश्रण में थोड़ा मिश्री का चूर्ण भी मिला लीजियेगा ।

2-बाल काले रखने हैं तो भृंगराज की ताजी पत्तियों का रस रोजाना सिर पर मल कर सोयें।

3-गुदाभ्रंश हो गया हो तो भृंगराज की जड़ और हल्दी की चटनी को मलहम की तरह मलद्वार पर लगाए इससे कीड़ी काटने की बीमारी मेंभी आराम मिलता है .गुदा भ्रंश में मल द्वार थोड़ा बाहर निकल आता है.

4-पेट बहुत खराब हो तो भृंगराज कीपत्तियों का रस या चूर्ण दस ग्राम लीजिये उसे एक कटोरी दही में मिला कर खा जाएँ ,दिन में दो बार ३ दिनों तक .

5-आँखों की रोशनी तेज रखनी है तो भृंगराज की पत्तियों का ३ ग्राम पाउडर १ चम्मच शहद में मिला कर रोज सुबह खाली पेट खाएं।

6-भृंगराज सफ़ेद दाग का भी इलाज करता है मगर काली पत्तियो और काली शाखाओं वाला भृंगराज चाहिए।इसे आग पर सेंक कर रोज खाना होगा ,एक दिन में एक पौधा लगभग चार माह तक लगातार खाए।

7-जिन महिलाओं को गर्भस्राव की बिमारी है उन्हें गर्भाशय को शक्तिशाली बनाने के लिए भृंगराज की ताजी पत्तियों का ५-६ ग्राम रस रोज पीना चाहिये 1

8-त्रिफला के चूर्ण को भृंगराज के रस की ३ बार भावना देकर सुखा कर रोज आधा चम्मच पानी के साथ निगलने से बाल कभी सफ़ेद होते ही नही। इसे किसी जानकार वैद्य से ही तैयार कराइये.

9-अगर कोई तुतलाता हो तो इसके पौधे के रस में देशी घी मिला कर पका कर दस ग्राम रोज पिलाना चाहिए ,एक माह तक लगातार।

10-इसके रस में यकृत की सारी बीमारियाँ ठीक कर देने का गुण मौजूद है लेकिन जिस दिन इसका ताजा रस दस ग्राम पीजिये उस दिन सिर्फ दूध पीकर रहिये भोजन नहीं करना है ,यदि यह काम एक माह तक लगातार कर लिया जाय तो कायाकल्प भी सम्भव है।यह एक कठिन तपस्या है.

11-अब इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग सुनिए- बच्चा पैदा होने के बाद महिलाओं को योनिशूल बहुत परेशान करता है,उस दशा में भृंगराज के पौधे की जड़ और बेल के पौधे की जड़ का पाउडर बराबर मात्रा में लीजिये और शहद के साथ खिलाइये ,५ ग्राम पाउडर काफी होगा ,दिन में एक बार खाली पेट लेना है ७ दिनों तक…! .

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यह सिद्धपीठ है !! रुद्राक्ष का उत्पत्ति- स्थल एवं केन्द्रबिंदु रहे


यह सिद्धपीठ है !!
रुद्राक्ष का उत्पत्ति- स्थल एवं
केन्द्रबिंदु रहे
धरान (नेपाल ) स्थित विजयपुर पर्वतखंड
पर विराजित है माँ दन्तकाली !
यह धरान के चार धामों में से एक है !

कृष्ण स्वरूप आसुरि's photo.
कृष्ण स्वरूप आसुरि's photo.
कृष्ण स्वरूप आसुरि's photo.
कृष्ण स्वरूप आसुरि's photo.
कृष्ण स्वरूप आसुरि's photo.
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प्रस्तुत चित्र 1300 वर्ष पुराने ऐतिहासिक शिव मन्दिर का है, जो कि विक्किरीवन्दी-तंजावूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। चूंकि यह मन्दिर इस राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बीच आ रहा है इसलिए NHAI द्वारा इस मन्दिर को ढहाने के लिए इस पर लाल निशान लगाए जा चुके हैं।प्रस्तुत चित्र 1300 वर्ष पुराने ऐतिहासिक शिव मन्दिर का है, जो कि विक्किरीवन्दी-तंजावूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। चूंकि यह मन्दिर इस राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बीच आ रहा है इसलिए NHAI द्वारा इस मन्दिर को ढहाने के लिए इस पर लाल निशान लगाए जा चुके हैं।


प्रस्तुत चित्र 1300 वर्ष पुराने ऐतिहासिक शिव मन्दिर का है, जो कि विक्किरीवन्दी-तंजावूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। चूंकि यह मन्दिर इस राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बीच आ रहा है इसलिए NHAI द्वारा इस मन्दिर को ढहाने के लिए इस पर लाल निशान लगाए जा चुके हैं।

यह मन्दिर चोल वंश के राजाओं ने निर्मित करवाया था, तथा इसमें चोल वंश के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज एवं मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इस मन्दिर की एक और खासियत यह है कि तमिल नववर्ष के पहले दिन सूर्य की किरणें एकदम सटीक रूप से गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती हैं…। ग्रामवासियों ने अब तक NHAI को कई ज्ञापन दिए हैं परन्तु फ़िलहाल सड़क के लिए इस मन्दिर को तोड़े जाने की पू्री आशंका है…। 
============ 

यहाँ तक की खबर पढ़कर सभी सेकुलर और "गाँधीवादी" बहुत खुश होंगे, तथा "शेखू-लरिज़्म" की महान परम्परा के गुणगान अवश्य गाएंगे…। परन्तु उन्हें अधिक खुश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि "विकृत सेकुलरिज़्म" का चेहरा उन्हें अगली कुछ पंक्तियों में ही दिखाई दे जाएगा… 

यह खबर है सन 2008 की, जब कोलकाता में वामपंथी शासन था। कोलकाता एयरपोर्ट के रन-वे की लम्बाई बढ़ाने के रास्ते में 120 वर्ष पुरानी एक मस्जिद आ रही थी। "धर्म को अफ़ीम मानने वालों" तथा "सेकुलरिज़्म के पुरोधाओं" ने इस मस्जिद को बचाने के लिए समूचे एयरपोर्ट नवीनीकरण के नक्शे को बदलवाकर 2000 करोड़ से अधिक का चूना करदाताओं को लगाया। इस प्रक्रिया में रन-वे का रास्ता बदलने के लिए 25000 एकड़ अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण करना पड़ा, तथा रनवे के अन्त में आने वाली सभी हाइराइज़ इमारतों को जिन्हें पहले 20 मंजिला बनाने की अनुमति दी जा चुकी थी, उन्हें 17 मंजिल तक सीमित करने के आदेश जारी हुए… 

"Indian Secularism" at its BEST...

प्रस्तुत चित्र 1300 वर्ष पुराने ऐतिहासिक शिव मन्दिर का है, जो कि विक्किरीवन्दी-तंजावूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। चूंकि यह मन्दिर इस राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बीच आ रहा है इसलिए NHAI द्वारा इस मन्दिर को ढहाने के लिए इस पर लाल निशान लगाए जा चुके हैं।

यह मन्दिर चोल वंश के राजाओं ने निर्मित करवाया था, तथा इसमें चोल वंश के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज एवं मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इस मन्दिर की एक और खासियत यह है कि तमिल नववर्ष के पहले दिन सूर्य की किरणें एकदम सटीक रूप से गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती हैं…। ग्रामवासियों ने अब तक NHAI को कई ज्ञापन दिए हैं परन्तु फ़िलहाल सड़क के लिए इस मन्दिर को तोड़े जाने की पू्री आशंका है…।
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यहाँ तक की खबर पढ़कर सभी सेकुलर और “गाँधीवादी” बहुत खुश होंगे, तथा “शेखू-लरिज़्म” की महान परम्परा के गुणगान अवश्य गाएंगे…। परन्तु उन्हें अधिक खुश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि “विकृत सेकुलरिज़्म” का चेहरा उन्हें अगली कुछ पंक्तियों में ही दिखाई दे जाएगा…

यह खबर है सन 2008 की, जब कोलकाता में वामपंथी शासन था। कोलकाता एयरपोर्ट के रन-वे की लम्बाई बढ़ाने के रास्ते में 120 वर्ष पुरानी एक मस्जिद आ रही थी। “धर्म को अफ़ीम मानने वालों” तथा “सेकुलरिज़्म के पुरोधाओं” ने इस मस्जिद को बचाने के लिए समूचे एयरपोर्ट नवीनीकरण के नक्शे को बदलवाकर 2000 करोड़ से अधिक का चूना करदाताओं को लगाया। इस प्रक्रिया में रन-वे का रास्ता बदलने के लिए 25000 एकड़ अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण करना पड़ा, तथा रनवे के अन्त में आने वाली सभी हाइराइज़ इमारतों को जिन्हें पहले 20 मंजिला बनाने की अनुमति दी जा चुकी थी, उन्हें 17 मंजिल तक सीमित करने के आदेश जारी हुए…

“Indian Secularism” at its BEST…

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चक्रवर्ती राजगोपालचारी


ये हरामी गाँधी (परिवार) काँग्रेसियोँ का 70 साल के कर्मों का नतीजा है. इन हरामी काँग्रेसियोँ का तोफा है.भारत को

22 जून 1948 को भारत के दुसरे गवर्नर के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने निम्न शपथ ली l
"मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यथाविधि यह शपथ लेता हूँ की मैं सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा, एवं
मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यह शपथ लेता हूँ की मैं गवर्नर जनरल के पद पर होते हुए सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सेवा करूँगा l "
चित्र में- लेडी माउंटबेटेन और राजगोपालचारी 
ये सब लम्पट थे ----   

सच्चे देश भक्त तो शहीद हो चुके थे

22 जून 1948 को भारत के दुसरे गवर्नर के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने निम्न शपथ ली l
“मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यथाविधि यह शपथ लेता हूँ की मैं सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा, एवं
मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यह शपथ लेता हूँ की मैं गवर्नर जनरल के पद पर होते हुए सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सेवा करूँगा l ”
चित्र में- लेडी माउंटबेटेन और राजगोपालचारी
ये सब लम्पट थे —-

सच्चे देश भक्त तो शहीद हो चुके थे

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देसी गायीचे महत्त्व


देसी गायीचे महत्त्व
1) गाय भारतीय खेती का आधारस्तंभ है I
2) जीस घर में गाय दु:खी होकर निवास करते है वह घर नरक में जाता है I
3) गाय के झुटे पाणी को पवीत्र माना गया है I
4) गाय विश्व का आधार एवं सभी देवताओं की माता है I
5) अत्यंत दुर्बल गाय का दान करने से घर-बार नष्ट होता है I
पंचगव्य का उपयोग
1) मठ्ठा पिने से चर्बी संतुलीत हो जाती है I
2) देसी गाय का घी 2-2 बुंद नाक में डालने से लकवे का पेशंट तुरंत ठीक हो जाता है I
3) छोटे बच्चों को देसी गाय का 10-15 मिली गोमूत्र पिलाने से शरीर में के कृमी नष्ट होते है I
4) देसी गाय का माखण खाने से रक्ती मूळव्याध ठिक होता है I
5) दुग्धकल्प दातों और मसूडों को मजबुत बनाता है I
आयुर्वेदिक घरगुती उपाय
1) संतरा खाने से भुक बढ़ती है तथा पचनशक्ती अच्छी रहेती है I
2) लहसुन के सेवन से मिर्गी और व्हीस्टेरीया रोग में आराम मिलता है I
3) गाजर का नीयमीत रुप से सेवन करने से पेट में के जंतू मरते है I
4) जामूनी का रस सेवन करने से लीवर एक्ट्रशन शरीर में तयार होता है I
5) चंदन यह घर में का सबसे बडी दवा है I
भाई राजीव दिक्षीत
1) नहाते समय बच्चों को साबुन न लगायें उनको चने के आटे, मलतानी मिट्टी, चंदन पावडर से नहलायें I इनसे बच्चों का कफ कम होता है I
2) नहाने के लिए उबटन का उपयोग करें I
3) त्रीफला चूर्ण को बारीक पिसकर उसमें थोडा सेंधा नमक डाले और इससे दांत घसें I
4) पीत्त प्रकृती के लोगों को व्यायाम और मालीश दोनों करने है I
5) भारत वात प्रकृती का देश है I
शेतीचे महत्त्व ::–
हिरव्या खताची झाड वाढवून ::-
शेतात हिरव्या खताची झाड साध्या पिकात, पिकांच्या बाजूतील जागेत, बांध्यावर, पडीक जमिनीत लागवड करुन त्यांचा पाला नंतर जमिनीत खड्डा घेऊन त्यात टाकता येतो. तत्पूर्वी गोमूत्र फवारणी व पिरॅमीडभारीत पाणी यांची फवारणी करावी. अशी झाडे घेतांना हदगा, गवार, अंबाडी ही झाडे लावावीत.
आपको कोई शारीरिक प्रोब्लेम हो तो Whats app पर कॉन्टॉक्ट करें 9922144444
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Krishnapriya Goshala's photo.
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Posted in जीवन चरित्र

लाला लाजपत राय


विश्व हिन्दु  सेवा संघ / world hindu service federation's photo.
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लाला लाजपत राय (अंग्रेजी: Lala Lajpat Rai, पंजाबी: ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ, जन्म: 28 जनवरी 1865 – मृत्यु: 17 नवम्बर 1928) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। सन् 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये और अन्तत: १७ नवम्बर सन् १९२८ को इनकी महान आत्मा ने पार्थिव देह त्याग दी।
जीवन वृत्त
लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में हुआ था। इन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया। इन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया भाग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जाना जाता है। लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी। 30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये। उस समय इन्होंने कहा था: “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।” और वही हुआ भी; लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया। 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से इनका देहान्त हो गया।
लालाजी की मौत का बदला
लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया। इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसम्बर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सज़ा सुनाई गई।
हिन्दी सेवा
लालाजी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण और कई महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं। उन्होने देश में और विशेषतः पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बहुत सहयोग दिया। देश में हिन्दी लागू करने के लिये उन्होने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था।

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

प्रस्तुत चित्र 1300 वर्ष पुराने ऐतिहासिक शिव मन्दिर का है, जो कि विक्किरीवन्दी-तंजावूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। चूंकि यह मन्दिर इस राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बीच आ रहा है इसलिए NHAI द्वारा इस मन्दिर को ढहाने के लिए इस पर लाल निशान लगाए जा चुके हैं।


प्रस्तुत चित्र 1300 वर्ष पुराने ऐतिहासिक शिव मन्दिर का है, जो कि विक्किरीवन्दी-तंजावूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। चूंकि यह मन्दिर इस राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बीच आ रहा है इसलिए NHAI द्वारा इस मन्दिर को ढहाने के लिए इस पर लाल निशान लगाए जा चुके हैं।

यह मन्दिर चोल वंश के राजाओं ने निर्मित करवाया था, तथा इसमें चोल वंश के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज एवं मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इस मन्दिर की एक और खासियत यह है कि तमिल नववर्ष के पहले दिन सूर्य की किरणें एकदम सटीक रूप से गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती हैं…। ग्रामवासियों ने अब तक NHAI को कई ज्ञापन दिए हैं परन्तु फ़िलहाल सड़क के लिए इस मन्दिर को तोड़े जाने की पू्री आशंका है…। 
============ 

यहाँ तक की खबर पढ़कर सभी सेकुलर और "गाँधीवादी" बहुत खुश होंगे, तथा "शेखू-लरिज़्म" की महान परम्परा के गुणगान अवश्य गाएंगे…। परन्तु उन्हें अधिक खुश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि "विकृत सेकुलरिज़्म" का चेहरा उन्हें अगली कुछ पंक्तियों में ही दिखाई दे जाएगा… 

यह खबर है सन 2008 की, जब कोलकाता में वामपंथी शासन था। कोलकाता एयरपोर्ट के रन-वे की लम्बाई बढ़ाने के रास्ते में 120 वर्ष पुरानी एक मस्जिद आ रही थी। "धर्म को अफ़ीम मानने वालों" तथा "सेकुलरिज़्म के पुरोधाओं" ने इस मस्जिद को बचाने के लिए समूचे एयरपोर्ट नवीनीकरण के नक्शे को बदलवाकर 2000 करोड़ से अधिक का चूना करदाताओं को लगाया। इस प्रक्रिया में रन-वे का रास्ता बदलने के लिए 25000 एकड़ अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण करना पड़ा, तथा रनवे के अन्त में आने वाली सभी हाइराइज़ इमारतों को जिन्हें पहले 20 मंजिला बनाने की अनुमति दी जा चुकी थी, उन्हें 17 मंजिल तक सीमित करने के आदेश जारी हुए… 

"Indian Secularism" at its BEST...

प्रस्तुत चित्र 1300 वर्ष पुराने ऐतिहासिक शिव मन्दिर का है, जो कि विक्किरीवन्दी-तंजावूर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। चूंकि यह मन्दिर इस राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के बीच आ रहा है इसलिए NHAI द्वारा इस मन्दिर को ढहाने के लिए इस पर लाल निशान लगाए जा चुके हैं।

यह मन्दिर चोल वंश के राजाओं ने निर्मित करवाया था, तथा इसमें चोल वंश के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज एवं मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। इस मन्दिर की एक और खासियत यह है कि तमिल नववर्ष के पहले दिन सूर्य की किरणें एकदम सटीक रूप से गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती हैं…। ग्रामवासियों ने अब तक NHAI को कई ज्ञापन दिए हैं परन्तु फ़िलहाल सड़क के लिए इस मन्दिर को तोड़े जाने की पू्री आशंका है…।
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यहाँ तक की खबर पढ़कर सभी सेकुलर और “गाँधीवादी” बहुत खुश होंगे, तथा “शेखू-लरिज़्म” की महान परम्परा के गुणगान अवश्य गाएंगे…। परन्तु उन्हें अधिक खुश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि “विकृत सेकुलरिज़्म” का चेहरा उन्हें अगली कुछ पंक्तियों में ही दिखाई दे जाएगा…

यह खबर है सन 2008 की, जब कोलकाता में वामपंथी शासन था। कोलकाता एयरपोर्ट के रन-वे की लम्बाई बढ़ाने के रास्ते में 120 वर्ष पुरानी एक मस्जिद आ रही थी। “धर्म को अफ़ीम मानने वालों” तथा “सेकुलरिज़्म के पुरोधाओं” ने इस मस्जिद को बचाने के लिए समूचे एयरपोर्ट नवीनीकरण के नक्शे को बदलवाकर 2000 करोड़ से अधिक का चूना करदाताओं को लगाया। इस प्रक्रिया में रन-वे का रास्ता बदलने के लिए 25000 एकड़ अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण करना पड़ा, तथा रनवे के अन्त में आने वाली सभी हाइराइज़ इमारतों को जिन्हें पहले 20 मंजिला बनाने की अनुमति दी जा चुकी थी, उन्हें 17 मंजिल तक सीमित करने के आदेश जारी हुए…

“Indian Secularism” at its BEST…