Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

अक्बर का सच .. जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर 1556-1605 ई o !अक्बर का सच .. जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर 1556-1605 ई o !


अक्बर का सच ..
जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर 1556-1605
ई o !
मुगल वंश का तीसरा बादशाह ! जिसे
अकबर महान
कहा गया ! कहा जाता हे उसने तीन
धर्मों को एक
किया ( हिंदू इस्लाम ईसाई ) !
सती प्रथा गौ हत्या और
जजिया पर प्रतिबन्ध लगाया ! इसी पर
प्रतुत हे ये
लेख पूरा पढ़े !
1-सन 1556 अकबर की विजय हिंदू
राजा हेमु के
विरुद्ध कहा जाता हे अकबर ने
उसका सिर काटने से मना कर दिया !
लेकिन नगर के तोरण और
क्यों लटकाया ?
2 - सन 1561 आम्बेर के राजा भारमल
की पुत्री का साम्बर से अपहरण !
विवाह
नहीं हुआ था सरीफुद्दीन
द्वारा एक साल तक आक्रमण हुआ था !
3 - सन 1561 एटा के आठ गाँव के 1000
निर्दोष लोगों को एक घर
में जिंदा इस लिये
जला दिया क्योंकि उन्हौने इस्लाम
नहीं स्वीकार किया !
4--सन 1564
गोढवाना की रानी दुर्गावती को
युद्ध में
जिंदा पकड़ना चाहता था ताकि उसे
अपनी हरम
में डाल सके ! रानी ने ये जान
लिया तो आत्महत्या कर
लीं ! और अकबर ने रानी कि बहन और
पुत्र बधु को अपने हरम में डाल दिया !
रानी उस समय
40 वर्ष की थी और अकबर 22 का
! 5-- सन 1568 फरबरी 24 चित्तोड
जीतने के बाद जब राजपूतो ने
अधीनता नहीं
स्वीकारी तो 8000 राजपूत सैनिक और
4000 हज़ार
किशानो की हत्या का आदेश दिया !
और
जब तक हत्या चालू रही जब तक 3000
मासूम बूढ़े
बच्चे और औरतें न मारी गयीं ! उसमें
उपवीति (जनेऊ )की शन्ख्या साढ़े
चौहत्तर मन थीं !
6-- 2 सितम्बर 1573 अहमदाबाद विजय
में 2000 सैनिकों के नर
मुंड से मीनार बनाई !
7-- 3 मार्च 1575 बंगाल विजय इतने
सैनिकोंकी हत्या की की आठ
मंजिल उंची मीनार बन जाती !
8--1582 वीस मासूम बच्चों पर
भाषा परीक्षण किया और ऐसे घर में
रखा जहाँ किसी भी प्रकार
की आबाज़ न जाए और उन मासूम
बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर
दी वो गुंगे हो कर मर गये ! ये परीक्षण
दोवारा 1589 में 12 बच्चों पर किया !
9-- 1567 थानेसर में संन्यासियों के
दो समुदाय में न्याय
की जगह आपस में लड़वा कर अपने
सैनिकों द्वारा उनकी हत्या करवा दी !
नगर
कोट के जीत कर कान्गडा देवी मंदिर
की मूर्तिखण्डित की औरलूट कर 200
काली गाय की हत्या कर के गौ रक्त
को जूतों में भरकर मंदिर
की प्राचीरो पर
छाप लगाई !
10 -- जैन संत हरिविजय के समय
1583-85 जजिया कर और
गौ हत्या पर पाबंदी लगाने
की घोषणा की जो की
झूठी थी फिर दो वारा जैन
शांति विजय
को भी झूठी घोषणा की !
जबकी अमल एक भी बार
नहीं हुआ ! फिर रनथम्बोरके राजा ने
भी भी जजिया कर छूट
की माँग
की जो की उसी के
अधीन राजा था ! यदि जजिया कर
माफ कर दिया था तब
उसका अधीनस्थ राजा क्योंबार बार
माँग करता था !
11-- अकबर ने सती प्रथा बंद की ! ये
एक धोखा हे वास्तव में उसे जो हिंदू
स्त्री पसंद आ
जाती उसके पति को मारकर उसे
सती होने
से रोक कर अपने हरम में डाल
देता था जेसा की पन्ना के
राजकुमारको मारकर
उसकी पत्नी को और भारमल के
भतीजे जयमल को मरबा कर
उसकी पत्नी को अपने हरम में डाल
दिया ! इसका दूसरा प्रमाण हे
कि अकबर
सती प्रथा को बड़े चाव से विदेशिओ
को दिखाने के लिये
ऊँचे महल पर चारों और से खड़े हो कर
देखता था ! एक अंग्रेज
रूडोल्फ ने अकबर की घोर निंदा की !
12- 4 अगस्त 1582 को दो ईसाई
युवको की इस लिये
हत्या करदी कि उन्हौंने इस्लाम
नहीं स्वीकार किया !
13--अकबर स्वयं पैगम्बर
बनाना चाहता था इसलिये उसने
दीन ए इलाही धर्म
की सुरुआत की जिसका मक़सद मुसलमान
बनाना था ! उसन एक
झूठा अल्लोपनिषद लिख बाया जिसमें
उसकी झूठी तारीफ
लिखी ! दिन ए इलाही को जिन
अठारहलोगो ने माना उनमें बीरबल
अकेला हिंदू था !
14 हिंदुओं पर अत्याचार इससे
पता चलता हे कि अकबर अपने पैर
धो कर उससे इलाज करता हे हिंदुओं
को पिलाता था ! यदि कोई
मुसलमान उस समय उसके सामने
पहुँचाता तो उसे डाँट देता था !
15 - जो हिंदू उसके यहाँ रहते
उनकी बुरीदसा थी तान सेन
के मुँह में दरबारी मुसलमाना अपने मुँह
का चबा पान
ठूंस देते थे ! भगवन्त दास और दश वन्त ने
तंग
आकर
आत्मा हत्या कर ली ! ये हे अकबर महान
की कुछ जीवन दिगदर्शिका
अकबर जेसे हरामी को भारत के इतिहास
में महान का
दर्ज दिलाने वाले गाँधी और नेहरू ने
उसकी असलियत पर पर्दा डाल कर नई
पीढी को बर्बाद करने का काम
किया इस पढ़
कर आप भी अकबर नाम के सुनवर की
असलियत जाने
* अकबर की पहली शादी
उसके चाचा हिन्दल की बेटी रुकैया बेगम
से हुई थी
* अकबर ने अपने अभिभाभक और
विक्रमादित्य हेमू को हराने
वाले बहराम खाँ को इसलिये
हाँथियोँ से कुचलकर
मरवा दिया था क्योँकि उसकी
शादी अकबर की बुआ की
लड़की सलीमा बेगम से तय हुई
थी जिस पर अकबर की नजर
थी ... बहराम खां को मरवाने के
बाद अकबर ने सलीमा बेगम(अब्दुल
रहीम खानखाना की माता) अपने हरम
में
रखा ....
*इतिहास कहता हैँ कि फतेहपुर
सीकरी का निर्माण अकबर ने
कराया ??
अपने संरक्षक बैहराम खाँ से विवाद के
बाद जब अकबर को
गुप्तचरोँ ने सूचित किया कि बैहराम
खाँ उस कैद करना चाहता है तो
उसने तुरन्त अपनी राजधानी आगरे से
हटाक फतेहपुर सीकरी स्थानान्तरित कर
ली इससे स्वत: ही सिद्ध होता है कि
फतेहपुर सीकरी का आसतित्व पहले
से था फतेहपुर सीकरी तब
भी था जब
अकबर का दादा बाबर..
महाराणा संग्राम सिंह
(रांणा सांगा) से लडने गया..
उनकी लडाई फतेहपुर
सीकरी से 10 कि.मी. दूर
खानवा(भरतपुर) के
मैदान में हुई... वहां जनश्रुति है कि फतेहपुर
सीकरी को देवों ने बसाया.. और मात्र
एक
रात में बुलंद
दरवाजा तैयार हो गया... आज भी उसके
अंदर एक
स्थान है.. जिसे सीता रसोई
कहा जाता है....
* अकबर ने खान देश के शासक
मिर्जा मुबारक शाह
की बेटी को हरम में
डाला था (सितम्बर
१५६४ इसवी)
* 23 फरवरी १५६७ को अकबर ने चित्तोड़
में
कत्लेआम करवाया ;...जिसमे करीब ३०
हज़ार लोग मारे
गए और कई हज़ार बंदी बनाये
गए ...राजपूत
वीरांगनाओ ने अपने
सतीत्व की रक्षा के लिए सामूहिक
जौहर किया ...
* अकबर के तृतीय पुत्र दानियाल
का जन्म
उसकी एक रखैल स्त्री से हुआ १५
सितम्बर १५७२ ..अकबर का एक
दूसरी रखैल से मुराद
ना का पुत्र उत्पन्न हुआ .. अगर वाकई
अकबर जोधा को प्रेम
करता था तो उसके हरम १० हज़ार से
ज्यादा रूपसिया क्यों थी ,,, कई
रखैलो से उसके पुत्र
भी हुए ....
* २६ अप्रैल १५८५ को दरबार में
नवरत्नों का दर्जा प्राप्त महान
संगीतज्ञ तानसेन की मृत्यु हो गई
लेकिन उन्हें लाहोर में
दफनाया गया जबकि वो हिन्दू थे
* भारतवर्ष में वैश्यावृत्ति की शुरुआत
करने का श्रेय
अकबर को ही जाता है जोधा अकबर
की
प्रेम कहानी पर
टीवी सीरियल दिखाया जा रहा
.... जिसमे अकबर को नायक की छवि में
प्रस्तुत किया
जा रहा ........

अक्बर का सच ..
जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर 1556-1605
ई o !
मुगल वंश का तीसरा बादशाह ! जिसे
अकबर महान
कहा गया ! कहा जाता हे उसने तीन
धर्मों को एक
किया ( हिंदू इस्लाम ईसाई ) !
सती प्रथा गौ हत्या और
जजिया पर प्रतिबन्ध लगाया ! इसी पर
प्रतुत हे ये
लेख पूरा पढ़े !
1-सन 1556 अकबर की विजय हिंदू
राजा हेमु के
विरुद्ध कहा जाता हे अकबर ने
उसका सिर काटने से मना कर दिया !
लेकिन नगर के तोरण और
क्यों लटकाया ?
2 – सन 1561 आम्बेर के राजा भारमल
की पुत्री का साम्बर से अपहरण !
विवाह
नहीं हुआ था सरीफुद्दीन
द्वारा एक साल तक आक्रमण हुआ था !
3 – सन 1561 एटा के आठ गाँव के 1000
निर्दोष लोगों को एक घर
में जिंदा इस लिये
जला दिया क्योंकि उन्हौने इस्लाम
नहीं स्वीकार किया !
4–सन 1564
गोढवाना की रानी दुर्गावती को
युद्ध में
जिंदा पकड़ना चाहता था ताकि उसे
अपनी हरम
में डाल सके ! रानी ने ये जान
लिया तो आत्महत्या कर
लीं ! और अकबर ने रानी कि बहन और
पुत्र बधु को अपने हरम में डाल दिया !
रानी उस समय
40 वर्ष की थी और अकबर 22 का
! 5– सन 1568 फरबरी 24 चित्तोड
जीतने के बाद जब राजपूतो ने
अधीनता नहीं
स्वीकारी तो 8000 राजपूत सैनिक और
4000 हज़ार
किशानो की हत्या का आदेश दिया !
और
जब तक हत्या चालू रही जब तक 3000
मासूम बूढ़े
बच्चे और औरतें न मारी गयीं ! उसमें
उपवीति (जनेऊ )की शन्ख्या साढ़े
चौहत्तर मन थीं !
6– 2 सितम्बर 1573 अहमदाबाद विजय
में 2000 सैनिकों के नर
मुंड से मीनार बनाई !
7– 3 मार्च 1575 बंगाल विजय इतने
सैनिकोंकी हत्या की की आठ
मंजिल उंची मीनार बन जाती !
8–1582 वीस मासूम बच्चों पर
भाषा परीक्षण किया और ऐसे घर में
रखा जहाँ किसी भी प्रकार
की आबाज़ न जाए और उन मासूम
बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर
दी वो गुंगे हो कर मर गये ! ये परीक्षण
दोवारा 1589 में 12 बच्चों पर किया !
9– 1567 थानेसर में संन्यासियों के
दो समुदाय में न्याय
की जगह आपस में लड़वा कर अपने
सैनिकों द्वारा उनकी हत्या करवा दी !
नगर
कोट के जीत कर कान्गडा देवी मंदिर
की मूर्तिखण्डित की औरलूट कर 200
काली गाय की हत्या कर के गौ रक्त
को जूतों में भरकर मंदिर
की प्राचीरो पर
छाप लगाई !
10 — जैन संत हरिविजय के समय
1583-85 जजिया कर और
गौ हत्या पर पाबंदी लगाने
की घोषणा की जो की
झूठी थी फिर दो वारा जैन
शांति विजय
को भी झूठी घोषणा की !
जबकी अमल एक भी बार
नहीं हुआ ! फिर रनथम्बोरके राजा ने
भी भी जजिया कर छूट
की माँग
की जो की उसी के
अधीन राजा था ! यदि जजिया कर
माफ कर दिया था तब
उसका अधीनस्थ राजा क्योंबार बार
माँग करता था !
11– अकबर ने सती प्रथा बंद की ! ये
एक धोखा हे वास्तव में उसे जो हिंदू
स्त्री पसंद आ
जाती उसके पति को मारकर उसे
सती होने
से रोक कर अपने हरम में डाल
देता था जेसा की पन्ना के
राजकुमारको मारकर
उसकी पत्नी को और भारमल के
भतीजे जयमल को मरबा कर
उसकी पत्नी को अपने हरम में डाल
दिया ! इसका दूसरा प्रमाण हे
कि अकबर
सती प्रथा को बड़े चाव से विदेशिओ
को दिखाने के लिये
ऊँचे महल पर चारों और से खड़े हो कर
देखता था ! एक अंग्रेज
रूडोल्फ ने अकबर की घोर निंदा की !
12- 4 अगस्त 1582 को दो ईसाई
युवको की इस लिये
हत्या करदी कि उन्हौंने इस्लाम
नहीं स्वीकार किया !
13–अकबर स्वयं पैगम्बर
बनाना चाहता था इसलिये उसने
दीन ए इलाही धर्म
की सुरुआत की जिसका मक़सद मुसलमान
बनाना था ! उसन एक
झूठा अल्लोपनिषद लिख बाया जिसमें
उसकी झूठी तारीफ
लिखी ! दिन ए इलाही को जिन
अठारहलोगो ने माना उनमें बीरबल
अकेला हिंदू था !
14 हिंदुओं पर अत्याचार इससे
पता चलता हे कि अकबर अपने पैर
धो कर उससे इलाज करता हे हिंदुओं
को पिलाता था ! यदि कोई
मुसलमान उस समय उसके सामने
पहुँचाता तो उसे डाँट देता था !
15 – जो हिंदू उसके यहाँ रहते
उनकी बुरीदसा थी तान सेन
के मुँह में दरबारी मुसलमाना अपने मुँह
का चबा पान
ठूंस देते थे ! भगवन्त दास और दश वन्त ने
तंग
आकर
आत्मा हत्या कर ली ! ये हे अकबर महान
की कुछ जीवन दिगदर्शिका
अकबर जेसे हरामी को भारत के इतिहास
में महान का
दर्ज दिलाने वाले गाँधी और नेहरू ने
उसकी असलियत पर पर्दा डाल कर नई
पीढी को बर्बाद करने का काम
किया इस पढ़
कर आप भी अकबर नाम के सुनवर की
असलियत जाने
* अकबर की पहली शादी
उसके चाचा हिन्दल की बेटी रुकैया बेगम
से हुई थी
* अकबर ने अपने अभिभाभक और
विक्रमादित्य हेमू को हराने
वाले बहराम खाँ को इसलिये
हाँथियोँ से कुचलकर
मरवा दिया था क्योँकि उसकी
शादी अकबर की बुआ की
लड़की सलीमा बेगम से तय हुई
थी जिस पर अकबर की नजर
थी … बहराम खां को मरवाने के
बाद अकबर ने सलीमा बेगम(अब्दुल
रहीम खानखाना की माता) अपने हरम
में
रखा ….
*इतिहास कहता हैँ कि फतेहपुर
सीकरी का निर्माण अकबर ने
कराया ??
अपने संरक्षक बैहराम खाँ से विवाद के
बाद जब अकबर को
गुप्तचरोँ ने सूचित किया कि बैहराम
खाँ उस कैद करना चाहता है तो
उसने तुरन्त अपनी राजधानी आगरे से
हटाक फतेहपुर सीकरी स्थानान्तरित कर
ली इससे स्वत: ही सिद्ध होता है कि
फतेहपुर सीकरी का आसतित्व पहले
से था फतेहपुर सीकरी तब
भी था जब
अकबर का दादा बाबर..
महाराणा संग्राम सिंह
(रांणा सांगा) से लडने गया..
उनकी लडाई फतेहपुर
सीकरी से 10 कि.मी. दूर
खानवा(भरतपुर) के
मैदान में हुई… वहां जनश्रुति है कि फतेहपुर
सीकरी को देवों ने बसाया.. और मात्र
एक
रात में बुलंद
दरवाजा तैयार हो गया… आज भी उसके
अंदर एक
स्थान है.. जिसे सीता रसोई
कहा जाता है….
* अकबर ने खान देश के शासक
मिर्जा मुबारक शाह
की बेटी को हरम में
डाला था (सितम्बर
१५६४ इसवी)
* 23 फरवरी १५६७ को अकबर ने चित्तोड़
में
कत्लेआम करवाया ;…जिसमे करीब ३०
हज़ार लोग मारे
गए और कई हज़ार बंदी बनाये
गए …राजपूत
वीरांगनाओ ने अपने
सतीत्व की रक्षा के लिए सामूहिक
जौहर किया …
* अकबर के तृतीय पुत्र दानियाल
का जन्म
उसकी एक रखैल स्त्री से हुआ १५
सितम्बर १५७२ ..अकबर का एक
दूसरी रखैल से मुराद
ना का पुत्र उत्पन्न हुआ .. अगर वाकई
अकबर जोधा को प्रेम
करता था तो उसके हरम १० हज़ार से
ज्यादा रूपसिया क्यों थी ,,, कई
रखैलो से उसके पुत्र
भी हुए ….
* २६ अप्रैल १५८५ को दरबार में
नवरत्नों का दर्जा प्राप्त महान
संगीतज्ञ तानसेन की मृत्यु हो गई
लेकिन उन्हें लाहोर में
दफनाया गया जबकि वो हिन्दू थे
* भारतवर्ष में वैश्यावृत्ति की शुरुआत
करने का श्रेय
अकबर को ही जाता है जोधा अकबर
की
प्रेम कहानी पर
टीवी सीरियल दिखाया जा रहा
…. जिसमे अकबर को नायक की छवि में
प्रस्तुत किया
जा रहा ……..

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

आज का हमारा विकृत इतिहास … जयचंद , मानसिंह एवं मीरजाफर सरीखे गद्दारों से रंगा हुआ है…!


आज का हमारा विकृत इतिहास ... जयचंद , मानसिंह एवं मीरजाफर सरीखे गद्दारों से रंगा हुआ है...! 

और, इस तरह के विकृत इतिहास को पढ़ाकर  .....इस देश के वामपंथी सेक्यूलर एवं मुस्लिम परस्त सरकार  ... कहीं ना कहीं ... हम हिन्दुओं को हतोत्साहित करने का षड़यंत्र करते नजर आते हैं...!

लेकिन.... दूसरी तरफ का सत्य ये है कि..... मुस्लिम जेहादियों के शासनकाल में .... हिन्दुओं ने ऐसी वीरता दिखलाई है.....जिसके वर्णन मात्र से ही ..... हम हिन्दुओं का सीना 56  इंच का हो जाता है...!

ऐसी ही एक कहानी ..... खुसरुखान उर्फ़ नसरुद्दीन की है....!

अगर किसी को भी इतिहास की थोड़ी बहुत भी जानकारी होगी तो.... उन्हें यह याद होगा कि..... जेहादी अलाउद्दीन ख़िलजी की हत्या के बाद उसका पुत्र मुबारक अपने सभी विरोधिओं को कत्ल करने के बाद दिल्ली का सुलतान बन बैठा ।

और, उसकी इस कार्य में सबसे अधिक सहायता उसके सेनापति खुसरुखान ने की.........!

परन्तु.... इस सारी कहानी में ......  वामपंथी सेक्यूलरों द्वारा ये बड़ी बात खूबसूरती से छुपा ली गई कि...... खुसरुखान एक हिंदू गुलाम था.......

असल में जब ..... 1297  में मालिक काफूर ने जब गुजरात पर आक्रमण किया था.......तब एक सुंदर व तेजस्वी हिन्दू लड़का गुलाम के रूप में पकड़ा गया.....जो अल्लाउद्दीन को सोंप दिया गया...।

जैसा कि.... जेहादियों का काम होता है .....

उस हिंदू लड़के को इस्लाम में दीक्षित किया गया तथा उसका नाम "हसन" रखा गया.....।

और.... धीरे -धीरे हसन एक वीर योद्धा बनता चला गया।

तथा.... मुबारक के सुलतान बनने पर वह ""खुसरुखान"" के नाम से उसका सेनापति बना....!

इधर ..... गुजरात के राजा की पुत्री ""देवल देवी""" को भी मालिक काफूर युद्ध में उठा लाया था...........जिसे , जबरदस्ती अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र्खान से उसका निकाह पढ़वा दिया गया....!

और, गुर्जर वंश की यह राजकन्या खिज्र्खान की हत्या के बाद....... ""देवल देवी""" ने ... मुबारक से शादी  कर लिया।

परन्तु..... अलाउद्दीन ख़िलजी और उसकी जेहादी सेना ..... उस हिन्दू बालक एवं देवल देवी के सिर्फ नाम ही बदल पाए थे...... उनके रगों में बहने वाले  ""हिन्दू खून"" को नहीं ...!

इसीलिए....हिंदू बालक से हसन...... व,  हसन से खुसरुखान बने युवक के दिल में अपने पुराने धर्म व अपने राष्ट्र के लिए अपार प्रेम जाग्रत था..... और, वो इस्लाम से बेहद नफरत करता था...!

और..... इसी ज्वाला में हिंदू गुर्जर राजकन्या देवल देवी भी धधक रही थी ।

इसी कारण......... खुसरुखान ने एक दूरगामी योजना बना डाली।

सुलतान मुबारक के अतिविश्वास पात्र होने के कारण खुसरुखान का महल में बेरोकटोक आना जाना था।

इसीलिए....  खुसरुखान और देवल देवी ने उन जेहादियों से ...... बदला लेने के लिए.....सुलतान को विश्वास में लेकर गुजरात की अपनी पुरानी हिंदू जाति  परिया (पवार) के चुने हुए लगभग 20 ,000  युवा सेना में भरती कर लिए ...!

ध्यान रहे कि....ये सारी योजनाएं महल में बन रही थी.... और, योजनानुसार .... महल के सारे सैनिक भी बदल दिए गए.....!

समय आने पर खुसरुखान ने मुबारक को मौत के घाट उतर दिया.........और , नसुरुद्दीन के नाम  से दिल्ली का सुलतान बन गया.. एवं,  देवल देवी से उसने हिंदू रीतिरिवाज से विवाह किया।

थोड़े ही समय बाद..... उसने नसुरुद्दीन (जिसका अर्थ होता है धर्म रक्षक ) के नाम से ही ...........अपने को हिंदू सम्राट घोषित कर दिया..... और,  जेल में पड़े सभी हिन्दुओं को छोड़ दिया गया...!

साथ ही.....  जबरदस्ती मुसलमान बनाए लोगो का शुद्धिकरण कराए जाने लगे ... एवं , जजिया कर समाप्त कर दिया गया.....!

इस  नए हिंदू सम्राट ने हिंदू व मुस्लिम सैनिको दोनों की पगार बढ़ा दी........!

अब इतना कुछ होने पर मुस्लिमों का  विरोध तो  होना ही था...!

नसुरुद्दीन की ताकत के सामने 2  वर्ष तक तो सब ठीक रहा.....परंतु,  2  वर्ष बाद पंजाब प्रान्त के शासक गयासुद्दीन ने अपनी ताकत बढ़ा ली ........और,  दिल्ली पर काफिर के शासक को ख़त्म करने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया.....!

ऐन मौके पर..... मुसलमाओं ने एक बार फिर अपने गंदे खून का परिचय दिया...... एवं...   मुस्लिम सेना ने समय आने पर सुलतान के साथ धोखा करते हुए..... मुस्लिम सेना से मिल गई...!

बचे हुए हिंदू सैनिक ........ बहुत वीरता से लड़े परंतु, दुर्भाग्य से वे सभी  नसुरुद्दीन के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए.

यह समाचार सुनकर ......रानी देवल ने भी महल से कूदकर अपनी जान दे दी.... ताकि, उसे फिर किसी मुस्लिम जेहादी के हाथों अपमानित ना होना पड़े....!

इस तरह.... नसुरुद्दीन का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरो में लिखा जाना चाहिए था।

परन्तु, आश्चर्य है कि..... इतिहासकारों ने दिल्ली सल्तनत के 2  सुनहरे वर्ष बिल्कुल ही भुला दिए...!

और, हम हिन्दू भी अपने धरोहर पर गर्व करने की जगह उसे भुला बैठे.... जो हमारे लिए मिसाल है कि....

विपरीत परिस्थितियों में भी.... कैसे अपने देश और धर्म के दुश्मनों को सबक सिखाया जाता है....!

जय महाकाल...!!!

आज का हमारा विकृत इतिहास … जयचंद , मानसिंह एवं मीरजाफर सरीखे गद्दारों से रंगा हुआ है…!

और, इस तरह के विकृत इतिहास को पढ़ाकर …..इस देश के वामपंथी सेक्यूलर एवं मुस्लिम परस्त सरकार … कहीं ना कहीं … हम हिन्दुओं को हतोत्साहित करने का षड़यंत्र करते नजर आते हैं…!

लेकिन…. दूसरी तरफ का सत्य ये है कि….. मुस्लिम जेहादियों के शासनकाल में …. हिन्दुओं ने ऐसी वीरता दिखलाई है…..जिसके वर्णन मात्र से ही ….. हम हिन्दुओं का सीना 56 इंच का हो जाता है…!

ऐसी ही एक कहानी ….. खुसरुखान उर्फ़ नसरुद्दीन की है….!

अगर किसी को भी इतिहास की थोड़ी बहुत भी जानकारी होगी तो…. उन्हें यह याद होगा कि….. जेहादी अलाउद्दीन ख़िलजी की हत्या के बाद उसका पुत्र मुबारक अपने सभी विरोधिओं को कत्ल करने के बाद दिल्ली का सुलतान बन बैठा ।

और, उसकी इस कार्य में सबसे अधिक सहायता उसके सेनापति खुसरुखान ने की………!

परन्तु…. इस सारी कहानी में …… वामपंथी सेक्यूलरों द्वारा ये बड़ी बात खूबसूरती से छुपा ली गई कि…… खुसरुखान एक हिंदू गुलाम था…….

असल में जब ….. 1297 में मालिक काफूर ने जब गुजरात पर आक्रमण किया था…….तब एक सुंदर व तेजस्वी हिन्दू लड़का गुलाम के रूप में पकड़ा गया…..जो अल्लाउद्दीन को सोंप दिया गया…।

जैसा कि…. जेहादियों का काम होता है …..

उस हिंदू लड़के को इस्लाम में दीक्षित किया गया तथा उसका नाम “हसन” रखा गया…..।

और…. धीरे -धीरे हसन एक वीर योद्धा बनता चला गया।

तथा…. मुबारक के सुलतान बनने पर वह “”खुसरुखान”” के नाम से उसका सेनापति बना….!

इधर ….. गुजरात के राजा की पुत्री “”देवल देवी””” को भी मालिक काफूर युद्ध में उठा लाया था………..जिसे , जबरदस्ती अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र्खान से उसका निकाह पढ़वा दिया गया….!

और, गुर्जर वंश की यह राजकन्या खिज्र्खान की हत्या के बाद……. “”देवल देवी””” ने … मुबारक से शादी कर लिया।

परन्तु….. अलाउद्दीन ख़िलजी और उसकी जेहादी सेना ….. उस हिन्दू बालक एवं देवल देवी के सिर्फ नाम ही बदल पाए थे…… उनके रगों में बहने वाले “”हिन्दू खून”” को नहीं …!

इसीलिए….हिंदू बालक से हसन…… व, हसन से खुसरुखान बने युवक के दिल में अपने पुराने धर्म व अपने राष्ट्र के लिए अपार प्रेम जाग्रत था….. और, वो इस्लाम से बेहद नफरत करता था…!

और….. इसी ज्वाला में हिंदू गुर्जर राजकन्या देवल देवी भी धधक रही थी ।

इसी कारण……… खुसरुखान ने एक दूरगामी योजना बना डाली।

सुलतान मुबारक के अतिविश्वास पात्र होने के कारण खुसरुखान का महल में बेरोकटोक आना जाना था।

इसीलिए…. खुसरुखान और देवल देवी ने उन जेहादियों से …… बदला लेने के लिए…..सुलतान को विश्वास में लेकर गुजरात की अपनी पुरानी हिंदू जाति परिया (पवार) के चुने हुए लगभग 20 ,000 युवा सेना में भरती कर लिए …!

ध्यान रहे कि….ये सारी योजनाएं महल में बन रही थी…. और, योजनानुसार …. महल के सारे सैनिक भी बदल दिए गए…..!

समय आने पर खुसरुखान ने मुबारक को मौत के घाट उतर दिया………और , नसुरुद्दीन के नाम से दिल्ली का सुलतान बन गया.. एवं, देवल देवी से उसने हिंदू रीतिरिवाज से विवाह किया।

थोड़े ही समय बाद….. उसने नसुरुद्दीन (जिसका अर्थ होता है धर्म रक्षक ) के नाम से ही ………..अपने को हिंदू सम्राट घोषित कर दिया….. और, जेल में पड़े सभी हिन्दुओं को छोड़ दिया गया…!

साथ ही….. जबरदस्ती मुसलमान बनाए लोगो का शुद्धिकरण कराए जाने लगे … एवं , जजिया कर समाप्त कर दिया गया…..!

इस नए हिंदू सम्राट ने हिंदू व मुस्लिम सैनिको दोनों की पगार बढ़ा दी……..!

अब इतना कुछ होने पर मुस्लिमों का विरोध तो होना ही था…!

नसुरुद्दीन की ताकत के सामने 2 वर्ष तक तो सब ठीक रहा…..परंतु, 2 वर्ष बाद पंजाब प्रान्त के शासक गयासुद्दीन ने अपनी ताकत बढ़ा ली ……..और, दिल्ली पर काफिर के शासक को ख़त्म करने के लिए उस पर आक्रमण कर दिया…..!

ऐन मौके पर….. मुसलमाओं ने एक बार फिर अपने गंदे खून का परिचय दिया…… एवं… मुस्लिम सेना ने समय आने पर सुलतान के साथ धोखा करते हुए….. मुस्लिम सेना से मिल गई…!

बचे हुए हिंदू सैनिक …….. बहुत वीरता से लड़े परंतु, दुर्भाग्य से वे सभी नसुरुद्दीन के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए.

यह समाचार सुनकर ……रानी देवल ने भी महल से कूदकर अपनी जान दे दी…. ताकि, उसे फिर किसी मुस्लिम जेहादी के हाथों अपमानित ना होना पड़े….!

इस तरह…. नसुरुद्दीन का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरो में लिखा जाना चाहिए था।

परन्तु, आश्चर्य है कि….. इतिहासकारों ने दिल्ली सल्तनत के 2 सुनहरे वर्ष बिल्कुल ही भुला दिए…!

और, हम हिन्दू भी अपने धरोहर पर गर्व करने की जगह उसे भुला बैठे…. जो हमारे लिए मिसाल है कि….

विपरीत परिस्थितियों में भी…. कैसे अपने देश और धर्म के दुश्मनों को सबक सिखाया जाता है….!

जय महाकाल…!!!

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

चीन ने भारत पर हमला किया था 1962 ने . उस समय vk krishna menon जैसा नेता भारत का रक्षा मंत्री था !!


चीन ने भारत पर हमला किया था 1962 ने . उस समय vk krishna menon जैसा नेता भारत का रक्षा मंत्री था !!
1960 -61 मे एक बार संसद मे बहस हो रही थी तो वीके कृशन ने खड़े होकर अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा !
प्रस्ताव क्या रखा ??
उन्होने कहा देखो जी पाकिस्तान ने तो 1948 मे हमसे समझोता कर लिया कि वह आगे से कभी हम पर हमला नहीं करेगा ! और दुनिया के आजू-बाजू मे और कोई हमारा दुश्मन है नहीं ! तो हमे बार्डर पर सेना रखने कि क्या जरूरत है सेना हटा देनी चाहिए ! ऐसे उल्टी बुद्धि के आदमी थे vk krishan
menon ! और ये बात वो कहीं साधारण सी बैठक मे नहीं लोकसभा मे खड़े होकर बोल रहे थे ! कि ये सेना हमको हटा देनी चाहिए ! इसकी जरूरत नहीं है !!
और तो और एक और मूर्खता वाला काम किया ! उन्होने कहा अगर सेना ही नहीं है तो ये बंब,बंदुके
बनाने की क्या जरूरत है ! तो गोला बारूद बनाने वाले कारखानो मे उत्पादन पर रोक लगा दी और वहाँ काफी बनाने के प्याले चाय बनाने के प्याले आदि का काम शुरू करवा दिया !!

और उनको जो इस तरह के बयान आते थे तो चीन को लगा कि ये तो बहुत मूर्ख आदमी है ! कहता है सेना को हटा लो ! सेना का खर्चा कम कर दो ! गोला बारूद बनाना बंद कर दो ! और खुद दुनिया भर मे घूमता रहता है ! कभी सेना के लोगो के पास न जाना ! सेना के साथ को meeting न करना ! इस तरह के काम करते रहते थे !

1966.. के पाकिस्तान के भारत पर होने वाले हमले से पूर्व चीन ने भारत पर हमला किया था 1962 ने !
और ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हमला था ! इसको इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है कि उस समय vk krishna menon जैसा नेता भारत का रक्षा मंत्री था !!

दुर्भाग्यपूर्ण वाली बात ये है कि VK krishan menon थे तो भारत के रक्षा मंत्री लेकिन हमेशा विदेश घूमते रहते थे ! उनको हिदुस्तान रहना अच्छा ही नहीं लगता था आमेरिका अच्छा लगता था !फ्रांस अच्छा लगता था !ब्रिटेन अच्छा लगता था ! नुयोर्क उनको हमेशा अच्छा लगता था ! उनकी तो मजबूरी थी कि भारत मे पैदा हो गए थे ! लेकिन हमेशा उनको विदेश रहना और वहाँ घूमना ही अच्छा लगता था ! और जो काम उनको रक्षा मंत्री का सौंपा गया था उसको छोड़ वो बाकी सब काम करते थे ! विदेश मे घूमते रहना !कभी किसी देश कभी किसी देश मे जाकर कूट नीति ब्यान दे देना ! !

और ये किस तरह के अजीब किसम के आदमी थे !आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है ! 1960 -61 मे एक बार संसद मे बहस हो रही थी तो वीके कृशन ने खड़े होकर अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा !

प्रस्ताव क्या रखा ??

उन्होने कहा देखो जी पाकिस्तान ने तो 1948 मे हमसे समझोता कर लिया कि वह आगे से कभी हम पर हमला नहीं करेगा ! और दुनिया के आजू-बाजू मे और कोई हमारा दुश्मन है नहीं ! तो हमे बार्डर पर सेना रखने कि क्या जरूरत है सेना हटा देनी चाहिए ! ऐसे उल्टी बुद्धि के आदमी थे vk krishan menon ! और ये बात वो कहीं साधारण सी बैठक मे नहीं लोकसभा मे खड़े होकर बोल रहे थे ! कि ये सेना हमको हटा देनी चाहिए ! इसकी जरूरत नहीं है !!

तो कुछ सांसदो मे सवाल किया कि अगर भविष्य मे किसी देश ने हमला कर दिया तो कया करेंगे ???? अभी तो आप बोल रहे है कि सेना हटा लो ! पर अमरजनसी जरूरत पड़ गई तो कया करेंगे ???
तो उन्होने ने कहा इसके लिए पुलिस काफी है ! उसी से काम चला लेगे ! ऐसा जवाब vk krishann manon ने दिया !!

ऐसी ही एक बार कैबनेट कि मीटिंग थी प्रधान मंत्री और बाकी कुछ मंत्री माजूद थे ! vk kirshan ने एक प्रस्ताव फिर लाया और कहा ! देखो जी हमने सीमा से सेना तो हटा ली है ! अगर सेना नहीं रखनी तो पैसे खर्च करने कि क्या जरूरत है ! तो बजट मे से सेना का खर्च भी कम कर दिया !

और तो और एक और मूर्खता वाला काम किया ! उन्होने कहा अगर सेना ही नहीं है तो ये बंब,बंदुके
बनाने की क्या जरूरत है ! तो गोला बारूद बनाने वाले कारखानो मे उत्पादन पर रोक लगा दी और वहाँ काफी बनाने के प्याले चाय बनाने के प्याले आदि का काम शुरू करवा दिया !!

और उनको जो इस तरह के बयान आते थे तो चीन को लगा कि ये तो बहुत मूर्ख आदमी है ! कहता है सेना को हटा लो ! सेना का खर्चा कम कर दो ! गोला बारूद बनाना बंद कर दो ! और खुद दुनिया भर मे घूमता रहता है ! कभी सेना के लोगो के पास न जाना ! सेना के साथ को meeting न करना ! इस तरह के काम करते रहते थे !

तो चीन को मौका मिल गया ! और चीन एक मौका ये भी मिल गया !चीन को लगा की vk kirashan तो प्रधानमंत्री (नेहरू ) के आदमी है !! तो शायद नेहरू की भी यही मान्यता होगी ! क्यूंकि vk krishan नेहरू का खास दोस्त था तो नेहरू ने उसको रक्षा मंत्री बना दिया था ! वरना vk krishan कोई बड़ा नेता नहीं था देशा का ! जनता मे कोई उनका प्रभाव नहीं था ! बस नेहरू की दोस्ती ने उनको रक्षा मंत्री बना दिया !!
और वो हमेशा जो भाषण देते थे !लंबा भाषण देते थे 3 घंटे 4 घंटे ! लेकिन आप उनके भाषण का सिर पैर नहीं निकाल सकते थे कि उन्होने बोला क्या ! ऐसे मूर्ख व्यक्ति थे vk krishan menon !

तो ये सब मूर्खता देख कर चीन ने भारत पर हमला किया और भारत का एक इलाका था aksai chin !
वहाँ चीन ने पूरी ताकत से हमला किया ! और हालात क्या थे आप जानते है ! सेना को वापिस बुला लिया था पहले ही !! सेना का बजट कम था ! गोला बारूद के कारखाने बंद थे !! तो चीनी सैनिको ने बहुत मनमानी कि उस askai chin के क्षेत्र मे !!

और जो सबसे बुरा काम किया ! चीनी सैनिको ने सैंकड़ों महिलाओ के साथ जमकर बलत्कार किए !! वहाँ हजारो युवको कि ह्त्या करी ! askai chin का जो इलाका है वहाँ सुविधाए कुछ ऐसे है कि लोग वैसे ही अपना जीवन मुश्किल से जी पाते है ! रोज का जीवन चलाना ही उनको लिए किसी युद्ध से कम नहीं होता ऊपर से चीन का हमला !!

तो वहाँ के लोगो ने उस समय बहुत बहुत दुख झेला ! और वहाँ हमारी सेना नहीं थी ! तो वहाँ लोगो के मन हमारी सरकार के विरुद्ध एक विद्रोह की भावना उतपन हुई ! और वो आज भी झलकती है ! आज भी आप वहाँ जाये तो वहाँ लोग ये सवाल करते है कि जब चीन ने हमला किया था तो आपकी सेना कहाँ थी ! और सच है हम लोगो के पास इसका कोई जवाब नहीं ! तो उनमे एक अलगाव कि भावना उतपन हुई जो अलग क्षेत्र की मांग करने लगे !!!

तो हमले मे चीन ने हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया ! और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर भी चीन के कब्जे मे चला गया ! और बहुत शर्म कि बात है आज हमे अपने तीर्थ स्थान पर जाने के लिए चीन से आज्ञा लेनी पड़ती है ! और इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ नेहरू और vk krishan menon जैसे घटिया और मूर्ख किसम के नेता थे !!!
__________________________
__________________________
तो युद्ध के बाद एक बार संसद मे भारत-चीन युद्ध पर चर्चा हुई ! सभी सांसदो के मुह से जो एक स्वर सुनाई दे रहा था ! वो यही था !कि किसी भी तरह चीन के पास गई 72 हजार वर्ग मील जमीन और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर वापिस आना चाहिए !

महावीर त्यागी जी जो उस समय के बहुत महान नेता थे !उन्होने ने सीधा नेहरू को कहा कि आप ही थे जिनहोने सेना हटाई ! सेना का बजट कम किया ! गोला बारूद बनाने के कारखाने बंद करवाये! आप ही के लोग विदेशो मे घूमा करते थे ! और आपकी इन गलितयो ने चीन को मौका मिला और उसमे हमला किया और हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया !!

अब आप ही बताए कि आप ये 72 हजार वर्ग मील जमीन को कब वापिस ला रहे है ?????!

तो इस हरामखोर नेहरू का जवाब सुनिए ! नेहरू ने कहा फिर क्या हुआ अगर वो जमीन चली गई ! चली गई तो चली गई ! वैसे भी बंजर जमीन थी घास का टुकड़ा नहीं उगता था ! ऐसी जमीन के लिए क्या चिंता करना !!

तो त्यागी जी ने बहुत ही बढ़िया जवाब दिया ! त्यागी जी ने कहा नेहरू जी उगता तो आपके सिर पर भी कुछ नहीं ! तो इसको भी काट कर चीन को देदो ! और इत्फ़ाक से नेहरू उस समय पूरी तरह गंजा हो चुका था !! 

तो दोस्तो इस नेहरू ने धरती माँ को एक जमीन का टुकड़ा मान लिया ! और अपनी गलती मानने के बजाय ! उल्टा ब्यान दे रहा है जमीन चली गई तो चली गई !

इससे ज्यादा घटिया बात कुछ और नहीं हो सकती ! !

और लानत है भारत की जनता पर आज चीन युद्ध के 50 साल बाद भी नेहरू परिवार के वंशज देश चला रहे हैं !! हमे दिन रात लूट रहे हैं !हमे मूर्ख बना रेह हैं !
____________

आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !!

1962 का युद्ध सारी घटना यहाँ देखे !!
must click here !!

http://www.youtube.com/watch?v=S4390QXdYF4

वन्देमातरम !!!!

अमर शहीद Rajiv Dixit जी !

1966.. के पाकिस्तान के भारत पर होने वाले हमले से पूर्व चीन ने भारत पर हमला किया था 1962 ने !
और ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हमला था ! इसको इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है कि उस समय vk krishna menon जैसा नेता भारत का रक्षा मंत्री था !!

दुर्भाग्यपूर्ण वाली बात ये है कि VK krishan menon थे तो भारत के रक्षा मंत्री लेकिन हमेशा विदेश घूमते रहते थे ! उनको हिदुस्तान रहना अच्छा ही नहीं लगता था आमेरिका अच्छा लगता था !फ्रांस अच्छा लगता था !ब्रिटेन अच्छा लगता था ! नुयोर्क उनको हमेशा अच्छा लगता था ! उनकी तो मजबूरी थी कि भारत मे पैदा हो गए थे ! लेकिन हमेशा उनको विदेश रहना और वहाँ घूमना ही अच्छा लगता था ! और जो काम उनको रक्षा मंत्री का सौंपा गया था उसको छोड़ वो बाकी सब काम करते थे ! विदेश मे घूमते रहना !कभी किसी देश कभी किसी देश मे जाकर कूट नीति ब्यान दे देना ! !

और ये किस तरह के अजीब किसम के आदमी थे !आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है ! 1960 -61 मे एक बार संसद मे बहस हो रही थी तो वीके कृशन ने खड़े होकर अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा !

प्रस्ताव क्या रखा ??

उन्होने कहा देखो जी पाकिस्तान ने तो 1948 मे हमसे समझोता कर लिया कि वह आगे से कभी हम पर हमला नहीं करेगा ! और दुनिया के आजू-बाजू मे और कोई हमारा दुश्मन है नहीं ! तो हमे बार्डर पर सेना रखने कि क्या जरूरत है सेना हटा देनी चाहिए ! ऐसे उल्टी बुद्धि के आदमी थे vk krishan menon ! और ये बात वो कहीं साधारण सी बैठक मे नहीं लोकसभा मे खड़े होकर बोल रहे थे ! कि ये सेना हमको हटा देनी चाहिए ! इसकी जरूरत नहीं है !!

तो कुछ सांसदो मे सवाल किया कि अगर भविष्य मे किसी देश ने हमला कर दिया तो कया करेंगे ???? अभी तो आप बोल रहे है कि सेना हटा लो ! पर अमरजनसी जरूरत पड़ गई तो कया करेंगे ???
तो उन्होने ने कहा इसके लिए पुलिस काफी है ! उसी से काम चला लेगे ! ऐसा जवाब vk krishann manon ने दिया !!

ऐसी ही एक बार कैबनेट कि मीटिंग थी प्रधान मंत्री और बाकी कुछ मंत्री माजूद थे ! vk kirshan ने एक प्रस्ताव फिर लाया और कहा ! देखो जी हमने सीमा से सेना तो हटा ली है ! अगर सेना नहीं रखनी तो पैसे खर्च करने कि क्या जरूरत है ! तो बजट मे से सेना का खर्च भी कम कर दिया !

और तो और एक और मूर्खता वाला काम किया ! उन्होने कहा अगर सेना ही नहीं है तो ये बंब,बंदुके
बनाने की क्या जरूरत है ! तो गोला बारूद बनाने वाले कारखानो मे उत्पादन पर रोक लगा दी और वहाँ काफी बनाने के प्याले चाय बनाने के प्याले आदि का काम शुरू करवा दिया !!

और उनको जो इस तरह के बयान आते थे तो चीन को लगा कि ये तो बहुत मूर्ख आदमी है ! कहता है सेना को हटा लो ! सेना का खर्चा कम कर दो ! गोला बारूद बनाना बंद कर दो ! और खुद दुनिया भर मे घूमता रहता है ! कभी सेना के लोगो के पास न जाना ! सेना के साथ को meeting न करना ! इस तरह के काम करते रहते थे !

तो चीन को मौका मिल गया ! और चीन एक मौका ये भी मिल गया !चीन को लगा की vk kirashan तो प्रधानमंत्री (नेहरू ) के आदमी है !! तो शायद नेहरू की भी यही मान्यता होगी ! क्यूंकि vk krishan नेहरू का खास दोस्त था तो नेहरू ने उसको रक्षा मंत्री बना दिया था ! वरना vk krishan कोई बड़ा नेता नहीं था देशा का ! जनता मे कोई उनका प्रभाव नहीं था ! बस नेहरू की दोस्ती ने उनको रक्षा मंत्री बना दिया !!
और वो हमेशा जो भाषण देते थे !लंबा भाषण देते थे 3 घंटे 4 घंटे ! लेकिन आप उनके भाषण का सिर पैर नहीं निकाल सकते थे कि उन्होने बोला क्या ! ऐसे मूर्ख व्यक्ति थे vk krishan menon !

तो ये सब मूर्खता देख कर चीन ने भारत पर हमला किया और भारत का एक इलाका था aksai chin !
वहाँ चीन ने पूरी ताकत से हमला किया ! और हालात क्या थे आप जानते है ! सेना को वापिस बुला लिया था पहले ही !! सेना का बजट कम था ! गोला बारूद के कारखाने बंद थे !! तो चीनी सैनिको ने बहुत मनमानी कि उस askai chin के क्षेत्र मे !!

और जो सबसे बुरा काम किया ! चीनी सैनिको ने सैंकड़ों महिलाओ के साथ जमकर बलत्कार किए !! वहाँ हजारो युवको कि ह्त्या करी ! askai chin का जो इलाका है वहाँ सुविधाए कुछ ऐसे है कि लोग वैसे ही अपना जीवन मुश्किल से जी पाते है ! रोज का जीवन चलाना ही उनको लिए किसी युद्ध से कम नहीं होता ऊपर से चीन का हमला !!

तो वहाँ के लोगो ने उस समय बहुत बहुत दुख झेला ! और वहाँ हमारी सेना नहीं थी ! तो वहाँ लोगो के मन हमारी सरकार के विरुद्ध एक विद्रोह की भावना उतपन हुई ! और वो आज भी झलकती है ! आज भी आप वहाँ जाये तो वहाँ लोग ये सवाल करते है कि जब चीन ने हमला किया था तो आपकी सेना कहाँ थी ! और सच है हम लोगो के पास इसका कोई जवाब नहीं ! तो उनमे एक अलगाव कि भावना उतपन हुई जो अलग क्षेत्र की मांग करने लगे !!!

तो हमले मे चीन ने हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया ! और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर भी चीन के कब्जे मे चला गया ! और बहुत शर्म कि बात है आज हमे अपने तीर्थ स्थान पर जाने के लिए चीन से आज्ञा लेनी पड़ती है ! और इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ नेहरू और vk krishan menon जैसे घटिया और मूर्ख किसम के नेता थे !!!
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तो युद्ध के बाद एक बार संसद मे भारत-चीन युद्ध पर चर्चा हुई ! सभी सांसदो के मुह से जो एक स्वर सुनाई दे रहा था ! वो यही था !कि किसी भी तरह चीन के पास गई 72 हजार वर्ग मील जमीन और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर वापिस आना चाहिए !

महावीर त्यागी जी जो उस समय के बहुत महान नेता थे !उन्होने ने सीधा नेहरू को कहा कि आप ही थे जिनहोने सेना हटाई ! सेना का बजट कम किया ! गोला बारूद बनाने के कारखाने बंद करवाये! आप ही के लोग विदेशो मे घूमा करते थे ! और आपकी इन गलितयो ने चीन को मौका मिला और उसमे हमला किया और हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया !!

अब आप ही बताए कि आप ये 72 हजार वर्ग मील जमीन को कब वापिस ला रहे है ?????!

तो इस हरामखोर नेहरू का जवाब सुनिए ! नेहरू ने कहा फिर क्या हुआ अगर वो जमीन चली गई ! चली गई तो चली गई ! वैसे भी बंजर जमीन थी घास का टुकड़ा नहीं उगता था ! ऐसी जमीन के लिए क्या चिंता करना !!

तो त्यागी जी ने बहुत ही बढ़िया जवाब दिया ! त्यागी जी ने कहा नेहरू जी उगता तो आपके सिर पर भी कुछ नहीं ! तो इसको भी काट कर चीन को देदो ! और इत्फ़ाक से नेहरू उस समय पूरी तरह गंजा हो चुका था !!

तो दोस्तो इस नेहरू ने धरती माँ को एक जमीन का टुकड़ा मान लिया ! और अपनी गलती मानने के बजाय ! उल्टा ब्यान दे रहा है जमीन चली गई तो चली गई !

इससे ज्यादा घटिया बात कुछ और नहीं हो सकती ! !

और लानत है भारत की जनता पर आज चीन युद्ध के 50 साल बाद भी नेहरू परिवार के वंशज देश चला रहे हैं !! हमे दिन रात लूट रहे हैं !हमे मूर्ख बना रेह हैं !
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आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !!

1962 का युद्ध सारी घटना यहाँ देखे !!
must click here !!

http://www.youtube.com/watch?v=S4390QXdYF4

वन्देमातरम !!!!

अमर शहीद Rajiv Dixit जी !

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

काफी दिन पहले की बात है एक पाकिस्तानी मित्र से चैट हो रही थी.. बातो ही बातो में उसने पूछा कि “और बताओ.. आस पास क्या चल रहा है”


काफी दिन पहले की बात है एक पाकिस्तानी मित्र से चैट हो रही थी.. बातो ही बातो में उसने पूछा कि “और बताओ.. आस पास क्या चल रहा है”
मैं अपनी बालकनी में बैठा था और उसको हंस के बोला “बस कुछ नहीं मेरे पडोसी चिड़ियों के लिए दाना और पानी डाल रहे हैं अपनी बालकनी में”
उसने कहा “तुम्हारे पडोसी ने चिड़ियाँ पाल राखी है”..
मैंने कहाँ “नहीं वो सारी चिड़ियों के लिए पानी रखते हैं, गर्मी है न इसीलिए.. यहाँ हम सब की बालकनी में चिड़ियों के लिए दाना और पानी की एक कटोरी राखी रहती है”
उसने कहा “वाह, क्या बात है यार .. दिल खुश हो गया सुन कर” .. पूछने लगा कि “पडोसी हिन्दू हैं आपके या मुस्लिम”..
मैंने कहा “यहाँ पूरे ब्लाक में मैं अकेला मुस्लिम हूँ.. और मैंने ये इन्ही हिन्दू लोगों से सीखा पानी रखना चिड़ियों के लिए”
वो कहने लगा “ताबिश, हमने तो अपने आस पास किसी दूसरी कौम को छोड़ा ही नहीं है जिस से कुछ सीखा जा सके.. मेरे दादा मुझे बचपन में बताते थे की पेड़ और नदियों की पूजा इसीलिए शुरू हुई थी ताकि ये लोग अपने पर्यावरण को बचा के रख सकें.. यहाँ हमारे यहाँ पाकिस्तान में हमको शिया, सुन्नी, अहमदिया, मुजाहिर इन्ही सब से छुट्टी नहीं है.. आपस में ही मारते काटते रहते हैं.. चिड़िया और पेड़ की कौन सोचे यहाँ.. यहाँ हमारे बच्चों को सिखाया जाता है जाल लगा के चिड़िया पकड़ना और फिर काट के खा लेना”
फिर उसने बहुत भावुक हो कर कहा “ताबिश तुमको अपने पुरखों के लिए दुवा करनी चाहिए की उन्होंने पाकिस्तान ना आ कर हिन्दुस्तान में ही रहने का फैसला किया … यहाँ हमने सिर्फ मुल्क बना लिया मज़हब के नाम पर .. और सब कुछ खो दिया .. इंसानियत, प्यार, मोहब्बत सब कुछ .. और दिन रात हम लोग खोते ही जा रहे हैं… और अब यहाँ कुछ नहीं बचा है सिवाए नफरत के.. मुझे बड़ा ताज्जुब होता है ये देख कर की कुछ भारत के मुसलमान पाकिस्तान की तरफदारी करते हैं .. इनको सच में पता नहीं है की यहाँ मज़हब के सिवा कुछ नहीं है.. यहाँ हम सबके दिलों में हिन्दुस्तान बसता है.. हम वहीँ की मूवीज देखते हैं और वहीँ का राग अलापते हैं.. पकिस्तान बना के हम मुसलमानों को कुछ नहीं मिला.. अगर कुछ मिला है तो बस पाकिस्तानी होने का ठप्पा” —— by Tabish Siddiqui

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन स्थापित होने पर भारत एशिया का पहला देश था जिसने उसका भावपूर्ण स्वागत किया।


1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन स्थापित होने पर भारत एशिया का पहला देश था
जिसने उसका भावपूर्ण स्वागत किया।
इतना ही नहीं भारत एकमात्र देश था जिसने नौ बार चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ का
सदस्य बनाने की वकालत की।
विस्तारवादी चीन के नापाक इरादों के बारे में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी

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सुमंगल स्वागत स्वजनों,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

इतिहास दृष्टि- कांग्रेस के लिए काम के कामरेड !!

यह भारतीय इतिहास की बड़ी विडम्बना है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्मदाता
एक ब्रिटिश नौकरशाह ए.ओ. ह्यूम था।

जिसने 1885 ई. में ब्रिटिश राज्य की सुरक्षा, दृढता तथा स्थायित्व और भारत में आने
वाले भयंकर हिंसात्मक विद्रोह की आशंका से बचने के लिए भारत भूमि पर इसकी
स्थापना की।

कांग्रेस की सदस्यता के लिए केवल दो गुण अनिवार्य थे- अंग्रेजी भाषा का ज्ञान तथा
ब्रिटिश शासन के प्रति संदेह से परे वफादारी।

पहले बीस वर्षों तक इसके सदस्यों ने इसका अक्षरश: पालन किया।

प्रत्येक कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजी शासन को एक वरदान तथा भारत में ब्रिटिश राज्य
की न केवल अपने जीवन में,बल्कि अपने बच्चों के जीवनकाल में स्थायी रूप से बने
रहने की कामना की है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस ने भारत में पूर्ण स्वतंत्रता की कभी मांग नहीं
की केवल डोमिनियन स्टेट्स की बात की थी।

1929 का पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव एक ढोंग मात्र था।

इसी भांति कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया का जन्म भारत से बाहर विदेशभूमि रूस
के ताशकन्द नामक स्थान में 1920 ई. में हुआ।

इसके जन्मदाता एक भारतीय मानवेन्द्रनाथ राय तथा कुछ मुस्लिम मुजाहिर थे।
मोहम्मद शफीक इसका पहला सचिव था।

ताज्जुब है जिस सोवियत रूस ने मार्क्स के लिए मीनारें नष्ट करवा दीं,हजारों मस्जिदों
को हमाम बना डाला,हज की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया,उसी कम्युनिज्म की अनेक
मुस्लिम मुजाहिरों ने,भारत में स्थापना की।

अनेक प्रमुख मुसलमानों को प्रचार के लिए समूचे भारत के विभिन्न स्थानों पर
भेजा गया।

इनका भी भारत के धर्म,संस्कृति,राष्ट्रीयता या स्वतंत्रता से कुछ लेना देना नहीं था।

वे सदैव सोवियत रूस तथा बाद में चीन- अपने मायके से दिशा तथा निर्देश लेते रहे।

भारतीय इतिहास में कांग्रेस- कम्युनिस्ट के परस्पर संबंधों की कहानी एक विचित्र
संयोग है।

यह कभी टकराव,कभी ज्यादा घालमेल,कभी गठबंधन तथा कभी अपूर्ण तलाक
की रही।
यह कभी भी संदेह, अविश्वास तथा अवसरवादिता से मुक्त न रही।
कम्युनिस्टों का एकमात्र टकराव देश के महानतम नेता महात्मा गांधी से हुआ।

सोवियत रूस के सर्वोच्च नेता लेनिन ने प्रारंभ में,कांग्रेस के बुर्जुआ आंदोलन से
समझौता करने का निर्देश दिया (देखें लेनिन, कलैक्टैड वर्क्स, भाग 30, पृ0 162)
पर साथ ही इसे पूर्णत: अस्थायी समझौता करने का निर्देश दिया।
(देखें, भाग 31, पृ. 151-152)

परन्तु महात्मा गांधी के अहिंसक असहयोग आन्दोलन ने लेनिन के पांव भारत में
जमने न दिये और तभी से भारतीय कम्युनिस्टों का महात्मा गांधी द्वारा संचालित
विभिन्न आन्दोलनों तथा गांधी जी के प्रति विषवमन तथा निम्न स्तर की गालियों
का सिलसिला प्रारंभ हुआ।

लेनिन का गांधी जी को रूस आने का निमंत्रण देने (जियोफ्रे ऐश,गांधी, पृ. 245)
तथा उनके प्रति सकारात्मक आलोचनात्मक रुख अपनाने का प्रयत्न हुआ पर
पूर्णत: निष्फल रहा।

असहयोग आन्दोलन यद्यपि विफल रहा,परन्तु यह सोवियत संघ के भारत में इरादों
की कब्र साबित हुआ।

कम्युनिस्टों ने असहयोग आन्दोलन को मध्यमवर्गीय आन्दोलन कहा।
(देखें, आर पी दत्त, इंडिया टुडे, पृ. 341-42)

गांधी द्वारा चौरी-चौरा घटना से असहयोग आन्दोलन की वापसी को क्रांतिकारी
शक्तियों के साथ विश्वासघात बतलाया।
(देखें जी अधिकारी, डाक्यूमेंट्स आफ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (1917-1922,
भाग एक, पृ. 427)

गांधी के प्रभाव को नष्ट करने के लिए मास्को से श्री मानवेन्द्र नाथ राय ने श्री अमृत
डांगे को कई पत्र लिखे।
(देखें, होम पालिटिकल डिपोजिट) फाईल नं. 125/1922 व 421/1924)

गांधी के बारदोली प्रस्ताव को जमींदारों और साम्राज्यवादियों के हित में बतलाया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलीन की कटु आलोचना की।

गांधीजी को ब्रिटिश बिल्ली का पंजा कहा।

इसी भांति 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में कम्युनिस्टों ने अंग्रेजों से मिलकर
राष्ट्रद्रोहितापूर्ण नीति अपनाई तथा भारत के नेताओं को पकड़वाने में ब्रिटिश
गुप्तचरों अथवा मुखवरी का शर्मनाक कृत्य किया।

गांधीजी को शांतिवादी दुष्ट प्रतिमा कहा।

वे 1920-1948 तक गांधी जी को मनमानी गालियां देते रहे।
उन्हें प्रतिगामी,देशद्रोही,ब्रिटिश चमचा,प्रतिक्रियावादी,पूंजीवादियों का गुलाम,मुक्ति
आन्दोलन का दुश्मन आदि कहते रहे।

परन्तु गांधीजी की 1948 में मृत्यु के पश्चात जब स्टालिन ने कहा,पलटो,तब तुरन्त
उन्होंने गिरमिट की तरह रंग बदला।

गांधीजी को महान देशभक्त,मानववादी,जनता की निस्वार्थ सेवा करने वाले साम्राज्य
विरोधी कहने लगे।
जब रूस रंगमंच पर खुश्चैव तथा बुलगानिन आये तो पुन: भारतीय कम्युनिस्ट बुद्धिजीवी
भी गांधीजी की आरती उतारने लगे।
अब गांधीजी को एक आध्यात्मिक जटिल व्यक्तित्व कहा जाने लगे।

नेहरू तथा भारतीय कम्युनिस्ट

अपने अनुयायी नेहरू को व्यक्तिगत हस्तक्षेप कर गांधी जी ने चार बार क्रमश: 1929,
1936,1937 तथा 1946 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया।
नेहरू कम्युनिस्ट विचारों की चकाचौंध से सदैव भ्रमित रहे।
अपनी यूरोप की दूसरी यात्रा में नवम्बर 1927 में चार दिन के लिए सोवियत रूस गये।
उन्होंने वहां पंचवर्षीय योजना तथा नागरिकों की परेड को देखा जो स्वतंत्रता के पश्चात
उन्होंने भारत में भी अपनाई।

दिसम्बर 1927 में कांग्रेस के चेन्नई अधिवेशन में जिसके महासचिव जवाहरलाल नेहरू
थे कुछ प्रसिद्ध कम्युनिस्टों जोगलेकर निम्वकर तथा फिलिप सप्रट ने भाग लिया।

अधिवेशन में रूसी क्रांति की वर्षगांठ पर बधाई भेजने तथा देशव्यापी हड़ताल करने
के प्रस्ताव आये,पर कोई स्वीकृत न हुआ।

पर नेहरू कांग्रेस में वामदल के नेता बन गए क्योंकि वे कांग्रेस मंच पर समाजवाद को
आदर्श बताने वाले प्रथम व्यक्ति थे।

पं. मोतीलाल नेहरू के अत्यधिक आग्रह पर,गांधी जी ने 1929 में उन्हें कांग्रेस का
अध्यक्ष बनाया।

वस्तुत: गांधी जी को भी यह डर था कि अन्यथा कहीं जवाहरलाल नेहरू लाल
(कम्युनिस्ट) न हो जायें।

नेहरू ने अपने विविध अध्यक्षीय भाषणों में समाजवाद की बेलगाम प्रशंसा की,
जिसे गांधी जी ने जरा भी पसंद न किया।

परन्तु नेहरू का समाजवाद का एकाकी प्रेमालाप चलता रहा।

सन 1934 में वे कांग्रेस के अंतर्गत कांग्रेस समाजवादी दल के निर्माताओं में थे,
परन्तु स्वयं वे उसका सदस्य न बने।

1939 में सुभाष चन्द्र बोस ने उनके इस ढोंगी समाजवाद की एक लम्बा पत्र लिखकर
कटु आलोचना की।

सच तो यह है कि सोवियत रूस के प्रसिद्ध इतिहासकारों-प्रोफेसर आर. उल्यानोवास्की
तथा ओरिष्ट मार्टिगन ने (देखें, जवाहरलाल नेहरू एण्ड हिज पालिटिकल व्यूज, मास्को,
1989, पृ. 11) कटु आलोचना की तथा उनके समाजवाद को व्यक्तिगत,असंगत तथा
अशिष्ट कहा।

उनकी समाजवाद के प्रति अपनी संकल्पना की चरम सीमा 1930-1936 तक रही।

गांधीजी के मरते ही नेहरू ने कांग्रेस का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना बताया।
(देखें 1955 का कांग्रेस अधिवेशन)

1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन स्थापित होने पर भारत एशिया का पहला देश था
जिसने उसका भावपूर्ण स्वागत किया।

इतना ही नहीं भारत एकमात्र देश था जिसने नौ बार चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ का
सदस्य बनाने की वकालत की।

विस्तारवादी चीन के नापाक इरादों के बारे में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी
ने कांग्रेस सरकार को सावधान किया।
सरकार ने उन्हें पागल कहा।

गृहमंत्री सरदार पटेल ने चीन को भारत का दुश्मन नं. एक माना,पर विदेश मंत्री
नेहरू कहां सुनने वाले थे।

चीन बार-बार भारत की सीमाएं लांघता रहा,सरकार छुपाती रही,परिणाम अक्तूबर
1962 भारत की विश्व में शर्मनाक हार के रूप में जगप्रसिद्ध है जिसे भारतीय
इतिहास का कोई विद्यार्थी कभी भुला न सकेगा।

इसी भांति नेहरू सोवियत रूस के प्रति मोह ग्रस्त रहे।
इस संदर्भ में वर्तमान में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सोवियत संघ की गुप्तचर संस्था
केजीवी के हजारों गोपनीय दस्तावेजों के सार्वजनिक होने से कांग्रेस-कम्युनिस्टों के
संबंधों की पोल पटरी खुल गई है।

1950-1953 तक मास्को के निर्देश पर नेहरू सरकार को उखाड़ने के प्रयत्न होते रहे।

दूसरी ओर नेहरू सोवियत संघ की छवि बनाने में लगे रहे।

कृष्ण मेनन को भारत का रक्षा मंत्री बनाना भी सोवियत संघ की सफलता का परिचायक
था,जिसे बाद में नेहरू को भारी मन से हटाना पड़ा।

यद्यपि भारतीय कम्युनिस्ट राष्ट्रीय कांग्रेस से विपरीत विचारधारा के थे परन्तु उनकी
प्रारंभ से ही कांग्रेस में घुसपैठ की नीति रही।

1922 में गया कांग्रेस अधिवेशन में भी उन्होंने बोल्शेविक प्रोग्राम सफल कर कांग्रेस पर
कब्जा करने का असफल प्रयास किया था।

1934 में सरकार द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध लग जाने से अनेक भारत के
प्रमुख कम्युनिस्ट कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बन गये थे।

स्टालिन ने कांग्रेस कम्युनिस्ट संबंधों को प्रोत्साहन दिया था।
आखिर जयप्रकाश नारायण ने भारत के कम्युनिस्टों को विश्वासघाती तथा कांग्रेस
सोशलिस्ट पार्टी का शत्रु घोषित कर बड़ी मुश्किल से 1940 में निष्कासित किया था।
(देखें, डा. गौरीनाथ रस्तोगी, मार्क्सवाद का उत्थान और पतन, पृ. 66)

इन्दिरा गांधी और कम्युनिस्ट

1965 में पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण के समय कम्युनिस्टों की भूमिका शून्य
रही परन्तु लालबहादुर शास्त्री की रहस्यमय ढंग से मृत्यु के उपरान्त कम्युनिस्ट पुन:
सक्रिय हो गए।

इन्दिरा को सत्ता में लाने तथा उन्हें कांग्रेस का नेतृत्व प्रदान कराने के लिए कम्युनिस्टों
द्वारा प्रयत्न हुआ।
(इन्टरनेशनल एफेयर्स,मास्को,सितम्बर 1974 अंक)

कांग्रेस को अन्दर से तोड़ने का अच्छा मौका था।
सोवियत संघ के गुप्तचर विभाग के एक प्रमुख मित्रोखिन के अनुसार दुनिया के सबसे
बड़े प्रजातंत्र में दरबारी संस्कृति पैदा हुई।

कांग्रेस का एक दल पीएन धर के माध्यम से सोवियत संघ से संबंध बनाए हुए था।

1969 में कांग्रेस दो फाड़ हुई,मित्रोखिन के अनुसार इंदिरा गांधी के यहां नियमित
रूप से नोटों के सूटकेस भेजे जाने लगे।

इन्दिरा गांधी ने भी कम्युनिस्टों को बदले में भारत की बौद्धिक सत्ता सौंप दी।

इतना ही नहीं कम्युनिस्ट ढंग का अधिनायकवाद भारत में स्थापित हुआ।

1,10,000 राष्ट्रभक्तों को जेल में बन्द कर दिया गया।
इन्दिरा के काल में सोवियत संघ के प्रमुख ब्रेझनोव जब भारत आये उसे खुश करने के
लिए पहले ही दिन प्रीवी पर्स संबंधी कानून बना।

सोनिया गांधी और कम्युनिस्ट

सोनिया गांधी ने कांग्रेस सरकार को स्थापित करने में भारतीय कम्युनिस्टों से
मदद मांगी।
कम्युनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत तथा ज्येाति बसु से सहायता मांगी।
2004 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में कम्युनिस्टों की सहायता ली।
कम्युनिस्ट अपनी धुन पर कांग्रेस को नचाते रहे।
पर भारतीय कम्युनिस्टों को कभी भी भारत में सफलता नहीं मिली।

भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायामूर्ति प्रफुल्लचन्द्र नटवरलाल
भगवती का मत है,
”मैं समझता हूं कि हिन्दुस्थान में मार्क्सवादी आन्दोलन कभी सफल नहीं होगा।
मार्क्सवादी मूल्य हमारे लिए परकीय हैं और इससे हम सर्वथा अनजान हैं।
हमारे मूल्य आध्यात्मिक हैं।
भारतीय आध्यात्मिकता ही वास्तविक समाजवाद है और मार्क्सवाद का विरोधी है।’
(जस्टिस भगवती, हिन्दुस्तान में मार्क्सवाद आन्दोलन कभी सफल नहीं होगा
पाञ्चजन्य, 28 फरवरी 1990 पृ. 63)

सोचने की बात है कि क्या अब तक कांग्रेस अपने स्वार्थों के लिए कम्युनिस्टों का उ
पयोग करती रही है अथवा भारतीय कम्युनिस्ट कांग्रेस के माध्यम से अपने हित
साधते रहे हैं ?

दोनों ही पार्टी हितों के लिए राष्ट्र हितों की सर्वदा बलि देते रही हैं।
-डॉ. सतीश चन्द्र मित्तल,,,पांचजन्य से साभार
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सदा सुमंगल,,,वन्देमातरम,,,
जय श्री राम

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देश के पहले प्रधानमंत्री ”कथित” पंडित जवाहरलाल नेहरू जी साथ है ”बुधनी मंझियाइन” संथाल आदिवासी है ।


देश के पहले प्रधानमंत्री ''कथित'' पंडित जवाहरलाल नेहरू जी साथ है ''बुधनी मंझियाइन'' संथाल आदिवासी है । बुधनी जी को नेहरू जी  की वजह से जिंदगी भर अविवाहित रहना पड़ा । पंडित नेहरू 6 दिसंबर 1959 को झारखंड के धनबाद जिले में स्थित पंचेत डैम का उद्घाटन करने गए जहा पर  15 साल की बुधनी ने स्वागत करते समय माला पहनाया, जिसे संथाल आदिवासियों ने शादी  में मानकर ''बुधनी'' को समाज से बहिष्कृत कर दिया तो बुधनी दरवाजे-दरवाजे भटकती रही पर उसे किसी ने एक गिलास पानी भी नहीं दिया । बाद में पंचेत के रहने वाले ''सुधीर दत्ता'' उसे अपने घर ले गए, जहां दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे । दत्ता से बुधनी को एक बेटी भी हुई, जिसे भी संथालों ने अपने समुदाय में जगह नहीं दी ।

 बुधनी की किस्मत इतनी खराब निकली कि 1962 में डीवीसी ने उसे नौकरी से निकाल दिया। उसे इसकी कोई वजह भी नहीं बताई गई। 1985 में बुधनी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से दिल्ली जाकर मुलाकात की। गांधी ने उसे दोबारा डीवीसी में काम दिला दिया, जहां वह रिटायरमेंट तक काम करती रही।

फोटो : 6 दिसंबर 1959 को पंचेत डैम का उद्घाटन करते पंडित नेहरू। साथ में है उन्हें माला पहनानेवाली बुधनी देवी।

देश के पहले प्रधानमंत्री ”कथित” पंडित जवाहरलाल नेहरू जी साथ है ”बुधनी मंझियाइन” संथाल आदिवासी है । बुधनी जी को नेहरू जी की वजह से जिंदगी भर अविवाहित रहना पड़ा । पंडित नेहरू 6 दिसंबर 1959 को झारखंड के धनबाद जिले में स्थित पंचेत डैम का उद्घाटन करने गए जहा पर 15 साल की बुधनी ने स्वागत करते समय माला पहनाया, जिसे संथाल आदिवासियों ने शादी में मानकर ”बुधनी” को समाज से बहिष्कृत कर दिया तो बुधनी दरवाजे-दरवाजे भटकती रही पर उसे किसी ने एक गिलास पानी भी नहीं दिया । बाद में पंचेत के रहने वाले ”सुधीर दत्ता” उसे अपने घर ले गए, जहां दोनों पति-पत्नी की तरह रहने लगे । दत्ता से बुधनी को एक बेटी भी हुई, जिसे भी संथालों ने अपने समुदाय में जगह नहीं दी ।

बुधनी की किस्मत इतनी खराब निकली कि 1962 में डीवीसी ने उसे नौकरी से निकाल दिया। उसे इसकी कोई वजह भी नहीं बताई गई। 1985 में बुधनी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से दिल्ली जाकर मुलाकात की। गांधी ने उसे दोबारा डीवीसी में काम दिला दिया, जहां वह रिटायरमेंट तक काम करती रही।

फोटो : 6 दिसंबर 1959 को पंचेत डैम का उद्घाटन करते पंडित नेहरू। साथ में है उन्हें माला पहनानेवाली बुधनी देवी।

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एक महान संत से कई लोग मिलने आते और उनसे प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत करते।


एक महान संत से कई लोग मिलने आते और उनसे प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत करते। एक बार एक राजा ने उनसे कई प्रश्न पूछे। इसमें एक सवाल था, ‘क्या ऐसा कोई व्यक्ति है जो महान हो लेकिन उसे कोई जानता न हो?’ संत मुस्करा कर बोले, ‘हम बहुत से महान लोगों को नहीं जानते। दुनिया में अनेक ऐसे साधारण लोग हैं जो वास्तव में महान व्यक्तियों से भी महान हैं।’

राजा ने आश्चर्य से कहा, ‘ऐसा कैसे हो सकता है?’ संत बोले, ‘मैं आपको आज एक ऐसे ही व्यक्ति से मिलवाऊंगा।’ वे दोनों एक गांव की ओर चल पड़े। कुछ दूर जाने के बाद एक वृद्ध नज़र आया। वह पेड़ के नीचे कुछ घड़े लेकर बैठा हुआ था। उन दोनों ने उस बूढ़े व्यक्ति से पानी मांग कर पिया, फिर चने भी खाए। घड़े का ठंडा पानी पीने और चने खाने से दोनों को गर्मी से राहत मिली। जब राजा वृद्ध को चने के दाम देने लगा तो वह बोला, ‘राजन, मैं कोई दुकानदार नहीं हूं। मैं तो एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूं जो इस उम्र में कर सकता हूं। मेरा बेटा चने का व्यवसाय करता है। घर में अकेले बैठे मन नहीं लगता, इसलिए चने और पानी लेकर यहां बैठा हूं।जब मैं आने-जाने वाले लोगों को ठंडा पानी पिलाता और चने खिलाता हूं तो मुझे अद्भुत तृप्ति व शांति मिलती है। इस तरह मेरा समय भी कट जाता है।’

संत ने राजा से कहा, ‘देखा राजन, इसकी सोच इसे महान बनाती है। केवल बड़ी-बड़ी बातों से कोई महान नहीं बनता।सचमुच महान वही है जो दूसरों के लिए अपना जीवन लगा दे।’ राजा ने वृद्ध को धन्यवाद दिया।