Posted in हिन्दू पतन

ये इतिहास की एक बर्बर घटना हैं शायद ही भांड मिडिया ने हमको ये बताया हो पर ये सत्य घटना हैं


ये इतिहास की एक बर्बर घटना हैं शायद ही भांड मिडिया ने हमको ये बताया हो पर ये सत्य घटना हैं आज़ादी हमें हिन्दुओ की लाश पर मिली ये घटना कोई प्रोफ़ेसर कोई मीडिया कोई पत्रकार नहीं बताएगा आप इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिये

दंगो    के  बाद   अल्पसंख्यक  हिन्दुओ  को लाशें ऐसे ही कई घंटो तक  सडको   पर  पड़ी   रही   :( :(
बर्बरता  की तस्वीर  आज जो isis करता हैं ऐसा मुस्लिम लीग ने   मुस्लिम बहुल बंगाल में हिन्दुओ  के साथ किया था   :(  :(
आगजनी    के   बाद सडको पर सन्नाटा  उसके बीच  एक   लाश   :(
जिन हिन्दू तीर्थयात्रीओं   को  लूटा गया मारा गया   रिलीफ कैंप  में      अपने घर जाने   का इंतज़ार करते  हुए    
:(
तब साधन   नहीं  थे    तो ऐसे अल्पसंख्यक  हिन्दुओं को लाश  को ढोया   गया   था   :(
Anuj Mishra added 6 new photos — feeling bad with Janardan Mishra and 9 others.

इतिहास हिन्दुओ की बर्बर हत्याओं से भरा हुआ हैं यहाँ जिस कत्ले आम की बात हो रही हैं उस कत्ले आम को नोआखाली दंगा नाम से जाना जाता हैं जिसके आगे सारे दंगे बौने नज़र आते हैं

नोआखली एक छोटा जिला था, जिसमें 82 प्रतिशत मुसलमान थे और 18 प्रतिशत हिन्दू थे। वहां हिन्दुओं की हत्याएं हुईं, लूटपाट व आगजनी हुई। 16 अगस्त, 1946 को कलकत्ता में हिन्दुओं का खुलेआम नरसंहार हुआ। “द स्टेट्समैन’ ने खबर का शीर्षक दिया था “द ग्रेट कैलकटा किलिंग’। लगभग 10,000 लोगों को मार डाला गया। उनके घर जलाए गए, महिलाओं का अपमान किया गया, भयंकर लूटपाट की गई। पुलिस के सारे आंकड़े फेल हो गए, इतना भयंकर रक्तपात हुआ। बंगाल के लोग तो मानो जड़ हो गए थे। उनकी सारी आशाएं समाप्त हो चली थीं हिन्दुओ के साथ साथ सिखों का भी कत्लेआम हुआ था हिन्दू तीर्थयार्त्रि तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे उन पर हमला किया गया हैं उनको लूटा किया बहुत दुर्दशा हुई थी उस समय हिन्दुओं की बंगाल में मुस्लिम लीग का शासन था हिन्दुओ की एक न सुनाने वाला था बेचारे हिन्दू अपने देश में शारनहारथी बनके रहने लगे थे

हिंदू आबादी का नरसंहार कोजागरी लक्ष्मी पूजा के दिन10 अक्टूबर को शुरू कर दिया, और ये नरसंहार एक सप्ताह के लिए बेरोकटोक जारी रखा. यह 5,000 से अधिक हिंदुओं को मार डाला गया है कि अनुमान है, हिंदू महिलाओं के सैकड़ों के साथ बलात्कार किया गया और हिंदू पुरुषों और महिलाओं के हजारों जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया

तब गांधी जी ने नोआखली जाकर लोगों को शांति और भाईचारे का संदेश देना चाहा। वहां के मुसलमान नेताओं ने गांधी जी की अनदेखी करके पाकिस्तान बनाए जाने पर जोर दिया। हिन्दुओं से कहा कि “या तो पाकिस्तान को स्वीकारो नहीं तो नतीजा भुगतने को तैयार रहो।’
गांधी ने हिन्दुओ के लिए कुछ नहीं कहा बल्कि बाद में ये कहा “मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं मोपला और नोआखली के दंगों में मुसलमानों द्वारा की गयी असंख्य हिन्दुओं की हिंसा को देखकर अहिंसा नीति से मेरा विचार बदल रहा है” गांधी जी की जीवनी, धनंजय कौर पृष्ठ ४०२ व मुस्लिम राजनीति श्री पुरूषोत्तम

हज़ारो लाखो हिन्दू कैंपो में रहे महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ घर जला दिए गए हिन्दुओ बहुत बर्बादी हुई

ये इतिहास की एक बर्बर घटना हैं शायद ही भांड मिडिया ने हमको ये बताया हो पर ये सत्य घटना हैं आज़ादी हमें हिन्दुओ की लाश पर मिली ये घटना कोई प्रोफ़ेसर कोई मीडिया कोई पत्रकार नहीं बताएगा आप इसको ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिये
हिन्दुओ को जगाइए अपने ऊपर किये गए इस नरसंहार के इतिहास को ज्यादा लोगो को बताइये
सबूत –
http://en.wikipedia.org/wiki/Noakhali_riots

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

फ्रीज में रखा आटा आमंत्रित करता है भूतों को !!


फ्रीज में रखा आटा आमंत्रित करता है भूतों को !!

गूंथे हुए आटे को उसी तरह पिण्ड के बराबर माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु के बाद
जीवात्मा के लिए समर्पित किए जाते हैं।

सुमंगल स्वागत स्वजनों,,,,,,,,,,,,,,,

फ्रीज में रखा आटा आमंत्रित करता है भूतों को !!

गूंथे हुए आटे को उसी तरह पिण्ड के बराबर माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु के बाद 
जीवात्मा के लिए समर्पित किए जाते हैं।

भोजन केवल शरीर को ही नहीं,अपितु मन-मस्तिष्क को भी गहरे तक प्रभावित करता है। 
दूषित अन्न-जल का सेवन न सिर्फ आफ शरीर-मन को बल्कि आपकी संतति तक में असर 
डालता है। 
ऋषि-मुनियों ने दीर्घ जीवन के जो सूत्र बताये हैं उनमें ताजे भोजन पर विशेष जोर दिया है।

ताजे भोजन से शरीर निरोगी होने के साथ-साथ तरोताजा रहता है और बीमारियों को पनपने 
से रोकता है। 

लेकिन जब से फ्रीज का चलन बढा है तब से घर-घर में बासी भोजन का प्रयोग भी तेजी से 
बढा है। 
यही कारण है कि परिवार और समाज में तामसिकता का बोलबाला है। 
ताजा भोजन ताजे विचारों और स्फूर्ति का आवाहन करता है जबकि बासी भोजन से क्रोध, 
आलस्य और उन्माद का ग्राफ तेजी से बढने लगा है।

शास्त्रों में कहा गया है कि बासी भोजन भूत भोजन होता है और इसे ग्रहण करने वाला 
व्यक्ति जीवन में नैराश्य,रोगों और उद्विग्नताओं से घिरा रहता है। 
हम देखते हैं कि प्रायःतर गृहिणियां मात्र दो से पांच मिनट का समय बचाने के लिए रात 
को गूंथा हुआ आटा लोई बनाकर फ्रीज में रख देती हैं और अगले दो से पांच दिनों तक 
इसका प्रयोग होता है। 

गूंथे हुए आटे को उसी तरह पिण्ड के बराबर माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु के बाद 
जीवात्मा के लिए समर्पित किए जाते हैं।

किसी भी घर में जब गूंथा हुआ आटा फ्रीज में रखने की परम्परा बन जाती है तब वे भूत 
और पितर इस पिण्ड का भक्षण करने के लिए घर में आने शुरू हो जाते हैं जो पिण्ड पाने 
से वंचित रह जाते हैं। 
ऐसे भूत और पितर फ्रीज में रखे इस पिण्ड से तृप्ति पाने का उपक्रम करते रहते हैं।

जिन परिवारों में भी इस प्रकार की परम्परा बनी हुई है वहां किसी न किसी प्रकार के 
अनिष्ट, रोग-शोक और क्रोध तथा आलस्य का डेरा पसर जाता है। 

इस बासी और भूत भोजन का सेवन करने वाले लोगों को अनेक समस्याओं से घिरना 
पडता है। 
आप अपने इष्ट मित्रों, परिजनों व पडोसियों के घरों में इस प्रकार की स्थितियां देखें 
और उनकी जीवनचर्या का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाएंगे कि वे किसी न किसी 
उलझन से घिरे रहते हैं।

आटा गूंथने में लगने वाले सिर्फ दो-चार मिनट बचाने के लिए की जाने वाली यह क्रिया 
किसी भी दृष्टि से सही नहीं मानी जा सकती। 

पुराने जमाने से बुजुर्ग यही राय देते रहे हैं कि गूंथा हुआ आटा रात को नहीं रहना चाहिए। 
उस जमाने में फ्रीज का कोई अस्तित्व नहीं था फिर भी बुजुर्गों को इसके पीछे रहस्यों की 
पूरी जानकारी थी। 
यों भी बासी भोजन का सेवन शरीर के लिए हानिकारक है ही।

आइये आज से ही संकल्प लें कि आयन्दा यह स्थिति सामने नहीं आए। 
तभी आप और आपकी संतति स्वस्थ और प्रसन्न रह सकती है और औरों को भी खुश 
रखने लायक व्यक्तित्व का निर्माण कर सकती है।
-----कुमार गौरव,हरीद्वार,,,प्रत्यंचा सनातन संस्कृति,,,,
===================================

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,जयति पुण्य भूमि भारत,,,
सदा सुमंगल,,,जय भवानी,,,
जय श्री राम

सुमंगल स्वागत स्वजनों,,,,,,,,,,,,,,,

फ्रीज में रखा आटा आमंत्रित करता है भूतों को !!

गूंथे हुए आटे को उसी तरह पिण्ड के बराबर माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु के बाद
जीवात्मा के लिए समर्पित किए जाते हैं।

भोजन केवल शरीर को ही नहीं,अपितु मन-मस्तिष्क को भी गहरे तक प्रभावित करता है।
दूषित अन्न-जल का सेवन न सिर्फ आफ शरीर-मन को बल्कि आपकी संतति तक में असर
डालता है।
ऋषि-मुनियों ने दीर्घ जीवन के जो सूत्र बताये हैं उनमें ताजे भोजन पर विशेष जोर दिया है।

ताजे भोजन से शरीर निरोगी होने के साथ-साथ तरोताजा रहता है और बीमारियों को पनपने
से रोकता है।

लेकिन जब से फ्रीज का चलन बढा है तब से घर-घर में बासी भोजन का प्रयोग भी तेजी से
बढा है।
यही कारण है कि परिवार और समाज में तामसिकता का बोलबाला है।
ताजा भोजन ताजे विचारों और स्फूर्ति का आवाहन करता है जबकि बासी भोजन से क्रोध,
आलस्य और उन्माद का ग्राफ तेजी से बढने लगा है।

शास्त्रों में कहा गया है कि बासी भोजन भूत भोजन होता है और इसे ग्रहण करने वाला
व्यक्ति जीवन में नैराश्य,रोगों और उद्विग्नताओं से घिरा रहता है।
हम देखते हैं कि प्रायःतर गृहिणियां मात्र दो से पांच मिनट का समय बचाने के लिए रात
को गूंथा हुआ आटा लोई बनाकर फ्रीज में रख देती हैं और अगले दो से पांच दिनों तक
इसका प्रयोग होता है।

गूंथे हुए आटे को उसी तरह पिण्ड के बराबर माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु के बाद
जीवात्मा के लिए समर्पित किए जाते हैं।

किसी भी घर में जब गूंथा हुआ आटा फ्रीज में रखने की परम्परा बन जाती है तब वे भूत
और पितर इस पिण्ड का भक्षण करने के लिए घर में आने शुरू हो जाते हैं जो पिण्ड पाने
से वंचित रह जाते हैं।
ऐसे भूत और पितर फ्रीज में रखे इस पिण्ड से तृप्ति पाने का उपक्रम करते रहते हैं।

जिन परिवारों में भी इस प्रकार की परम्परा बनी हुई है वहां किसी न किसी प्रकार के
अनिष्ट, रोग-शोक और क्रोध तथा आलस्य का डेरा पसर जाता है।

इस बासी और भूत भोजन का सेवन करने वाले लोगों को अनेक समस्याओं से घिरना
पडता है।
आप अपने इष्ट मित्रों, परिजनों व पडोसियों के घरों में इस प्रकार की स्थितियां देखें
और उनकी जीवनचर्या का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाएंगे कि वे किसी न किसी
उलझन से घिरे रहते हैं।

आटा गूंथने में लगने वाले सिर्फ दो-चार मिनट बचाने के लिए की जाने वाली यह क्रिया
किसी भी दृष्टि से सही नहीं मानी जा सकती।

पुराने जमाने से बुजुर्ग यही राय देते रहे हैं कि गूंथा हुआ आटा रात को नहीं रहना चाहिए।
उस जमाने में फ्रीज का कोई अस्तित्व नहीं था फिर भी बुजुर्गों को इसके पीछे रहस्यों की
पूरी जानकारी थी।
यों भी बासी भोजन का सेवन शरीर के लिए हानिकारक है ही।

आइये आज से ही संकल्प लें कि आयन्दा यह स्थिति सामने नहीं आए।
तभी आप और आपकी संतति स्वस्थ और प्रसन्न रह सकती है और औरों को भी खुश
रखने लायक व्यक्तित्व का निर्माण कर सकती है।
—–कुमार गौरव,हरीद्वार,,,प्रत्यंचा सनातन संस्कृति,,,,
===================================

जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,जयति पुण्य भूमि भारत,,,
सदा सुमंगल,,,जय भवानी,,,
जय श्री राम

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

बिहार के प्राचीन नाम


बिहार के प्राचीन नाम
-अरुण कुमार उपाध्याय
१. पौराणिक इतिहास भूगोल-(१) कालमान (क) ज्योतिषीय काल-बिहार के प्राचीन नामों को जानने के लिये पुराणों का प्राचीन इतिहास भूगोल समझना पड़ेगा। अभी २ प्रकार से ब्रह्मा का तृतीय दिन चल रहा है। ज्योतिष में १००० युगों का एक कल्प है जो ब्रह्मा का एक दिन है। यहां युग का अर्थ है सूर्य से उसके १००० व्यास दूरी (सहस्राक्ष क्षेत्र) तक के ग्रहों (शनि) का चक्र, अर्थात् १ युग में इनकी पूर्ण परिक्रमायें होती हैं। आधुनिक ज्योतिष में भी पृथ्वी गति का सूक्ष्म विचलन जानने के लिये शनि तक के ही प्रभाव की गणना की जाती है। भागवत स्कन्ध ५ में नेपचून तक के ग्रहों का वर्णन है जिसे १०० कोटि योजन व्यास की चक्राकार पृथ्वी कहा गया है। इसका भीतरी ५० कोटि योजन का भाग लोक = प्रकाशित है, बाहरी अलोक भाग है। इसमें पृथ्वी के चारों तरफ ग्रह-गति से बनने वाले क्षेत्रों को द्वीप कहा गया है जिनके नाम वही हैं जो पृथ्वी के द्वीपों के हैं। पृथ्वीके द्वीप अनियमित आकार के हैं, सौर-पृथ्वी के द्वीप चक्राकार (वलयाकार) हैं। द्वीपों के बीच के भागों को समुद्र कहा गया है। पृथ्वी का गुरुत्व क्षेत्र जम्बूद्वीप, मंगल तक के ठोस ग्रहों का क्षेत्र दधि समुद्र आदि हैं। १००० युगों के समय में प्रकाश जितनी दूर तक जा सकता है वह तप लोक है तथा वह समय (८६४ कोटि वर्ष) ब्रह्मा का दिन रात है। इस दिन से अभी तीसरा दिन चल रहा है अर्थात् १७२८ कोटि वर्ष के २ दिन-रात बीत चुके हैं तथा तीसरे दिन के १४ मन्वन्तरों (मन्वन्तर = ब्रह्माण्ड या आकाश गंगा का अक्षभ्रमण काल) में ६ बीतचुके हैं, ७वें मन्वन्तर के ७१ युगों में २७ बीत चुके हैं तथा २८ वें युग के ४ खण्डों में ३ बीत चुके हैं-सत्य, त्रेता, द्वापर (ये ४३२,००० वर्ष के कलि के ४, ३, २ गुणा हैं)। चतुर्थ पाद युग कलि १७-२-३१०२ ई.पू. से चल रहा है।
(ख) ऐतिहासिक काल-ऐतिहासिक युग चक्र ध्रुवीय जल प्रलय के कारण होता है जो १९२३ के मिलांकोविच सिद्धान्त के अनुसार २१६०० वर्षों का चक्र है। यह २ गतियों का संयुक्त प्रभाव है-१ लाख वर्षों में पृथ्वी की मन्दोच्च गति तथा विपरीत दिशा में २६,००० वर्ष में अयन गति (पृथ्वी अक्ष की शंकु आकार में गति-ब्रह्माण्ड पुराण का ऐतिहासिक मन्वन्तर-स्वायम्भुव मनु से कलि आरम्भ तक )। भारत में मन्दोच्च गति के दीर्घकालिक अंश ३१२,००० वर्ष चक्र को लिया गया है। इसमें २४,००० वर्षों का चक्र होता है, जिसमें १२-१२ हजार वर्षों का अवसर्पिणी (सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि क्रम में) तथा उत्सर्पिणी (विपरीत क्रम में युग खण्ड) भाग हैं। प्रति अवसर्पिणी त्रेता में जल प्रलय तथा उत्सर्पिणी त्रेता में हिम युग आता है। तृतीय ब्रह्माब्द का अवसर्पिणी वैवस्वत मनु काल से आरम्भ हुआ, जिसके बाद ४८०० वर्ष का सत्य युग, ३६०० वष का त्रेता तथा २४०० वर्ष का द्वापर १७-२-३१०२ ई.पू में समाप्त हुये। अर्थात् वैवस्वत मनु का काल १३९०२ ई.पू. था। अवसर्पिणी कलि १२०० वर्ष बाद १९०२ ई.पू. में समाप्त हुआ। उसके बाद उत्सर्पिणी का कलि ७०२ ई.पू. में, द्वापर १६९९ ई. में पूर्ण हुआ। अभी १९९९ ई. तक उत्सर्पिणी त्रेता की सन्धि थी अभी मुख्य त्रेता चलरहा है। त्रेता को यज्ञ अर्थात् वैज्ञानिक उत्पादन का युग कहा गया है। १७०० ई. से औद्योगिक क्रान्ति आरम्भ हुयी, अभी सूचना विज्ञान का युग चल रहा है। इसी त्रेता में हिमयुग आयेगा। विश्व का ताप बढ़ना तात्कालिक घटना है, दीर्घकालिक परिवर्तन ज्योतिषीय कारणों से ही होगा।
(२) आकाश के लोक-आकाश में सृष्टि के ५ पर्व हैं-१०० अरब ब्रह्माण्डों का स्वयम्भू मण्डल, १०० अरब तारों का हमारा ब्रह्माण्ड, सौरमण्डल, चन्द्रमण्डल (चन्द्रकक्षा का गोल) तथा पृथ्वी। किन्तु लोक ७ हैं-भू (पृथ्वी), भुवः (नेपचून तक के ग्रह) स्वः (सौरमण्डल १५७ कोटि व्यास, अर्थात् पृथ्वी व्यास को ३० बार २ गुणा करने पर), महः (आकाशगंगा की सर्पिल भुजा में सूर्य के चतुर्दिक् भुजा की मोटाई के बराबर गोला जिसके १००० तारों को शेषनाग का १००० सिर कहते हैं), जनः (ब्रह्माण्ड), तपः लोक (दृश्य जगत्) तथा अनन्त सत्य लोक।
(३) पृथ्वी के तल और द्वीप-इसी के अनुरूप पृथ्वी पर भी ७ तल तथा ७ लोक हैं। उत्तरी गोलार्द्ध का नक्शा (नक्षत्र देख कर बनता है, अतः नक्शा) ४ भागों में बनता था। इसके ४ रंगों को मेरु के ४ पार्श्वों का रंग कहा गया है। ९०-९० अंश देशान्तर के विषुव वृत्त से ध्रुव तक के ४ खण्डों में मुख्य है भारत, पश्चिम में केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व, तथा विपरीत दिशा में उत्तर कुरु। इनको पुराणों में भूपद्म के ४ पटल कहा गया है। ब्रह्मा के काल (२९१०२ ई.पू.) में इनके ४ नगर परस्पर ९० अंश देशान्तर दूरी पर थे-पूर्व भारत में इन्द्र की अमरावती, पश्चिम में यम की संयमनी (यमन, अम्मान, सना), पूर्व में वरुण की सुखा तथा विपरीत में चन्द्र की विभावरी। वैवस्वत मनु काल के सन्दर्भ नगर थे, शून्य अंश पर लंका (लंका नष्ट होने पर उसी देशान्तर रेखा पर उज्जैन), पश्चिम में रोमकपत्तन, पूर्व में यमकोटिपत्तन तथा विपरीत दिशा में सिद्धपुर। दक्षिणी गोलार्द्ध में भी इन खण्डों के ठीक दक्षिण ४ भाग थे। अतः पृथ्वी अष्ट-दल कमल थी, अर्थात् ८ समतल नक्शे में पूरी पृथ्वी का मानचित्र होता था। गोल पृथ्वी का समतल नक्शा बनाने पर ध्रुव दिशा में आकार बढ़ता जाता है और ठीक ध्रुव पर अनन्त हो जायेगा। उत्तरी ध्रुव जल भाग में है (आर्यभट आदि) अतः वहां कोई समस्या नहीं है। पर दक्षिणी ध्रुव में २ भूखण्ड हैं-जोड़ा होने के कारण इसे यमल या यम भूमि भी कहते हैं और यम को दक्षिण दिशा का स्वामी कहा गया है। इसका ८ भाग के नक्शे में अनन्त आकार हो जायेगा अतः इसे अनन्त द्वीप (अण्टार्कटिका) कहते थे। ८ नक्शों से बचे भाग के कारण यह शेष है।
भारत भाग में आकाश के ७ लोकों की तरह ७ लोक थे। बाकी ७ खण्ड ७ तल थे-अतल, सुतल, वितल, तलातल, महातल, पाताल, रसातल।
वास्तविक भूखण्डों के हिसाब से ७ द्वीप थे-जम्बू (एसिया), शक (अंग द्वीप, आस्ट्रेलिया), कुश (उत्तर अफ्रीका), शाल्मलि (विषुव के दक्षिण अफ्रीका), प्लक्ष (यूरोप), क्रौञ्च (उत्तर अमेरिका), पुष्कर (दक्षिण अमेरिका)। इनके विभाजक ७ समुद्र हैं।
(४) धाम-आकाश के ४ धाम हैं-अवम (नीचा) = क्रन्दसी-सौरमण्डल, मध्यम = रोदसी-ब्रह्माण्ड, उत्तम या परम (संयती)-स्वयम्भू मण्डल, परात्पर-सम्पूर्ण जगत् का अव्यक्त मूल। इनके जल हैं-मर, अप् या अम्भ, सलिल (सरिर), रस। इनके ४ समुद्र हैं-विवस्वान्, सरस्वान्, नभस्वान्, परात्पर। इनके आदित्य (आदि = मूल रूप) अभी अन्तरिक्ष (प्रायः खाली स्थान) में दीखते हैं-मित्र, वरुण, अर्यमा, परात्पर ब्रह्म। इसी के अनुरूप पृथ्वी के ४ समुद्र गौ के ४ स्तनों की तरह हैं जो विभिन्न उत्पाद देते हैं-स्थल मण्डल, जल मण्डल, जीव मण्डल, वायुमण्डल। इनको आजकल ग्रीक में लिथो, हाइड्रो, बायो और ऐटमो-स्फियर कहा जाता है। शंकराचार्य ने ४८३ ई.पू. में इसके अनुरूप ४ धाम बनाये थे-पुरी, शृङ्गेरी, द्वारका, बदरी। ७०० ई. में गोरखनाथ ने भी ४ तान्त्रिक धाम बनाये-कामाख्या, याजपुर (ओडिशा), पूर्णा (महाराष्ट्र), जालन्धर (पंजाब) जिसके निकट गुरुगोविन्द सिंह जी ने अमृतसर बनाया।
(५) भारत के लोक-भारत नक्शे के ७ लोक हैं-भू (विन्ध्य से दक्षिण), भुवः (विन्ध्य-हिमालय के बीच), स्वः (त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम, हिमालय), महः (चीन के लोगों का महान् = हान नाम था), जनः (मंगोलिया, अरबी में मुकुल = पितर), तपः (स्टेपीज, साइबेरिया), सत्य (ध्रुव वृत) इन्द्र के ३ लोक थे-भारत, चीन, रूस। आकाश में विष्णु के ३ पद हैं-१०० व्यास तक ताप क्षेत्र, १००० व्यास तक तेज और उसके बाद प्रकाश (जहां तक ब्रह्माण्ड से अधिक है) क्षेत्र। विष्णु का परमपद ब्रह्माण्ड है जो सूर्य किरणों की सीमा कही जाती है अर्थात् उतनी दूरी पर सूर्य विन्दुमात्र दीखेगा, उसके बाद ब्रह्माण्ड ही विन्दु जैसा दीखेगा। पृथ्वी पर सूर्य की गति विषुव से उत्तर कर्क रेखा तक है, यह उत्तर में प्रथम पद है। विषुव वृत्त तक इसके २ ही पद पूरे होते हैं, तीसरा ध्रुव-वृत्त अर्थात् बलि के सिर पर है।
२. भारत के नाम-(१) भारत-इन्द्र के ३ लोकों में भारत का प्रमुख अग्रि (अग्रणी) होने के कारण अग्नि कहा जाता था। इसी को लोकभाषा में अग्रसेन कहते हैं। प्रायः १० युग (३६०० वर्षों) तक इन्द्र का काल था जिसमें १४ प्रमुख इन्द्रों ने प्रायः १००-१०० वर्ष शासन किया। इसी प्रकार अग्रि = अग्नि भी कई थे। अन्न उत्पादन द्वारा भारत का अग्नि पूरे विश्व का भरण करता था, अतः इसे भरत कहते थे। देवयुग के बाद ३ भरत और थे-ऋषभ पुत्र भरत (प्रायः ९५०० ई.पू.), दुष्यन्त पुत्र भरत (७५०० ई.पू.) तथा राम के भाई भरत जिन्होंने १४ वर्ष (४४०८-४३९४ ई.पू.) शासन सम्भाला था।
(२) अजनाभ-विश्व सभ्यता के केन्द्र रूप में इसे अजनाभ वर्ष कहते थे। इसके शासक को जम्बूद्वीप के राजा अग्नीध्र (स्वयम्भू मनु पुत्र प्रियव्रत की सन्तान) का पुत्र नाभि कहा गया है।
(३) भौगोलिक खण्ड के रूप में इसे हिमवत वर्ष कहा गया है क्योंकि यह जम्बू द्वीप में हिमालय से दक्षिण समुद्र तक का भाग है। अलबरूनी ने इसे हिमयार देश कहा है (प्राचीन देशों के कैलेण्डर में उज्जैन के विक्रमादित्य को हिमयार का राजा कहा है जिसने मक्का मन्दिर की मरम्मत कराई थी)
(४) इन्दु-आकाश में सृष्टि विन्दु से हुयी, उसका पुरुष-प्रकृति रूप में २ विसर्ग हुआ-जिसका चिह्न २ विन्दु हैं। विसर्ग का व्यक्त रूप २ विन्दुओं के मिलन से बना ’ह’ है। इसी प्रकार भारत की आत्मा उत्तरी खण्ड हिमालय में है जिसका केन्द्र कैलास विन्दु है। यह ३ विटप (वृक्ष, जल ग्रहण क्षेत्र) का केन्द्र है-विष्णु विटप से सिन्धु, शिव विटप (शिव जटा) से गंगा) तथा ब्रह्म विटप से ब्रह्मपुत्र। इनको मिलाकर त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम है। इनका विसर्ग २ समुद्रों में होता है-सिन्धु का सिन्धु समुद्र (अरब सागर) तथा गंगा-ब्रह्मपुत्र का गंगा-सागर (बंगाल की खाड़ी) में होता है। हुएनसांग ने लिखा है कि ३ कारणों से भारत को इन्दु कहते हैं-(क) उत्तर से देखने पर अर्द्ध-चन्द्राकार हिमालय भारत की सीमा है, चन्द्र या उसका कटा भाग = इन्दु। (ख) हिमालय चन्द्र जैसा ठण्ढा है। (ग) जैसे चन्द्र पूरे विश्व को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार भारत पूरे विश्व को ज्ञान का प्रकाश देता है। ग्रीक लोग इन्दु का उच्चारण इण्डे करते थे जिससे इण्डिया शब्द बना है।
(५) हिन्दुस्थान-ज्ञान केन्द्र के रूप में इन्दु और हिन्दु दोनों शब्द हैं-हीनं दूषयति = हिन्दु। १८ ई. में उज्जैन के विक्रमादित्य के मरने के बाद उनका राज्य १८ खण्डों में भंट गया और चीन, तातार, तुर्क, खुरज (कुर्द) बाह्लीक (बल्ख) और रोमन आदि शक जातियां। उनको ७८ ई. में विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने पराजित कर सिन्धु नदी को भारत की पश्चिमी सीमा निर्धारित की। उसके बाद सिन्धुस्थान या हिन्दुस्थान नाम अधिक प्रचलित हुआ। देवयुग में भी सिधु से पूर्व वियतनाम तक इन्द्र का भाग था, उनके सहयोगी थे-अफगानिस्तान-किर्गिज के मरुत्, इरान मे मित्र और अरब के वरुण तथा यमन के यम।
(६) कुमारिका-अरब से वियतनाम तक के भारत के ९ प्राकृतिक खण्ड थे, जिनमें केन्द्रीय खण्ड को कुमारिका कहते थे। दक्षिण समुद्र की तरफ से देखने पर यह अधोमुख त्रिकोण है जिसे शक्ति त्रिकोण कहते हैं। शक्ति (स्त्री) का मूल रूप कुमारी होने के कारण इसे कुमारिका खण्ड कहते हैं। इसके दक्षिण का महासागर भी कुमारिका खण्ड ही है जिसका उल्लेख तमिल महाकाव्य शिलप्पाधिकारम् में है। आज भी इसे हिन्द महासागर ही कहते हैं।
(७) लोकपाल संस्था-२९१०२ ई.पू. में ब्रह्मा ने ८ लोकपाल बनाये थे। यह उनके स्थान पुष्कर (उज्जैन से १२ अंश पश्चिम बुखारा) से ८ दिशाओं में थे। यहां से पूर्व उत्तर में (चीन, जापान) ऊपर से नीचे, दक्षिण पश्चिम (भारत) में बायें से दाहिने तथा पश्चिम में दाहिने से बांये लिखते थे जो आज भी चल रहा है। बाद के ब्रह्मा स्वायम्भुव मनु की राजधानी अयोध्या थी, और लोकपालों का निर्धारण भारत के केन्द्र से हुआ। पूर्व से दाहिनी तरफ बढ़ने पर ८ दिशाओं (कोण दिशा सहित) के लोकपाल हैं-इन्द्र, अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, मरुत्, कुबेर, ईश। इनके नाम पर ही कोण दिशाओं के नाम हैं-अग्नि, नैर्ऋत्य, वायव्य, ईशान। अतः बिहार से वियतनाम और इण्डोनेसिया तक इन्द्र के वैदिक शब्द आज भी प्रचलित हैं। इनमें ओड़िशा में विष्णु और जगन्नाथ सम्बन्धी, काशी (भोजपुरी) में शिव, मिथिला में शक्ति, गया (मगध) में विष्णु के शब्द हैं। शिव-शक्ति (हर) तथा विष्णु (हरि) क्षेत्र तथा इनकी भाषाओं की सीमा आज भी हरिहर-क्षेत्र है। इन्द्र को अच्युत-च्युत कहते थे, अतः आज भी असम में राजा को चुतिया (च्युत) कहते हैं। इनका नाग क्षेत्र चुतिया-नागपुर था जो अंग्रेजी माध्यम से चुटिया तथा छोटा-नागपुर हो गया। ऐरावत और ईशान सम्बन्धी शब्द असम से थाइलैण्ड तक, अग्नि सम्बन्धी शब्द वियतनाम. इण्डोनेसिया में हैं। दक्षिण भारत में भी भाषा क्षेत्रों की सीमा कर्णाटक का हरिहर क्षेत्र है। उत्तर में गणेश की मराठी, उत्तर पूर्व के वराह क्षेत्र में तेलुगु, पूर्व में कार्त्तिकेय की सुब्रह्मण्य लिपि तमिल, कर्णाटक में शारदा की कन्नड़, तथा पश्चिम में हरिहर-पुत्र की मलयालम।
३. बिहार नाम का मूल-सामान्यतः कहा जाता है कि यहां बौद्ध विहार अधिक थे अतः इसका नाम बिहार पड़ा। यह स्पष्ट रूप से गलत है और केवल बौद्ध भक्ति में लिखा गया है। जब सिद्धार्थ बुद्ध (१८८७-१९०७ ई.पू.) या गौतम बुद्ध (५६३ ई.पू जन्म) जीवित थे तब भी इसे बिहार नहीं, मगध कहते थे। बौद्ध विहार केवल बिहार में ही नहीं, भारत के सभी भागों में थे। मुख्यतः कश्मीर में अशोक के समकालीन गोनन्द वंशी अशोक के समय सबसे अधिक बौद्ध विहार बने थे जिसमें मध्य एसिया के बौद्धों का प्रवेश होने से उन्होंने कश्मीर का राज्य नष्ट-भ्रष्ट कर दिया (राजतरंगिणी, तरंग १)। यह भारत के प्राकृतिक विभाजन के कारण नाम है। आज भी हिमाचल प्रदेश में पहाड़ की ऊपरी भूमि (अधित्यका) को खनेर और घाटी की समतल भूमि (उपत्यका) को बहाल या बिहाल कहते हैं। इसका मूल शब्द है बहल (बह्+क्लच्, नलोपश्च) = प्रचुर, बली, महान्। यथा-असावस्याः स्पर्शो वपुषि बहलश्चन्दनरसः (उत्तररामचरित१/३८), प्रहारैरुद्रच्छ्द्दहनबहलोद्गारगुरुभि (भर्तृहरि, शृङ्गार शतक, ३६)। बहल एक प्रकार की ईख का भी नाम है। खनेर का मूल शब्द है-खण्डल-भूखण्ड, या उसका पालन कर्त्ता। आखण्डल -सभी भूखण्डों का स्वामी इन्द्र। भारत में विन्ध्य और हिमालय के बीच खेती का मुख्य क्षेत्र था। उसमें भी बिहार भाग सबसे चौड़ा और अधिक नदियों (विशेषकर उत्तर बिहार) से सिञ्चित था। अधिक विस्तृत समतल भाग के अर्थ में इसे बहल या विहार (रमणीय) कहते हैं। सबसे अधिक कृषि का क्षेत्र मिथिला था जहां के राजा जनक भी हल चलाते थे। खेती में मुख्यतः घास जाति के धान और गेहूं रोपे जाते हैं, जो एक प्रकार के दर्भ हैं। दर्भ क्षेत्र को दरभंगा कहते हैं। भूमि से उत्पन्न सम्पत्ति सीता है, इसका एक भाग राजा रूप में इन्द्र को मिलता है। अतः यह शक्ति क्षेत्र हुआ। दर्भंगा के विशेष शब्द वही होंगे जो अथर्ववेद के दर्भ तथा कृषि सूक्तों में हैं। यहां केवल खेती है, कोई वन नहीं है। इसके विपरीत विदर्भ में दर्भ बिल्कुल नहीं है, केवल वन हैं। इसका पश्चिमी भाग रीगा ऋग्वेद का केन्द्र था जहां से ज्ञान संस्थायें शुरु हुयीं। ज्ञान का केन्द्र काशी शिव का स्थान हुआ। कर्क रेखा पर गया विष्णुपद तीर्थ या विष्णु खेत्र हुआ। दरभंगा के चारों तरफ अरण्य क्षेत्र हैं-अरण्य (आरा-आयरन देवी), सारण (अरण्य सहित) चम्पारण, पूर्ण-अरण्य (पूर्णिया)। गंगा के दक्षिण छोटे आकार के वृक्ष हैं अतः मगध को कीकट भी कहते थे। कीकट का अर्थ सामान्यतः बबूल करते हैं, पर यह किसी भी छोटे आकार के बृक्ष के लिये प्रयुक्त होता है जिसे आजकल कोकाठ कहते हैं।
उसके दक्षिण में पर्वतीय क्षेत्र को नागपुर (पर्वतीय नगर) कहते थे। इन्द्र का नागपुर होने से इसे चुतिया (अच्युत-च्युत) नागपुर कहते थे। आज भी रांची में चुतिया मोड़ है। घने जंगल का क्षेत्र झारखण्ड है। इनके मूल संस्कृत शब्द हैं-झाटः (झट् + णिच+ अच्)-घना जंगल, निकुञ्ज, कान्तार। झुण्टः =झाड़ी। झिण्टी = एक प्रकार की झाड़ी। झट संहतौ-केश का जूड़ा, झोंटा, गाली झांट।
गंगा नदी पर्वतीय क्षेत्र से निकलने पर कई धारायें मिल कर नदी बनती है। जहां से मुख्य धारा शुरु होती है उस गांगेय भाग के शासक गंगा पुत्र भीष्म थे। जहां से उसका डेल्टा भाग आरम्भ होता है अर्थात् धारा का विभाजन होता है वह राधा है। वहां का शासक राधा-नन्दन कर्ण था। यह क्षेत्र फरक्का से पहले है।
४. राजनीतिक भाग-(१) मल्ल-गण्डक और राप्ती गंगा के बीच।
(२) विदेह-गंगा के उत्तर गण्डक अओर कोसी नदी के बीच, हिमालय के दक्षिण। राजधानी मिथिला वैशाली से ५६ किमी. उत्तर-पश्चिम।
(३) मगध-सोन नद के पूर्व, गंगा के दक्षिण, मुंगेर के पश्चिम, हजारीबाग से उत्तर। प्राचीन काल में सोन-गंगा संगम पर पटना था। आज भी राचीन सोन के पश्चिम पटना जिले का भाग भोजपुरी भाषी है। नदी की धारा बदल गयी पर भाषा क्षेत्र नहीं बदला। राजधानी राजगीर (राजगृह)।
(४) काशी-यह प्रयाग में गंगा यमुना संगम से गंगा सोन संगम तक था, दक्षिण में विन्ध्य से हिमालय तक। इसके पश्चिम कोसल (अयोध्या इसी आकार का महा जनपद था। इसका पूर्वी भाग अभी बिहार में है पुराना शाहाबाद अभी ४ भागों में है भोजपुर, बक्सर, रोहतास, भभुआ।
(५) अंग-मोकामा से पूर्व मन्दारगिरि से पश्चिम, गंगा के दक्षिण, राजमहल के उत्तर। राजधानी चम्पा (मुंगेर के निकट, भागलपुर) । मन्दार पर्वत समुद्र मन्थन अर्थात् झारखण्ड में देव और अफ्रीका के असुरों द्वारा सम्मिलित खनन का केन्द्र था। इसके अधीक्षक वासुकि नाग थे, जिनका स्थन वासुकिनाथ है। कर्ण यहां का राजा था।
(६) पुण्ड्र-मिथिला से पूर्व, वर्तमान सहर्षा और पूर्णिया (कोसी प्रमण्डल) तथा उत्तर बंगाल का सिलीगुड़ी। कोसी (कौशिकी) से दुआर (कूचबिहार) तक। राजधानी महास्थान बोग्रा से १० किमी. उत्तर।
पर्वतीय भाग-(१) मुद्गार्क-राजमहल का पूर्वोत्तर भाग, सन्थाल परगना का पूर्व भाग, भागलपुर और दक्षिण मुंगेर (मुख्यतः अंग के भाग)। मुद्गगिरि = मुंगेर।
(२) अन्तर्गिरि-राजमहल से हजारीबाग तक।
(३) बहिर्गिरि-हजारीबाग से दामोदर घाटी तक।
(४) करूष-विन्ध्य का पूर्वोत्तर भाग, कैमूर पर्वत का उत्तरी भाग, केन (कर्मनाशा) से पश्चिम।
(५) मालवा-मध्य और उत्तरी कर्मनाशा (केन नदी)।
५. विशिष्ट वैदिक शब्द-(१) भोजपुरी-यह प्राचीन काशी राज्य था। काशी अव्यक्त शिव का स्थान था जिसके चतुर्दिक् अग्नि रूप में शिव के ८ रूप प्रकट हुये (८ वसु), इनके स्थान अग्नि-ग्राम (अगियांव) हैं। मूल काशी के चारों तरफ ८ अन्य पुरी थी, कुल ९ पुरियों के लोग नवपुरिया कहलाते थे जो सरयूपारीण (सरयू के पूर्व) ब्राह्मणों का अन्य नाम है। ज्ञान परम्परा के आदिनाथ शिव और यज्ञ भूमि के कारण शिव और यज्ञ से सम्बन्धित शब्द भोजपुरी में अधिक हैं। प्रायः ५० विशिष्ट वैदिक शब्दों में कुछ उदाहरण दिये जाए हैं-
(क) रवा-यज्ञ द्वारा जरूरी चीजों का उत्पादन होता है। जो व्यक्ती उपयोगी काम में सक्षम है उसमें महादेव का यज्ञ वृषभ रव कर रहा है, अतः वह महादेव जैसापूजनीय है। सबसे पहले पुरु ने प्रयाग में यज्ञ-संस्था बनायी थी (विष्णु पुराण, ४/६/३-४)। अतः उनको सम्मान के लिये पुरुरवा कहा गया। अतः प्रयाग से सोन-संगम तक आज भी सम्मान के लिये रवा कहते हैं। जो आदमी किसी काम लायक नहीं है, वह अन-रवा = अनेरिया (बेकार) है।
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः। अनेन प्रसविष्यध्वमेषवोऽस्त्विष्टकामधुक्। (गीता ३/१०)
चत्वारि शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति, महोदेवो मर्त्यां आविवेश॥ (ऋक् ४/५८/३)
पुरुरवा बहुधा रोरूयते (यास्क का निरुक्त १०/४६-४७)।
महे यत्त्वा पुरूरवो रणायावर्धयन्दस्यु- हत्याय देवाः। (ऋक् १०/९५/७)
(ख) बाटे (वर्त्तते)-केवल भोजपुरी में वर्त्तते (बाटे) का प्रयोग होता है, बाकी भारत में अस्ति। पश्चिम में अस्ति से ’आहे, है’ हो गया। पूर्व में अस्ति का अछि हो गया। अंग्रेजी में अस्ति से इस्ट (इज) हुआ। इसका कारण है कि जैसे आकाश में हिरण्यगभ से ५ महाभूत और जीवन का विकास हुआ, उसी प्रकार पृथ्वी पर ज्ञान का केन्द्र भारत था और भारत की राजधानी दिवोदास काल में काशी थी। इसका प्रतीक पूजा में कलश होता है जो ५ महाभूत रूप में पूर्ण विश्व है। जीवन आरम्भ रूप में आम के पल्लव हैं तथा हिरण्यगर्भ के प्रतीक रूप में स्वर्ण (या ताम्र) पैसा डालकर इसका मन्त्र पढ़ते हैं-
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ (ऋक् १०/१२१/१, वाजसनेयी यजुर्वेद १३/४, २३/१, अथर्व ४/२/७)
हिरण्य गर्भ क्षेत्र के रूप में काशी है (काश = दीप्ति), परिधि से बाहर निकलने पर प्रकाश। इसकी पूर्व सीमा पर सोन नद का नाम हिरण्यबाहु। यहां समवर्तत हुआ था अतः वर्तते का प्रयोग, भूतों के पति शिव का केन्द्रीय आम्नाय।
(ग) भोजपुरी-किसी स्थान में अन्न आदि के उत्पादन द्वारा पालन करने वाला भोज है। पूरे भारत पर शासन करने वाला सम्राट् है, संचार बाधा दूर करने वाला चक्रवर्त्ती है। उसके ऊपर कई देशों में प्रभुत्व वाला इन्द्र तथा महाद्वीप पर प्रभुत्व वाला महेन्द्र है। विश्व प्रभुत्व वाला विराट् है, ज्ञान का प्रभाव ब्रह्मा, बल का प्रभाव विष्णु। यहां का दिवोदास भोज्य राजा था, अतः यह भोजपुर था। महाभारत में भी यादवों के ५ गणों में एक भोज है, कंस को भी भोजराज कहा गया है। यह सदा से अन्न से सम्पन्न था।
भागवत पुराण, स्कन्ध १०, अध्याय १-श्लाघ्नीय गुणः शूरैर्भवान्भोजयशस्करः॥३७॥
उग्रसेनं च पितरं यदु-भोजान्धकाधिपम्॥६९॥
इमे भोजा अङ्गिरसो विरूपा दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीराः।
विश्वामित्राय ददतो मघानि सहस्रसावे प्रतिरन्तआयुः॥ (ऋक्३ /५३/७)
नभो जामम्रुर्नन्यर्थमीयुर्नरिष्यन्ति न व्यथन्ते ह भोजाः।
इदं यद्विश्वं भुवनं स्वश्चैतत्सर्वं दक्षिणैभ्योददाति॥ (ऋक् १०/१०७/८)
(इसी भाव में-आरा जिला घर बा कौन बात के डर बा?)
(घ) कठोपनिषद्-अन्न क्षेत्र होने से यहां के ऋषि को वाजश्रवा कहा है (वाज = अन्न, बल, घोड़ा), श्रवा = उत्पादन। वे दान में बूढ़ी गायें दे रहे थे जिसका उनके पुत्र नचिकेता ने विरोध किया। चिकेत = स्पष्ट, जिसे स्पष्ट ज्ञान नहीं है और उसकी खोज में लगा है वह नचिकेता है। या ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में सम्बन्ध जानने वाला। वह ज्ञान के लिये वैवस्वत यम के पास संयमनी पुरी (यमन, अम्मान, मृत सागर, राजधानी सना) गये थे। मनुष्य के २ लक्ष्य हैं प्रेय (तात्कालिक लाभ) और श्रेय (स्थायी लाभ)। भारत में श्रेय आदर्श है अतः सम्मान के लिये श्री कहते हैं। पश्चिम एसिया में प्रेय आदर्श था अतः वहां पूज्य को पीर कहते हैं जो हमारा प्रेय दे सके। नचिकेता पीर से मिलने गया था जो उसे सोना-चान्दी आदि देना चाहते थे, अतः उसके स्थान का नाम पीरो हुआ। वहां की मुद्रा दीनार थी (दीनता दूर करने के लिये), भारत में इस शब्द का प्रयोग मुस्लिम शासन में भी नहीं हुआ है, पर यहां से नचिकेता पीर के पास गया था, अतः यहां का मुख्य बाजार दिनारा कहलाता है। प्रेय को छोड़ कर श्रेय मार्ग लेना धीर के लिये ही सम्भव है, जिसे भोजपुरी में कहते हैं ’संपरता’ जो कठोपनिषद् से आया है-श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतत्, तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीरः॥ (कठोपनिषद् १/२/२)
(२) मैथिली-इसमें भी प्रायः ५० विशिष्ट वैदिक शब्द हैं जिनमें खोज की जरूरत है। कृषि सूक्त से सम्बन्धित शब्द इसमें हैं-
(क) अहां के-शक्ति रूप में देवनागरी के ५० वर्ण ही मातृका हैं क्योंकि इनसे वाङ्मय रूप विश्व उत्पन्न होता है। मातृ-पूजा में इन्हीं वर्णों का न्यास शरीर के विभिन्न विन्दुओं पर किया जात है। असे ह तक शरीर है, उसे जानने वाला आत्मा क्षेत्रज्ञ है (गीत अध्याय १३), अतः क्ष, त्र, ज्ञ-ये ३ अक्षर बाद में जोड़ते हैं। मातृका रूप शक्ति का स्वरूप होने के कारण मनुष्य को सम्मान के लिये अहं (अहां) कहते हैं अथात् अ से ह तक मातृका।
(ख) सबसे अधिक खेती का विकास मिथिला में हुआ, अतः वहां के शासक को जनक (उत्पादक, पिता) कहते थे। वह स्वयं भी खेती करते थे। वहां केवल खेती थी, वन नहीं था। खेती में सभी वृक्ष घास या दर्भ हैं, अतः इस क्षेत्र को दर्भङ्गा कहते हैं। भूमि से उत्पादित वस्तु सीता है, अतः जनक की पुत्री को भूमि-सुता तथा सीता कहा गया। इसका भाग लेकर इन्द्र (राजा) प्रजा का पालन तथा रक्षण करता है। इसका विस्तृत वर्णन अथर्ववेद के कृषि (३/१७) तथा दर्भ (१९/२८-३०,३२-३३) सूक्तों में है-
अथर्व (३/१७)-इन्द्रः सीतां निगृह्णातु तां पूषाभिरक्षतु। सा नः पयस्वती दुहामुत्तरमुत्तरां समाम्॥४॥
शुनं सुफाला वितुदन्तु भूमिं शुनं कीनाशा अनुयन्तु वाहान्।
शुनासीरा (इन्द्र) हविषा तोशमाना सुपिप्पला ओषधीः कर्तमस्मै॥५॥
सीते वन्दामहे त्वार्वाची सुभगे भव। यथा नः सुमना असो यथा नः सुफला भवः॥८॥
घृतेन सीता मधुना समक्ता विश्वैर्देवैरनुमतामरुद्भिः।
सा नः सीता पयसाभ्याववृत्स्वोर्जस्वती घृतवत्पिन्वमाना॥९॥
अथर्व (१९/२८)-घर्म (घाम = धूप) इवाभि तपन्दर्भ द्विषतो नितपन्मणे।
अथर्व (१९/२८)-तीक्ष्णो राजा विषासही रक्षोहा विश्व चर्षणिः॥४॥
= राजा रक्षा तथा चर्षण (चास = खेती) करता है।
(ग) झा-शक्ति के ९ रूपों की दुर्गा रूप में पूजा होती है। नव दुर्गा पूजक को झा कहते हैं क्योंकि झ नवम व्यञ्जन वर्ण है।
(३) मगही के शब्द विष्णु सूक्त में अंगिका के शब्द सूर्य सूक्त में होने चाहिए। इनकी खोज बाकी है।
(४) खनिज सम्बन्धी शब्द स्वभावतः वहीं होंगे जहां खनिज मिलते हैं। बलि ने युद्ध के डर से वामन विष्णु को इन्द्र की त्रिलोकी लौटा दी थी। पर कई असुर सन्तुष्ट नहीं थे और युद्ध चलते रहे। कूर्म अवतार विष्णु ने समझाया कि यदि उत्पादन नहीं हो तो युद्ध से कुछ लूट नहीं सकते अतः देव-असुर दोनों खनिज सम्पत्ति के दोहन के लिये राजी हो गये (१६०० ई.पू.)। असुर भूमि के भीतर खोदने में कुशल थे अतः खान के नीचे वे गये जिसको वासुकि का गर्म मुख कहा गया है। देव लोग विरल धातुओं के निष्कासन में कुशल थे अतः जिम्बाबवे का सोना (जाम्बूनद स्वर्ण) तथा मेक्सिको की चान्दी (माक्षिकः = चान्दी) निकालने के लिये देवता गये। बाद में इसी असुर इलाके के यवनों ने भारत पर आक्रमण कर राजा बाहु को मार दिया (मेगास्थनीज के अनुसार ६७७७ ई.पू.)। प्रायः १५ वर्ष बाद सगर ने आक्रमणकारी बाकस (डायोनिसस) को भगाया और यवनों को ग्रीस जा पड़ा जिसके बाद उसका नाम यूनान हुआ। अतः आज भी खनिज कर्म वाले असुरों की कई उपाधि वही हैं जो ग्रीक भाषा में खनिजों के नाम हैं-
(क) मुण्डा-मुण्ड लौह खनिज (पिण्ड) है और उसका चूर्ण रूप मुर (मुर्रम) है। पश्चिम में नरकासुर की राजधानी लोहे से घिरी थी अतः उसे मुर कहते थे। वाल्मीकि रामायण (किष्किन्धा काण्ड, अध्याय ३९) के अनुसार यहीं पर विष्णु का सुदर्शन चक्र बना था। आज भी यहां के लोगों को मूर ही कहते हैं। लोहे की खान में काम करने वालों को मुण्डा कहते हैं। मुण्ड भाग में अथर्व वेद की शाखा मुण्डक थी जिसे पढ़ने वाले ब्राह्मणों की उपाधि भी मुण्ड है। )
(ख) हंसदा-हंस-पद का अर्थ पारद का चूर्ण या सिन्दूर है। पारद के शोधन में लगे व्यक्ति या खनिज से मिट्टी आदि साफ करने वाले हंसदा हैं।
(ग) खालको-ग्रीक में खालको का अर्थ ताम्बा है। आज भी ताम्बा का मुख्य अयस्क खालको (चालको) पाइराइट कहलाता है।
(घ) ओराम-ग्रीक में औरम का अर्थ सोना है।
(ङ) कर्कटा-ज्यामिति में चित्र बनाने के कम्पास को कर्कट कहते थे। इसका नक्शा (नक्षत्र देख कर बनता है) बनाने में प्रयोग है, अतः नकशा बना कर कहां खनिज मिल सकता है उसका निर्धारण करने वाले को करकटा कहते थे। पूरे झारखण्ड प्रदेश को ही कर्क-खण्ड कहते थे (महाभारत, ३/२५५/७)। कर्क रेखा इसकी उत्तरी सीमा पर है, पाकिस्तान के करांची का नाम भी इसी कारण है।
(च) किस्कू-कौटिल्य के अर्थशास्त्र में यह वजन की एक माप है। भरद्वाज के वैमानिक रहस्य में यह ताप की इकाई है। यह् उसी प्रकार है जैसे आधुनिक विज्ञान में ताप की इकाई मात्रा की इकाई से सम्बन्धित है (१ ग्राम जल ताप १० सेल्सिअस बढ़ाने के लिये आवश्यक ताप कैलोरी है)। लोहा बनाने के लिये धमन भट्टी को भी किस्कू कहते थे, तथा इसमें काम करने वाले भी किस्कू हुए।
(छ) टोप्पो-टोपाज रत्न निकालनेवाले।
(ज) सिंकू-टिन को ग्रीक में स्टैनम तथा उसके भस्म को स्टैनिक कहते हैं।
(झ) मिंज-मीन सदा जल में रहती है। अयस्क धोकर साफ करनेवाले को मीन (मिंज) कहते थे-दोनों का अर्थ मछली है।
(ञ) कण्डूलना-ऊपर दिखाया गया है कि पत्थर से सोना खोदकर निकालने वाले कण्डूलना हैं। उस से धातु निकालने वाले ओराम हैं।
(ट) हेम्ब्रम-संस्कृत में हेम का अर्थ है सोना, विशेषकर उससे बने गहने। हिम के विशेषण रूप में हेम या हैम का अर्थ बर्फ़ भी है। हेमसार तूतिया है। किसी भी सुनहरे रंग की चीज को हेम या हैम कहते हैं। सिन्दूर भी हैम है, इसकी मूल धातु को ग्रीक में हाईग्रेरिअम कहते हैं जो सम्भवतः हेम्ब्रम का मूल है।
(ठ) एक्का या कच्छप-दोनों का अर्थ कछुआ है। वैसे तो पूरे खनिज क्षेत्र का ही आकार कछुए जैसा है, जिसके कारण समुद्र मन्थन का आधार कूर्म कहा गया। पर खान के भीतर गुफा को बचाने के लिये ऊपर आधार दिया जाता है, नहीं तो मिट्टी गिरने से वह बन्द हो जायेगा। खान गुफा की दीवाल तथा छत बनाने वाले एक्का या कच्छप हैं।

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

चाचा नेहरु


असली चेहरा – चाचा नेहरु
जवाहर लाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री के जन्म दिवस को भारतीय बाल दिवस के रूप में मनाते हैं, परन्तु भारत के भोले-भाले बच्चे चाचा नेहरु की असली छवि से वर्षों बेखबर विद्दयालयों की पुस्तकों में छपी जवाहरलाल नेहरु की मनगढ़ंत कहानियों को सत्य मान कर महान होने का दर्ज़ा देते आये हैं l परन्तु वास्तविकता यह है, कि नेहरु खानदान के पूर्वज मुग़ल थे l जवाहर लाल नेहरु के दादा का नाम गयासुद्दीन ग़ाज़ी उर्फ़ गंगाधर नेहरु था l आजाद भारत से एक मुस्लिम राष्ट्र पकिस्तान देने के बाद भी एक मुग़ल ही चालाकी से भारत का प्रधानमन्त्री रहा l जिसने भारत के महात्मा गांधी को भी अपने जाल में फंसा रखा था l जिनके कारण कश्मीर भी विवादित हो गया l ऐसे प्रधानमंत्री की भ्रामक दूरदृष्टि के चलते चीन भारत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पुरातन तीर्थ स्थान मानसरोवर अपने अधीन कर ले गया l जो आज भी चीन के अधीन है l आगे चल कर उसकी संतान इंदिरा ने भी एक और मुस्लिम राष्ट्र बांगला देश आज़ाद कराया l कश्मीर के पंडित आज भी आज़ाद भारत के कश्मीर से पलायन करके अन्य क्षेत्रों में शरणार्थी बनके रहने को मजबूर हैं l यह वही कश्मीरी पंडितों की संताने हैं जिन्होंने सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी के सामने मुग़लों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन से स्वयं को बचाने की गुहार लगाई थी l जिसके चलते गुरु जी को अंततः शहादत देनी पड़ी l नौवें गुरु के पुत्र उनके बाद दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह हुए और मुग़लों के विरुद्ध युद्धरत रहे, तांकि भारत के धर्म और संस्कृति की रक्षा हो सके और भारत का ज़बरन इस्लामीकरण रोका जा सके l फलस्वरूप गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों पुत्र और अनेकों सिंह शहीद हुए l शायद यही कारण है कि मुग़ल खानदानी नेहरु परिवार ने हिन्दू नाम रख कर हिदुओं के साथ और देश के साथ धोखा किया और सिखों को कुचलने के लिए जवाहरलाल नेहरु के समय से ही पूरी चालाकी और ताक़त के साथ लगे रहे l क्योंकि उत्तर भारत के मुग़लिया अत्याचारों के सबसे बड़े विरोधी सिख ही रहे हैं l अपनी छवि का दिखावटी उज्ज्वल रूप दिखा कर हिदुओं को भी ठगा और सिख और हिदू के भाई-चारे में दरार पैदा की l भारत के आत्मसम्मान, सुरक्षा और सम्रद्धि को सबसे बड़ा नुक्सान पहुंचाने वाला खानदान नेहरु खानदान है l शायद इसीलिए अपप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना की है l कांग्रेस का सर्वेसर्वा नेहरु खानदान ही था और है, जिनके आगे महात्मा गांधी भी खुलकर विरोध कर पाने में असमर्थ थे l सिखों के साथ नेहरु खानदान की दुश्मनी ऐतिहासिक कड़ी ही कही जायेगी जो मुग़लों के भारत पर अत्याचार के लगभग पांच सदियों से विरोधी रहे हैं l अहिंसा दल ऐसे धोखेबाज़ और भारत को कमज़ोर बनाने वाले नेहरु परिवार से भारतीयों को जागरूक करने की मुहीम को आगे बढाने को प्रयासरत है l और सिख भाइयों के साथ कांग्रेस द्वारा ढहाए गए अत्याचारों का विरोध करता है l सिख भारत का अभिन्न अंग है जिन्होंने भारत की आजादी के लिए मात्र अंगेजों के समय से ही नहीं वरन मुग़लों के समय से असंख्य बलिदान दिए हैं l अहिंसा दल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा १९८४ के सिख विरोधी दंगो तथा सिखों के प्रति प्रकट की गई सहानुभूति की सराहना करता है l 
 -----------------------    अरुन शुक्ला के साथ विकास खुराना

असली चेहरा – चाचा नेहरु
जवाहर लाल नेहरु भारत के पहले प्रधानमंत्री के जन्म दिवस को भारतीय बाल दिवस के रूप में मनाते हैं, परन्तु भारत के भोले-भाले बच्चे चाचा नेहरु की असली छवि से वर्षों बेखबर विद्दयालयों की पुस्तकों में छपी जवाहरलाल नेहरु की मनगढ़ंत कहानियों को सत्य मान कर महान होने का दर्ज़ा देते आये हैं l परन्तु वास्तविकता यह है, कि नेहरु खानदान के पूर्वज मुग़ल थे l जवाहर लाल नेहरु के दादा का नाम गयासुद्दीन ग़ाज़ी उर्फ़ गंगाधर नेहरु था l आजाद भारत से एक मुस्लिम राष्ट्र पकिस्तान देने के बाद भी एक मुग़ल ही चालाकी से भारत का प्रधानमन्त्री रहा l जिसने भारत के महात्मा गांधी को भी अपने जाल में फंसा रखा था l जिनके कारण कश्मीर भी विवादित हो गया l ऐसे प्रधानमंत्री की भ्रामक दूरदृष्टि के चलते चीन भारत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पुरातन तीर्थ स्थान मानसरोवर अपने अधीन कर ले गया l जो आज भी चीन के अधीन है l आगे चल कर उसकी संतान इंदिरा ने भी एक और मुस्लिम राष्ट्र बांगला देश आज़ाद कराया l कश्मीर के पंडित आज भी आज़ाद भारत के कश्मीर से पलायन करके अन्य क्षेत्रों में शरणार्थी बनके रहने को मजबूर हैं l यह वही कश्मीरी पंडितों की संताने हैं जिन्होंने सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी के सामने मुग़लों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन से स्वयं को बचाने की गुहार लगाई थी l जिसके चलते गुरु जी को अंततः शहादत देनी पड़ी l नौवें गुरु के पुत्र उनके बाद दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह हुए और मुग़लों के विरुद्ध युद्धरत रहे, तांकि भारत के धर्म और संस्कृति की रक्षा हो सके और भारत का ज़बरन इस्लामीकरण रोका जा सके l फलस्वरूप गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों पुत्र और अनेकों सिंह शहीद हुए l शायद यही कारण है कि मुग़ल खानदानी नेहरु परिवार ने हिन्दू नाम रख कर हिदुओं के साथ और देश के साथ धोखा किया और सिखों को कुचलने के लिए जवाहरलाल नेहरु के समय से ही पूरी चालाकी और ताक़त के साथ लगे रहे l क्योंकि उत्तर भारत के मुग़लिया अत्याचारों के सबसे बड़े विरोधी सिख ही रहे हैं l अपनी छवि का दिखावटी उज्ज्वल रूप दिखा कर हिदुओं को भी ठगा और सिख और हिदू के भाई-चारे में दरार पैदा की l भारत के आत्मसम्मान, सुरक्षा और सम्रद्धि को सबसे बड़ा नुक्सान पहुंचाने वाला खानदान नेहरु खानदान है l शायद इसीलिए अपप्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना की है l कांग्रेस का सर्वेसर्वा नेहरु खानदान ही था और है, जिनके आगे महात्मा गांधी भी खुलकर विरोध कर पाने में असमर्थ थे l सिखों के साथ नेहरु खानदान की दुश्मनी ऐतिहासिक कड़ी ही कही जायेगी जो मुग़लों के भारत पर अत्याचार के लगभग पांच सदियों से विरोधी रहे हैं l अहिंसा दल ऐसे धोखेबाज़ और भारत को कमज़ोर बनाने वाले नेहरु परिवार से भारतीयों को जागरूक करने की मुहीम को आगे बढाने को प्रयासरत है l और सिख भाइयों के साथ कांग्रेस द्वारा ढहाए गए अत्याचारों का विरोध करता है l सिख भारत का अभिन्न अंग है जिन्होंने भारत की आजादी के लिए मात्र अंगेजों के समय से ही नहीं वरन मुग़लों के समय से असंख्य बलिदान दिए हैं l अहिंसा दल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा १९८४ के सिख विरोधी दंगो तथा सिखों के प्रति प्रकट की गई सहानुभूति की सराहना करता है l
———————– अरुन शुक्ला के साथ विकास खुराना

Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

नेहरू ने ऐसा क्यूँ कहा “I AM HINDU BY AN ACCIDENT”


नेहरू ने ऐसा क्यूँ कहा “I AM HINDU BY AN ACCIDENT”
नेहरू खानदान यानी गयासुद्दीन गाजी का वंश
भारत मे और कोई नेहरू क्यूँ नहीं हुआ ?
नेहरू ने ऐसा क्यूँ कहा “I AM HINDU BY AN ACCIDENT”
कभी फ़िरोज़ H/o इंदिरा गाँधी उर्फ़ मेमुना बेगम का जन्म या मृत्यु दिवस मनाते नहीं देखा है, क्यों?
1. गंगाधर नेहरु
2. राज कुमार नेहरु
3. विद्याधर नेहरु
4. मोतीलाल नेहरु
5. जवाहर लाल नेहरु
गंगाधर नेहरु (Nehru) उर्फ़ GAYAS -UD – DIN SHAH जिसे GAZI की उपाधि दी गई थी ….
GAZI जिसका मतलब होता है (KAFIR – KILLER) इस गयासुद्दीन गाजी ने ही मुसलमानों को खबर (मुखबिरी ) दी थी की गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड में आये हुए हैं , इसकी मुखबिरी और पक्की खबर के कारण ही सिखों के दशम गुरु गोबिंद सिंह जी के ऊपर हमला बोला गया, जिसमे उन्हें चोट पहुंची और कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी.और आज नांदेड में सिक्खों का बहुत बड़ा तीर्थ-स्थान बना हुआ है.|
जब गयासुद्दीन को हिन्दू और सिक्ख मिलकरचारों और ढूँढने लगे तो उसने अपना नामबदल लिया और गंगाधर राव बन गया, और उसे इससे पहले मुसलमानों ने पुरस्कार के रूप में अलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में इशरत मंजिल नामक महल/हवेली दिया, जिसका नाम आज आनंद भवन है.| आनंद भवन को आज अलाहाबाद में कांग्रेस उर्फ पोर्नग्रेस का मुख्यालय बनाया हुआ है इशरत मंजिल के बगल से एक नहर गुजरा करती थी, जिसके कारण लोग गंगाधर को नहर के पास वाला, नहर किनारे वाला, नहर वाला, neharua,आदि बोलते थे जो बाद में गंगाधर नेहरु अपना लिखने लगा इस प्रकार से एक नया उपनाम अस्तित्व में आया नेहरु और आज समय ऐसा है की एक दिन अरुण नेहरु को छोड़कर कोई नेहरु नहीं बचा …
अपने आप को कश्मीरी पंडितकह कर रह रहा था गंगाधर क्यूंकि अफगानी था और लोग आसानी से विश्वास कर लेतेथे क्यूंकि कश्मीरी पंडितभी ऐसे ही लगते थे.
अपने आप को पंडित साबित करने के लिए सबने नाम के आगे पंडित लगाना शुरू कर दिया
1. गंगाधर नेहरु
2. राज कुमार नेहरु
3. विद्याधर नेहरु
4. मोतीलाल नेहरु
5. जवाहर लाल नेहरु लिखा ..और यही नाम व्यवहार में लाते गए …
पंडित जवाहर लाल नेहरु अगर कश्मीर का था तो आज कहाँ गया कश्मीर में वो घर आज तो वो कश्मीरमें कांग्रेस का मुख्यालय होना चाहिए जिस प्रकार आनंदभवन कांग्रेस का मुख्यालय बना हुआ है इलाहाबाद में….
आज तो वो घर हर कांग्रेसी के लिए तीर्थ स्थान घोषित हो जाना चाहिए
ये कहानी इतनी पुरानी भी नहीं है की इसके तथ्य कश्मीर में मिल न सकें ….आज हर पुरानी चीज़ मिल रही है ….चित्रकूट में भगवन श्री राम के पैरों के निशान मिले,लंका में रावन की लंका मिली, उसके हवाई अड्डे, अशोक वाटिका, संजीवनी बूटी वाले पहाड़ आदि बहुतकुछ….समुद्र में भगवान श्री कृष्ण भगवान् द्वारा बसाईगई द्वारिका नगरी मिली ,करोड़ों वर्ष पूर्व की DINOSAUR के अवशेष मिले तो 150 वर्ष पुरानाकश्मीर में नकली नेहरू काअस्तित्व ढूंढना क्या कठिन है ?????दुश्मन बहुत होशिआर है हमें आजादी के धोखे में रखा हुआ है,
इस से उभरने के लिए इनको इन सब से भी बड़ी चुस्की पिलानी पड़ेगी जो की मेरेविचार से धर्मान्धता ही हो सकती है जैसे गणेश को दूध पिलाया था अन्यथा किसी डिक्टटर को आना पड़ेगा या सिविल वार अनिवार्य हो जायेगा
तो क्या सोचा हम नेहरू को कौनसे नाम से पुकारे ? जवाहरुद्दीन या चाचा नेहरू ?
जो नेहरू नेहरू कहते है उनसे पूछिये की इस खानदानके अलावा भारत मे और कोई नेहरू क्यूँ नहीं हुआ ?अगर यह वास्तव मे ब्राह्मण था तो ब्राह्मनों मे नेहरू नाम की गोत्र अवश्य होनी चाहिए थी ? क्यूँ नहीं ?क्यों देश मे और कोई नेहरू नहीं मिलता?क्या ये जवाहर लाल के परिवार वाले आसमान से टपके थे ?
जो लोग नेहरू गांधी परिवार को मुस्लिम मानने से इंकार करते है उनके लिए प्रश्न
# देश मे सोलंकी, अग्रवाल, माथुर, सिंह, कुशवाहा, शर्मा, चौहान, शिंदे, कुलकर्णी, व्यास, ठाकरे आदि उपनाम हजारो, लाखो करोड़ो कीसंख्या मेमिलेंगे लेकिन “नेहरू” सेकड़ों भी नहीं है क्यूँ?
# कश्मीरी हमेशा अपने नाम के पीछे पंडित लगाते है लेकिन जवाहर लाल के नाम के आगे पंडित कैसे ? गंगाधर के पहले का इतिहास क्यूँ नहीं है ?
# नेहरू ने ऐसा क्यूँ कहा “I AM HINDU BY AN ACCIDENT”
क्या ये प्रश्न आपके मन मे उठे कभी ? ?? ? इस कोंग्रेसी वामपंथी इस कोंग्रेसी महिमामंडित गांधी नेहरू इतिहास ने कभी मौका ही नहीं दिया ? ? ?ऐसे ही मासूम विद्यार्थियों के भेजे मे यह गांधी नेहरू परिवार
की गंदगी भरी जा रही है देश के लाखो स्कूलो मे…इस गांधी नेहरू नाम के इतिहास के सामने राम कृष्ण, राणा, शिवाजी आदि हजारो महावीरों सपूतो के किस्से इतिहास भी नगण्य किए जाते है…इतिहासकारो और इतिहासिक संस्थानो पर कॉंग्रेस और वामपंथियों का कब्जा है कैसे देश की पीढ़ी वीर बनेगी ? ? ? ?
इस परिवार ने देश के अन्य वीर शहीदो की शहीदी को भू फीका कर दिया अपने महिमामंडित इतिहास से हर पन्ने पर इनका नाम नजर आता है …हमें तो अब चाहिए पूर्ण आजादी …राम कृष्ण राणा शिवाजी के देश मे नकली गाँधी नेहरू नाम के पिशाच नहीं चाहिए
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~!!~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गाँधी ने तो अपने बेटा-बेटी के आपस में रिश्ते नहीं किए तब कहाँ से आ धमका नेहरू-गाँधी खानदान और उनके जॉइंट वारिस? जिनका गाँधी जी से कोई वास्ता नहीं है, वे गाँधी के वंशज कैसे बन गये?
* जवाहरलाल नेहरू राहुल-वरुण की दादी के पिता जी थे, यानि तीसरी पीढ़ी में. तब ये नेहरू के वंशज कैसे बन गये?
* क्या नेहरू ने दूर की सोचकर अपने दामाद फ़िरोज़ को गाँधी नाम दिलाकर विधि-विधान के विरुद्ध कार्य किया था?
* पैदा होने के बाद आदमी का धर्म तो बदला जा सकता है, लेकिन जाति बदले का अधिकार तो विधि के हाथ भी नहीं है.
* फ़िरोज़ जहाँगीर घंडी को किन्ही दस्तावेज़ो में पारसी (ज़्रोस्ट्रियन) लिखा गया है. बरहाल वे पारसी थे कि, मुस्लिम इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन गाँधी जी के कुछ नहीं थे और न ही वे किसी भी तरह से गाँधी थे. कश्मीरी कौल ब्राहमण की बेटी इंदिरा और फ़िरोज़ की संतान गुजरात के गाँधी बनिये किस विधि से हो सकती है?
* इस देश के पढ़े लिखे लोग ग़लत बात का विरोध क्यों नहीं करते? इस नामकरण से इस देश का बहुत कुछ बर्बाद हो रहा है, और बर्बाद हो चुका है….?
* अगर यह छद्म नामकरण रोक दिया जाता तो आज देश की तस्वीर ही कुछ और होती. चुनाव में नेहरू-गाँधी के वंशज की झोक में ठप्पा मारने वालों का रुख़ ही कुछ और होता और 5-7% वोट का डेवियेशन इस देश की तकदीर बदल देता.
* पढ़े कथित गाँधी-नेहरू के वंशज की असलियत, जिससे लम्बे समय से इस देश का वोटर्स धोखा में हैं:
*******
एक और तर्क दिया जाता है इस बात के लिए की ,
क्या वजह थी कि जब इंदिरा ने फिरोज़ जहांगीर शाह; पारसी मुसलिमद्ध से ब्याह रचाया तो नहेरु ने उनकी एक नहीं सुनी और गांधीजी ने फिरोज को गोद लेना पडा़। मेरी समझ में तो पूरे देश की तरह शायद गांधी जी भी यही मानते थे कि आज़ादी की लड़ाई में सबसे ज्यादा योगदान उन्हीं का है और इसलिए वो नहीं चाहते थे कि गांधी नाम की विरासत उनके साथ ही खत्म को जाए, वो चाहते थे कि उनका नाम सियासी गलियारों में हमेशा गूंजता रहे, लेकिन खुद को किसी पद से जोड़ के महानता का चोगा त्यागे बिना। उन्हें ये मौका इंदिरा की शादी से मिला,गांधी जी का एक और गुण भी था उनकी दूरर्दर्शिता, इंदिरा में नेतृत्व के गुण वो पहले ही देख चुके थे,वो जानते थे कि इंदिरा से परमपरागत राजनीती की शुरुआत होगी और इसीलिए उन्होंने फिरोज़ को गोद लिया और उसे अपना नाम दिया।
लोगों का मानना है कि र्सिफ हिन्दु कट्टरपंथी ही नहीं नेहरु जी भी इस शादी के खिलाफ थे,पर नेहरु ने अपनी एक किताब में लिखा है कि फिरोज़ को वो बेहद पसंद करते थे और उन्हें इस शादी से नहीं बल्कि लोंगों के विद्रोह से परेशानी थी,जिसका अंदाजा उन्हें और गांधी जी को पहले से था। देश आज़ादी की कगार पे था और गांधी जी का प्रभाव अपने चरम पे,उन्होंने इंदिरा और फिरोज के पक्ष में एक वक्तव्य जारी किया,जिसे पढ़ के और सुन के सभी शांत हो गये। फिर भी उन्होने फिरोज को अपना नाम दिया, चाहे इंदिरा हो,राजीव हो,सोनिया या अब राहुल,ये तो बस अलग-अलग चेहरें हैं, देश चलाने वाला तो गांधी ही है,पर हम तो उन्हें महात्मा के नाम से जानते हैं!
“समंदरे शोहरत का साहिल नहीं होता,
डूबते हैं बड़े बड़े तैराक इस समंदर में!!! ”
इस देश की कुछ जनता को पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा-फिरोज का जन्म और मृत्यु दिवस मनाते देखा है. राजीव और संजय का भी मृत्यु दिवस कुछ पोलिटिकल/ सरकारी/ जनता द्वारा मनाया जाता है. मज़े की बात देखिए कि कभी फ़िरोज़ H/o इंदिरा गाँधी उर्फ़ मेमुना बेगम का जन्म या मृत्यु दिवस मनाते नहीं देखा है, क्यों?
इंदिरा के पति यानी कि राजीव व संजय के पिता का नाम लेवा कोई क्यों नहीं रहा, यानी कि जो हैं वे उनके ये पावन दिन क्यों नहीं मनाते हैं? क्यों नहीं उनकी कब्र पर उनके वंशज अमुक दिन माला या फूल चढ़ाने जाते हैं? क्या फ़िरोज़ का इंदिरा से शादी करके दो बच्चे पैदा करने का ही कांट्रॅक्ट था? ये सब ज्वलंत प्रश्न हैं.
Feroze Gandhi
फिरोज गांधी
Member of the Indian Parliament
for Pratapgarh District (west) cum Rae Bareli District (east)[1]
In office
17 April 1952 – 4 April 1957
Member of the Indian Parliament
for Rae Bareli[2]
In office
5 May 1957 – 8 September 1960
Succeeded by Baij Nath Kureel
Personal details
Born 12 September 1912
Bombay, Bombay Presidency, British India
Died 8 September 1960 (aged 47)
New Delhi, Delhi, India
Resting place Parsi cemetery, Allahabad
Nationality Indian
Political party Indian National Congress
Spouse(s) Indira Gandhi
Children Sanjay Gandhi,
Rajiv Gandhi
Religion Zoroastrianism [विकिपेडीया से उपलब्ध]
अब भी अगर इस लेख पर विश्वास ना आ रहा हो तो इस लिंक को विजिट करे [http://www.vepachedu.org/Nehrudynasty.html]
दस्तावेज़ों और नेट पर उपलब्ध विवरण के अनुसार फ़िरोज़ एक मुस्लिम पिता और घंडी गोत्र की पारसी महिला की संतान थे. देवी इंदिरा और फ़िरोज़ ने प्रेम विवाह किया था. नेहरू अपना वंश चलाने के लिए अपने दो नातियों राजीव और संजय में से एक को गोद ले सकते थे, लेकिन उस दशा में वह शख्स नेहरू कहलाता. अगर नेहरू ने फ़िरोज़ को घर जमाई भी रख लिया होता तो भी उसके बच्चे नेहरू हो गये होते. यानी कि नेहरू ने अपनी इकलौती बेटी इंदिरा का विवाह कर दिया था, लेकिन तत्पश्चात किसी को गोद नहीं लिया था. इस प्रकार जादायद भले ही इंदिरा को मिले लेकिन खानदानी वारिस होने का हक उसे नहीं मिल सकता है. इस प्रकार जवाहरलाल नेहरू का खानदान उनकी मृत्यु के साथ ही ख़त्म हो गया था. इंदिरा-फ़िरोज़ की संतान फ़िरोज़ की वंशज हुई न कि नेहरु की.
फ़िरोज़ ख़ान क्यों और कैसे गाँधी बन गये, यह एक रोचक बात है. अगर किसी की माँ उसके बाप को तलाक़ देकर खुद बच्चे की परवरिश करे और उसे अपने परिवार का नाम दे तो भी उस दशा में फ़िरोज़, फ़िरोज़ घंडी हो सकते थे. हम नहीं जानते कि फ़िरोज़ के साथ ऐसा कुछ हुआ था या नहीं?
रही समस्त बुराई की जड़ मोहन दस करमचंद गाँधी द्वारा फ़िरोज़ को गोद लेने की बात. यह भी सुना है कि सेकुलर नेहरू फ़िरोज़ से इंदिरा का विवाह करने को तैयार नहीं थे, जबकि वह पहले ही बिना बाप को बताये शादी कर चुकी थी. ऐसी दशा में गाँधी ने कहा था कि वे फ़िरोज़ को गोद लेते हैं. गोद लेना कोई गुड्डे-गुड़िया का खेल नहीं है. गोद लेने की एक प्रक्रिया है, एक एक विधि-विधान है. एक उम्र है. यही नहीं गोद लेने के लिए जाति आधारित क़ानून भी थे. गाँधी जी कोई खुदा नहीं थे कि वे जब जो चाहे कर लेते. तब गाँधी ने अगर यह बात की भी तो यह बड़ी ही हास्यस्पद घटना है, और एक बेरिस्टर से ऐसी मूर्खता पूर्ण बात की कल्पना नहीं की जा सकती है. (इससे साबित होता है की वो बेरिस्टर की डिग्री के नाम पर विदेश किसी और मिशन पर गए थे)
दादी के पिता जी का वारिस दादी का पोता हो, शायद यह अजूबा दुनिया में भारत में ही मान्य हो सकता है. अधिकतर लोगों को तो अपनी दादी के पिता जी का भी नाम मालूम न होगा. दादी के पिता जी का वारिस दादी हो सकती है या दादी का पुत्र, भला पोता काहे और कैसे वारिस हो जाएगा? और वह भी बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के.
इनके नेहरु के वारिस होने की ही नहीं कुछ सिरफिरे लोग इनके गाँधी के वारिस होने की भी बात करते हैं. वह यह नहीं बताते कि ये लोग कौन से गाँधी के वारिस हैं? इन्हें उस गाँधी का पूरा नाम लेना चाहिए. यह देश तो गाँधी का मतलब मोहनदास कर्मचंद गाँधी मानता है. अगर फ़िरोज़ उर्फ छद्म गाँधी की बात कर रहे हैं तो उसका पूरा नाम क्यों नहीं लेते, कभी उसका जन्म या मृत्यु दिवस क्यों नहीं मनाते? कभी उसकी कब्र पर झाड़पूंछकर फूल पत्ते क्यों नहीं धरते? और अगर महात्मा गाँधी जी के वारिस होने की बात करते हैं तो गाँधी जी का अपना भरा पूरा परिवार है, वे दूसरों को वारिस क्यों बनाते? यह तो ऐसा हुआ जैसे कि खरगोश ऊँट का वारिस होने की ताल ठोक रिया हो.
तब प्रश्न उठता है कि फ़िरोज़, फ़िरोज़ गाँधी कैसे हो गये, और उन्हें इस उपनाम जो की गुजरात के बनिए वर्ग में प्रयुक्त होने वाले गाँधी के उपयोग की इजाज़त किसने और क्यों दी? फ़िरोज़ को अपने सही नाम पर क्यों आपत्ति हुई, और क्यों ही उसे नाम बदलने की ज़रूरत पड़ी? देश के बहुत से लोग तो आज भी यह समझते हैं कि यह कथित गाँधी परिवार महात्मा गाँधी से रिलेटेड है, जबकि ऐसा कतई नहीं है. कथित कश्मीरी पंडित की बेटी इंदिरा-फ़िरोज़ से विवाह करके गाँधी बनिया कैसे पैदा कर सकती थी? इस देश के पढ़े लिखे तबके को यह सोचना चाहिए.
राहुल के दादा फ़िरोज़ थे, और दादी कथित कश्मीरी पंडित की बेटी थी, और वह भी तीन पीढ़ी पहले. राहुल एक इटलियन लेडी और राजीव वल्द फ़िरोज़ की औलाद है, तब वह नेहरू-गाँधी परिवार का वारिश किस विधि से हो गया, इस देश के प्रबुद्ध जन इस पर विचार करे. यही नहीं कथित रूप से भी राहुल ही नेहरू-गाँधी परिवार का वारिस क्यों हुआ, मेनका-संजय का बेटा वरुण भी वारिस क्यों नहीं हुआ?
क्या इस नामकरण की साजिश में गाँधी और नेहरू भी शामिल थे? और अगर ऐसा था तो गाँधी ने इस देश के साथ बहुत बड़ा जघन्य धोखा अपराध किया है. धर्म परिवर्तन हो सकता है लेकिन दुनिया की कोई विधि-विधान जाति परिवर्तन नहीं कर सकता है, यानी कि गाँधी जी फ़िरोज़ को गुजराती बनिया गाँधी में परिवर्तित नहीं कर सकते थे, किसी प्रौढ़ फ़िरोज़ को गोद नहीं ले सकते थे. अपना भरा पूरा परिवार होते हुए भी अपना नाम किसी प्रौढ़ को दे देने का अधिकार गाँधी जी को भी प्रदत्त नहीं था.
दस्तावेज़ों के अनुसार फ़िरोज़ की कब्र इलाहाबाद के पारसी कब्रिस्तान में हैं. दूसरों की कब्र/ समाधियों पर माला टांगने वाले लोग क्यों नहीं अपने पूर्वज फ़िरोज़ की कब्र की सुध लेते हैं? शायद इसलिए कि कहीं लोग असलियत न जान जाएँ
जो लोग शासन की समझ रखते हैं वें भी जानते होंगे कि सेना प्रत्यक्ष रूप से ही युद्ध में हार जीत के निर्णय में भागीदार होती है असली जीत का भागीदार तो कोई और ही होता है. एक चार कमरे के मकान में कोई अंजान व्यक्ति फ्रीली नहीं घूम सकता. तब अरब़ अक्रांता/ अँग्रेज़ों ने कैसे इस इतने बड़े मुल्क पर फ़तह कर उसे सैकड़ों वर्ष तक गुलाम बनाए रखा? रावण जैसा विद्याधर, योद्धा क्या यूँ ही राम के हाथों हार गया, और मारा गया. जी नहीं सच यह है कि `घर का भेदी लंका ढ़ावे’ हुआ है. जीत के लिए श्रेय हमेशा सशक्त ख़ुफ़िया तंत्र के सिर होता है. हार के प्रमुख कारणों में से एक कारण, पराजित देश के देशद्रोही/ समाजद्रोही भेदियों की नकारात्मक भूमिका होती है. अगर ये देशद्रोही/ समाजद्रोही भेदिये विजयी सेना के ख़ुफ़िया तंत्र को अपने देश के राज न दें तो स्थिति ही कुछ और होती
आज इस देश में सोनिया क्या अपने बल पर अध्यक्ष बनी बैठी है? क्या उसमें इतना बूता है? तो उत्तर होगा कतई नहीं. यहाँ दो पहलू हैं एक तो यह प्रोपगॅंडा की राहुल नेहरू-गाँधी खानदान का वारिस, जैसे कि वरुण उनमें से किसी का कुछ न लगता हो. दूसरे वे कौंच के बीज इस कुकर्म में दोषी हैं जो इस देश की बर्बादी में विभीषण की भूमिका निभा रहे हैं, और सत्ता और संपत्ति के लालच में डूबे हैं.
उन विभीषणों को यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी विभीषण का नाम समाज में गाली समझा जाता हैं. वे अपने मन से अपने कुकर्मों का हिसाब लगाकर कभी ज़रूर देखे, और की तो छोड़िए उनकी आत्म ही अगर कभी जाग गयी तो उन्हें माफ़ न करेगी. किसी की आत्मा कभी जागे न जागे लेकिन मृत्यु के समय ज़रूर जागेगी, ….और उस समय उन्हें देश के समाज के साथ धोखा करने के पाप का बोध तो हो जाएगा, लेकिन तब प्रायशचित का न तो समय रहेगा, न ही शक्ति.

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे,


तारीख :- नवंबर 11, 1675.
दोपहर बाद।
स्थान :- दिल्ली का चांदनी चौंक:
लाल किले के सामने :-
मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे,
वो बिल्कुल शांत बैठे थे , प्रभु परमात्मा में लीन।
लोगो का जमघट। सब की सांसे अटकी हुई।
शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर
जी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम
बनना होगा बिना किसी जोर
जबरदस्ती के।
गुरु जी का होंसला तोड़ने के
लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए।
तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद में थे। उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी , भाई मति दास और उनके ही अनुज भाई सती दास
को बहुत कष्ट देकर शहीद
किया जा चुका था। लेकिन फिर भी गुरु जी इस्लाम अपनाने के लिए नही माने।
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था ,
क्या वो गिनती में छोटे से धर्म से हार
जायेगा।
समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडोल बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था। एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगा था।हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था।
खुद चलके आया था
औरगजेब लालकिले से निकल कर सुनहरी मस्जिद के
काजी के पास,,,
उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देने
का फतवा निकलता था..वो मस्जिद आज भी है..
गुरुद्वारा शीस गंज, चांदनी चौक दिल्ली के पास
पुरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न था. आखिरकार
जालिम जब उनको झुकाने में कामयाब
नही हुए तो जल्लाद की तलवार चल
चुकी थी। और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था।
ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़
था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदल के रख दिया। हर दिल में रोष था। कुछ समय बाद गोबिंद राय जी ने जालिम को उसी के अंदाज़ में जवाब देने के लिए खालसा पंथ का सृजन की। समाज की बुराइओं से लड़ाई ,जोकि गुरु नानक देव
जी ने शुरू की थी अब गुरु गोबिंद सिंह जी ने
उस लड़ाई को आखिरी रूप दे दिया था।
दबा कुचला हुआ निर्बल समाज अब मानसिक रूप से तो परिपक्व हो चूका था लेकिन तलवार उठाना अभी बाकी था।
खालसा की स्थापना तो गुरु नानक देव् जी ने पहले चरण के रूप में 15 शताब्दी में ही कर दी थी लेकिन आखरी पड़ाव गुरु गोबिंद
सिंह जी ने पूरा किया। जब उन्होंने निर्बल लोगो में आत्मविश्वास जगाया और उनको खालसा बनाया और इज्जत से जीना सिखाया। निर्बल और असहाय की मदद का जो कार्य उन्होंने शुरू किया था वो निर्विघ्न आज
भी जारी है।
गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की ,
उनका एहसान भारत वर्ष
को नही भूलना चाहिए । सुधीजन
जरा एकांत में बैठकर सोचें अगर गुरु तेग बहादुर जी अपना बलिदान न देते तो हर मंदिर की जगह एक मस्जिद होती और
घंटियों की जगह अज़ान सुनायी दे रही होती।
Before 24 November eh itihas hrek nu pta howe..
WAHEGURU JI KA KHALSA
WAHEGURU JI KI FATEH JI
I don’t force to share if u are true people I m sure u’ll share it.
Guru Teg Bahadar
Hind Di Chaadar.

तारीख :- नवंबर 11, 1675.
दोपहर बाद।
स्थान :- दिल्ली का चांदनी चौंक:
लाल किले के सामने :-
मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे,
वो बिल्कुल शांत बैठे थे , प्रभु परमात्मा में लीन।
लोगो का जमघट। सब की सांसे अटकी हुई।
शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर
जी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम
बनना होगा बिना किसी जोर
जबरदस्ती के।
गुरु जी का होंसला तोड़ने के
लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए।
तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद में थे। उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी , भाई मति दास और उनके ही अनुज भाई सती दास
को बहुत कष्ट देकर शहीद
किया जा चुका था। लेकिन फिर भी गुरु जी इस्लाम अपनाने के लिए नही माने।
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था ,
क्या वो गिनती में छोटे से धर्म से हार
जायेगा।
समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडोल बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था। एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगा था।हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था।
खुद चलके आया था
औरगजेब लालकिले से निकल कर सुनहरी मस्जिद के
काजी के पास,,,
उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देने
का फतवा निकलता था..वो मस्जिद आज भी है..
गुरुद्वारा शीस गंज, चांदनी चौक दिल्ली के पास 
पुरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न था. आखिरकार
जालिम जब उनको झुकाने में कामयाब
नही हुए तो जल्लाद की तलवार चल
चुकी थी। और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था।
ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़
था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदल के रख दिया। हर दिल में रोष था। कुछ समय बाद गोबिंद राय जी ने जालिम को उसी के अंदाज़ में जवाब देने के लिए खालसा पंथ का सृजन की। समाज की बुराइओं से लड़ाई ,जोकि गुरु नानक देव
जी ने शुरू की थी अब गुरु गोबिंद सिंह जी ने
उस लड़ाई को आखिरी रूप दे दिया था।
दबा कुचला हुआ निर्बल समाज अब मानसिक रूप से तो परिपक्व हो चूका था लेकिन तलवार उठाना अभी बाकी था।
खालसा की स्थापना तो गुरु नानक देव् जी ने पहले चरण के रूप में 15 शताब्दी में ही कर दी थी लेकिन आखरी पड़ाव गुरु गोबिंद
सिंह जी ने पूरा किया। जब उन्होंने निर्बल लोगो में आत्मविश्वास जगाया और उनको खालसा बनाया और इज्जत से जीना सिखाया। निर्बल और असहाय की मदद का जो कार्य उन्होंने शुरू किया था वो निर्विघ्न आज
भी जारी है।
गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की ,
उनका एहसान भारत वर्ष
को नही भूलना चाहिए । सुधीजन
जरा एकांत में बैठकर सोचें अगर गुरु तेग बहादुर जी अपना बलिदान न देते तो हर मंदिर की जगह एक मस्जिद होती और
घंटियों की जगह अज़ान सुनायी दे रही होती।
Before 24 November eh itihas hrek nu pta howe..
WAHEGURU JI KA KHALSA 
WAHEGURU JI KI FATEH JI
I don't force to share if u are true people I m sure u'll share it.
Guru Teg Bahadar 
Hind Di Chaadar.
Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

नचिकेता वाजश्रवस (उद्दालक) ऋषि के पुत्र थे।


नचिकेता वाजश्रवस (उद्दालक) ऋषि के पुत्र थे। एक बार उन्होंने विश्वजीत नामक ऐसा यज्ञ किया, जिसमें सब कुछ दान कर दिया जाता है। दान के वक्त नचिकेता यह देखकर बेचैन हुआ कि उनके पिता स्वस्थ गायों के बजाए कमजोर, बीमार गाएं दान कर रहें हैं। नचिकेता धार्मिक प्रवृत्ति का और बुद्धिमान था, वह तुरंत समझ गया कि मोह के कारण ही पिता ऐसा कर रहे हैं।

पिता के मोह को दूर करने के लिए नचिकेता ने पिता से सवाल किया कि वे अपने पुत्र को किसे दान देंगे। उद्दालक ऋषि ने इस सवाल को टाला, लेकिन नचिकेता ने फिर यही प्रश्न पूछा। बार-बार यही पूछने पर ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने कह दिया कि तुझे मृत्यु (यमराज) को दान करुंगा। पिता के वाक्य से नचिकेता को दु:ख हुआ, लेकिन सत्य की रक्षा के लिए नचिकेता ने मृत्यु को दान करने का संकल्प भी पिता से पूरा करवा लिया। तब नचिकेता यमराज को खोजते हुए यमलोक पहुंच गया। वहां यमराज और नचिकेता के बीच कई सवाल-जवाब हुए।

यम के दरवाजे पर पहुंचने पर नचिकेता को पता चला कि यमराज वहां नहीं है, फिर भी उसने हार नहीं मानी और तीन दिन तक वहीं पर बिना खाए-पिए बैठा रहा। यम ने लौटने पर द्वारपाल से नचिकेता के बारे में जाना तो बालक की पितृभक्ति और कठोर संकल्प से वे बहुत खुश हुए। यमराज ने नचिकेता की पिता की आज्ञा के पालन और तीन दिन तक कठोर प्रण करने के लिए तीन वर मांगने के लिए कहा।

तब नचिकेता ने पहला वर पिता का स्नेह मांगा। दूसरा अग्नि विद्या जानने के बारे में था। तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था।
यम ने आखिरी वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया, लेकिन नचिकेता को मृत्यु का रहस्य जानना था। अत: नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान जानते हुए नकार दिया। अंत में विवश होकर यमराज ने जन्म-मृत्यु से जुड़े रहस्य बताए।
यजुर्वेदीय कठोपनिषद में इस प्रसंग का वर्णन है ।

नचिकेता वाजश्रवस (उद्दालक) ऋषि के पुत्र थे। एक बार उन्होंने विश्वजीत नामक ऐसा यज्ञ किया, जिसमें सब कुछ दान कर दिया जाता है। दान के वक्त नचिकेता यह देखकर बेचैन हुआ कि उनके पिता स्वस्थ गायों के बजाए कमजोर, बीमार गाएं दान कर रहें हैं। नचिकेता धार्मिक प्रवृत्ति का और बुद्धिमान था, वह तुरंत समझ गया कि मोह के कारण ही पिता ऐसा कर रहे हैं।

पिता के मोह को दूर करने के लिए नचिकेता ने पिता से सवाल किया कि वे अपने पुत्र को किसे दान देंगे। उद्दालक ऋषि ने इस सवाल को टाला, लेकिन नचिकेता ने फिर यही प्रश्न पूछा। बार-बार यही पूछने पर ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने कह दिया कि तुझे मृत्यु (यमराज) को दान करुंगा। पिता के वाक्य से नचिकेता को दु:ख हुआ, लेकिन सत्य की रक्षा के लिए नचिकेता ने मृत्यु को दान करने का संकल्प भी पिता से पूरा करवा लिया। तब नचिकेता यमराज को खोजते हुए यमलोक पहुंच गया। वहां यमराज और नचिकेता के बीच कई सवाल-जवाब हुए।

यम के दरवाजे पर पहुंचने पर नचिकेता को पता चला कि यमराज वहां नहीं है, फिर भी उसने हार नहीं मानी और तीन दिन तक वहीं पर बिना खाए-पिए बैठा रहा। यम ने लौटने पर द्वारपाल से नचिकेता के बारे में जाना तो बालक की पितृभक्ति और कठोर संकल्प से वे बहुत खुश हुए। यमराज ने नचिकेता की पिता की आज्ञा के पालन और तीन दिन तक कठोर प्रण करने के लिए तीन वर मांगने के लिए कहा।

तब नचिकेता ने पहला वर पिता का स्नेह मांगा। दूसरा अग्नि विद्या जानने के बारे में था। तीसरा वर मृत्यु रहस्य और आत्मज्ञान को लेकर था।
यम ने आखिरी वर को टालने की भरपूर कोशिश की और नचिकेता को आत्मज्ञान के बदले कई सांसारिक सुख-सुविधाओं को देने का लालच दिया, लेकिन नचिकेता को मृत्यु का रहस्य जानना था। अत: नचिकेता ने सभी सुख-सुविधाओं को नाशवान जानते हुए नकार दिया। अंत में विवश होकर यमराज ने जन्म-मृत्यु से जुड़े रहस्य बताए। 
यजुर्वेदीय कठोपनिषद में इस प्रसंग का वर्णन है ।
Posted in खान्ग्रेस

हिंदू-मुसलमान-सिख, सबका नरसंहार हुआ ‘धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस’ के शासन में!


हिंदू-मुसलमान-सिख, सबका नरसंहार हुआ ‘धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस’ के शासन में!

संदीप देव। देश की सबसे बड़ी सांप्रदायिक पार्टी यदि कोई है तो वो कांग्रेस है। समय-समय पर कांग्रेस के शासनकाल में संप्रदायिक दंगे की आड़ में हिंदू-मुसलमान-सिख और यहां तक कि जनजाति समुदाय के लोगों का कत्‍लेआम हुआ। जिस सिख पंथ की स्‍थापना गुरुओं ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए की थी, उन हिंदू-सिखों के बीच भी न केवल नफरत की बीज बोने की कोशिश की, बल्कि वर्ष 1984 में 3000 से अधिक सिखों का नरसंहार कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं ने किया और इसे हिंदू-सिख दंगे का नाम दे दिया। जो मुसलमान भाजपा विरोध के लिए कांग्रेस को वोट देते हैं, उन्‍हें तो यह भी पता नहीं कि कांग्रेस के कार्यकाल में इस देश में कई ऐसे दंगे हुए जिसमें 5000 से अधिक मुसलमानों का एक झटके में नरसंहार कर दिया गया!

भाजपा के कार्यकाल में 2002 में केवल एक दंगे गुजरात में हुए, जिसमें यदि 790 मुसलमान मरे तो 254 हिंदू भी मरे। कांग्रेस, उसके द्वारा वित्‍त पोषित मीडिया, अरब फंडेड एनजीओ बिरादरी और कटटरपंथी मुल्‍ला-मौलवी ऐसी ही कई सच्‍चाईयों को केवल इसलिए दबाते रहे हैं ताकि मुस्लिम समुदाय सच्‍चाई जानकर बंधुओ वोटर की है‍सियत से आजाद न हो जाए।

चलिए अतीत की जगह वर्तमान से उठाते हैं कांग्रेस के चेहरे से नकाब
अतीत से पहले वर्तमान से ही शुरुआत करते हैं। ठीक करीब एक साल पहले जुलाई 2012 में आसाम में बंग्‍लोदशी मुसलमानों ने बड़ी संख्‍या में न केवल यहां के मूल निवासी बोडो जनजाति के लोगों के घरों पर हमला किया, बल्कि उनका कत्‍लेआम भी किया। आज भी तीन लाख से अधिक बोडो जनजाति के लोग शरणार्थी शिविर में रहने को विवश हैं। मुस्लिम वोटों के लिए आसाम की कांग्रेसी सरकार ने बंग्‍लादेशी दंगाई मुसलमानों को न केवल खुलकर दंगा करने की आजादी दी, बल्कि इसका अप्रत्‍यक्ष समर्थन करते हुए चार दिनों तक सेना को भी दंगाग्रस्‍त इलाके में तैनात नहीं किया जबकि आसाम की सच्‍चाई यह है कि वहां सेना की टुकड़ी हमेशा मौजूद रहती है। ज्ञात हो कि तरुण गोगोई के नेतृत्‍व में पिछले दो कार्यकाल से लगातार आसाम में कांग्रेस की सरकार है।

वरिष्‍ठ पत्रकार मधु पूर्णिमा किश्‍वर लिखती हैं, ‘’किसी को लाखों की संख्या में आसाम में बोडो और मुस्लिमों के दुर्भाग्य की याद है, जिन्हें जुलाई 2012 में अपने गांवों को छोड़ना पड़ा था क्योंकि उनके घरों को आग लगा दी गई थी या उन्हें नष्ट कर दिया गया था? 8 अगस्त 2012 तक करीब 400 गांवों से बेदखल होकर 4 लाख से ज्यादा लोगों को 270 राहत शिविरों में पनाह लेनी पड़ी थी। तब असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सेना की तैनाती में चार दिनों की देरी की थी, जबकि आसाम जैसे राज्य में बड़े पैमाने पर सेना की टुकडि़यां पहले से ही तैनात रहती हैं। हजारों की संख्या में लोग अभी भी शरणार्थी शिविरों में नारकीय स्थितियों में रह रहे हैं। उन दंगों को मीडिया ने क्यों भुला दिया?’’

आसाम में सेना की मौजूदगी के बाद भी कांग्रेस के मुख्‍यमंत्री तरुण गोगाई ने चार दिनों तक संप्रदायिकता का नंगा नाच चलने दिया। और यह दंगा भी किनके बीच था, बंग्‍लादेशी विदेशी मुसलमानों और भारत के मूल निवासी बोडो समुदाय के बीच। लेकिन मुस्लिम वोट बैंक के लिए आसाम में धड़ाधड़ बंग्‍लादेशी मुसलमानों को बसाती चली जा रही कांग्रेस के इशारे पर मीडिया में कहीं भी इस दंगे का जिक्र नहीं हुआ। हुआ भी तो कहीं छिटफुट। आज भी हकीकत यही है कि तीन लाख से अधिक बोडो हिंदू वहां शरणार्थी शिविरों में जीवन बसर कर रहे हैं।

इससे पहले आसाम में 1983 में हुआ था 5000 हजार मुसलमानों का नरसंहार
इसी तरह 18 फरवरी 1983 को आसाम के  नेल्‍ली(nellie massacre ) में मुसलमानों का कत्‍लेआम हुआ था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 2200 मुसलमान मारे गए जबकि उस समय की मीडिया रिपोर्ट बताती है कि करीब 5000 हजार मुसलानों का नरसंहार किया गया था। मरने वालों में कुछ स्‍थानीय और ज्‍यादातर बंग्‍लादेशी मुसलमान थे। उस समय आसाम में राष्‍ट्रपति शासन था। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी और आसाम के राज्‍यपाल ज्ञानी जैल सिंह थे। वर्ष 1983 में चुनाव आयुक्त ने कहा था कि असम में चुनाव कराने के लिए अनुकूल स्थिति नहीं है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और राजनीतिक लाभ लेने के लिए चुनाव कराए. नतीजा भारत में सबसे बड़े नरसंहार ‘नेल्ली नरसंहार’ के रूप में मिला।

मरने वालों में अधिकांश बंग्‍लादेशी मुसलमान थे। नेल्‍ली का यह दंगा नगोन जिला के 14 गांवों- Alisingha, Khulapathar, Basundhari, Bugduba Beel, Bugduba Habi, Borjola, Butuni, Indurmari, Mati Parbat, Muladhari, Mati Parbat no. 8, Silbheta, Borburi and Nellie में फैल गया था।

मलियाना में मुस्लिम युवकों को लाइन में लगाकर भून दिया गया
उप्र स्थित मेरठ के मलियाना हशीमपुरा में 19 मई 1987 में जो दंगे हुए थे उसे वरिष्‍ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने हिटलर द्वारा यहूदियों के कत्‍लेआम की संज्ञा दी है। उस दंगे में प्रशासन की ओर से पुलिस वालों ने करीब 42 मुसलम युवकों को लाइन में लगाकर गोली से उड़ा दिया और उनकी लाशों को नहर में बहा दिया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस दंगे में 51 हिंदू और 295 मुसलमान मारे गए थे। 19 मई को मुसलमानों ने 10 हिंदू युवकों की हत्‍या कर दी थी, जिसके बाद पूरा शहर दंगे की चपेट में आ गया था। उस वक्‍त केंद्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और उप्र में वीर बहादुर सिंह मुख्‍यमंत्री थे। यह दंगा भी भड़का इसलिए था कि राजीव गांधी ने शाहबानो प्रकरण में मुस्लिम वोट बैंक को सहलाने के बाद अयोध्‍या में बाबरी मंदिर का ताला खुलवा दिया था, जिससे दंगा भड़क गया।

इस केस में कुछ न होता देखकर करीब 15 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दंगे से जुड़ी फाइल वर्ष 2002 में गाजियाबाद से दिल्‍ली के तीस हजारी सेशन कोर्ट में स्‍थानांतरित किया। घटना के 26 साल बाद भी पीडि़त 36 मुसलमान परिवार आज तक न्‍याय पाने की आस में एडि़यां ही रगड़ रहे हैं।

1969 में गुजरात में कांग्रेसी शासन में योजनाबद्ध तरीके से हुआ था मुसलमानों का कत्‍लेआम
गुजरात के 1969 के दंगे को भी कौन भूल सकता है, जिसमें करीब 5000 मुसलमानों का कत्‍ले-आम हुआ था। वरिष्‍ठ पत्रकार मधु किश्‍वर ने एक गुजराती मुसलमान जफर सरेशवाला का गुजरात दंगों पर एक लंबा साक्षात्‍कार लिया है। जफर सरेशवाला के शब्‍दों में, ” अहमदाबाद में कालूपुर नाम का एक इलाका है जो कि मुस्लिम आबादी के केन्द्र में बसा हुआ है। उस लोकेलिटी में पुलिस स्टेशन रिलीफ रोड पर स्थित है। उस थाने के ठीक सामने एक ‍मस्जिद है और कई मुस्लिमों की दुकानें हैं।

1969 के दंगों में उस मस्जिद और दुकानों को जला दिया गया था। जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने दंगा प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया तब वे उस स्थान पर भी आई थीं। मुझे आज भी याद है कि मैं उस समय पांच वर्ष का था। मेरे दादाजी वहां मौजूद थे और श्रीमती गांधी अपनी कार से उतरीं और उन्होंने कहा कि यहां एक पुलिस थाना है और वह भी 40 मीटर की दूरी पर, लेकिन एक मस्जिद और मुस्लिमों की दुकानों को जला दिया गया था।

वे अपनी गाड़ी से नीचे उतरीं, उन्होंने अपने संतरियों को बुलाया और उस दूरी को नापने को कहा। उनका कहना था कि यह कैसे संभव है कि पुलिस थाने के ठीक सामने मुस्लिमों की दुकानें जला दी जाती हैं? वह भी तब राज्य में और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार हो। यह अब तक का सबसे भयानक दंगा था और 1969 के दंगों में लगभग 5000 मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से मारा गया था। पर किसी को याद है कि तब गुजरात में हितेन्द्र देसाई की कांग्रेस सरकार थी?’’

कांग्रेस के शासन में मुसलमान ही नहीं, सिखों का भी हुआ नरसंहार
इंदिरा गांधी की मौत के बाद 1984 में 3300 से अधिक सिखों का देश की राजधानी दिल्‍ली में नरसंहार हुआ। इसमें कांग्रेस के बड़े  नेता जगदीश टाइटलर, सज्‍जन कुमार जैसों का नाम आया, लेकिन 29 साल बीतने के बाद भी किसी बड़े कांग्रेसियों को आज तक सजा नहीं मिली है। हिंदू-सिख दंगा नहीं, बल्कि कांग्रेसियों द्वारा सिखों का खुला नरसंहार था। दिल्‍ली के कांग्रेसी नेताओं ने हरियाणा से ट्रक भर-भर कर अपने कार्यकर्ताओं को दिल्‍ली बुलाया था। उस वक्‍त हरियाणा में भी कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस के नेता भीड को उकसा रहे थे और कार्यकर्ता घरों में घुकर सिखों का कत्‍लेआम कर रहे थे। उस वक्‍त राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे और उन्होंने कहा था कि “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो जमीन तो हिलती ही है।” मतलब राजीव गांधी का मौन समर्थन इस सिख नरसंहार को हासिल था।

1967 के बाद से देश में सर्वाधिक दंगे कांग्रेस के कार्यकाल में ही हुए हैं
देश का इतिहास देखिए। 60 के दशक के बाद देश में करीब 16 बड़े दंगे हुए हैं जिसमें से 15 केवल कांग्रेस शासित राज्‍य या उनके सहयोगी पार्टियों के शासन काल में हुए हैं। भाजपा के शासन में केवल एक 2002 में गुजरात में दंगा हुआ है, लेकिन झूठ के शोर में आज भाजपा सांप्रदायिक और 10 हजार से अधिक लोगों का नरसंहार जिन कांग्रेसी सरकारों के शासनकाल में हुआ है वो कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष पार्टी बनी हुई है।

कांग्रेस शासन काल में जितने भी दंगे हुए हैं, सही अर्थों में वो दंगे से अधिक नरसंहार थे, जिसमें किसी एक पूरे समुदाय को न केवल प्रशासन के द्वारा बल्कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा भी कत्‍लेआम किया गया…। आइए देश में 1967 के बाद से अब तक हुए सांप्रदायिक दंगे और उस वक्‍त शासन में रही पाटियों पर डालें एक नजर…

याद रखिए गुजरात के दंगे में केवल मुसलमान ही नहीं, 254 हिंदू भी मरे थे!

 कांग्रेस पार्टी है सांप्रदायिक, मोदी नहीं!

Posted in खान्ग्रेस

राहुल गांधी ये तो बताएं कि दलित मसीहा अंबेडकर के नाम पर देश में एक भी कल्‍याणकारी योजना क्‍यों नहीं है?


राहुल गांधी ये तो बताएं कि दलित मसीहा अंबेडकर के नाम पर देश में एक भी कल्‍याणकारी योजना क्‍यों नहीं है?

संदीप देव। दलित उत्थान के लिए ‘जूपिटर इस्केप वलोसिटी’ अवधारणा देने वाले राहुल गांधी कम से कम ये तो बताएं कि 60 साल में एक भी सरकारी योजना दलितों के मसीहा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के नाम पर क्‍यों नहीं है? कभी किसी दलित के घर में खाना खा लेने या दलितों की राजनीति करने वाली मायावती को कोसने की जगह कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी यदि सरकारी योजनाओं पर एक नजर मार लेते तो उन्‍हें पता चलता कि गरीबों के कल्याण से जुड़ी सारी योजनाएं उनके ही परिवार के नाम पर है, फिर भी दलितों और गरीबों को दो वक्‍त की रोटी नसीब नहीं हो पाई है! दलित उत्‍थान में प्रतिकात्‍मक राजनीति का बहुत महत्‍व है, लेकिन जिन्‍होंने दलितों के वास्‍तविक हक की लड़ाई लड़ी उन संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर को प्रतिकात्‍मक रूप से याद रखने में भी कांग्रेस की कभी कोई दिलचस्‍पी नहीं रही है!

 

युवराज की हवा-हवाई और अंबेडकर का जूपिटर पर निर्वासन
संविधान का निर्माण हुए 60 साल से ऊपर हो चुके हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को पूरी तरह से बिसरा दिया है! और उस पार्टी के युवराज ‘इस्‍केप वलोसिटी’ की अवधारणा गढ़कर दलितों की आंखों में धूल झोंकने में जुटे हैं। कांग्रेस के युवराज ने 8 अक्‍टूबर 2013 को विज्ञान भवन में दलित उत्‍थान पर दिए अपने भाषण में कहा था कि दलितों के साथ-साथ हम सब भी अंबेडकर जी को बड़े गर्व से देखते हैं। कारण यह है कि वह पहले आदमी थे जो इस्केप वलोसिटी प्राप्त कर गए और यूएस चले गए। दलित मूवमेंट के कई स्टेज थे। पहले स्टेज में एक व्यक्ति जाति के सिस्टम से इस्केप वलोसिटी प्राप्त करके निकल गए।

उन्होंने संविधान का काम किया और कांग्रेस के साथ आरक्षण का काम किया और यह पहला स्टेज था। दूसरा स्टेज कांशीराम जी का था। कांशीराम जी ने आरक्षण से निकली एनर्जी का संगठन बनाया और बाकी लोगों को इस्केप वलोसिटी दिलवाई। अब तीसरा स्टेज है। दूसरे स्टेज में मायावती जी ने रोल प्ले किया। लेकिन मायावती जी ने दूसरे नेताओं को उभरने नहीं दिया है।’

लेकिन युवराज राहुल गांधी भूल गए उनकी पार्टी ने तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को सचमुच भारत की धरती से उठाकर जूपिटर ग्रह में फेंक दिया है! क्‍योंकि कम से कम भारत में उनके नाम पर दलित उत्‍थान की कोई भी कल्‍याणकारी योजना हमें नहीं दिखती है! ऐसा लगता है कि देश में सारा का सारा गरीब कल्‍याण ‘नेहरू-गांधी’ परिवार ने ही किया है! और हद देखिए कि नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर इतनी सारी गरीब कल्‍याणकारी योजना के होते हुए भी आज तक गरीबों का कोई कल्‍याण नहीं हुआ, तभी तो आजादी के 60 साल बाद भी लोगों को दो वक्‍त की रोटी नसीब नहीं हो सकी है और हमारे युवराज की पार्टी को खाद्य सुरक्षा का झुनझुना बजाना पड़ रहा है!

इस गांधी परिवार को जब महात्‍मा गांधी नहीं याद रहे तो अंबेडकर क्‍यों याद रहेंगे!
अब वर्ष 1985 से 2009 तक योजना आयोग ने गरीबों के लिए सात योजनाएं शुरू की है, जिसमें से नेहरू-गांधी परिवार से बाहर केवल एक ही योजना है और वो भी संशोधन के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम समिर्पत की गई है। सूचना अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक योजना आयोग के ग्रामीण विकास खंड ने आजादी के बाद से अभी तक गरीबों के कल्याण के लिए सात योजनाएं लागू की हैं। सबसे पहली योजना वर्ष 1985-86 में इंदिरा गांधी के नाम पर इंदिरा आवास योजना शुरू की गई थी। उसके तीन साल बाद वर्ष 1989 में ग्रामीण गरीब युवकों के रोजगार के लिए योजना शुरू की गई और इसे जवाहर रोजगार योजना का नाम दिया गया।

अगले दस साल तक कई सरकारें आई, लेकिन ग्रामीण गरीबों के लिए एक भी योजना नहीं बनी। वर्ष 1999 में योजना आयोग ग्रामीण विकास के लिए एक नई योजना लेकर आई, जिसे जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का नाम दिया गया। कांग्रेस के नेतृत्व में वर्ष 2004 में यूपीए-1 सरकार बनी। उस समय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद ने ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के लिए रोजगार गारंटी योजना की शुरूआत की। चूंकि रघुवंश प्रसाद राष्ट्रीय जनता दल से आते थे, इसलिए उन्होंने गांधी-नेहरू परिवार के नाम की जगह इसे सीधा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(नरेगा) नाम दिया। कांग्रेस नीत यूपीए-दो की सरकार वापस लाने में इस योजना की बड़ी भूमिका रही। बाद में विद्वानों ने इसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समिर्पत करने का दबाव दिया, जिससे इस योजना में संशोधन कर इसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा) कर दिया गया।

यूपीए-दो ने इसके बाद भी दो योजनाओं को शुरू किया, लेकिन दोनों योजनाएं फिर से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर शुरू किया गया। वर्ष 2009 में इंदिरा गांधी नेशनल विडो पेंशन स्कीम और इंदिरा गांधी नेशनल डिसेबलिटी पेंशन स्कीम को शुरू किया गया।

कांग्रेस का दलित विरोधी चेहरा सामने आया
सूचना अधिकार कार्यकर्ता गोपाल प्रसाद के अनुसार इससे यूपीए-दो ने दर्शा दिया कि गरीबों की योजनाएं केवल नेहरू और इंदिरा गांधी के नाम से ही शुरू की जा सकती हैं। इस सबके बीच दलितों के घर पर रुकने और खाना खाने के जरिए दलितों के बीच पैठ बनाने की कोशिश करने वाले राहुल गांधी और यूपीए को संविधान निर्माता बाबा साहेग की बिल्कुल भी याद नहीं आई।

इंडियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष व अनुसूचित जाति-जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के चेयरमैन डॉ॰ उदित राज ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि कांग्रेस दलित विरोधी पार्टी है और वह एक ही परिवार की परिक्रमा करना जानती है। बाबा साहेब के नाम को भूला देने वाली यह एक नई जानकारी है और इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।

Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

हिंदुओं ने ही भगवान श्रीकृष्‍ण के गीता ज्ञान को नहीं समझा!


हिंदुओं ने ही भगवान श्रीकृष्‍ण के गीता ज्ञान को नहीं समझा!

संदीप देव। मेरे पास बीसियों फोन आ चुके हैं। इसमें भाजपा नेता, पत्रकार, चुने हुए सांसद, प्रोफेशनल, बिजनसमैन, अधिकारी जैसे प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं। सब मुझसे यही पूछ रहे हैं कि ‘भाई साहब आप मोदी जी के शपथ ग्रहण समारोह में गए थे?’ कुछ ने कल फोन किया था, जब मैं जम्‍मू में था कि ”भाई साहब आपको भी मोदी जी ने आमंत्रण पत्र भेजा होगा? आपने उनके खिलाफ हुई हर साजिश को पुस्‍तक के जरिए खोला है और कहीं न कहीं बडे पैमाने पर जनमत निर्माण में अपनी भूमिका अदा की है, आपको उन्‍होंने अवश्‍य बुलाया होगा। आप बता नहीं रहे हैं!”

ताज्‍जुब है, मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर मोदी मुझे आमंत्रण पत्र क्‍यों भेजेंगे? मैं एक लेखक और पत्रकार ही तो हूं और मैंने ऐसा किया ही क्‍या है, जिससे मुझे मोदी के शपथ ग्रहण समारोह की पात्रता मिल जाती है? मोदी के खिलाफ हर साजिश को खोलती मेरी पुस्‍तक ” साजिश की कहानी-तथ्‍यों की जुबानी” मैंने पत्रकारिता धर्म और एक समाजशास्‍त्र के विद्यार्थी होने के नाते सच को सामने लाने के उददेश्‍य से लिखी थी न कि मोदी या भाजपा से किसी लाभ प्राप्‍त करने के उददेश्‍य से! यह बात मैं कोई आज कह रहा हूं, ऐसा नहीं है, बल्कि इसका स्‍पष्‍ट उल्‍लेख मेरी पुस्‍तक की प्रस्‍तावना में है।

दरअसल मनुष्‍य अपेक्षाएं इतना अधिक पाल लेता है कि वह खुद की अपेक्षा पूरी न होने पर तो दुखी होता ही है, दूसरों को भी वह उसी नजरिए से देखता है। अपेक्षाएं दुख का मूल है। जीवन में आप तभी खुश रह सकेंगे जब आपका और आपके कार्य का संबंध वृक्ष और फल के समान हो। वृक्ष न तो फल के फलने पर उसके प्रति अहसान जताता है और न ही फल ही वृक्ष को अपना स्‍वाद देता है, इसके बावजूद दोनों का एक दूसरे से अन्‍योनाश्रित संबंध है। यही कर्म और उसके परिणाम के बीच का संबंध हैं। आश्‍चर्य होता है कि भगवान श्रीकृष्‍ण ने मनुष्‍यता को गीता का इतना बड़ा ज्ञान दिया, लेकिन खुद को उस ईश्‍वर का वंशज बताने वाली हिंदू जाति ने अभी तक उनकी शिक्षाओं को न तो ठीक से समझा है और न ही जीवन में ही उतारा है!