Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

Trivia: Nehru was interviewed by Playboy adult magazine,


Trivia: Nehru was interviewed by Playboy adult magazine, and was published in January 1963

Read a small compilation of some of the misgvings of Nehru, here :
http://shankhnaad.net/index.php/nation/aryavart/national-politics/84-congress/134-article-119
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feel free to add your own, with references of course.

Trivia: Nehru was interviewed by Playboy adult magazine, and was published in January 1963

Read a small compilation of some of the misgvings of Nehru, here :
http://shankhnaad.net/…/nationa…/84-congress/134-article-119
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feel free to add your own, with references of course.

Posted in काश्मीर - Kashmir

देश के शीर्ष प्रदेश जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का नामो निशान नहीं था लेकिन लोक सभा चुनाव में घाटी में 32 फीसदी वोट मिलने के बाद बीजेपी की आगामी विधान सभा चुनाव में उम्मीदें बड़ी हैं!


देश के शीर्ष प्रदेश जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का नामो निशान नहीं था लेकिन लोक सभा चुनाव में घाटी में 32 फीसदी वोट मिलने के बाद बीजेपी की आगामी विधान सभा चुनाव में उम्मीदें बड़ी हैं! गौरतलब है बीजेपी ने इस बार लोक सभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में 6 में से 3 सीटें जीती है।बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे राज्य में जीत का सपना बुनना शुरू कर दिया है, जहां कुछ महीने पहले तक उसने जीत की कल्पना भी नहीं की थी। अब पार्टी ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 87 सीटों में से बहुमत के लिए जरूरी कम से कम 44 सीटें जीतने की योजना बनाई है। पार्टी ने इसे ही 'मिशन 44' का नाम दिया है।  
बीजेपी ने घाटी में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश तेज कर दी है। इसी के तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व विधायक की बेटी डॉक्टर हिना भट्ट को पार्टी में शामिल किया गया है। श्रीनगर के अमीराकदल विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे मोहम्मद शफी भट्ट ने 2008 में उस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस छोड़ दी थी, जब उन्हें फिर से टिकट नहीं मिला था।
हिना भट्ट का कहना है, ' बीजेपी कांग्रेस, एनसी या पीडीपी से बिल्कुल अलग है। बीजेपी का एजेंडा विकास का है। पार्टी की खुली नीतियों के कारण ही मैंने बीजेपी ज्वाइन की है।'
एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में हिना ने कहा, 'पीएम नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि वह कश्मीर मसले का हल निकाल लेंगे। वह दूरदर्शी व्यक्ति हैं।'
हिना ने कहा था नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह युवाओं के विकास के मुद्दे पर फोकस करेंगी। उनका कहना है, 'सैकड़ों युवाओं के खिलाफ मामले दर्ज हैं, उन्हें बेवजह निशाना बनाया जा रहा है। मैं उनसे बात करूंगी और सरकार से गुजारिश करूंगी कि उनके खिलाफ दर्ज केस रद्द किए जाएं। क्षेत्रीय पार्टियां धारा 370 औऱ बीजेपी के बारे में गलत प्रचार कर रही हैं, जबकि बीजेपी की जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनने की कोई योजना नहीं है।'

लेकिन हिना भट्ट की मानसिकता हिन्दुस्थान विरोधी लगती है। उसका कहना है की यदि 
धारा ३७० हटाया गया तो में बंदूक उठा लुगी !  

अरे मेडम आपको जो उठाना है  उठालेना लेकिन कान खोल के सुनलो धारा ३७० किसी भी हालत में हटेगी।  वो भी एक वर्ष में ही.
जम्मू-कश्मीर की जनता को विकास के साथ भव्य + उज्वल भविष्य चाहिए तो धारा ३७० हटाना अनिवार्य है। 

बीजेपी को ऐसी मानसिकता वाले कार्यकारको संगठन से हटाना होगा। 

वंदे मातरम् ........          

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देश के शीर्ष प्रदेश जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का नामो निशान नहीं था लेकिन लोक सभा चुनाव में घाटी में 32 फीसदी वोट मिलने के बाद बीजेपी की आगामी विधान सभा चुनाव में उम्मीदें बड़ी हैं! गौरतलब है बीजेपी ने इस बार लोक सभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में 6 में से 3 सीटें जीती है।बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे राज्य में जीत का सपना बुनना शुरू कर दिया है, जहां कुछ महीने पहले तक उसने जीत की कल्पना भी नहीं की थी। अब पार्टी ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 87 सीटों में से बहुमत के लिए जरूरी कम से कम 44 सीटें जीतने की योजना बनाई है। पार्टी ने इसे ही ‘मिशन 44’ का नाम दिया है।
बीजेपी ने घाटी में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश तेज कर दी है। इसी के तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस के पूर्व विधायक की बेटी डॉक्टर हिना भट्ट को पार्टी में शामिल किया गया है। श्रीनगर के अमीराकदल विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे मोहम्मद शफी भट्ट ने 2008 में उस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस छोड़ दी थी, जब उन्हें फिर से टिकट नहीं मिला था।
हिना भट्ट का कहना है, ‘ बीजेपी कांग्रेस, एनसी या पीडीपी से बिल्कुल अलग है। बीजेपी का एजेंडा विकास का है। पार्टी की खुली नीतियों के कारण ही मैंने बीजेपी ज्वाइन की है।’
एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में हिना ने कहा, ‘पीएम नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि वह कश्मीर मसले का हल निकाल लेंगे। वह दूरदर्शी व्यक्ति हैं।’
हिना ने कहा था नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह युवाओं के विकास के मुद्दे पर फोकस करेंगी। उनका कहना है, ‘सैकड़ों युवाओं के खिलाफ मामले दर्ज हैं, उन्हें बेवजह निशाना बनाया जा रहा है। मैं उनसे बात करूंगी और सरकार से गुजारिश करूंगी कि उनके खिलाफ दर्ज केस रद्द किए जाएं। क्षेत्रीय पार्टियां धारा 370 औऱ बीजेपी के बारे में गलत प्रचार कर रही हैं, जबकि बीजेपी की जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनने की कोई योजना नहीं है।’

लेकिन हिना भट्ट की मानसिकता हिन्दुस्थान विरोधी लगती है। उसका कहना है की यदि
धारा ३७० हटाया गया तो में बंदूक उठा लुगी !

अरे मेडम आपको जो उठाना है उठालेना लेकिन कान खोल के सुनलो धारा ३७० किसी भी हालत में हटेगी। वो भी एक वर्ष में ही.
जम्मू-कश्मीर की जनता को विकास के साथ भव्य + उज्वल भविष्य चाहिए तो धारा ३७० हटाना अनिवार्य है।

बीजेपी को ऐसी मानसिकता वाले कार्यकारको संगठन से हटाना होगा।

वंदे मातरम् ……..

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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

काँच की बरनी और दो कप चाय


~*~ काँच की बरनी और दो कप चाय ~*~

एक बोध कथा

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी – जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी
से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम
पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , ” काँच की बरनी और दो कप चाय ” हमें याद आती
है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे
आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं …

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें
टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची …
उन्होंने छात्रों से पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ …
आवाज आई …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे – धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये ,
फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा
अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे …
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ
.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा ..

सर ने टेबल के नीचे से
चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी़ सी जगह में सोख ली गई …

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ….

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और

रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या
कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी …
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है …

यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे
और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय
नहीं रहेगा …

मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने
बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ ,
घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक – अप करवाओ …
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है … पहले तय करो कि क्या जरूरी है
… बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे ..

अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया
कि ” चाय के दो कप ” क्या हैं ?

प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया …
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन
अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
,,,,,,s.r.meena

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

1857 की क्रांति का सजीव चित्रण भारत के दो किताबों में हुए है।


1857 की क्रांति का सजीव चित्रण भारत के दो किताबों में हुए है। इसमें पंडित विष्‍णु भटट गोडसे द्वारा मराठी में लिखित ‘ माझा प्रवास’ एक मात्र लाइव रिपोर्टिंग आधारित पुस्‍तक है। पंडित विष्‍णु भटट गोडसे महाराष्‍ट्र से ग्‍वालियर में होने वाले एक यज्ञ में भाग लेने के लिए चले और जब वह उत्‍तर भारत पहुंचे तो मेरठ और दिल्‍ली में क्रांति आरंभ हो चुकी थी। उन्‍होंने क्रांति के एक एक पल को अपनी आंखों से देखा था और वापस महाराष्‍ट्र लौटकर ‘ माझा प्रवास’ नामक पुस्‍तक की रचना की। वीर सावरकर द्वारा लिखित ‘1857 का स्‍वातंत्रय समर’ में भी कुछ जगहों पर उनका उल्‍लेख है, लेकिन उनका सही उल्‍लेख अमृत लाला नागर ने अपनी पुस्‍तक में किया। इस पुस्‍तक को आधार बनाकर हाल ही में हिंदुस्‍तान की पूर्व संपादक मृणाल पांडे ने अंग्रेजी व हिंदी में एक पुस्‍तक की रचना की है, जो हार्पर कॉलिंग्‍स से प्रकाशित हुई है।

1857 की क्रांति का दूसरा जीवंत चित्रण वीर सावरकर द्वारा लिखित ‘1857 का स्‍वातंत्रय समर’ में में है। सावरकर ने इस पुस्‍तक की रचना के लिए पूरी तरह से ब्रिटिश सरकार व इतिहासकारों के दस्‍तावेज का उपयोग किया है। सावरकर ने ब्रिटेन में रहकर ‘इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी’ व ‘नेशनल म्‍यूजियम लाइब्रेरी में बैठकर इस पुस्‍तक के लिए ब्रिटिश सरकार के दस्‍तावेजों व ब्रिटिश लेखकों की पुस्‍तक का अध्‍ययन किया। चूंकि यह ब्रिटिश दस्‍तावेज पर आधारित है इसलिए इसमें किया गया वर्णन स्‍वयं ब्रिटिश द्वारा ब्रिटिश क्रूरता का चित्रण है। यही वजह है कि यह दुनिया की एक मात्र पुस्‍तक बन गई, जिस पर छपने से पहले ही प्रतिबंध लग गया, क्‍योंकि इससे ब्रिटिश को अपने और भारत में छुपे अपने एजेंटों के पर्दाफाश का डर सताने लगा था। कांग्रेस की राजनीति करने वालों को कभी काला पानी की सजा नहीं मिली और एक पुस्‍तक लिखने मात्र से सावरकर पर दो जन्‍मों का कालापानी थोप दिया गया, आपके मन में इस पर कभी सवाल नहीं उठा, आखिर क्‍यों। आजाद हिंद फौज के हर सैनिक को नेताजी सुभाषचंद्र बोस यह पुस्‍तक पढने के लिए देते थे और आजाद हिंद फौज के गठन में इस पुस्‍तक का अप्रतिम योगदान रहा था।

आज की आजाद भारत की संतान ने अपने इतिहासकारों, अपने नेताओं से यह कभी नहीं पूछा कि आखिर वीर सावरकर को इस पुस्‍तक की रचना के लिए 1910 में लंदन में क्‍यों गिरफ्तार किया गया था? क्‍यों उन्‍हें दो जन्‍मों का कारावास देकर कालापानी भेज दिया गया था? क्‍यों इस पुस्‍तक के भारत में प्रवेश को रोकने के लिए अंग्रेज प्रशासन ने उस वक्‍त देश के सभी बंदरगाहों पर पहरे बैठा दिए थे? नौ महीने तक इस पुस्‍तक की मूल पांडुलिपि को खोजने में ब्रिटिश गुप्‍तचर विभाग क्‍यों लगी रही? आखिर देश में कांग्रेस की राजनीति करने वालों को क्‍यों कभी कालापानी की सजा नहीं दी गई? हमारी पीढी क्‍यों यह सवाल पूछेगी, उसे तो जो मार्क्‍सवादी विपिनचंद्रा और सुमित सरकार ने लिखकर दे दिया, उसे उसने पढ लिया!

जिस सावरकर ने 10 से 16 मई 1857 तक दिल्‍ली-मेरठ में क्रांति के दौरान हिंदू-मुस्लिम एकता का इतना सुंदर चित्रण किया है, उसे आजाद भारत में सांप्रदायिक ठहरा दिया गया, लेकिन युवा पीढी ने कभी इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश ही नहीं की! आखिर क्‍या कारण है कि 1857 की क्रांति के बाद विदेशी ए ओ हूयम ने एक कांग्रेस पार्टी का गठन किया, विदेश में पढने गए दो व्‍यक्ति आए और उस कांग्रेस पर आधिपत्‍य कर लिया और देश में पहले से स्‍वतंत्रता की लडाई लड रहे लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक जैसों को दूध की मक्‍खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया! क्‍यों अहिंसा को इतनी तरजीह दी गई कि हर क्रांतिकारी को आतंकवादी, संप्रदायवादी कह दिया गया? ….क्‍यों आप लोग सवाल नहीं पूछते? कहते हो आजाद भारत में रहता हूं तो फिर आजाद मन से सवाल क्‍यों नहीं करते….? आखिर क्‍यों?https://www.facebook.com/visionIndiaBooksClub

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

यह सनातन परंपरा से चला आया हुआ सनातन संस्कृति को मानने वाला देश जिसकी संस्कृति अक्षुण रही कभी खंडित करने का किसी ने प्रयत्न किया


यह सनातन परंपरा से चला आया हुआ सनातन संस्कृति को मानने वाला देश जिसकी संस्कृति अक्षुण रही कभी खंडित करने का किसी ने प्रयत्न किया भी तो कभी चाणक्य के नेतृत्व मे सम्राट चन्द्रगुप्त तो कभी शंकराचार्य और पुष्यमित्र शुंग ने उसे करारा जबाब दिया, भारत के सिंध के महाराजा दाहिरसेन और दिल्ली सरोवा सम्राट पृथ्बीराज चौहान की पराजय के पश्चात ऐसा नहीं था की हिन्दू समाज ने संघर्ष नहीं किया कभी महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, बंदा बैरागी जैसे लोगो ने संघर्ष किया तो कभी संत समाज रामानुजाचार्य, रामानन्द स्वामी, कबीर दास, संत रबीदास, चैतन्य महाप्रभु और शंकरदेव जैसे संतों ने अपनी संस्कृति को अक्षुण रखा ब्रिटिश शासन के समय स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विबेकानंद, सावरकर, नेताजी सुभाषचन्द्र बॉस, महर्षि अरविंद और महामना मदनमोहन मालवीय जैसे मनीषियों ने हिन्दुत्व की पताका को झुकने नहीं दिया स्वामी श्रद्धानंद जी ने तो बिछड़े हुए बंधुओं को पुनः हिन्दू धर्म मे सामील कर आदि जगद्गुरू शंकराचार्य की परंपरा की याद ताज़ा कर दी।

क्या पता था कि जिस लड़ाई को हिन्दू समाज के श्रेष्ठ जनों ने हज़ार वर्षों तक लड़ी, जिनके हाथ मे नेतृत्व आया वे हिन्दू समाज को धोखा देगे, बड़ी ही योजना वद्ध तरीके से लोकमान्य तिलक, बिपिनचंद पाल और लालालाजपत राय के शक्तिशाली, कुशल, क्षमता वाले नेतृत्व को गांधी जैसे कमजोर हाथ मे देकर हिन्दू समाज के साथ धोखा हुआ, भारत की वास्तविकता यह है कि हजारों वर्षों से पश्चिम सिंधु पार से पूर्व मे ब्रम्हपुत्र नद, उत्तर मे हिमालय से दक्षिण मे कन्याकुमारी तक यह अखंड आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान इत्यादि नामों से प्रसिद्ध इस सनातन देश का 14 अगस्त 1947 को इस आधार पर बिभाजन हो गया कि हिन्दू और मुसलमान दो राष्ट्र है इसी हिन्दू राष्ट्र मे से एक अलग पाकिस्तान का निर्माण जो इस्लामिक राष्ट्र के रूप मे खड़ा है 1851 के एक सर्वे के अनुसार (धर्मपाल) भारत की साक्षरता 80% थी 1857 की स्वतन्त्रता समर मे ब्रिटिश ने इस आंदोलन को दबाने हेतु जितने पढे-लिखे लोग थे उनका संहार किया केवल उत्तरप्रदेश और बिहार मे बीस लाख लोग मारे गए आज भी बहुत से कुएं, पीपल के बृक्ष और चौराहे मिलेगे जहां लोग बताते हैं कि इस कुएं मे सैकड़ो, इस पेड़ पर सैकड़ों और इस चौराहे पर इतने लोगों को फासी पर लटकाया गया है आज भी स्थानीय जनता उस पर पुष्पार्चन करती है, फिर भी हिन्दू समाज का संघर्ष जारी रहा भारतीय समाज पराजित नहीं हुआ।

देश बिभाजन के समय जनसंख्या अदला-बदली के समय मुसलमानों द्वारा मारे गए हिंदुओं की संख्या एक अनुमान के अनुसार कम से कम 15 लाख थी, लाखों बहनो का बलात इस्लामीकरण किया गया यह बिभाजन अप्राकृतिक था हमारे तीर्थ स्थान गुरुद्वारे, शक्तिपीठ सहित बहुत सारे देवस्थान चले गए उस समय महात्मा गांधी के हाथ नेतृत्व था हिन्दू समाज उन्हे अपना नेता मानता ही नहीं था बल्कि अंधभक्त था चारो तरफ मार-काट मचाते आठ करोण मुसलमानों के आगे अहिंसा के मोहजाल मे फसा 35 करोण हिन्दू पराजित हुआ, सच्चाई यह है कि हिंदुओं की सबसे बड़ी पराजय पानीपत के मैदान मे नहीं बल्कि 1947 के बिभाजन मे हुई, आज भी हिन्दू समाज यह भ्रम पाले बैठा है कि बिभाजन गांधी जी नहीं बल्कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के राजनैतिक भूल का परिणाम था परंतु यह कोरा अंध विश्वास है सत्य क्या है और कितना भयानक है –? 5 मार्च 1947 को कांग्रेस कि कार्यसमिति ने अपनी बैठक मे मुस्लिम लीग द्वारा बिभाजन कि अपनी मांग मनवाने के लिए पंजाब मे मचाए जा रहे हत्याकांड और अग्निकांड को ध्यान मे रखते हुए निर्णय किया गया कि पंजाब का दो भागों मे बिभाजन आवस्यक है , एक मुस्लिम -बहुल जिलों का पश्चिमी पंजाब और हिन्दू- बहुल जिलों का पूर्वी पंजाब, एक अन्य प्रस्ताव द्वारा निर्णय हुआ की उसी समय मे गठित की जा रही संबिधान सभा मे भाग लेना स्वेच्छिक है तथा यह संबिधान उन्हीं पर लागू होगा जो इसे स्वीकार करेगे, उसी प्रकार जो प्रांत या प्रदेश भारतीय संघ मे मिलना चहेगे उन्हे किसी प्रकार रोका नहीं जाएगा, (वी पी मेनेन ट्रांसफर आफ पवार,351-52 पृष्ट ) गांधी जी उसी समय बिहार दंगा ग्रस्त क्षेत्रों मे थे, उन्हे पता चला कि बिना उनकी राय के बिभाजन का निर्णय ले लिया गया है तो वे बहुत लाल-पीले हुए, बिहार से वे मार्च के अंत मे वे दिल्ली आए।

बिभाजन मेरी लास पर ——-!

मुस्लिमलीग के एक प्रमुख नेता ‘सर फिरोज खाँ नून’ ने यह धामकी दी की ”यदि गैर मुसलमानों ने आवादी की अदला-बदली मे रुकावट डाली तो चंगेज़ खाँ, हलाकू जैसी समूहिक संहार की विनास लीला की पुनरावृत्ति कर दी जाएगी, तदनुसार ही मुस्लिम लीग द्वारा ‘डायरेक्ट ऐक्सन’ के नाम पर 16 अगस्त, 1947 को कलकत्ता (नोवाखली) मे हिन्दुओ की समूहिक हत्याओं व अग्निकांडों का सूत्र पात हुआ, फिर गांधी जी बोले —”यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार करती है तो वह मेरे मृत शरीर के ऊपर होगा, जब-तक मै जीवित हूँ मै कभी विभाजन स्वीकार नहीं करुगा, यदि हो सका तो न ही मै कांग्रेस को स्वीकार करने दूंगा” (इंडिया विन्ज फ्रीडम). गांधी जी ने १२ अगस्त को लिखा की कांग्रेस के आत्म- निर्णय के सिद्धांत के वे ही जनक हैं, साथ ही यह भी लिखा ”अहिंसा पर विस्वास करने वाला मै हिंदुस्तान की एकता तभी बनाये रख सकता हूँ जब इसके सभी घटकों की स्वतंत्रता स्वीकार करूँ”, इस प्रकार की बिरोधाभाषी बातें करने वाला ब्यक्ति अन्य देश में पागल करार दिया जाता, किन्तु हिंदुओं के भारत ने उन्हे राष्ट्रपिता स्वीकार कर लिया, यह एक और बड़ी गलती थी कि जिस देश मे श्रीराम और श्रीकृष्ण राष्ट्रपिता न होकर राष्ट्र-पुत्र ही रहे, उसी देश मे कुछ लोगों ने गांधी जी को राष्ट्रपिता बना दिया ।

कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने इस गंभीर और महत्वपूर्ण समस्या पर चिंतन नहीं किया, किन्तु जुलाई -अगस्त 1947 मे विभाजन के साथ पाकिस्तानी क्षेत्रों मे हिंदुओं के ब्यापक संहार और उसका पलायन देखकर सरदार पटेल तथा कुछ नेता आबादी की अदला-बदली की आवस्यकता समझी; किन्तु गांधी, नेहरू ने यह प्रस्ताव को ठुकरा दिया, दूसरी तरफ पाकस्तानी क्षेत्र से हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा तथा योजना बद्ध तरीके से बांग्लाभाषी मुसलमानों को असम मे बसने को प्रोत्साहित किया गया, भारत सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया, उल्टे जब सरदार पटेल ने यह प्रस्ताव किया की आबादी का अदला-बदली कर ली जाय तथा भूमि का आबादी के अनुपात मे पुनर्निर्धारण हो, तो नेहरू बहुत क्रोधित हो गया, परिणाम यह हुआ कि जहां पाकिस्तान ने सभी हिन्दुओ को भारत मे धकेल दिया वहीं भारत के 70% मुसलमान यहीं रह गए गांधी, नेहरू के ही कारण हिंदुओं की इतनी बड़ी पराजय हुई जो भारतीय इतिहास के काले पन्ने मे दर्ज है जिसे आने वाला हिन्दू समाज कभी भी इन्हे माफ नहीं करेगा।

आज़ादी नहीं विभाजन——–!

हिंदुओं को स्वतन्त्रता नहीं बल्कि उनके ही देश का विभाजन मिला, जो 600 वर्षों के तुर्क, अफगान, मुगल तथा 200 वर्षों के ब्रिटिश काल मे भी नहीं हुआ था, जिसके फलस्वरूप भारत का एक तिहाई भाग इस्लामी कट्टर पंथियों के हवाले हो गया और लाखों निर्दोष, निरीह मानवों कि हत्या हुई और दो करोण ब्यक्ति बिस्थापित हुए, इस खूनी विभाजन मे सुप्रसिद्ध सत्य-अहिंसा के प्रतिमूर्ति ‘महात्मा’ गांधी की भूमिका मुस्लिम लीगी नेता मोहम्मद अली जिन्ना अथवा जवाहरलाल नेहरू से कम नहीं थी, विभाजन से पहले 600 वर्षो के इस्लामिक शासन मे इस्लामी कानून ”शरीयत” चलता था जो हमेशा मुसलमानों के पक्ष का रहता था 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी राज्य समाप्त होकर एक नए युग का सूत्रपात हुआ, इस नए युग के साथ ही हिन्दू -दासता के दूसरे अध्याय का सूत्रपात हिन्दुओ की आखो के सामने, हिन्दू जाती की सहमति से हुआ, जिसे हम आज सेकुलर के नाम से जानते हैं।

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चाचा नेहरू के कारनामों पर एक नज़र


चाचा नेहरू के कारनामों पर एक नज़र
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1) नेहरू के कपङे स्वदेशी आँदोलन के दौरान भी विलायत मेँ धुलने जाते थे
2) भगत सिँह की फाँसी को केवल एक व्यक्ति ही उसे रूकवा सकता था , वो था गांधी.. अगर इरविन
पैक्ट पर हस्ताक्षर नहीँ होते लेकिन नेहरू ने ऎसा होने नहीँ दिया और भगत सिंह को फासी चढ जाने दिया
3) नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा में भारत का विभाजन (धर्म के आधार पर)स्वीकार करके सदा के लिये अखँड भारत का सपना तोङा
4) नेहरू के कारण 10लाख लोग विभाजन के बाद साँप्रदायिक दँगोँ मेँ मारे गये ,लेकिन कांग्रेस को याद आता है केवल गुजरात
5) भारत जैसे स्वतँत्र देश का पहला गवर्नर जनरल माउँटबटेन विदेशी था ,कारण आप सब जानते हैँ
मिसेस माउँटबटेन का नाम लेना नहीँ चाहता
6) कान्ग्रेस मेँ बङे देशभक्तोँ लाला ,बाल और पाल को हासिये पर डाल खुद को प्रोजेक्ट किया नेहरू ने
7) सुभाष चँद्र बोस को पहले काँग्रेस से बाहर करवाया और फिर आजादी के बाद उनके मौत के कारणोँ की जाँच के लिये कमेटी का गठन से इँकार किया नेहरू ने
8) भारत को मिल रहे सँयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्की स्थायी सदस्यता को चीन को भेँट कर दिया गया नेहरू की मेहरबानी से
9) सरदार पटेल के लाख मना करने के बाद भी चीन के साथ पँचशील का समझौता किया नेहरू ने
10) सरदार पटेल के लाख मना करने के बाद भी पाकिस्तान को 55करोङ रू दिलवाये नेहरू ने
11) उन्हीं 55 करोङ का इस्तेमाल पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमले किये और सरदार की इच्छा के विरूद्ध नेहरू कश्मीर मसले को सुरक्षा परिषद् मेँ ले गये, जो मामला अब नासूर बन चुका है
12) भारत का पहला घोटाला’जीप घोटाला ‘के सूत्रधार थे श्री जवाहर लाल नेहरू
13) 1962 युद्ध मेँ सेनाध्यक्ष के बार बार कहने पर कि चीन हमारे सैनिकोँ को मार रहा है ,नेहरू ने
कारवाई का आदेश नहीँ दिया
14) नेहरू तो देश की सैन्य शक्ति बढ़ाने के भी खिलाफ थे , उनका यकीन भारत के निरस्त्रीकरण में था, नेहरू कभी नहीं चाहते थे कि भारत में परमाणु बम बनाए जाए..
15) हैदराबाद के निजाम ने फैसला कर लिया था कि वह पाकिस्तान के साथ जायेगा ,नेहरू ने पहले हैदराबाद में सैन्य कारवाई का विरोध किया था
16) मुझे कोई एक उदाहरण दे दे कि कब और कहाँ नेहरू ने अपनी बेटी इँदिरा को छोङकर किसी और बच्चे के लिये कुछ किया ?
वो सिर्फ अमीर परिवारो के बच्चों को ही पास बुलाते थे, तथा गरीब और मजदूरों के बच्चों को वहां फटकने नही दिया जाता था …फिर ये बाल दिवस का ढोंग क्योँ?

चाचा नेहरू के कारनामों पर एक नज़र
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1) नेहरू के कपङे स्वदेशी आँदोलन के दौरान भी विलायत मेँ धुलने जाते थे
2) भगत सिँह की फाँसी को केवल एक व्यक्ति ही उसे रूकवा सकता था , वो था गांधी.. अगर इरविन
पैक्ट पर हस्ताक्षर नहीँ होते लेकिन नेहरू ने ऎसा होने नहीँ दिया और भगत सिंह को फासी चढ जाने दिया
3) नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा में भारत का विभाजन (धर्म के आधार पर)स्वीकार करके सदा के लिये अखँड भारत का सपना तोङा
4) नेहरू के कारण 10लाख लोग विभाजन के बाद साँप्रदायिक दँगोँ मेँ मारे गये ,लेकिन कांग्रेस को याद आता है केवल गुजरात
5) भारत जैसे स्वतँत्र देश का पहला गवर्नर जनरल माउँटबटेन विदेशी था ,कारण आप सब जानते हैँ
मिसेस माउँटबटेन का नाम लेना नहीँ चाहता
6) कान्ग्रेस मेँ बङे देशभक्तोँ लाला ,बाल और पाल को हासिये पर डाल खुद को प्रोजेक्ट किया नेहरू ने
7) सुभाष चँद्र बोस को पहले काँग्रेस से बाहर करवाया और फिर आजादी के बाद उनके मौत के कारणोँ की जाँच के लिये कमेटी का गठन से इँकार किया नेहरू ने
8) भारत को मिल रहे सँयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्की स्थायी सदस्यता को चीन को भेँट कर दिया गया नेहरू की मेहरबानी से
9) सरदार पटेल के लाख मना करने के बाद भी चीन के साथ पँचशील का समझौता किया नेहरू ने
10) सरदार पटेल के लाख मना करने के बाद भी पाकिस्तान को 55करोङ रू दिलवाये नेहरू ने
11) उन्हीं 55 करोङ का इस्तेमाल पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमले किये और सरदार की इच्छा के विरूद्ध नेहरू कश्मीर मसले को सुरक्षा परिषद् मेँ ले गये, जो मामला अब नासूर बन चुका है
12) भारत का पहला घोटाला'जीप घोटाला 'के सूत्रधार थे श्री जवाहर लाल नेहरू
13) 1962 युद्ध मेँ सेनाध्यक्ष के बार बार कहने पर कि चीन हमारे सैनिकोँ को मार रहा है ,नेहरू ने
कारवाई का आदेश नहीँ दिया
14) नेहरू तो देश की सैन्य शक्ति बढ़ाने के भी खिलाफ थे , उनका यकीन भारत के निरस्त्रीकरण में था, नेहरू कभी नहीं चाहते थे कि भारत में परमाणु बम बनाए जाए..
15) हैदराबाद के निजाम ने फैसला कर लिया था कि वह पाकिस्तान के साथ जायेगा ,नेहरू ने पहले हैदराबाद में सैन्य कारवाई का विरोध किया था
16) मुझे कोई एक उदाहरण दे दे कि कब और कहाँ नेहरू ने अपनी बेटी इँदिरा को छोङकर किसी और बच्चे के लिये कुछ किया ?
वो सिर्फ अमीर परिवारो के बच्चों को ही पास बुलाते थे, तथा गरीब और मजदूरों के बच्चों को वहां फटकने नही दिया जाता था ...फिर ये बाल दिवस का ढोंग क्योँ?
Posted in हिन्दू पतन

प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण व वक्फ मंत्री आजम खां ऐतिहासिक इमारत ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित करने और उसका मुतवल्ली बनने की चाहत रखते हैं।


प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण व वक्फ मंत्री आजम खां ऐतिहासिक इमारत ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित करने और उसका मुतवल्ली बनने की चाहत रखते हैं।

वहीं राजधानी स्थित ईदगाह के इमाम खालिद रशीद फरंगी महली ने मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपकर ताजमहल परिसर की मस्जिद में पांचों वक्त नमाज पढ़ने की इजाजत देने की मांग की।

दरअसल, बुधवार को यहां आयोजित वक्फ कॉन्फ्रेंस के पहले सत्र में आजम खां मुतवल्लियों की वक्फ संपत्तियों से जुड़ी समस्याएं सुन रहे थे। इसी बीच उर्दू अनुवादकों की काहिली का जिक्र छिड़ा तो आजम ने ताज पर तंज कसा।ताजमहल को भी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में शामिल होना चाहिए। यदि हमें इसका मुतवल्ली बना दिया जाए तो भी इसका नाम मुमताजमहल नहीं, ताजमहल ही रखेंगे।

दूसरे सत्र में मुख्यमंत्री के सामने जब फरंगी महली ने माइक संभाला तो पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के कसीदे पढ़े।

फिर वक्फ से जुड़ी सरकारी इमारतें वक्फ बोर्ड को सौंपने, वक्फ संपत्तियों से अवैध कब्जे हटाकर वहां स्कूल, अस्पताल आदि बनवाने के साथ ही ताजमहल परिसर में बनी मस्जिद में पांचों वक्त नमाज पढ़ने की अनुमति मांगी।

उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व आजम खां को मांगपत्र भी सौंपा। इन सभी बातों को सुनकर लगता है कि वक्फ बोर्ड और आजम खां के इरादे कुछ और ही हैं।

" जागो और जगाओ "

https://www.facebook.com/media/set/?set=a.2864585817681.2120494.1350822074&type=3

वंदे मातरम्........

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प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण व वक्फ मंत्री आजम खां ऐतिहासिक इमारत ताजमहल को वक्फ संपत्ति घोषित करने और उसका मुतवल्ली बनने की चाहत रखते हैं।

वहीं राजधानी स्थित ईदगाह के इमाम खालिद रशीद फरंगी महली ने मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपकर ताजमहल परिसर की मस्जिद में पांचों वक्त नमाज पढ़ने की इजाजत देने की मांग की।

दरअसल, बुधवार को यहां आयोजित वक्फ कॉन्फ्रेंस के पहले सत्र में आजम खां मुतवल्लियों की वक्फ संपत्तियों से जुड़ी समस्याएं सुन रहे थे। इसी बीच उर्दू अनुवादकों की काहिली का जिक्र छिड़ा तो आजम ने ताज पर तंज कसा।ताजमहल को भी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में शामिल होना चाहिए। यदि हमें इसका मुतवल्ली बना दिया जाए तो भी इसका नाम मुमताजमहल नहीं, ताजमहल ही रखेंगे।

दूसरे सत्र में मुख्यमंत्री के सामने जब फरंगी महली ने माइक संभाला तो पहले सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के कसीदे पढ़े।

फिर वक्फ से जुड़ी सरकारी इमारतें वक्फ बोर्ड को सौंपने, वक्फ संपत्तियों से अवैध कब्जे हटाकर वहां स्कूल, अस्पताल आदि बनवाने के साथ ही ताजमहल परिसर में बनी मस्जिद में पांचों वक्त नमाज पढ़ने की अनुमति मांगी।

उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व आजम खां को मांगपत्र भी सौंपा। इन सभी बातों को सुनकर लगता है कि वक्फ बोर्ड और आजम खां के इरादे कुछ और ही हैं।

” जागो और जगाओ ”

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वंदे मातरम्……..

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यह सनातन परंपरा से चला आया हुआ सनातन संस्कृ


यह सनातन परंपरा से चला आया हुआ सनातन संस्कृति को मानने वाला देश जिसकी संस्कृति अक्षुण रही कभी खंडित करने का किसी ने प्रयत्न किया भी तो कभी चाणक्य के नेतृत्व मे सम्राट चन्द्रगुप्त तो कभी शंकराचार्य और पुष्यमित्र शुंग ने उसे करारा जबाब दिया, भारत के सिंध के महाराजा दाहिरसेन और दिल्ली सरोवा सम्राट पृथ्बीराज चौहान की पराजय के पश्चात ऐसा नहीं था की हिन्दू समाज ने संघर्ष नहीं किया कभी महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, बंदा बैरागी जैसे लोगो ने संघर्ष किया तो कभी संत समाज रामानुजाचार्य, रामानन्द स्वामी, कबीर दास, संत रबीदास, चैतन्य महाप्रभु और शंकरदेव जैसे संतों ने अपनी संस्कृति को अक्षुण रखा ब्रिटिश शासन के समय स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विबेकानंद, सावरकर, नेताजी सुभाषचन्द्र बॉस, महर्षि अरविंद और महामना मदनमोहन मालवीय जैसे मनीषियों ने हिन्दुत्व की पताका को झुकने नहीं दिया स्वामी श्रद्धानंद जी ने तो बिछड़े हुए बंधुओं को पुनः हिन्दू धर्म मे सामील कर आदि जगद्गुरू शंकराचार्य की परंपरा की याद ताज़ा कर दी।

क्या पता था कि जिस लड़ाई को हिन्दू समाज के श्रेष्ठ जनों ने हज़ार वर्षों तक लड़ी, जिनके हाथ मे नेतृत्व आया वे हिन्दू समाज को धोखा देगे, बड़ी ही योजना वद्ध तरीके से लोकमान्य तिलक, बिपिनचंद पाल और लालालाजपत राय के शक्तिशाली, कुशल, क्षमता वाले नेतृत्व को गांधी जैसे कमजोर हाथ मे देकर हिन्दू समाज के साथ धोखा हुआ, भारत की वास्तविकता यह है कि हजारों वर्षों से पश्चिम सिंधु पार से पूर्व मे ब्रम्हपुत्र नद, उत्तर मे हिमालय से दक्षिण मे कन्याकुमारी तक यह अखंड आर्यावर्त, भारत वर्ष, हिंदुस्तान इत्यादि नामों से प्रसिद्ध इस सनातन देश का 14 अगस्त 1947 को इस आधार पर बिभाजन हो गया कि हिन्दू और मुसलमान दो राष्ट्र है इसी हिन्दू राष्ट्र मे से एक अलग पाकिस्तान का निर्माण जो इस्लामिक राष्ट्र के रूप मे खड़ा है 1851 के एक सर्वे के अनुसार (धर्मपाल) भारत की साक्षरता 80% थी 1857 की स्वतन्त्रता समर मे ब्रिटिश ने इस आंदोलन को दबाने हेतु जितने पढे-लिखे लोग थे उनका संहार किया केवल उत्तरप्रदेश और बिहार मे बीस लाख लोग मारे गए आज भी बहुत से कुएं, पीपल के बृक्ष और चौराहे मिलेगे जहां लोग बताते हैं कि इस कुएं मे सैकड़ो, इस पेड़ पर सैकड़ों और इस चौराहे पर इतने लोगों को फासी पर लटकाया गया है आज भी स्थानीय जनता उस पर पुष्पार्चन करती है, फिर भी हिन्दू समाज का संघर्ष जारी रहा भारतीय समाज पराजित नहीं हुआ।

देश बिभाजन के समय जनसंख्या अदला-बदली के समय मुसलमानों द्वारा मारे गए हिंदुओं की संख्या एक अनुमान के अनुसार कम से कम 15 लाख थी, लाखों बहनो का बलात इस्लामीकरण किया गया यह बिभाजन अप्राकृतिक था हमारे तीर्थ स्थान गुरुद्वारे, शक्तिपीठ सहित बहुत सारे देवस्थान चले गए उस समय महात्मा गांधी के हाथ नेतृत्व था हिन्दू समाज उन्हे अपना नेता मानता ही नहीं था बल्कि अंधभक्त था चारो तरफ मार-काट मचाते आठ करोण मुसलमानों के आगे अहिंसा के मोहजाल मे फसा 35 करोण हिन्दू पराजित हुआ, सच्चाई यह है कि हिंदुओं की सबसे बड़ी पराजय पानीपत के मैदान मे नहीं बल्कि 1947 के बिभाजन मे हुई, आज भी हिन्दू समाज यह भ्रम पाले बैठा है कि बिभाजन गांधी जी नहीं बल्कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के राजनैतिक भूल का परिणाम था परंतु यह कोरा अंध विश्वास है सत्य क्या है और कितना भयानक है –? 5 मार्च 1947 को कांग्रेस कि कार्यसमिति ने अपनी बैठक मे मुस्लिम लीग द्वारा बिभाजन कि अपनी मांग मनवाने के लिए पंजाब मे मचाए जा रहे हत्याकांड और अग्निकांड को ध्यान मे रखते हुए निर्णय किया गया कि पंजाब का दो भागों मे बिभाजन आवस्यक है , एक मुस्लिम -बहुल जिलों का पश्चिमी पंजाब और हिन्दू- बहुल जिलों का पूर्वी पंजाब, एक अन्य प्रस्ताव द्वारा निर्णय हुआ की उसी समय मे गठित की जा रही संबिधान सभा मे भाग लेना स्वेच्छिक है तथा यह संबिधान उन्हीं पर लागू होगा जो इसे स्वीकार करेगे, उसी प्रकार जो प्रांत या प्रदेश भारतीय संघ मे मिलना चहेगे उन्हे किसी प्रकार रोका नहीं जाएगा, (वी पी मेनेन ट्रांसफर आफ पवार,351-52 पृष्ट ) गांधी जी उसी समय बिहार दंगा ग्रस्त क्षेत्रों मे थे, उन्हे पता चला कि बिना उनकी राय के बिभाजन का निर्णय ले लिया गया है तो वे बहुत लाल-पीले हुए, बिहार से वे मार्च के अंत मे वे दिल्ली आए।

बिभाजन मेरी लास पर ——-!

मुस्लिमलीग के एक प्रमुख नेता ‘सर फिरोज खाँ नून’ ने यह धामकी दी की ”यदि गैर मुसलमानों ने आवादी की अदला-बदली मे रुकावट डाली तो चंगेज़ खाँ, हलाकू जैसी समूहिक संहार की विनास लीला की पुनरावृत्ति कर दी जाएगी, तदनुसार ही मुस्लिम लीग द्वारा ‘डायरेक्ट ऐक्सन’ के नाम पर 16 अगस्त, 1947 को कलकत्ता (नोवाखली) मे हिन्दुओ की समूहिक हत्याओं व अग्निकांडों का सूत्र पात हुआ, फिर गांधी जी बोले —”यदि कांग्रेस विभाजन स्वीकार करती है तो वह मेरे मृत शरीर के ऊपर होगा, जब-तक मै जीवित हूँ मै कभी विभाजन स्वीकार नहीं करुगा, यदि हो सका तो न ही मै कांग्रेस को स्वीकार करने दूंगा” (इंडिया विन्ज फ्रीडम). गांधी जी ने १२ अगस्त को लिखा की कांग्रेस के आत्म- निर्णय के सिद्धांत के वे ही जनक हैं, साथ ही यह भी लिखा ”अहिंसा पर विस्वास करने वाला मै हिंदुस्तान की एकता तभी बनाये रख सकता हूँ जब इसके सभी घटकों की स्वतंत्रता स्वीकार करूँ”, इस प्रकार की बिरोधाभाषी बातें करने वाला ब्यक्ति अन्य देश में पागल करार दिया जाता, किन्तु हिंदुओं के भारत ने उन्हे राष्ट्रपिता स्वीकार कर लिया, यह एक और बड़ी गलती थी कि जिस देश मे श्रीराम और श्रीकृष्ण राष्ट्रपिता न होकर राष्ट्र-पुत्र ही रहे, उसी देश मे कुछ लोगों ने गांधी जी को राष्ट्रपिता बना दिया ।

कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने इस गंभीर और महत्वपूर्ण समस्या पर चिंतन नहीं किया, किन्तु जुलाई -अगस्त 1947 मे विभाजन के साथ पाकिस्तानी क्षेत्रों मे हिंदुओं के ब्यापक संहार और उसका पलायन देखकर सरदार पटेल तथा कुछ नेता आबादी की अदला-बदली की आवस्यकता समझी; किन्तु गांधी, नेहरू ने यह प्रस्ताव को ठुकरा दिया, दूसरी तरफ पाकस्तानी क्षेत्र से हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा तथा योजना बद्ध तरीके से बांग्लाभाषी मुसलमानों को असम मे बसने को प्रोत्साहित किया गया, भारत सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया, उल्टे जब सरदार पटेल ने यह प्रस्ताव किया की आबादी का अदला-बदली कर ली जाय तथा भूमि का आबादी के अनुपात मे पुनर्निर्धारण हो, तो नेहरू बहुत क्रोधित हो गया, परिणाम यह हुआ कि जहां पाकिस्तान ने सभी हिन्दुओ को भारत मे धकेल दिया वहीं भारत के 70% मुसलमान यहीं रह गए गांधी, नेहरू के ही कारण हिंदुओं की इतनी बड़ी पराजय हुई जो भारतीय इतिहास के काले पन्ने मे दर्ज है जिसे आने वाला हिन्दू समाज कभी भी इन्हे माफ नहीं करेगा।

आज़ादी नहीं विभाजन——–!

हिंदुओं को स्वतन्त्रता नहीं बल्कि उनके ही देश का विभाजन मिला, जो 600 वर्षों के तुर्क, अफगान, मुगल तथा 200 वर्षों के ब्रिटिश काल मे भी नहीं हुआ था, जिसके फलस्वरूप भारत का एक तिहाई भाग इस्लामी कट्टर पंथियों के हवाले हो गया और लाखों निर्दोष, निरीह मानवों कि हत्या हुई और दो करोण ब्यक्ति बिस्थापित हुए, इस खूनी विभाजन मे सुप्रसिद्ध सत्य-अहिंसा के प्रतिमूर्ति ‘महात्मा’ गांधी की भूमिका मुस्लिम लीगी नेता मोहम्मद अली जिन्ना अथवा जवाहरलाल नेहरू से कम नहीं थी, विभाजन से पहले 600 वर्षो के इस्लामिक शासन मे इस्लामी कानून ”शरीयत” चलता था जो हमेशा मुसलमानों के पक्ष का रहता था 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी राज्य समाप्त होकर एक नए युग का सूत्रपात हुआ, इस नए युग के साथ ही हिन्दू -दासता के दूसरे अध्याय का सूत्रपात हिन्दुओ की आखो के सामने, हिन्दू जाती की सहमति से हुआ, जिसे हम आज सेकुलर के नाम से जानते हैं।

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

भाई राजीव दिक्षीत


भाई राजीव दिक्षीत
1) 4 से 8 साल के बच्चों को कम से कम 12 से 14 घंटो की निंद जरुरी है I
2) सुबह का समय कफ का समय होता है I
3) ह्रदय से उपर और मस्तीष्क का अंतीम बिंदू यह कफ का क्षेत्र है I
4) ह्रदय से निचे नाभी तक यह पित्त का क्षेत्र है I
5) नाभी से नीचे पुरा यह वात का क्षेत्र है I
देसी गाय के आजरपर उपाय
1) गाय के जनने के समय अयन कडक होनेपर चार नींबू के रस में नील का पावडर मिलाकर अयनपर लेप करें I
2) गाय को साधारण घाव होनेपर बोरीक पावडर 1 भाग, वेसलीन 8 भाग अच्छी तरह मिलाकर घाव पर लगायें I
3) गाय को किडेवाला घाव होनेपर – तारपीन का तेल 1 भाग, नीम का तेल 8 भाग अच्छी तरह मिलाकर घाव पर लगायें I
4) गाय को मोच या सूजन पर – तारपीन का तेल 1 भाग मिठा तेल 8 भाग अच्छी तरह मिलाकर सूजनपर मालीश करें I
5) आग से जलेहुये घावपर – चूने का पाणी 1 भाग, अलसी का तेल 1 भाग, चुने की धार में अलसी का तेल मिलाये, इससे जो मरहम तयार होगा वह घावपर लगायें I
पंचगव्य का उपयोग
1) आंतो की स्वच्छता के लिए ताजे दही में जीरा, काली मिर्च, सैंधा नमक डालकर रोज खाना शुरु कर दें I
2) पेट में कृमी-जंत होनेपर देसी गाय के दूध में शहद डालकर 15 दिनतक पियें I
3) देसी गाय का गोमूत्र पिने से अनेक प्रकार के कफ रोग दूर होते है I
4) देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र का उपयोग खाज-खुजली के जगह करें I
5) क्षय के रोगीयों को देसी गाय का दूध और घी बहुत लाभदायक है I
आयुर्वेदिक घरगुती उपाय
1) मेथीदाना सेवन करने से पचनशक्ती बढ़ती है I
2) ऑसीडीटी के लीए अजवाईन तवे पर भुनकर काले नमक के साथ ले I
3) पपीते की सबजी या पका पपीता खाने से अनींद्रा रोग कम होता है I
4) हरे मीरची के साथ कोथींबीर डालकर खाने से अरुची कम होती है I
5) हररोज अंजीर खाने से अशक्तपणा कम होता है I
शेतीचे महत्त्व ::–
बिज संकरण ::-
धान्य चाळून एका आकाराचे बीज वेगळे करावेत. हे बीज पौष शुध्द ११ ते पौष वदय २ असे ७ दिवस रात्री उन्हात व चांदण्यात उघडयावर ठेवावे जेणेकरुन त्यावर चंद्रप्रकाश व दव पडेल.
त्यानंतर त्यामध्ये गायीच्या शेणाची राख कालवावी व माठामध्ये अथवा रांजणात किंवा पोत्यामध्ये ठेवून द्यावी किंवा पंचगव्यात कालवून सावलीत वाळवावे.
बेलफळ प्रत्येक पोत्यात १ ठेवल्यास किड लागत नाही. कडूलिंबाचा पाला कालवल्यासही बीज अथवा धान्य उत्तम राहते.
आपको कोई शारीरिक प्रोब्लेम हो तो Whats app पर कॉन्टॉक्ट करें 9922144444
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Krishnapriya Goshala's photo.
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