Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

आप अपने इतिहास ज्ञान से यह बता सकते हैं कि इस देश में कौन-कौन से वो शासक रहे हैं, जिन्‍होंने गौ-हत्‍या के लिए मृत्‍युदंड का विधान अपने राज्‍य में किया था।


आप अपने इतिहास ज्ञान से यह बता सकते हैं कि इस देश में कौन-कौन से वो शासक रहे हैं, जिन्‍होंने गौ-हत्‍या के लिए मृत्‍युदंड का विधान अपने राज्‍य में किया था। मीर कासिम से पहले भारत में गौ हत्‍या होती नहीं थी, इसलिए उससे पहले किसी शासक ने ऐसे कानून बनाने के बारे में सोचा भी नहीं था। देश में सबसे बड़ी सामूहिक गौ-हत्‍या मुहम्‍मद गोरी की सेना ने की थी। तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्‍वीराज चौहान को घेरने के लिए जयचंद ने मुहम्‍मद गोरी को गाय की दीवार बनाने की सलाह दी थी। तराइन के प्रथम युद्ध के समान ही जब मुहम्‍मद गोरी को तराइन के द्वितीय युद्ध में भी अपनी पराजय निश्चित प्रतीत हो रही थी तो उसने युद्ध के मैदान में एकाएक गायों को छोड़ दिया, जिसके कारण पृथ्‍वी राज व उसकी सेना एकदम से असहाय हो गई थी। पृथ्‍वीराज को बंदी बनाने के बाद उन सभी गायों की सामूहिक हत्‍या युद्ध के मैदान में ही करवा दी गई थी, जो भारत में पहला सामूहिक गौ हत्‍याकांड था।

खैर, मध्‍य काल में जिन दो शासकों ने गौर हत्‍या के लिए मृत्‍युदंड का विधान किया था, उसमें पहला, पंजाब के राजा महाराजा रणजीत सिंह थे और दूसरा आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर थे। इन दोनों के शासनकाल में गौ हत्‍या करने वालों को मृत्‍युदंड दिया जाता था। आजादी के बाद गौ हत्‍या को रोकने की मांग करने वाले 10 लाख संतों पर दिल्‍ली में गोली चलवाकर इंदिरा गांधी ने गौ-हत्‍या रोकने की जगह सामूहिक संत हत्‍या करवाई थी। उसमें करीब 3 से चार हजार संत मारे गए थे। संसद भवन के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई थी और तिहाड़ जेल संतों से भर गया था। 

वर्तमान में संयुकत राज्‍य अमेरिका और चीन ने गोमुत्र को पेटेंट करा कर यह दर्शा दिया है कि गाय के मूल स्‍थान वाली भारत भूमि पर भले ही गाय का सम्‍मान न हो, लेकिन अमेरिका-चीन उसके गुणों को समझने लगे हैं। जर्सी व विदेशी नस्‍ल की गाय से देश के गायों की नस्‍ल पहले ही बर्बाद हो चुकी है। अमेरिका ने अपने रिसर्च में यह स्‍पष्‍ट किया है कि शुद्ध भारतीय नस्‍ल की देशी गाय में 'बीटा कैसिइन ए-2 प्रोटीन' पाया जाता है, जो बेहद स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक है जबकि यूरोपीय नस्‍ल की गाय को 'बोस टोरस' श्रेणी में रखा गया है, जिसके दूध में मधुमेह यानी डायबिटीज बढ़ाने वाला प्रोटीन होता है। 

इतिहास बोध और भारतीय मानसिकता का विकास करने के लिए 'इतिहास के सच को सामने लाने की मुहिम' से अवश्‍य जुडें... धन्‍यवाद https://www.facebook.com/visionIndiaBooksClub

आप अपने इतिहास ज्ञान से यह बता सकते हैं कि इस देश में कौन-कौन से वो शासक रहे हैं, जिन्‍होंने गौ-हत्‍या के लिए मृत्‍युदंड का विधान अपने राज्‍य में किया था। मीर कासिम से पहले भारत में गौ हत्‍या होती नहीं थी, इसलिए उससे पहले किसी शासक ने ऐसे कानून बनाने के बारे में सोचा भी नहीं था। देश में सबसे बड़ी सामूहिक गौ-हत्‍या मुहम्‍मद गोरी की सेना ने की थी। तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्‍वीराज चौहान को घेरने के लिए जयचंद ने मुहम्‍मद गोरी को गाय की दीवार बनाने की सलाह दी थी। तराइन के प्रथम युद्ध के समान ही जब मुहम्‍मद गोरी को तराइन के द्वितीय युद्ध में भी अपनी पराजय निश्चित प्रतीत हो रही थी तो उसने युद्ध के मैदान में एकाएक गायों को छोड़ दिया, जिसके कारण पृथ्‍वी राज व उसकी सेना एकदम से असहाय हो गई थी। पृथ्‍वीराज को बंदी बनाने के बाद उन सभी गायों की सामूहिक हत्‍या युद्ध के मैदान में ही करवा दी गई थी, जो भारत में पहला सामूहिक गौ हत्‍याकांड था।

खैर, मध्‍य काल में जिन दो शासकों ने गौर हत्‍या के लिए मृत्‍युदंड का विधान किया था, उसमें पहला, पंजाब के राजा महाराजा रणजीत सिंह थे और दूसरा आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर थे। इन दोनों के शासनकाल में गौ हत्‍या करने वालों को मृत्‍युदंड दिया जाता था। आजादी के बाद गौ हत्‍या को रोकने की मांग करने वाले 10 लाख संतों पर दिल्‍ली में गोली चलवाकर इंदिरा गांधी ने गौ-हत्‍या रोकने की जगह सामूहिक संत हत्‍या करवाई थी। उसमें करीब 3 से चार हजार संत मारे गए थे। संसद भवन के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई थी और तिहाड़ जेल संतों से भर गया था।

वर्तमान में संयुकत राज्‍य अमेरिका और चीन ने गोमुत्र को पेटेंट करा कर यह दर्शा दिया है कि गाय के मूल स्‍थान वाली भारत भूमि पर भले ही गाय का सम्‍मान न हो, लेकिन अमेरिका-चीन उसके गुणों को समझने लगे हैं। जर्सी व विदेशी नस्‍ल की गाय से देश के गायों की नस्‍ल पहले ही बर्बाद हो चुकी है। अमेरिका ने अपने रिसर्च में यह स्‍पष्‍ट किया है कि शुद्ध भारतीय नस्‍ल की देशी गाय में ‘बीटा कैसिइन ए-2 प्रोटीन’ पाया जाता है, जो बेहद स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक है जबकि यूरोपीय नस्‍ल की गाय को ‘बोस टोरस’ श्रेणी में रखा गया है, जिसके दूध में मधुमेह यानी डायबिटीज बढ़ाने वाला प्रोटीन होता है।

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Posted in जीवन चरित्र

पंडित मदन मोहन मालवीय का वह कथन..


पंडित मदन मोहन मालवीय का वह कथन….

आज महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की पुण्‍यतिथि है। 12 नवंबर 1946 को उनका देहावसान हुआ था। मैं उन सौभाग्‍यशाली लोगों में हूं, जिसे महामना द्वारा स्‍थापित काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय से स्‍नातक करने का अवसर प्राप्‍त हुआ। पंडित जी 1886 में कांग्रेस में शामिल हुए थे। 1909 और 1918 के कांग्रेस अधिवेशनों की उन्‍होंने अध्‍यक्षता की थी। खिलाफत के पक्ष में महात्‍मा गांधी की मुस्लिम तुष्टिकरण को देखते हुए उन्‍होंने कांग्रेस छोड़ दिया था और हिंदू महासभा में सम्मिलित हो गए थे। स्‍वतंत्रता आंदोलन में उन्‍होंने कई बार जेल यात्रा की।

1875 में सर सैयद अहमदखां ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्‍थापना ‘मुहम्‍मडन एंग्‍लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की थी। धीरे धीरे यह यूनिवर्सिटी शिक्षा के केंद्र की जगह सांप्रदायिकता का केंद्र बन गया। सर सैयद अहमदखां ईस्‍ट इंडिया कंपनी में लिपिक रूप में कार्य करते थे। 1857 में हिंदू-मुस्लिम एकता को देखकर अंग्रेजों ने ही सर सैयद अहमद खां को मुस्लिमों को स्‍वतंत्रता आंदोलन से अलग रखने के लिए आगे बढाया था। पाकिस्‍तान निर्माण की सोच की परंपरा की शुरुआत सर सैयद अहमद खां से ही मानी जाती है। सर सैयद अहमद खं ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विरूध्द यह प्रचार करना शुरू कर दिया था कि कांग्रेस हिन्दूओं की पार्टी है, जो मुस्लिम लीग (1906 में स्थापित) की स्‍थापना का प्रमुख विचार बना। अहमद खां कांग्रेस से हमेशा दूर रहे और यहाँ तक कि वे आज़ादी की लड़ाई से भी हिस्सा नहीं लिया।

सर सैयद अहमद खां के प्रभाव में बढते कटर विचार और गांधी के नेतृत्‍व वाली कांग्रेस में बढते मुस्लिम तुष्टिकरण की काट के लिए ही महामना मालवीय जी ने काशी हिंदू विवि की नींब रखी थी। पेशावर से लेकर कन्‍याकुमारी तक महामना ने इसके लिए चंदा एकत्र किया था, जो उस समय करीब एक करोड़ 64 लाख रुपए हुआ था। काशी नरेश ने जमीन दी थी तो दरभंगा नरेश ने 25 लाख रुपए से सहायता की थी। वहीं हैदराबाद के निजाम ने कहा कि इस विवि से पहले ‘हिंदू’ शब्‍द हटाओ फिर दान दूंगा। महामना ने मना कर दिया तो निजाम ने कहा कि मेरी जूती ले जाओ। महामना उसकी जूति ले गए और हैदराबाद में चारमीनार के पास उसकी नीलामी लगा दी। निजाम की मां को जब पता चला तो वह बंद बग्‍घी में पहुंची और करीब 4 लाख रुपए की बोली लगाकर निजाम का जूता खरीद लिया। उन्‍हें लगा कि उनके बेटे की इज्‍जत बीच शहर में नीलाम हो रही है। ‘ मियां की जूती, मियां के सर’ मुहावरा उसी घटना के बाद से प्रचलित हो गया।

कलकत्‍ता में मोहम्‍म्‍द अली जिन्‍ना ने पाकिस्‍तान की मांग के लिए जब ‘डायरेक्‍ट एक्‍शन’ की घोषणा की थी तो महात्‍मा गांधी ने कहा कि मेरी लाश पर पाकिस्‍तान बनेगा। महात्‍मा गांधी पर भरोसा कर निर्धारित पाकिस्‍तान वाले हिस्‍से के हिंदुओं ने अपना घर-बार नहीं छोड़ा जिसके कारण केवल पूर्वी बंगाल में ही करीब 5 लाख हिंदू मार दिए गए। पंडित मदन मोहन मालवीय इससे बहुत दुखी हुए और उन्‍होंने सार्वजनिक रूप से कहा था, ” हिंदुओं तुम्‍हें तुम्‍हारी माता ने भेड-बकरियों की भांति कटने केक लिए उत्‍पन्‍न नहीं किया है। अरे, मुत मुंडमालिनी (काली माता) की संतान हो। उसके स्‍वरूप को स्‍मरण करा, अपने धर्म की रक्षा करो।” मालवीय जी पाकिस्‍तान निर्माण के प्रखर विरोधी थे। आज हम पंडित मदन मोहन मालवीय को अपनी श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। https://www.facebook.com/visionIndiaBooksClub

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक समय की बात है, जब किशोरी जी को यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकुल में माखन चोर कहलाता है


एक समय की बात है, जब किशोरी जी को यह पता चला कि कृष्ण पूरे गोकुल में माखन चोर कहलाता है तो उन्हें बहुत बुरा लगा उन्होंने कृष्ण को चोरी छोड़ देने का बहुत आग्रह किया पर जब ठाकुर अपनी माँ की नहीं सुनते तो अपनी प्रियतमा की कहा से सुनते। उन्होंने माखन चोरी की अपनी लीला को उसी प्रकार जारी रखा।

एक दिन राधा रानी ठाकुर को सबक सिखाने के लिए उनसे रूठ कर बैठ गयी। अनेक दिन बीत गए पर वो कृष्ण से मिलने नहीं आई। जब कृष्णा उन्हें मनाने गया तो वहां भी उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया। तो अपनी राधा को मनाने के लिए इस लीलाधर को एक लीला सूझी।

ब्रज में लील्या गोदने वाली स्त्री को लालिहारण कहा जाता है। तो कृष्ण घूंघट ओढ़ कर एक लालिहारण का भेष बनाकर बरसाने की गलियों में घूमने लगे। जब वो बरसाने की ऊंची अटरिया के नीचे आये तो आवाज़ देने लगे: –

मै दूर गाँव से आई हूँ, देख तुम्हारी ऊंची अटारी
दीदार की मैं प्यासी हूँ मुझे दर्शन दो वृषभानु दुलारी

हाथ जोड़ विनती करूँ, अर्ज ये मान लो हमारी
आपकी गलिन में गुहार करूँ, लील्या गुदवा लो प्यारी …

जब किशोरी जी ने यह करुण पुकार सुनी तो तुरंत विशाखा सखी को भेजा और उस लालिहारण को बुलाने के लिए कहा। घूंघट में अपने मुह को छिपाते हुए कृष्ण किशोरी जी के सामने पहुंचे और उनका हाथ पकड़ कर बोले कि कहो सुकुमारी तुम्हारे हाथ पे किसका नाम लिखूं। तो किशोरी जी ने उत्तर दिया कि केवल हाथ पर नहीं मुझे तो पूरे श्री अंग पर लील्या गुदवाना है और क्या लिखवाना है, किशोरी जी बता रही हैं: –

माथे पे मदन मोहन, पलकों पे पीताम्बर धारी
नासिका पे नटवर, कपोलों पे कृष्ण मुरारी
अधरों पे अच्युत, गर्दन पे गोवर्धन धारी
कानो में केशव और भृकुटी पे भुजा चार धारी…

छाती पे चालिया, और कमर पे कन्हैया
जंघाओं पे जनार्दन, उदर पे ऊखल बंधैया
गुदाओं पर ग्वाल, नाभि पे नाग नथैया
बाहों पे लिख बनवारी, हथेली पे हलधर के भैया….

नखों पे लिख नारायण, पैरों पे जग पालनहारी
चरणों में चोर माखन का, मन में मोर मुकुट धारी
नैनो में तू गोद दे, नंदनंदन की सूरत प्यारी
और रोम रोम पे मेरे लिखदे, रसिया रणछोर वो रास बिहारी…..

जब ठाकुर जी ने सुना कि राधा अपने रोम रोम पे मेरा नाम लिखवाना चाहती है, तो ख़ुशी से बौरा गए प्रभु। उन्हें अपनी सुध न रही, वो भूल गए कि वो एक लालिहारण के वेश में बरसाने के महल में राधा के सामने ही बैठे हैं। वो खड़े होकर जोर जोर से नाचने लगे और उछलने लगे।

उनके इस व्यवहार से किशोरी जी को बड़ा आश्चर्य हुआ की इस लालिहारण को क्या हो गया। और तभी उनका घूंघट गिर गया और ललिता सखी ने उनकी सांवरी सूरत का दर्शन हो गया और वो जोर से बोल उठी कि ये तो वही बांके बिहारी ही है….!!!

अपने प्रेम के इज़हार पर किशोरी जी बहुत लज्जित हो गयी और अब उनके पास कन्हैया को क्षमा करने के आलावा कोई रास्ता न था। उधर ठाकुर भी किशोरी का अपने प्रति अपार प्रेम जानकार गद्गद गद्गद हो गए…..

” जय जय श्रीराधे !!!!! “

Posted in हिन्दू पतन

इसाइयों को इंग्लिश आती है तो वे बाइबल पढ़ लेते है…


इसाइयों को इंग्लिश आती है तो वे बाइबल पढ़ लेते है…
उसी प्रकार मुस्लिमों को उर्दू आती है तो वे कुरान पढ़
लेते है…
सिखों को पंजाबी आती है तो वे गुरुग्रंथ पढ़ लेते है…
हिन्दुओ को संस्कृत आती नही और वे न वेद पढ़ पाते है न
उपनिषद…
इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा किसी धर्म का ??
देश की परम्परागत संस्कृति के लिए यह एक बड़ी और
अफसोसनाक घटना है.
क्या इसकी एक वजह हिंदू समाज द्वारा संस्कृत भाषा के
प्रति बढ़ती वितृष्णा ही नहीं है?
इस देश में आज संस्कृत भाषा भाषियों की तादाद कुल बावन
हजार है.
लगभग एक सौ बीस करोड़ में कुल बावन हजार संस्कृत
भाषा भाषी !
आखिर हम अपनी किस महान संस्कृति पर गर्व करते हैं?
किस महानता पर मुग्ध होते हैं?
संस्कृत भाषा और साहित्य इस देश के हिंदू समाज
का महत्वपूर्ण अतीत है.
वेदों से लेकर रामायण, महाभारत के
अलावा पुराण तथा काव्य साहित्य संस्कृत में ही रहा है.
लेकिन विचित्र बात है कि समूचे देश में
वाराणसी जैसे एकाध स्थानों को छोड़ कर संस्कृत भाषा में
लिखने-पढ़ने वाले लोग
बिरले ही मिलेंगE

Sent by अर्जुन प्रजापति