हमारे-आपके पूर्वजों ने जिन ‘भंगी’ और ‘मेहतर’ जाति को अस्पृश्य करार दिया, जिनका हाथ का छुआ तक आज भी बहुत सारे हिंदू नहीं खाते, जानते हैं वो हमारे आपसे कहीं बहादुर पूर्वजों की संतान हैं। मुगल काल में ब्राहमणों व क्षत्रियों को दो रास्ते दिए गए, या तो इस्लाम कबूल करो या फिर हम मुगलों-मुसलमानों का मैला ढोओ। आप किसी भी मुगल किला में चले जाओ वहां आपको शौचालय नहीं मिलेगा।
हिंदुओं की उन्नत सिंधू घाटी सभ्यता में रहने वाले कमरे से सटा शौचालय मिलता है, जबकि मुगल बादशाह के किसी भी महल में चले जाओ, आपको शौचालय नहीं मिलेगा, जबकि अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहां जैसे मुगल बादशाह को वास्तुकला का मर्मज्ञ ज्ञाता बताया है। लेकिन सच यह है कि अरब के रेगिस्तान से आए दिल्ली के सुल्तान और मुगल को शौचालय निर्माण तक का ज्ञान नहीं था। दिल्ली सल्तनत से लेकर मुगल बादशाह तक के समय तक पात्र में शौच करते थे, जिन्हें उन ब्राहमणों और क्षत्रियों और उनके परिजनों से फिकवाया जाता था, जिन्होंने मरना तो स्वीकार कर लिया था, लेकिन इस्लाम को अपनाना नहीं।
‘भंगी’ का मतलब जानते हैं आप्…। जिन ब्राहमणों और क्षत्रियों ने मैला ढोने की प्रथा को स्वीकार करने के उपरांत अपने जनेऊ को तोड़ दिया, अर्थात उपनयन संस्कार को भंग कर दिया, वो भंगी कहलाए। और ‘मेहतर’- इनके उपकारों के कारण्ा तत्कालिन हिंदू समाज ने इनके मैला ढोने की नीच प्रथा को भी ‘महत्तर’ अर्थात महान और बड़ा करार दिया था, जो अपभ्रंश रूप में ‘मेहतर’ हो गया। भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या-14 फीसदी हो गई। आपने सोचा कि ये 13 प्रतिशत की बढोत्तरी 150-200 वर्ष के मुगल शासन में कैसे हो गई।
वामपंथियों का इतिहास आपको बताएगा कि सूफियों के प्रभाव से हिंदुओं ने इस्लाम स्वीकार किया, लेकिन गुरुतेगबहादुर, उनके बेटों, उनके शिष्यों का बलिदान का सबूत हमारे समक्ष है, जिसे वामपंथी इतिहासकार केवल छूते हुए निकल जाते हैं। गुरु तेगबहादुरर के 650 शिष्यों को इस्लाम न स्वीकार करने के कारण आम जनता के समक्ष आड़े से चिड़वा दिया गया, फिर गुरु को खौलते तेल में डाला गया और आखिर में उनका सिर कलम करवा दिया गया। भारत में इस्लाम का विकास इस तरह से हुआ। इसलिए जो हिंदू डर के मारे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए, उन्हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं, जो हिंदू मरना स्वीकार कर लिया, वह पूरा का पूरा परिवार काट डाला गया और जो हिंदू नीच मैला ढोने की प्रथा को स्वीकार कर लिया, वह भंगी और मेहतर कहलाए।
डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं, ” अनुसूचित जाति उन्हीं बहादुर ब्राहण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला।”
क्या आप सभी खुद को हिंदू कहने वाले लोग उस अनुसूचित जाति के लोगों को आगे बढ़कर गले लगाएंगे, उनसे रोटी-बेटी का संबंध रखेंगे। यदि आपने यह नहीं किया तो समझिए, हिंदू समाज कभी एक नहीं हो पाएगा और एक अध्ययन के मुकाबले 2061 से आप इसी देश में अल्पसंख्यक होना शुरू हो जाएंगे। इस पर अगले पोस्ट में प्रकाश डालूंगा।
इसलिए भारतीय व हिंदू मानसिकता का विकास कीजिए और अपने सच्चे इतिहास से जुडि़ए, इसकी सदस्यता लेकर, इतिहास की सच्चाई सामने लाने के लिए एक दबाव समूह का निर्माण कीजिए, औरंगजेब के नाम पर स्थित सड़क के नाम को बदलवाने के लिए एक संगठित समूह का निर्माण कीजिए, इतिहास आधारित देश की पहली पत्रिका की सदस्यता लीजिए- आखिर आप ही लोगों के कहने पर यह अभियान शुरू किया गया है, इसलिए आप लोग अब पीछे मत हटिए..https://www.facebook.com/visionIndiaBooksClub
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अत्रि त्रि मेहतर लाम अलीशिंग नदी और आलींगार नदी द्वारा बनाई गई वादी में जलालाबाद शहर से ४७ किमी पश्चिमोत्तर में स्थित है। यहाँ ‘लाम’ नामक इस्लामी हस्ती को समर्पित एक ज़ियारत (मस्जिद) है जो नूह के पिता माने जाते हैं। इस्लाम में नूह ( نوح, Noah) एक पैग़म्बर थे जिन्होनें अब्राहिमी धर्मों (इस्लाम, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म) की धर्मकथाओं के अनुसार एक विश्वव्यापी जल-प्रलय में धरती की सभी भिन्न प्राणी-जातियों को बचाया था। माना जाता है कि पास के एक पहाड़ पर उनके द्वारा चलाई गई नौका आकर रुकी थी और यहीं की एक वादी का नाम ‘नूह की वादी’ (दर्रा-ए-नूह) है।[1] पश्तो, फ़ारसी, पंजाबी और पुरानी हिन्दी में ‘मेहतर’ शब्द का मतलब ‘राजकुंवर’ या ‘मुखिया’ हुआ करता था।
http://hi.m.wikipedia.org/…/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B9… -
अत्रि त्रि प्रख्यात साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अनेक वर्ष शोध के बाद पाया कि जिन्हें “भंगी”, “मेहतर” आदि कहा गया,वे क्षत्रिय थेस्टेनले राइस ने अपने पुस्तक “हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स” में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे जातियां भी हैं, जो विजेताओं से हारीं और अपमानित हुईं तथा जिनसे विजेताओं ने अपने मनमाने काम करवाए थे। संयोगवश लखनऊ के उत्साही समाजसेवी श्री अच्छेलाल वाल्मीकि तथा हरिजन सेवक संघ, दिल्ली के पण्डित चिन्तामणि वाल्मीकि, एम.ए. की बातों से मुझे स्टेनले राइस के कथन का सत्याभास मिला। पण्डित चिन्तामणि वाल्मीकि (राउत मेहतर) ने मुझे एक पुस्तक “पतित प्रभाकर” अर्थात् “मेहतर जाति का इतिहास” पढ़ने को दी। यह पुस्तक गाजीपुर के श्री देवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने सन् 1925 में लिखी थी और इसे चिन्तामणि जी के पितामह श्रीमान वंशीराम राउत (मेहतर), मिलमिल तालाब, गाजीपुर, ने 1931 में अपने खर्च से प्रकाशित करवाया था। इस छोटी-सी पुस्तक में “भंगी”, “मेहतर”, “हलालखोर”, “चूहड़” आदि नामों से जाने गए लोगों की किस्में दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं (पृ. 22-23)
नाम जाति भंगी- वैस, वैसवार, बीर गूजर (बग्गूजर), भदौरिया, बिसेन, सोब, बुन्देलिया, चन्देल, चौहान, नादों, यदुबंशी, कछवाहा, किनवार-ठाकुर, बैस, भोजपुरी राउत, गाजीपुरी राउत, गेहलौता (ट्राइब एण्ड कास्ट आफ बनारस)।
मेहतर, भंगी, हलाल, खरिया, चूहड़- गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक (तक्षक), गेहलोत, चन्देल, टिपणी। इन जातियों के जो यह सब भेद हैं, वह सबके सब क्षत्री जाति के ही भेद या किस्म हैं। (देखिए ट्राइब एण्ड कास्ट आफ बनारस, छापा सन् 1872 ई.)
राजपूत – (8) गेहलोत (7) कछवाहा (14) चौहान (16) भदौरिया (26) किनवार (27) चन्देल (29) सकरवार (31) वैस (39) विसेन (53) यदुवंशी (99) बुन्देला (48) बड़गूजर पन्ना (222) पन्ना (235) दजोहा या जदुवंशी गूजर पन्ना (248) राउत।
जब भंगी या मेहतर जाति का भेद राजपूतों के जाति-भेद या किस्म से बिल्कुल मिलता है तो अब इनके क्षत्रिय होने में क्या संदेह है! (लेखक महादेव सिंह चंदेल, बनारस।)
(अमृत लाल नागर कृत “नाच्यौ बहुत गोपाल” की भूमिका का अंश
http://panchjanya.com/arch/2006/1/22/File13.htmप्रख्यात साहित्यकार अमृत लाल नागर ने अनेक वर्ष शोध के बाद पाया कि जिन्हें “भंगी”, “मेहतर” आदि कहा गया,
वे क्षत्रिय थे
स्टेनले राइस ने अपने पुस्तक “हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स” में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे जातियां भी हैं, जो विजेताओं से हारीं और अपमानित हुईं तथा जिनसे विजेताओं ने अपने मनमाने काम करवाए थे। संयोगवश लखनऊ के उत्साही समाजसेवी श्री अच्छेलाल वाल्मीकि तथा हरिजन सेवक संघ, दिल्ली के पण्डित चिन्तामणि वाल्मीकि, एम.ए. की बातों से मुझे स्टेनले राइस के कथन का सत्याभास मिला। पण्डित चिन्तामणि वाल्मीकि (राउत मेहतर) ने मुझे एक पुस्तक “पतित प्रभाकर” अर्थात् “मेहतर जाति का इतिहास” पढ़ने को दी। यह पुस्तक गाजीपुर के श्री देवदत्त शर्मा चतुर्वेदी ने सन् 1925 में लिखी थी और इसे चिन्तामणि जी के पितामह श्रीमान वंशीराम राउत (मेहतर), मिलमिल तालाब, गाजीपुर, ने 1931 में अपने खर्च से प्रकाशित करवाया था। इस छोटी-सी पुस्तक में “भंगी”, “मेहतर”, “हलालखोर”, “चूहड़” आदि नामों से जाने गए लोगों की किस्में दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं (पृ. 22-23)
नाम जाति भंगी- वैस, वैसवार, बीर गूजर (बग्गूजर), भदौरिया, बिसेन, सोब, बुन्देलिया, चन्देल, चौहान, नादों, यदुबंशी, कछवाहा, किनवार-ठाकुर, बैस, भोजपुरी राउत, गाजीपुरी राउत, गेहलौता (ट्राइब एण्ड कास्ट आफ बनारस)।
मेहतर, भंगी, हलाल, खरिया, चूहड़- गाजीपुरी राउत, दिनापुरी राउत, टांक (तक्षक), गेहलोत, चन्देल, टिपणी। इन जातियों के जो यह सब भेद हैं, वह सबके सब क्षत्री जाति के ही भेद या किस्म हैं। (देखिए ट्राइब एण्ड कास्ट आफ बनारस, छापा सन् 1872 ई.)
राजपूत – (8) गेहलोत (7) कछवाहा (14) चौहान (16) भदौरिया (26) किनवार (27) चन्देल (29) सकरवार (31) वैस (39) विसेन (53) यदुवंशी (99) बुन्देला (48) बड़गूजर पन्ना (222) पन्ना (235) दजोहा या जदुवंशी गूजर पन्ना (248) राउत।
जब भंगी या मेहतर जाति का भेद राजपूतों के जाति-भेद या किस्म से बिल्कुल मिलता है तो अब इनके क्षत्रिय होने में क्या संदेह है! (लेखक महादेव सिंह चंदेल, बनारस।)
(अमृत लाल नागर कृत “नाच्यौ बहुत गोपाल” की भूमिका का अंश)
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