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“जानिए ‘ताजमहल’ नहीं, हिंदुआें के तेजोमहालय का 850 वर्ष पुराना सच्चा इतिहास”


“जानिए ‘ताजमहल’ नहीं, हिंदुआें के तेजोमहालय का 850 वर्ष पुराना सच्चा इतिहास”

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‘ताजमहल’ वास्तु मुसलमानों की नहीं, अपितु वह मूलतः हिंदुओं की है । वहां इससे पूर्र्व भगवान शिवजी का मंदिर था, यह इतिहास सूर्यप्रकाश के जितना ही स्पष्ट है। मुसलमानों ने इस वास्तुको ताजमहल बनाया।

ताजमहल इससे पूर्र्व शिवालय होने का प्रमाण पुरातत्व विभाग के अधिकारी, अन्य पुरातत्वतज्ञ, इतिहास के अभ्यासक तथा देश विदेश के तज्ञ बताते हैं । मुसलमान आक्रमणकारियों की दैनिकी में (डायरी) भी उन्होंने कहा है कि ताजमहल हिंदुओं की वास्तु है । तब भी मुसलमान इस वास्तु पर अपना अधिकार जताते हैं । शिवालय के विषयमें सरकार के पास सैकडों प्रमाण धूल खाते पडे हैं ।

सरकार इस पर कुछ नहीं करेगी । इसलिए अब अपनी हथियाई गई वास्तु वापस प्राप्त करने हेतु यथाशक्ति प्रयास करना ही हिंदुओं का धर्म कर्तव्य है । ऐसी वास्तुएं वापस प्राप्त करने हेतु एवं हिंदुओं की वास्तुओं की रक्षाके लिए ‘हिंदु राष्ट्र’ अनिवार्य है !

ताजमहल हिंदुओं का शिवालय होने के और भी स्पष्ट प्रमाण !

प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मुजुमदारके मतका समर्थन करनेवाले प्रमाण आगे दिए हैं ।

1. ताजमहल के प्रमुख गुंबज के कलश पर त्रिशूल है, जो शिवशस्त्र के रूप में प्रचलित है ।

2. मुख्य गुंबज के उपर के छतपर एक संकल लटक रही है । वर्तमान में इस संकल का कोई उपयोग नहीं होता; परंतु मुसलमानोंके आक्रमण से पूर्व इस संकल को एक पात्र लगाया जाता था, जिसके माध्यम से शिवलिंग पर अभिषेक होता था ।

3. अंदर ही २ मंजिलका ताजमहल है । वास्तव समाधि एवं रिक्त समाधि नीचे की मंजिल पर है, जबकि २ रिक्त कबरें प्रथम मंजिल पर हैं । २ मंजिलवाले शिवालय उज्जैन एवं अन्य स्थानपर भी पाए जाते हैं ।

4. मुसलमानों की किसी भी वास्तु में परिक्रमा मार्ग नहीं रहता; परंतु ताजमहल में परिक्रमा मार्ग उपलब्ध है ।

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

अपनी कई ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाने वाले मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में ही शाहजहां की बेगम मुमताज की असली कब्र है


स्नेही स्वजनों,स्वागत एवं सुमंगल कामना~~~~~~~~~~~^~~~~~~~~~~~~

अपनी कई ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाने वाले मध्यप्रदेश के बुरहानपुर
जिले में ही शाहजहां की बेगम मुमताज की असली कब्र है।
बुरहानपुर में अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देने के दौरान मुमताज की मृत्यु हो
गई थी।
इसके बाद उन्हें छह महीने तक यहीं दफनाया गया।
जिसके बाद उनकी कब्र को आगरा ले जाया गया।

जैनाबाद में है असली कब्र

सम्राट शाहजहां की बेगम मुमताज की मौत न तो आगरा में हुई और न ही उसे
वहां दफनाया गया।
असल में मुमताज की मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की जैनाबाद तहसील
में हुई थी।
मुमताज की कब्र ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है।

तिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब
शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर आ गया था।

उन दिनों मुमताज गर्भवती थी।
सात जून 1631 में बच्चे को जन्म देते समय उसकी मौत हो गई।
दूसरे दिन गुरुवार की शाम उसे वहीँ आहुखाना के बाग में दफना दिया गया।
यह इमारत आज भी खस्ता हाल में है।
इतिहासकारों के मुताबिक मुमताज की मौत के बाद शाहजहां का मन हरम में
नहीं रम सका।
कुछ दिनों के भीतर ही उसके बाल सफ़ेद हो गए।
बादशाह जब तक बुरहानपुर में रहे नदी में उतरकर बेगम की कब्र पर हर जुमेरात
को वहां गए।
जिस जगह मुमताज की लाश रखी गई थी उसकी चारदीवारी में दीये जलाने के
लिए आले बने हैं।
यहां 40 दिन तक दीये जलाए गए।
कब्र के पास एक इबादतगाह भी मौजूद है।
एक दिन उसने मुमताज की कब्र पर हाथ रखकर कसम खाई कि तेरी याद में एक
ऐसी इमारत बनवाऊंगा,जिसके बराबर की दुनिया में दूसरी नहीं होगी।
बताते हैं कि शाहजहां की इच्छा थी कि ताप्ती नदी के तट पर ही मुमताज की स्मृति
में एक भव्य इमारत बने।
शाहजहां ने ईरान से शिल्पकारों को जैनाबाद बुलवाया।
शिल्पकारों ने ताप्ती नदी के का निरीक्षण कर इस जगह पर कोई इमारत बनाने
से मना कर दिया।
तब शहंशाह ने आगरा की और रुख किया।

बुरहानपुर के जैनाबाद से मुमताज के जनाजे को एक विशाल जुलूस के साथ आगरा
ले जाया गया और ताजमहल के गर्भगृह में दफना दिया गया।
जुलूस पर उस समय आठ करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

बुरहानपुर में ही असली कब्र

बुहरानपुर स्टेशन से लगभग दस किलोमीटर दूर शहर के बीच बहने वाली ताप्ती
नदी के उस पर जैनाबाद (फारुकी काल),जो कभी बादशाहों की शिकारगाह
(आहुखाना) हुआ करता था।
दक्षिण का सूबेदार बनाने के बाद शहजादा दानियाल ने इस जगह को अपने पसंद
के अनुरूप महल,हौज, बाग-बगीचे के बीच नहरों का निर्माण करवाया।
लेकिन 8 अप्रेल 1605 को मात्र तेईस साल की उम्र मे सूबेदार की मौत हो गई।
इसके बाद आहुखाना उजड़ने लगा।
जहांगीर के शासन काल में अब्दुल रहीम खानखाना ने ईरान से खिरनी एवं
अन्य प्रजातियों के पौधे मंगवाकर आहुखाना को फिर से ईरानी बाग के रूप में
विकसित कराया।
इस बाग का नाम शाहजहां की पुत्री आलमआरा के नाम पर रखा गया।

बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हामिद लाहौरी साहब के मुताबिक शाहजहां की
प्रेयसी मुमताज महल की जब प्रसव के दौरान मौत हो गई तो उसे यहीं पर स्थाई
रूप से दफ़न कर दिया गया था।

जिसके लिए आहुखाने के एक बड़े हौज़ को बंद करके तल घर बनाया गया और
वहीँ पर मुमताज के जनाजे को छह माह रखने के बाद शाहजहां का बेटा शहजादा
शुजा,सुन्नी बेगम और शाह हाकिम वजीर खान,मुमताज के शव को लेकर बुहरानपुर
के इतवारागेट-दिल्ली दरवाज़े से होते हुए आगरा ले गए,,
जहां पर यमुना के तट पर स्थित राजा मान सिंह के पोते राजा जय सिंह के बाग में
में बने तेजो महालय (ताजमहल) में सम्राट शाहजहां की प्रेयसी एवं पत्नी मुमताज
महल के जनाजे को दोबारा दफना दिया गया।
— भाष्कर प्रस्तुति,,,
============

सदा सुमंगल,,,वंदेमातरम,,,
जय श्री राम

संजय कुमार वन्देमातरम्'s photo.
Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

पाकिस्तान के शहर मुल्तान में हिन्दूओ का प्राचीन सूर्य मंदिर था


पाकिस्तान के शहर मुल्तान में हिन्दूओ का प्राचीन सूर्य मंदिर था जिसका जिक्र ग्रीक इतिहासकार Herodotus ने 450 BC में किया, और चीनी यात्री Hsuen Tsang ने लिखा की मूर्ति खालिस सोने की बनी हुई थी और दो बड़े लाल माणिक भी जड़े हुए थे. दरवाजे और खम्भे भी सोने और चांदी से बने हुए थे.मंदिर में बुध और शिव की मुर्ति भी स्थापित थी. 8 वी सदी में उमय्यद खिलाफत के हमलावर बिन कासिम ने मंदिर को जम कर लूटा पर मूर्ति को वैसे रहने दिया और हिन्दुओ को अपमानित करने खातिर मूर्ति पर गाय मांस लटका दिया ( सोर्स – Al- Hind: The slave kings and the Islamic conquest., Volume 1.) सन 1026 में महमद गजनवी ने मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया.

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अक्षय फल देनेवाली ‘आँवला नवमी’


अक्षय फल देनेवाली ‘आँवला नवमी’ → 1 नवम्बर, 2014

इस दिन आँवला के पेड़ के नीचे दिया जलाकर पूजन कर “ॐ धात्रयै नमः” इस मंत्र का जप करने से तथा अनाज के दान से अक्षय फल प्राप्त होता है ।

कार्तिक शुक्ल नवमी ‘अक्षय नवमी’ तथा ‘आँवला नवमी’ कहते है |
अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है |
इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष माहात्म्य है |
पूजन में कपूर या घी के दीपक से आँवले के वृक्ष की आरती करनी चाहिए तथा निम्न मंत्र बोलते हुये इस वृक्ष की प्रदक्षिणा करने का भी विधान है :

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च |
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ||

इसके बाद आँवले के वृक्ष के नीचे पवित्र ब्राम्हणों व सच्चे साधक-भक्तों को भोजन कराके फिर स्वयं भी करना चाहिए |
घर में आंवलें का वृक्ष न हो तो गमले में आँवले का पौधा लगा के अथवा किसी पवित्र, धार्मिक स्थान, आश्रम आदि में भी वृक्ष के नीचे पूजन कर सकते है |

— with जया शर्मा किशोरी and 99 others.

अक्षय फल देनेवाली ‘आँवला नवमी’ → 1 नवम्बर, 2014

इस दिन आँवला के पेड़ के नीचे दिया जलाकर पूजन कर "ॐ धात्रयै नमः" इस मंत्र का जप करने से तथा अनाज के दान से अक्षय फल प्राप्त होता है ।

कार्तिक शुक्ल नवमी ‘अक्षय नवमी’ तथा ‘आँवला नवमी’ कहते है |
अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है |
इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष माहात्म्य है |
पूजन में कपूर या घी के दीपक से आँवले के वृक्ष की आरती करनी चाहिए तथा निम्न मंत्र बोलते हुये इस वृक्ष की प्रदक्षिणा करने का भी विधान है :

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च |
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ||

इसके बाद आँवले के वृक्ष के नीचे पवित्र ब्राम्हणों व सच्चे साधक-भक्तों को भोजन कराके फिर स्वयं भी करना चाहिए |
घर में आंवलें का वृक्ष न हो तो गमले में आँवले का पौधा लगा के अथवा किसी पवित्र, धार्मिक स्थान, आश्रम आदि में भी वृक्ष के नीचे पूजन कर सकते है |
Posted in रामायण - Ramayan

इस लेख को पढ़ने के बाद बताओ कि मैं हथियार क्यों ना उठाऊँ


संजय कुमार वन्देमातरम् इस लेख को पढ़ने के बाद बताओ कि मैं हथियार क्यों ना उठाऊँ ? तथाकित बुद्धिजीवियों और सेकुलरों की भाषा में कहूँ तो “मैं हिन्दू आतंकवादी, भगवा आतंकी क्यों ना बनूँ ? • 1-रामायण एक काल्पनिक कहानी है। :- जवाहर लाल नेहरु, गवर्नर जनरल राजा जी • 2- रामायण और महाभारत मात्र कहानी हैं। :- तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सी.राजगोपालाचार ी • 3- राम मात्र एक काल्पनिक पात्र था। :- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि • 4- राम पियक्कड़ था। :- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि • 5- कौन था यह राम? किस इंजीनियरिंग काॅलेज से उसने पढ़ाई की? क्या उसके प्रमाण हैं? :- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि • 6- हिमालय और गंगा जितना बड़ा सत्य हैं राम का चरित्र उतना ही झूठा है। :- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि • 7- भगवान राम इस देश में पैदा ही नहीं हुए थे और रामायण काल्पनिक है।इस धरती पर राम का कभी कोई अशतित्तव ही नहीं रहा। :- कांग्रेस की केन्द्र सरकार का सुप्रिम कोर्ट में हलफ़नामा • 8- भारत माता और देवी देवताओं के नंगे चित्र बनाए। :- एम एफ हुसैन • 9- अमरनाथ यात्रा पाँखड है। :- अग्निवेश • 10- हिन्दुओं के आराध्य देवों ब्रह्म,विष्णु,महेश का उपहास उड़ाया। :- कुमार विश्वास • 11- शिव,कान्हा और दुर्गा माँ का असभ्य और फूहड़ वर्णन किया गया। :- इग्नू के पाठ्यक्रम में • 12- भारत माँ डायन है। :- आज़म खान,समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं कैबिनेट मंत्री • 13- भारत माता डायन है। :- तस्लीमुद्दीन औवेशी • 14-भगवान शिव को अपशब्द कहा। :- शाहरुख़ खान • 15-क्रष्ण के अश्तित्व पर सवाल उठाए जाते हैं। • 16- मंदिरों में घंटी बजाने पर रोक लगाई जाती है। • 17- सरस्वती वंदना को साम्प्रदायिक कहा जाता है। • 18- वंदे मातरम को साम्प्रदायिक कहा जाता है। • 19- केरल में कोई भी रिक्शा चालक अपने रिक्शे पर भगवान का नाम नहीं लिख सकता। • 20-भारत माँ की जय को साम्प्रदायिक कहा जाता है। • 21- जय श्री राम के उद्घोष को साम्प्रदायिक कहा जाता है। • अब भी किसी का ख़ून ना खौले ख़ून नहीं वो पानी है, जो अपने देश और धर्म के काम ना आए बेकार वो जवानी है।।

Posted in Sai conspiracy

मुस्लिम साई के माध्यम से हिन्दूओ के मंदिरो को हड़पने का वक्फ बोर्ड का भीषण षड्यन्त्र ::


मुस्लिम साई के माध्यम से हिन्दूओ के मंदिरो को हड़पने का वक्फ बोर्ड का भीषण षड्यन्त्र ::

हिन्दूओ की अपार धन-सम्पदा कुछ प्रख्यात मूर्ख भ्रमित हिन्दूओ द्वारा मुस्लिमो को पीर-फकीर-हाजी-चिश्ती-शरीफ दरगाहों मे जाती है ये सभी जिहादी थे जिनका मुख्य कार्य तलवार के ज़ोर पर हिन्दूओ का इस्लाम मे धर्म परिवर्तन करना और इसमे ये सफल भी हुए | इन्होने हिन्दूओ की माँ –बहनो की अस्मिता को तार-तार किया , उनका शील भंग किया ,उनका बलात्कार किया |आज मूर्ख हिन्दू इनहि बलात्कारियों की दरगाहों पर दुआ माँगने जाता है |

समय बदला और जिहाद का तरीका भी बदला मानव जिहाद से लव जिहाद और फिर भक्ति जिहाद |मुस्लिम साई की भक्ति , भक्ति जिहाद का ही रूप है | इसके माध्यम से ये जहाँ हिन्दूओ का इस्लाम मे धर्म परिवर्तन आसानी से कर रहे है |वही शिर्डी साई पर चढ़ने वाला हिन्दूओ का धन भी जिहादी गतिविधियो मे लग रहा है |इसी कारण शिर्डी ट्रस्ट को कई बार भंग भी किया जा चुका है | साई संध्या , श्रद्धा सबूरी के नाम से अल्लाह –अल्लाह की कव्वालिया हिन्दूओ को हाथ उठा कर गवाई जा रही है |

शिर्डी साई ट्रस्ट की एक मात्र प्रमाणित पुस्तक “साई सतचरित्र” के अनुसार यह पूर्णत: सिद्ध हो चुका है कि साई कोई हिन्दू संत या साधू नहीं था अपितु मुस्लिम व्यक्ति था इसलिए उसे फकीर कहते थे | साई अपनी जिह्वा पर सदैव अल्लाह मालिक का उच्चारण रखता था | मांसाहारी , बकरा हलाली , नशेड़ी , कुकर्मी और दुष्चरित्र का मुस्लिम व्यक्ति था |मुस्लिम और अरब देशो द्वारा बहुत सारा धन मुस्लिम साई के प्रचार मे खर्च किया जा चुका है और आगे भी किया जा रहा है |

हिन्दूओ को भ्रमित करने के लिए कई Movies और Seriales भी बनाए गए है जिसमे उसके मुस्लिम चरित्र को छिपा करके किसी संत के तरह चरित्र को प्रस्तुत किया जा रहा है | हिन्दूओ को भ्रमित करने के लिए साई-राम , साई-श्याम ,साई-माँ ,साई-शिव जैसे शब्दो का उपयोग मुल्ले साई के साथ किया जा रहा है |

जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही है कि श्री P N Oak जी के अनुसार ताजमहल , तेजोमहालय (http://ia700502.us.archive.org/14/items/HindiBooksOfP.n.Oak/TajMahalMandirBhavanHei.pdf
,http://ia600502.us.archive.org/14/items/HindiBooksOfP.n.Oak/TajMahalTejoMahalayaSivaMandirHei.pdf) है किसी मुमताज़ की कब्र नहीं किन्तु मुस्लिमो ने इस पर अपना कब्जा कर रखा है |वक्फ बोर्ड भारत के सभी मंदिरो मे मुस्लिम साई की मूर्ति स्थापित होने का इंतजार कर रहा है और यह काम बहुत तेजी से हो भी रहा है |जिस दिन भारत के सभी मंदिरो मे मुल्ले साई कि मूर्ति स्थापित हो जाएगी |

रामेश्वरम,तिरुपति से लेकर वैष्णोदेवी , अमरनाथ तक उस दिन वक्फ बोर्ड मुस्लिम साई पर अपना अधिकार ठोक देगा |हिन्दूओ के सभी मंदिरो पर उनकी जमीन ,उसके धन पर वक्फ बोर्ड का एक मात्र अधिकार हो जाएगा |फिर उसी जमीन और करोड़ो के धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियो मे किया जाएगा |ISIS आतंकी संगठन के भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के सपने को पूरा किया जाएगा |सेकुलर हिन्दू तो अपना खतना करवाने के लिए पहले से ही तैयार बैठा ही है |इसलिए कट्टर हिन्दू जाग जाये |

जय सियाराम 
धर्मो रक्षति रक्षितः 
धर्म की रक्षा करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा
धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो |

पेज से भी जुडें :- (y) Shirdi Sai Baba - भारत के इतिहास का सबसे बड़ा पाखंड
(:_:)
!!ओ३म् !!

मुस्लिम साई के माध्यम से हिन्दूओ के मंदिरो को हड़पने का वक्फ बोर्ड का भीषण षड्यन्त्र ::

हिन्दूओ की अपार धन-सम्पदा कुछ प्रख्यात मूर्ख भ्रमित हिन्दूओ द्वारा मुस्लिमो को पीर-फकीर-हाजी-चिश्ती-शरीफ दरगाहों मे जाती है ये सभी जिहादी थे जिनका मुख्य कार्य तलवार के ज़ोर पर हिन्दूओ का इस्लाम मे धर्म परिवर्तन करना और इसमे ये सफल भी हुए | इन्होने हिन्दूओ की माँ –बहनो की अस्मिता को तार-तार किया , उनका शील भंग किया ,उनका बलात्कार किया |आज मूर्ख हिन्दू इनहि बलात्कारियों की दरगाहों पर दुआ माँगने जाता है |

समय बदला और जिहाद का तरीका भी बदला मानव जिहाद से लव जिहाद और फिर भक्ति जिहाद |मुस्लिम साई की भक्ति , भक्ति जिहाद का ही रूप है | इसके माध्यम से ये जहाँ हिन्दूओ का इस्लाम मे धर्म परिवर्तन आसानी से कर रहे है |वही शिर्डी साई पर चढ़ने वाला हिन्दूओ का धन भी जिहादी गतिविधियो मे लग रहा है |इसी कारण शिर्डी ट्रस्ट को कई बार भंग भी किया जा चुका है | साई संध्या , श्रद्धा सबूरी के नाम से अल्लाह –अल्लाह की कव्वालिया हिन्दूओ को हाथ उठा कर गवाई जा रही है |

शिर्डी साई ट्रस्ट की एक मात्र प्रमाणित पुस्तक “साई सतचरित्र” के अनुसार यह पूर्णत: सिद्ध हो चुका है कि साई कोई हिन्दू संत या साधू नहीं था अपितु मुस्लिम व्यक्ति था इसलिए उसे फकीर कहते थे | साई अपनी जिह्वा पर सदैव अल्लाह मालिक का उच्चारण रखता था | मांसाहारी , बकरा हलाली , नशेड़ी , कुकर्मी और दुष्चरित्र का मुस्लिम व्यक्ति था |मुस्लिम और अरब देशो द्वारा बहुत सारा धन मुस्लिम साई के प्रचार मे खर्च किया जा चुका है और आगे भी किया जा रहा है |

हिन्दूओ को भ्रमित करने के लिए कई Movies और Seriales भी बनाए गए है जिसमे उसके मुस्लिम चरित्र को छिपा करके किसी संत के तरह चरित्र को प्रस्तुत किया जा रहा है | हिन्दूओ को भ्रमित करने के लिए साई-राम , साई-श्याम ,साई-माँ ,साई-शिव जैसे शब्दो का उपयोग मुल्ले साई के साथ किया जा रहा है |

जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही है कि श्री P N Oak जी के अनुसार ताजमहल , तेजोमहालय (http://ia700502.us.archive.org/14/items/HindiBooksOfP.n.Oak/TajMahalMandirBhavanHei.pdf
,http://ia600502.us.archive.org/14/items/HindiBooksOfP.n.Oak/TajMahalTejoMahalayaSivaMandirHei.pdf) है किसी मुमताज़ की कब्र नहीं किन्तु मुस्लिमो ने इस पर अपना कब्जा कर रखा है |वक्फ बोर्ड भारत के सभी मंदिरो मे मुस्लिम साई की मूर्ति स्थापित होने का इंतजार कर रहा है और यह काम बहुत तेजी से हो भी रहा है |जिस दिन भारत के सभी मंदिरो मे मुल्ले साई कि मूर्ति स्थापित हो जाएगी |

रामेश्वरम,तिरुपति से लेकर वैष्णोदेवी , अमरनाथ तक उस दिन वक्फ बोर्ड मुस्लिम साई पर अपना अधिकार ठोक देगा |हिन्दूओ के सभी मंदिरो पर उनकी जमीन ,उसके धन पर वक्फ बोर्ड का एक मात्र अधिकार हो जाएगा |फिर उसी जमीन और करोड़ो के धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियो मे किया जाएगा |ISIS आतंकी संगठन के भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के सपने को पूरा किया जाएगा |सेकुलर हिन्दू तो अपना खतना करवाने के लिए पहले से ही तैयार बैठा ही है |इसलिए कट्टर हिन्दू जाग जाये |

जय सियाराम
धर्मो रक्षति रक्षितः
धर्म की रक्षा करो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा
धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो |

पेज से भी जुडें :- Shirdi Sai Baba – भारत के इतिहास का सबसे बड़ा पाखंड
(:_:)
!!ओ३म् !!

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दिल्ली के चावड़ी बाजार में स्थित जामा मस्जिद हिंदुस्तान की सबसे बड़ी औ सुंदर मस्जिद है


दिल्ली के चावड़ी बाजार में स्थित जामा मस्जिद हिंदुस्तान की सबसे बड़ी औ सुंदर मस्जिद है. सन 1656 में जब यह बनकर तैयार हुई तो कहा जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां प्रसन्न होने के साथ-साथ चिंतित भी थे. उन्हें समझ में नहीं आता था कि इस भव्य मस्जिद का इमाम किसे बनाया जाए. शाहजहां की इच्छा थी कि इस विशेष मस्जिद का इमाम भी विशेष हो. एक ऐसा इंसान जो पवित्र, ज्ञानी, और हर लिहाज़ से श्रेष्ठ हो. उज्बेकिस्तान के बुखारा शाह ने शाहजहां को एक ऐसे ही व्यक्ति के बारे में बताया. इसके बाद शाहजहां के बुलावे पर उज्बेकिस्तान के बुखारा से आए सैयद अब्दुल गफ्फूर शाह बुखारी जामा मस्जिद के पहले इमाम बने. उन्हें उस वक्त इमाम-उल-सल्तनत की उपाधि दी गई. आज उसी परिवार के सैयद अहमद बुखारी जामा मस्जिद के 13वें इमाम हैं.

सैयद अब्दुल गफ्फूर शाह बुखारी को जामा मस्जिद का पहला इमाम बनाते वक्त शाहजहां को जरा भी इल्म नहीं होगा कि उस पवित्र व्यक्ति की आने वाली किसी पीढ़ी और जामा मस्जिद के भावी इमाम पर इमामत छोड़कर सियासत करने, जामा मस्जिद का दुरुपयोग करने, इसके आस-पास के इलाके में लगभग समानांतर सरकार चलाने की कोशिश करने और कानून को अपनी जेब में रखकर घूमने जैसे आरोप लगाए जाएंगे.

18 मई, 2013 को दिल्ली की एक अदालत ने सन 2004 में सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अली फहमी के घर पर जानलेवा हमला कराने के आरोप में इमाम अहमद बुखारी को गिरफ्तार करके पेश करने का आदेश जारी किया. हालांकि इमाम अहमद बुखारी के लिए यह कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी कई मौकों पर अदालतें उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे चुकी हैं. मगर वे कभी अदालत में पेश नहीं हुए.

इससे जरा ही पहले जामा मस्जिद के बिजली बिल का विवाद भी सामने आया था. जामा मस्जिद पर चार करोड़ रुपये के करीब बिजली बिल बकाया है. इमाम का कहना है कि इस बिल को भरना वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी है. जबकि वक्फ बोर्ड का कहना था कि चूंकि मस्जिद और उसके सभी संसाधनों पर इमाम बुखारी का नियंत्रण है और इससे उन्हें जबरदस्त आमदनी होती है इसलिए बिजली बिल भी उन्हें ही भरना चाहिए.

बिल्कुल हाल ही की बात करें तो इमाम बुखारी उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और पिछले से पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का साथ देने के बाद अब राष्ट्रीय लोक दल के शीर्ष नेताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं. जानकारों के मुताबिक समाजवादी पार्टी से उनकी नाराजगी की वजह उनके निकट रिश्तेदारों को प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण ओहदे नहीं दिया जाना है.

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बुखारी परिवार की यात्रा आज से करीब साढे़ तीन दशक पहले तक बिना किसी विवाद के चली आ रही थी. सैकड़ों सालों से. इस पवित्र परिवार के राजनीति में हस्तक्षेप करने की शुरुआत वर्तमान इमाम के पिता अब्दुल्ला बुखारी के कार्यकाल में हुई जिसने अहमद बुखारी तक आते-आते हर तरह की सीमाओं को लांघ दिया. आज हालत यह है कि इमाम अहमद बुखारी राजनीति में अवसरवादिता की हद तक जाने के अलावा और भी तमाम तरह के गंभीर आरोपों के दायरे में हैं.

बुखारी परिवार के वर्तमान को समझने के लिए करीब 36 साल पहले के उसके अतीत में चलते हैं. सन 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ फतवा देकर मुसलमानों से जनता पार्टी को समर्थन देने की अपील वह पहली घटना थी जिसने जामा मस्जिद के इमाम का एक दूसरा पक्ष लोगों के सामने रखा. धार्मिक गुरु के इस राजनीतिक फतवे से भारतीय राजनीति में जो हलचल पैदा हुई वह आगे जाकर और बढ़ने वाली थी. इससे पहले तक इमाम और राजनीति के बीच सिर्फ दुआ-सलाम का ही रिश्ता हुआ करता था. सन 1977 की इस घटना के बाद जामा मस्जिद राजनीति का एक प्रमुख केंद्र बन गया. अब यहां राजनेता तत्कालीन इमाम से राजनीति के दांव-पेंचों पर चर्चा करते देखे जा सकते थे. जैसे-जैसे मस्जिद में राजनीतिक चर्चा के लिए आनेवाले नेताओं की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे यहां शुक्रवार को होने वाले इमाम के संबोधनों का राजनीतिक रंग भी गाढ़ा होता गया. ‘कांग्रेस लाई फिल्मी मदारी, हम लाए इमाम बुखारी’ जैसे नारे 1977 की उस चुनावी फिजा में खूब गूंजे जो बुखारी की भूमिका और प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए काफी थे.

कई मौकों पर अदालतें बुखारी को गिरफ्तार करने का आदेश दे चुकी हैं. लेकिन पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की कभी हिम्मत नहीं कर पाई चुनाव में इंदिरा गांधी हार गईं और जनता पार्टी की सरकार बनी. इंदिरा की हार का कारण चाहे जो रहा हो लेकिन इसने इमाम को अपनी मजबूत राजनीतिक हैसियत के भाव से सराबोर कर दिया. 1977 के बाद अगले आम चुनावों में इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने जनता पार्टी के बजाय इंदिरा के लिए समर्थन का फतवा जारी किया. उन्होंने कहा कि इंदिरा ने जामा मस्जिद से अपने किए की माफी मांग ली है इसलिए हम उनका समर्थन कर रहे हैं.

खैर चुनाव हुआ और उसमें इंदिरा विजयी रहीं. जानकार बताते हैं कि इन दो चुनावों के कारण इमाम अब्दुल्ला बुखारी की ऐसी छवि बन गई कि वे जिसे चाहें उसे जितवा सकते हैं. उस दौर के गवाह रहे लोग बताते हैं कि यहीं से मुसलमानों को रिझाने के लिए बड़े-बड़े राजनेता जामा मस्जिद शीश नवाने पहुंचने लगे.

जानकारों का एक वर्ग मानता है कि इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने अधिकांश मौकों पर हवा का रुख देखकर फतवा जारी किया. मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार सलीम अख़्तर सिद्दीकी कहते हैं, ’77 में आपातकाल में हुईं ज्यादतियों को लेकर कांग्रेस के प्रति लोगों में जबरदस्त रोष था. खासकर मुसलमान जबरन नसबंदी को लेकर बहुत ज्यादा नाराज थे. ऐसे में यदि अब्दुल्ला बुखारी कांग्रेस को वोट देने की अपील करते तो मुसलमान उनकी बात नहीं सुनते. ऐसा ही 1980 के चुनाव में भी हुआ. इस चुनाव में अब्दुल्ला बुखारी ने देखा कि आपातकाल की जांच के लिए गठित शाह आयोग द्वारा इंदिरा गांधी से घंटों पूछताछ की वजह से इंदिरा गांधी के प्रति देश की जनता में हमदर्दी पैदा हो रही है. उन्होंने मुसलमानों से कांग्रेस को वोट देने की अपील कर दी. यही बात 1989 के लोकसभा चुनावों में भी दोहराई गई.’
खैर, पार्टियों की जीत का कारण चाहे जो रहा हो लेकिन इन चुनाव परिणामों ने धीरे-धीरे इमाम के राजनीतिक प्रभुत्व को स्थापित किया और छोटे-बड़े राजनेता और राजनीतिक दल जामा मस्जिद के सामने कतारबंद होते चले गए. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इमाम बनने के बाद एक लंबे समय तक सैय्यद अब्दुल्ला बुखारी राजनीति से जुड़ी हर चीज से दूर रहे थे. लंबे समय से बुखारी परिवार को देखने वाले और अब्दुल्ला बुखारी के बेहद नजदीक रहे उर्दू अखबार सेक्यूलर कयादत के संपादक कारी मुहम्मद मियां मजहरी कहते हैं, ‘अब्दुल्ला बुखारी राजनीतिक तबीयत वाले व्यक्ति हैं लेकिन उनके अब्बा सियासी आदमी नहीं थे. यही कारण है कि जब तक वे जिंदा रहे तब तक अब्दुल्ला बुखारी राजनीति से दूर रहे. लेकिन अब्बा के इंतकाल के बाद उन्होंने इमामत के साथ ही सियासत में भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया.’
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सैयद शहाबुद्दीन कहते हैं, ‘यहीं से जामा मस्जिद का राजनीतिक स्वार्थ के लिए प्रयोग शुरू हुआ. अब्दुल्ला बुखारी के बाद उनके बेटे अहमद बुखारी ने इस नकारात्मक परंपरा को न सिर्फ आगे बढ़ाया बल्कि और मजबूत किया.’ अब्दुल्ला बुखारी द्वारा जामा मस्जिद के राजनीतिक दुरुपयोग का एक उदाहरण देते हुए शहाबुद्दीन कहते हैं, ‘इंदिरा गांधी के जमाने में जब वे बतौर प्रधानमंत्री 15 अगस्त को लालकिले से भाषण दिया करती थीं तो उसको कांउटर करते हुए जामा मस्जिद से अब्दुल्ला बुखारी ने भाषण देना शुरू कर दिया था. ये पहली बार था. जब लालकिले से पीएम के भाषण के खिलाफ कोई उसके सामने स्थित जामा मस्जिद से हुंकार भर रहा था.’

बुखारी परिवार के राजनीति में हस्तक्षेप करने की शुरुआत वर्तमान इमाम के पिता अब्दुल्ला बुखारी के कार्यकाल में हुई पिता के सामने राजनेताओं को रेंगते और हाथ जोड़कर आशीर्वाद देने की अपील करते नेताओं को देखकर अहमद बुखारी को भी धीरे-धीरे जामा मस्जिद और उसके इमाम की धार्मिक और राजनीतिक हैसियत का अहसास होता चला गया. ऐसे में अहमद बुखारी भी पिता की छत्रछाया में राजनीति को नियंत्रित करने की अपनी महत्वाकांक्षा के साथ सियासी मैदान में कूद पड़े. 1980 में अहमद बुखारी ने आदम सेना नामक एक संगठन बनाया. इसका प्रचार एक ऐसे संगठन के रूप में किया गया जो मुसलमानों की अपनी सेना थी और हर मुश्किल में, खासकर सांप्रदायिक शक्तियों के हमले की स्थिति में, उनकी रक्षा करेगी. लेकिन बुखारी के तमाम प्रयासों के बाद भी इस संगठन को आम मुसलमानों का समर्थन नहीं मिला. वरिष्ठ पत्रकार वदूद साजिद कहते हैं, ‘मुस्लिम समाज की तरफ से इस सेना को ना में जवाब मिला. समर्थन न मिलता देख अहमद बुखारी ने इस योजना को वहीं दफन कर दिया.’

जानकार बताते हैं कि बुखारी की यह सेना भले ही समर्थन के ऑक्सीजन के अभाव में चल बसी लेकिन उसने अन्य सांप्रदायिक शक्तियों के लिए खाद-पानी का काम जरूर किया. उस समय संघ परिवार के लोग यह कहते पाए गए कि देखिए, भारतीय मुसलमान अपनी अलग सेना बना रहा है. हिंदू धर्म और हिंदुओं पर खतरे की बात चारों तरफ प्रचारित की गई. ऐसा कहते हैं कि बजरंग दल के गठन के पीछे की एक बड़ी वजह आदम सेना भी थी.

सन 2000 में अहमद बुखारी जामा मस्जिद के इमाम बने. एक भव्य समारोह में उनकी दस्तारबंदी की गई. तब अहमद बुखारी पर इस बात का भी आरोप लगा कि उन्होंने अपने पिता से जबरन अपनी दस्तारबंदी करवाई है. नाम न छापने की शर्त पर परिवार के एक करीबी व्यक्ति कहते हैं, ‘उन्हें अपनी दस्तारबंदी कराने की हड़बड़ी इसलिए थी कि उन्हें लगता था कि यदि इससे पहले उनके वालिद का इंतकाल हो जाता है तो कहीं उनके भाई भी इमाम बनने का सपना ना देखने लगें.’ दस्तारबंदी के कार्यक्रम में मौजूद लोग भी बताते हैं कि कैसे उस कार्यक्रम में बड़े इमाम अर्थात अब्दुल्ला बुखारी को जामा मस्जिद तक एंबुलेंस में लाया गया था. उन्हें स्ट्रेचर पर मस्जिद के अंदर ले जाया गया था.

खैर, अहमद बुखारी जामा मस्जिद के इमाम बन गए. इमाम बनने के बाद बुखारी ने पहली घोषणा एक राजनीतिक दल बनाने की की. बुखारी का उस समय बयान था, ‘हम इस देश में सिर्फ वोट देने के लिए नहीं हैं, कि वोट दें और अगले पांच साल तक प्रताड़ित होते रहें. हम मुसलमानों की एक अलग राजनीतिक पार्टी बनाएंगे.’ एक राजनेता कहते हैं, ‘बड़े इमाम साहब के समय में भी नेता उनके पास वोट मांगने जाते थे लेकिन वो वोट के बदले कौम की भलाई करने की बात करते थे. लेकिन इन इमाम साहब के समय में ये हुआ है कि नेता वोट के बदले क्या और कितना लोगे जैसी बातें करने लगे.’ बुखारी परिवार को बेहद करीब से जानने वाले वरिष्ठ स्तंभकार फिरोज बख्त अहमद कहते हैं, ‘वर्तमान इमाम के पिता बेहद निडर और ईमानदार आदमी हुआ करते थे. समाज में उनका प्रभाव था, स्वीकार्यता थी, विश्वसनीयता थी लेकिन इनके साथ ऐसा नहीं रहा.’

खैर, समय बढ़ने के साथ ही अहमद बुखारी के राजनीतिक हस्तक्षेप की कहानी और गहरी व विवादित होती गई. उन पर यह आरोप लगने लगा कि वे व्यक्तिगत फायदे के लिए किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन कर सकते हैं. राजनीतिक-सामाजिक गलियारों में यह बात बहुत तेजी से फैल गई कि बुखारी के समर्थन की एक ‘कीमत’ है जिसे चुकाकर बेहद आराम से कोई भी उनका फतवा अपने पक्ष में जारी करा सकता है.

इसे समझने के लिए 2012 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में बुखारी की भूमिका को देखा जा सकता है. चुनाव में अहमद बुखारी ने समाजवादी पार्टी को समर्थन देने की बात की. यह भी उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनावों और 2009 के लोकसभा चुनावों में बुखारी ने सपा का विरोध किया था. कुछ समय पहले तक सपा को सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले इमाम साहब ने जब मुलायम को समर्थन का एलान किया तभी इस बात की चर्चा चारों ओर शुरू हो गई थी कि इसके बदले इमाम साहब क्या चाहते हैं? अभी लोग कयास लगा ही रहे थे कि पता चला कि इमाम साहब के दामाद उमर अली खान को सहारनपुर की बेहट विधानसभा सीट से सपा ने अपना उम्मीदवार बना दिया है.

लेकिन चुनाव के बाद जो परिणाम आया वह बेहद भयानक था. सपा ने जिन इमाम साहब से यह सोचकर समर्थन मांगा था कि इससे उप्र के मुसलमान पार्टी से जुड़ेंगे उन्हीं के दामाद चुनाव हार गए. और वह भी एक ऐसी सीट से जहां कुल वोटरों में से 80 फीसदी मुसलमान थे. और उस सीट से लड़ने वाले प्रत्याशियों में एकमात्र उमर ही मुसलमान थे. दामाद के हार जाने के बाद भी अहमद बुखारी ने हार नहीं मानी. उन्होंने उमर को विधान परिषद का सदस्य बनवा दिया. बाद में जब उन्होंने दामाद को मंत्री और भाई को राज्य सभा सीट देने की मांग की तो उसे मुलायम ने मानने से इनकार कर दिया. बस फिर क्या था. अहमद बुखारी और सपा का एक साल पुराना संबंध खत्म हो गया. बुखारी के दामाद ने विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. मीडिया और आम लोगों ने जब इमाम साहब से इस संबंध विच्छेद का कारण पूछा तो वे यह कहते पाए गए कि यूपी में सपा सरकार मुसलमानों के साथ धोखा कर रही है. सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है लेकिन अभी तक उसने मुसलमानों के कल्याण के लिए कुछ नहीं किया. उल्टे मुसलमान सपा सरकार में और अधिक प्रताड़ित हो रहे हैं.

खैर, इधर इमाम साहब मुस्लिमों के साथ अन्याय करने का सपा पर आरोप लगा रहे थे तो दूसरी तरफ सपा के लोग उन्हें भाजपा का दलाल तथा सरकार को ब्लैकमेल करने वाला करार दे रहे थे. मुसलमानों के साथ अन्याय के आरोप पर सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान का तंज भरा बयान यह आया कि मुलायम सिंह यादव को अहमद बुखारी की बात मान लेनी चाहिए थी क्योंकि ‘भाई को राज्य सभा और दामाद को लाल बत्ती मिल जाती तो मुसलमानों की सारी परेशानियां दूर हो जातीं.’

सपा से अलग होने के कुछ समय बाद ही बुखारी ने मुलायम सिंह यादव के गृह जनपद इटावा में ‘अधिकार दो रैली’ की. उस रैली में इमाम साहब बहुजन समाजवादी पार्टी पर डोरे डालते नज़र आए. जिन मायावती में कुछ समय पहले तक उन्हें तमाम कमियां दिखाई देती थीं उनकी शान में कसीदे पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि मुल्क में अगर कोई हुकूमत करना जानता है तो वह मायावती ही हैं. सपा सरकार ने राज्य के मुसलमानों को न सिर्फ छला है बल्कि उन्हें असुरक्षा की भावना का शिकार भी बना दिया है. हम उम्मीद करते हैं कि उन्होंने (मायावती ने) जिस तरह से दलितों का वोट हासिल करके दलितों का उद्धार किया है उसी तरह अब मुसलमानों का भी भला करेंगी.’
यह कहानी हमें बताती है कि बुखारी किस तरह से क्षण में समर्थन और दूसरे ही पल में विरोध की राजनीति में पारंगत रहे हैं और यह सब मुस्लिम समाज के हितों के नाम पर किया जाता रहा है. अहमद बुखारी की इमामत का दौर ऐसे ढेरों उदाहरणों से भरा पड़ा है.

इमाम अहमद बुखारी की इमामत और सियासत के बीच आवाजाही उनके साथ बाकी लोगों के लिए भी काफी पहले ही एक सामान्य बात हो चुकी थी. लेकिन आम मुसलमानों के साथ ही बाकी लोगों में उस समय हड़कंप मच गया जब 2004 के लोकसभा चुनावों में इमाम साहब ने मुसलमानों से भाजपा को वोट देने की अपील कर डाली.

लोगों को वह समय याद आ रहा था जब 2002 में गुजरात दंगों के बाद बुखारी भाजपा के खिलाफ हुंकार भर रहे थे. तब तक के अपने तमाम भाषणों में वे बाबरी मस्जिद के टूटने और मुसलमानों के मन में समाए डर के लिए भाजपा और संघ को जिम्मेदार बताते रहते थे. वे बताते थे कि कैसे भाजपा और संघ परिवार भारत में मुसलमानों के अस्तित्व के ही खिलाफ हैं.

बुखारी से जब भाजपा को समर्थन देने का कारण पूछा गया था तो उनका कहना था, ‘भाजपा की नई सोच को हमारा समर्थन है. बाबरी मस्जिद की शहादत कांग्रेस के शासनकाल में हुई लेकिन क्या कांंग्रेस ने इसके लिए कभी माफी मांगी? गुजरात दंगों के मामले में भी क्या कांग्रेस ने दंगा प्रभावित मुसलमानों के पुनर्वास के लिए कुछ किया है? भाजपा ने तो कम से कम गुजरात दंगों के लिए दुख व्यक्त किया है और वो अयोध्या मामले में भी कानून का सामना कर रही है.’ उस समय इमाम बुखारी यह कहते भी पाए गए थे, ‘हर गुजरात के लिए कांग्रेस के पास एक मुरादाबाद है, जहां ईद के दिन मुसलमानों को मारा गया और अगर उन्होंने भाजपा की तरफ से की गई इस शुरुआत का जवाब नहीं दिया होता तो बातचीत का दरवाजा हमेशा के लिए बंद हो जाता. मुसलमानों को जेहाद, हिजरत (पलायन) और सुलह के बीच चुनाव करना है. मुझे लगता है कि इस वक्त सुलह सबसे अच्छा विकल्प है.’

परिवार को करीब से जानने वाले बताते हैं कि इस 360 डिग्री वाले हृदय परिवर्तन के पीछे मुस्लिम समाज की चिंता और बेहतरी के बजाय परिवार का दबाव था. परिवार के एक सदस्य ने अहमद बुखारी के ऊपर चुनावों में भाजपा को समर्थन देने का दबाव बनाया था. इस शख्स का नाम है याह्या बुखारी.

याह्या अहमद बुखारी के छोटे भाई है. यहां यह उल्लेखनीय है कि जब इमाम अब्दुल्ला बुखारी ने अहमद बुखारी की दस्तारबंदी की उस समय याह्या चाहते थे कि नायब इमाम का जो पद अहमद बुखारी संभालते थे वह उन्हें दे दिया जाए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अहमद बुखारी ने इसके लिए मुगल परंपरा का हवाला दिया जिसके मुताबिक अभी तक इमाम के बेटे को ही नायब इमाम बनाने की पंरपरा चली आ रही थी. उस समय की अखबारी रिपोर्टों और परिवार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इस पर याह्या का कहना था कि उनके बड़े भाई ने दो शादियां की हैं. दूसरी शादी से जो बेटा है वह इस पद के योग्य नहीं है. ऐसे में नायब का पद उन्हें दिया जाना चाहिए.

खैर, याह्या नायब नहीं बन पाए. दोनों भाइयों के बीच तनाव बढ़ता गया. तनाव कम करने और भाई को मनाने के लिए अहमद बुखारी ने पारिवारिक संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा याह्या को देने की पेशकश की और मस्जिद के अंदर और अधिक सक्रिय भूमिका की उनकी मांग को भी मान लिया. भाई को मनाने के लिए अहमद हर तरह से लगे हुए थे कि एकाएक याह्या ने उनसे 2004 के चुनाव में भाजपा का समर्थन करने की मांग कर दी. याह्या की इस मांग पर इमाम बुखारी बेहद चिंतित हुए. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इससे वे कैसे निपटें. खैर तमाम सोचने विचारने के बाद वे इसके लिए मान गए. इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी हिमायत समिति बनाई गई और हिमायत कारवां नाम से यात्रा निकालकर मुसलमानों से भाजपा का समर्थन करने की अपील की गई.

मगर याह्या बुखारी ने अपने बड़े भाई को भाजपा का समर्थन करने लिए क्यों मजबूर किया? परिवार से जुड़े सूत्र बताते हैं कि याह्या 2004 से एक दशक पहले से ही भाजपा से जुड़े हुए थे. नब्बे के दशक में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में धीरे-धीरे भाजपा ने अल्पसंख्यकों को जोड़ने के लिए मन बनाना शुरू किया. उसी समय प्रमोद महाजन का संपर्क याह्या बुखारी से हुआ. प्रमोद ने याह्या से भाजपा की योजना के बारे में बताया और पार्टी को सपोर्ट करने का प्रस्ताव रखा. 1998 के लोकसभा चुनावों में खुद याह्या बुखारी मुंबई में प्रमोद महाजन के लिए प्रचार करने पहुंचे थे. उस चुनाव में भाजपा के लिए प्रचार करने गए एक मुस्लिम नेता कहते हैं, ‘याह्या को मैंने वहां देखा था. वो भाजपा के लिए वहां प्रचार करने आए थे. हम लोग एक ही होटल में रुके हुए थे.’

2004 में प्रमोद महाजन के कहने पर ही याह्या ने अपने भाई अहमद बुखारी को भाजपा का समर्थन करने के लिए बाध्य किया. अपने राजनीतिक व्यवहार के कारण विवादित रहे बुखारी पर सबसे बड़ा आरोप उस जामा मस्जिद के दुरुपयोग का लग रहा है जिसके वे इमाम हैं. आरोप लगाने वालों का कहना है कि बुखारी परिवार ने इमाम अहमद बुखारी के नेतृत्व में पूरी मस्जिद पर कब्जा कर लिया है और इसे अपनी निजी संपत्ति की तरह प्रयोग कर रहे हैं. वैसे तो कानूनी तौर पर जामा मस्जिद वक्फ की संपत्ति है लेकिन शायद सिर्फ कागजों पर. मस्जिद का पूरा प्रशासन आज सिर्फ बुखारी परिवार के हाथों में ही है.

मस्जिद पर बुखारी परिवार के कब्जे के विरोध में लंबे समय से संघर्ष कर रहे अरशद अली फहमी कहते हैं, ‘पूरी मस्जिद पर बुखारी और उनके भाइयों ने अंदर और बाहर चारों तरफ से कब्जा कर रखा है. मस्जिद का प्रयोग ये अपनी निजी संपत्ति के तौर पर कर रहे हैं. बुखारी जामा मस्जिद के इमाम हैं, जिनका काम नमाज पढ़ाना भर है लेकिन वो मस्जिद के मालिक बन बैठे हैं.’

बुखारी पर इन आरोपों की शुरुआत उस समय हुई जब मस्जिद के एक हिस्से में यात्रियों के लिए बने विश्रामगृह पर इमाम बुखारी ने कब्जा जमा लिया. बुखारी के खिलाफ कई मामलों में कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके सुहैल अहमद खान कहते हैं, ‘जामा मस्जिद में आने वाले यात्रियों के लिए सरकारी पैसे से जो विश्रामगृह बना था उस पर अहमद बुखारी ने अपना कब्जा कर उसे अपना विश्रामगृह बना डाला है. उस विश्रामगृह पर कब्जा करने के साथ ही बगल में उन्होंने अपने बेटे के लिए एक बड़ा घर भी बनवा लिया. बाद में जब मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने उसे बाथरूम दिखा दिया.’

आरोपों की लिस्ट में सिर्फ ये दो मामले नहीं हैं. सुहैल बताते हैं, ‘डीडीए ने मस्जिद कैंपस में पांच नंबर गेट के पास जन्नतनिशां नाम से एक बड़ा मीटिंग हॉल बनाया था, जो आम लोगों के प्रयोग के लिए था. कुछ समय बाद अहमद बुखारी के छोटे भाई याह्या ने उस पर अपना कब्जा जमा लिया. आज भी उनका उस पर कब्जा है. इसके साथ ही गेट नंबर नौ पर स्थित सरकारी डिस्पेंसरी पर बुखारी के छोटे भाई हसन बुखारी ने कब्जा कर रखा है.

जिस जन्नतनिशां पर याह्या बुखारी के कब्जे की बात सुहैल कर रहे हैं उसी जन्नतनिशां में कुछ समय पहले दुर्लभ वन्य जीवों ब्लैक बक और हॉग डियर के मौजूद होने की खबर और तस्वीरें सामने आईं थी.

2012 में जामा मस्जिद के ऐतिहासिक स्वरूप को कथित अवैध निर्माण से बिगाड़ने संबंधी आरोपों को लेकर अहमद बुखारी के खिलाफ सुहैल कोर्ट गए थे. उन्होंने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया कि इमाम व उनके दोनों भाइयों ने जामा मस्जिद में अवैध निर्माण कराया है और वे आसपास अवैध कब्जों के लिए भी जिम्मेदार हैं. आरोपों की जांच के लिए हाई कोर्ट ने एक टीम का गठन किया. बाद में उस टीम ने कोर्ट के समक्ष पेश की गई अपनी रिपोर्ट में इस बात को स्वीकार किया कि हां, मस्जिद में अवैध निर्माण कराया गया है.

‘जामा मस्जिद प्रांगण में तो इस परिवार ने अपना कब्जा जमाया ही है, इसके बाहर भी इस परिवार ने कब्जा कर रखा है. ‘मस्जिद के बाहर उससे सटे हुए सरकारी पार्कों के बारे में बताते हुए अरशद कहते हैं, ‘मस्जिद के चारों तरफ स्थित इन पार्कों पर बुखारी परिवार ने कब्जा कर रखा है. किसी को उन्होंने अपनी पर्सनल पार्किंग बना रखा है तो किसी को उन्होंने यात्रियों के लिए पार्किंग बना रखा है. इससे होने वाली आमदमी सरकारी खाते में नहीं बल्कि बुखारी परिवार के खाते में जाती है.’

2000 में जामा मस्जिद के इमाम बने अहमद बुखारी पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने पिता से जबरन अपनी दस्तारबंदी करवाई अवैध कब्जे की ऐसी ही एक कहानी बताते हुए जामा मस्जिद के बाहर मोटर मार्केट में दुकान लगाने वाले तनवीर अख्तर कहते हैं, ‘मस्जिद के गेट नंबर एक के पास कॉर्पोरेशन का एक ग्राउंड है. वो शादी-ब्याह के लिए लंबे समय से इस्तेमाल होता था. लेकिन आज उस पर अहमद बुखारी के भाइयों का कब्जा है. किसी को अगर उस पार्क को शादी आदि के लिए बुक कराना है तो उसे बुखारी परिवार के आदमी को मोटी रकम देनी पड़ती है.’

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आप सबने DD1 पर किसी समय BR Chopra का महाभारत सीरीयल देखा होगा ।


आप सबने DD1 पर किसी समय BR Chopra का महाभारत सीरीयल देखा होगा । जिसमें अर्जुण का किरदार फिरोज़ खान, कुंती का किरदार नाज़नीन खान, भीष्म का किरदार मुकेश खन्ना, भीम का किरदार प्रवीण कुमार, कर्ण का किरदार पंकज धीर, कृष्ण का किरदार नितिश भारद्वाज ने निभाया था आदि ।

तो इस महाभारत सीरीयल में केवल भीष्म के अभिनय मात्र से ही मुकेश खन्ना जी में इतना स्वाभिमान आया कि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लिया है और वो हर बात में स्वाभिमान का ध्यान रखते हैं । तो महाभारत की समाप्ती के बाद उन्होंने फिल्मों में भी स्वाभिमानी क्षत्रीय राजपूत का ही अभिनय किया है ।

फिरोज़ खान एक मुसलमान हैं जिसने बहुत सी पंजाबी और हिंदी फिल्मों में खल्नायक की भूमिका निभाई है । वो भी अर्जुण के किरदार से ऐसा प्रभावित हुए कि उन्होंने ईस्लाम छोड़ कर वैदिक धर्मी बनना स्विकार किया और अपना वास्तविक नाम भी अर्जुण ही रख लिया ।

नाज़नीन खान एक मुस्लिम अभिनेत्री हैं जिन्होंने केवल ये महाभारत सीरीयल ही किया इससे उनके मन में ईस्लाम के स्थान पर आर्यों का वो स्वाभिमान भर गया जो महाभारत के समय था । और उन्होंने भी ईस्लाम को त्याग करके सनातन धर्म में वापसी की है ।

तो मित्रों आप समझ सकते हैं कि आर्यों का स्वाभिमान महाभारतकाल तक कितना ऊँचा था ? जिसके केवल अभिनय मात्र से ही इन लोगों को परिवर्तित कर दिया है तो सोचो यदि वही प्राचीन स्वाभिमान पुनः आ जाए तो कितने लोग परिवर्तित हो जायेंगे ? और राष्ट्र में कैसा परिवर्तन आ सकेगा ?

सीख हम बीते युगों से नए युग का करें स्वागत…

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कर्मों का फल


कर्मों का फल

बात प्राचीन महाभारत काल की है। महाभारत के युद्ध में जो कुरुक्षेत्र के मैंदान में हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहणी सेना मारी गई, इस युद्ध के समापन और सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने के बाद पांडवों सहित श्री कृष्ण पितामह भीष्म से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर को वापिस हुए तब श्रीकृष्ण को रोक कर पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, “मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?” यह बात सुनकर मधुसूदन मुस्कराये और पितामह भीष्म से पूछा, ‘पितामह आपको कुछ पूर्व जन्मों का ज्ञान है?” इस पर पितामह ने कहा, ‘हाँ”। श्रीकृष्ण मुझे अपने सौ पूर्व जन्मों का ज्ञान है कि मैंने किसी व्यक्ति का कभी अहित नहीं किया? इस पर श्रीकृष्ण मुस्कराये और बोले पितामह आपने ठीक कहा कि आपने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, लेकिन एक सौ एक वें पूर्वजन्म में आज की तरह तुमने तब भी राजवंश में जन्म लिया था और अपने पुण्य कर्मों से बार-बार राजवंश में जन्म लेते रहे, लेकिन उस जन्म में जब तुम युवराज थे, तब एक बार आप शिकार खेलकर जंगल से निकल रहे थे, तभी आपके घोड़े के अग्रभाग पर एक करकैंटा एक वृक्ष से नीचे गिरा। आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरिया के पेड़ पर जा कर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गयेऋ क्योंकि पीठ के बल ही जाकर गिरा था? करकेंटा जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार करकेंटा अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, ‘हे युवराज! जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ, ठीक इसी प्रकार तुम भी होना।” तो, हे पितामह भीष्म! तुम्हारे पुण्य कर्मों की वजह से आज तक तुम पर करकेंटा का श्राप लागू नहीं हो पाया। लेकिन हस्तिनापुर की राज सभा में द्रोपदी का चीर-हरण होता रहा और आप मूक दर्शक बनकर देखते रहे। जबकि आप सक्षम थे उस अबला पर अत्याचार रोकने में, लेकिन आपने दुर्योधन और दुःशासन को नहीं रोका। इसी कारण पितामह आपके सारे पुण्यकर्म क्षीण हो गये और करकेंटा का ‘श्राप’ आप पर लागू हो गया। अतः पितामह प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों का फल कभी न कभी तो भोगना ही पड़ेगा। प्रकृति सर्वोपरि है, इसका न्याय सर्वोपरि और प्रिय है। इसलिए पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी व जीव जन्तु को भी भोगना पड़ता है और कर्मों के ही अनुसार ही जन्म होता है

कर्मों का फल 

बात प्राचीन महाभारत काल की है। महाभारत के युद्ध में जो कुरुक्षेत्र के मैंदान में हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहणी सेना मारी गई, इस युद्ध के समापन और सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने के बाद पांडवों सहित श्री कृष्ण पितामह भीष्म से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर को वापिस हुए तब श्रीकृष्ण को रोक कर पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, "मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?'' यह बात सुनकर मधुसूदन मुस्कराये और पितामह भीष्म से पूछा, 'पितामह आपको कुछ पूर्व जन्मों का ज्ञान है?'' इस पर पितामह ने कहा, 'हाँ''। श्रीकृष्ण मुझे अपने सौ पूर्व जन्मों का ज्ञान है कि मैंने किसी व्यक्ति का कभी अहित नहीं किया? इस पर श्रीकृष्ण मुस्कराये और बोले पितामह आपने ठीक कहा कि आपने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, लेकिन एक सौ एक वें पूर्वजन्म में आज की तरह तुमने तब भी राजवंश में जन्म लिया था और अपने पुण्य कर्मों से बार-बार राजवंश में जन्म लेते रहे, लेकिन उस जन्म में जब तुम युवराज थे, तब एक बार आप शिकार खेलकर जंगल से निकल रहे थे, तभी आपके घोड़े के अग्रभाग पर एक करकैंटा एक वृक्ष से नीचे गिरा। आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरिया के पेड़ पर जा कर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गयेऋ क्योंकि पीठ के बल ही जाकर गिरा था? करकेंटा जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार करकेंटा अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, 'हे युवराज! जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ, ठीक इसी प्रकार तुम भी होना।'' तो, हे पितामह भीष्म! तुम्हारे पुण्य कर्मों की वजह से आज तक तुम पर करकेंटा का श्राप लागू नहीं हो पाया। लेकिन हस्तिनापुर की राज सभा में द्रोपदी का चीर-हरण होता रहा और आप मूक दर्शक बनकर देखते रहे। जबकि आप सक्षम थे उस अबला पर अत्याचार रोकने में, लेकिन आपने दुर्योधन और दुःशासन को नहीं रोका। इसी कारण पितामह आपके सारे पुण्यकर्म क्षीण हो गये और करकेंटा का 'श्राप' आप पर लागू हो गया। अतः पितामह प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों का फल कभी न कभी तो भोगना ही पड़ेगा। प्रकृति सर्वोपरि है, इसका न्याय सर्वोपरि और प्रिय है। इसलिए पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी व जीव जन्तु को भी भोगना पड़ता है और कर्मों के ही अनुसार ही जन्म होता है
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कौन है ये डा. सुब्रमनियम स्वामी ?


कौन है ये डा. सुब्रमनियम स्वामी ?
आज भी ऐसे बहुत से लोग है जो डॉ सुब्रमनियम स्वामी को तो जानते है, लेकिन उनके द्वारा देश, सनातन धर्म और संस्कृति के रक्षार्थ किये गए कार्यो से अनभिज्ञ है | उनके त्याग, उसके पुरुषार्थ, उसके सतत परिश्रम को समझे बिना डॉ. स्वामी को समझना आसान नहीं है | आज उनसे ही एक छोटा से परिचय करते है |
* जब इंदिरा गाँधी ने देश पर आपातकाल लागु कर दिया था तो डॉ स्वामी ने हिम्मत दिखा कर संसद में भाषण दिया और इंदिरा गाँधी को यह दिखाया कि देश उसका गुलाम नहीं है। फिर विदेशो में जा जाकर भारतीयों जो एकजुट किया और उन अनेक भारतीयों के दबाव से इंदिरा गाँधी को आपातकाल हटाना पड़ा था।
* आज डॉ सुब्रमनियम स्वामी के कारण ही आज कैलाश मानसरोवर का रास्ता भारतीयों के लिए खुला।
* एक समय पर सरकार रामसेतु को तोड़ने वाली थी, आरएसएस/विहिप आदि ने मिलकर डॉ स्वामी से ही कहा था कि रामसेतु को बचने के लिए कुछ करे, नहीं तो टूट जायेगा। डॉ स्वामी के प्रयासों के कारण ही रामसेतु टूटने से बचा था।
* डॉ स्वामी ने ही दक्षिण भारत के मंदिरों को करूणानिधि जैसे सनातन धर्म विरोधियो के चुंगुल से निकलवाया था।
* डॉ सुब्रमनियम स्वामी के प्रयासों से ही आज इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में हुए धांधली के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय ठोस कदम उठा रही है।
* इटली के 2 नौसैनिकों ने हमारे 2 केरल के मछुवारो की हत्या कर दी। उसमे से एक सोनिया गाँधी से सम्बंधित है। भारत सरकार और इटली सरकार दोनों ने मिलकर उनको वापस भेजने की चाल चल ली थी। डॉ स्वामी ने जाकर सर्वोच्च न्यायालय को कहा कि इटली के राजदूत को बंधक बनाये अगर नौसैनिकों को इटली वापस नहीं भेजता है तो। और आज उनके कारण ही दोनों वापस भारत आये है।
* डॉ स्वामी ने ही पहली बार सोनिया और राहुल गाँधी का पर्दाफाश किया। आज तक किसी भी इंसान में इतनी हिम्मत नहीं हुई की सोनिया और राहुल गाँधी का परदाफाश कर सके। केजरीवाल जैसे लोगो के गले से आवाज तक नहीं निकलती है सोनिया और राहुल के खिलाफ।
* डॉ स्वामी ने चिदम्बरम के एयरसेल मैक्सिस घोटाले का पर्दाफाश किया।
* डॉ स्वामी ने सोनिया और राहुल गांधी के नेशनल हेराल्ड के घोटाले का पर्दाफाश किया।
* डॉ स्वामी ने 2G घोटाले का परदाफाश किया और आज भी कोर्ट में पुरे सरकार के खिलाफ लड़ रहे है।
* अयोध्या में रामभक्तो को कुछ भी सुविधा नहीं दी जाती है| उनको पैदल जाना पड़ता है | कुछ भी प्रबंध नहीं किया जाता है। सरकार बस करोड़ रुपये भक्तो से लेती है। डॉ स्वामी ने केस किया की रामभक्तो को कुछ आधारभूत सुविधा मिलनी चाहिए और वो इलाहाबाद के कोर्ट में केस जीत गए। अभी एक व्यक्ति ने सर्वोच्च नयायालय में इलाहबाद कोर्ट के फैलसे को चुनौती दी और डॉ स्वामी अभी वह लड़ रहे है।
* अगर किसी भी सरकारी मंत्री के खिलाफ कोई केस करना होता था तो उसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होती है। सरकार कभी अनुमति देती नहीं थी और मंत्री पर केस हो नहीं पाता था। डॉ स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में केस किया और सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला दिया कि अगर सरकार 3 महीने तक अनुमति नहीं देती है तो आवेदक को अपने आप अनुमति मिल जाएगी।
* दिल्ली में दामिनी (तथाकथित) का मुहम्मद अफरोज और 5 कमीनो ने मिलकर बलात्कार किया। सभी को सजा हो रहे है लेकिन जिस राक्षस अफरोज ने दामिनी की हत्या की, वो कांग्रेस पार्टी का प्यारा है शायद इसलिए उसे कांग्रेस बचा रही है। सारे लोग नारे लगा कर आज अपने घरो में है लेकिन डॉ स्वामी आज भी दामिनी के लिए कोर्ट में लड़ रहे है। आज वो दामिनी के हत्यारे अफरोज को मौत की सजा दिलवाने के लिए लड़ रहे है। आज चाहे दिल्ली की दामिनी का मामला हो, या EVM मशीन हो, या संजय दत्त हो, या 2G हो या इटालियन नौसैनिकों का मामला हो या राम सेतु हो या सोनिया और राहुल के घोटालो की बात हो, हर राष्ट्रीय सुरक्षा और हिन्दू हित के मामले मे एक 75 वर्ष का इंसान लड़ रहा है। अभी तक डॉ स्वामी पर 10 से ज्यादा जानलेवा हमले ओनिया और बाकि भ्रष्ट नेता करवा चुके है फिर भी वो देश और हिन्दुओ के हित में लड़ रहे है।आज वो चाहते तो आराम से अमेरिका में हार्वर्ड में पढ़ाते हुए आराम का जीवन जी सकते थे, इस इंसान ने सब कुछ देश और सनातन धर्म और संस्कृति के लिए त्याग दिया और उनपर कुछ लोग उन पर ओछी टिप्पणिया करते है। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगो को। देश का हर सच्चा देशभक्त आज डॉ सुब्रमनियम स्वामी का ऋणी है

कौन है ये डा. सुब्रमनियम स्वामी ?
आज भी ऐसे बहुत से लोग है जो डॉ सुब्रमनियम स्वामी को तो जानते है, लेकिन उनके द्वारा देश, सनातन धर्म और संस्कृति के रक्षार्थ किये गए कार्यो से अनभिज्ञ है | उनके त्याग, उसके पुरुषार्थ, उसके सतत परिश्रम को समझे बिना डॉ. स्वामी को समझना आसान नहीं है | आज उनसे ही एक छोटा से परिचय करते है |
* जब इंदिरा गाँधी ने देश पर आपातकाल लागु कर दिया था तो डॉ स्वामी ने हिम्मत दिखा कर संसद में भाषण दिया और इंदिरा गाँधी को यह दिखाया कि देश उसका गुलाम नहीं है। फिर विदेशो में जा जाकर भारतीयों जो एकजुट किया और उन अनेक भारतीयों के दबाव से इंदिरा गाँधी को आपातकाल हटाना पड़ा था।
* आज डॉ सुब्रमनियम स्वामी के कारण ही आज कैलाश मानसरोवर का रास्ता भारतीयों के लिए खुला।
* एक समय पर सरकार रामसेतु को तोड़ने वाली थी, आरएसएस/विहिप आदि ने मिलकर डॉ स्वामी से ही कहा था कि रामसेतु को बचने के लिए कुछ करे, नहीं तो टूट जायेगा। डॉ स्वामी के प्रयासों के कारण ही रामसेतु टूटने से बचा था।
* डॉ स्वामी ने ही दक्षिण भारत के मंदिरों को करूणानिधि जैसे सनातन धर्म विरोधियो के चुंगुल से निकलवाया था।
* डॉ सुब्रमनियम स्वामी के प्रयासों से ही आज इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में हुए धांधली के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय ठोस कदम उठा रही है।
* इटली के 2 नौसैनिकों ने हमारे 2 केरल के मछुवारो की हत्या कर दी। उसमे से एक सोनिया गाँधी से सम्बंधित है। भारत सरकार और इटली सरकार दोनों ने मिलकर उनको वापस भेजने की चाल चल ली थी। डॉ स्वामी ने जाकर सर्वोच्च न्यायालय को कहा कि इटली के राजदूत को बंधक बनाये अगर नौसैनिकों को इटली वापस नहीं भेजता है तो। और आज उनके कारण ही दोनों वापस भारत आये है।
* डॉ स्वामी ने ही पहली बार सोनिया और राहुल गाँधी का पर्दाफाश किया। आज तक किसी भी इंसान में इतनी हिम्मत नहीं हुई की सोनिया और राहुल गाँधी का परदाफाश कर सके। केजरीवाल जैसे लोगो के गले से आवाज तक नहीं निकलती है सोनिया और राहुल के खिलाफ।
* डॉ स्वामी ने चिदम्बरम के एयरसेल मैक्सिस घोटाले का पर्दाफाश किया।
* डॉ स्वामी ने सोनिया और राहुल गांधी के नेशनल हेराल्ड के घोटाले का पर्दाफाश किया।
* डॉ स्वामी ने 2G घोटाले का परदाफाश किया और आज भी कोर्ट में पुरे सरकार के खिलाफ लड़ रहे है।
* अयोध्या में रामभक्तो को कुछ भी सुविधा नहीं दी जाती है| उनको पैदल जाना पड़ता है | कुछ भी प्रबंध नहीं किया जाता है। सरकार बस करोड़ रुपये भक्तो से लेती है। डॉ स्वामी ने केस किया की रामभक्तो को कुछ आधारभूत सुविधा मिलनी चाहिए और वो इलाहाबाद के कोर्ट में केस जीत गए। अभी एक व्यक्ति ने सर्वोच्च नयायालय में इलाहबाद कोर्ट के फैलसे को चुनौती दी और डॉ स्वामी अभी वह लड़ रहे है।
* अगर किसी भी सरकारी मंत्री के खिलाफ कोई केस करना होता था तो उसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होती है। सरकार कभी अनुमति देती नहीं थी और मंत्री पर केस हो नहीं पाता था। डॉ स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में केस किया और सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला दिया कि अगर सरकार 3 महीने तक अनुमति नहीं देती है तो आवेदक को अपने आप अनुमति मिल जाएगी।
* दिल्ली में दामिनी (तथाकथित) का मुहम्मद अफरोज और 5 कमीनो ने मिलकर बलात्कार किया। सभी को सजा हो रहे है लेकिन जिस राक्षस अफरोज ने दामिनी की हत्या की, वो कांग्रेस पार्टी का प्यारा है शायद इसलिए उसे कांग्रेस बचा रही है। सारे लोग नारे लगा कर आज अपने घरो में है लेकिन डॉ स्वामी आज भी दामिनी के लिए कोर्ट में लड़ रहे है। आज वो दामिनी के हत्यारे अफरोज को मौत की सजा दिलवाने के लिए लड़ रहे है। आज चाहे दिल्ली की दामिनी का मामला हो, या EVM मशीन हो, या संजय दत्त हो, या 2G हो या इटालियन नौसैनिकों का मामला हो या राम सेतु हो या सोनिया और राहुल के घोटालो की बात हो, हर राष्ट्रीय सुरक्षा और हिन्दू हित के मामले मे एक 75 वर्ष का इंसान लड़ रहा है। अभी तक डॉ स्वामी पर 10 से ज्यादा जानलेवा हमले ओनिया और बाकि भ्रष्ट नेता करवा चुके है फिर भी वो देश और हिन्दुओ के हित में लड़ रहे है।आज वो चाहते तो आराम से अमेरिका में हार्वर्ड में पढ़ाते हुए आराम का जीवन जी सकते थे, इस इंसान ने सब कुछ देश और सनातन धर्म और संस्कृति के लिए त्याग दिया और उनपर कुछ लोग उन पर ओछी टिप्पणिया करते है। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगो को। देश का हर सच्चा देशभक्त आज डॉ सुब्रमनियम स्वामी का ऋणी है