



‘अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः ?’ :- (कोई विद्वान लगता है?) :- आज ‘आषाढ़स्य प्रथम दिवसे’ (आषाढ़ के प्रथम दिन) पर कालिदास से विदुषि पत्नी विद्योत्तमा द्वारा, कालीदास द्वारा ज्ञान प्राप्ति उपराँत वापसी पर, उच्चारित प्रथम वाक्य के तीन शब्द – ‘अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः ?’ अर्थात – कोई विद्वान लगता है? विद्योत्तमा के इस आश्चर्यमिश्रित विस्मयकारी प्रश्न का अर्थ/आशय यह है कि, – “आपने क्या कोई विशेष उल्लेखनीय योग्यता प्राप्त कर ली है कि, जिससे कि मैं आपका स्वागत, अभिनन्दन और अभिवादन करूँ?” कालीदास द्वारा ऊँट की चिल्लाहट पर ‘ऊष्ट्र:’ के स्थान पर ‘ऊट्र:’ के गलत ऊच्चारण कर विद्योत्तमा ने कालीदास को पत्नी के लिए सही अर्थों में योग्य पति बनने/बनाने हेतु , योग्यता प्राप्ति उपराँत ही, सम्बन्ध की बात रखी, जिससे कि ऐसे योग्य पति से सम्बन्ध बनाने में पत्नी को भी गर्व और गौरव का अनुभव हो। जब काशी से विद्वान बन काली दास लौटे, तब उक्त प्रश्न किया गया, जिसका उचित समाधान कारक उत्तर दे कालीदास ने विद्योत्तमा को संतुष्ट कर उसका सम्मान प्राप्त किया और आगे चल कर उक्त प्रश्न में प्रयुक्त हुए तीनों शब्दों से ही प्रारम्भ कर तीन पृथ्क-पृथ्क काव्य ग्रंथों की रचना की । ‘अस्ति’ शब्द से ‘कुमार सम्भव’ (अस्त्य् उत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराजः ।पूर्वापरौ तोयनिधी विगाह्य स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥) ; ‘कश्चित्’ शब्द से ‘मेघदूत’ (कश्चित्कांता…) और ‘वाग्विशेषः’ शब्द से ‘रघुवंश’ (वागार्थविव… ) कालीदास ने उक्त के अतिरिक्त अन्य कई काव्य और नाट्य ग्रंथ भी लिखे।