Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

गीता आज भी लोगों को जीवन दर्शन देने का काम कर रही है


गीता आज भी लोगों को जीवन दर्शन देने का काम कर रही है. दिल्ली पुस्तक मेले में लोग आज भी बुक स्टाल पर आकर गीता को खरीद रहे हैं. पिछले दो दिनों में इसकी दो लाख प्रतियां बिक चुकी हैं. जनता की बेहद मांग पर गीता के संग्रह को यहां फिर से मंगाया गया है.
अगर गीता आपके पास रहती है तो यह आपको अच्छे और बुरे का फर्क समझाती है. गीता प्रेस ने इसको सुलभ तरीके से कई रुपो में तैयार किया है. ताबीज में पिरोकर रखने के लिए गीता के सभी 700 श्लोकों को एक पेज में दिया गया है. इसकी कीमत मात्र 50 पैसे है. इसके अलावा चार सेमी चौड़ी व सात सेमी लंबी 256 पृष्ठ की पॉकेट गीता कोड संख्या 1392 यहां पर सात रुपये में है तो पांच किलो की 2609 पृष्ठों की लंबी-चौड़ी पुस्तक भी यहां कोड संख्या-5 में 375 रुपये में उपलब्ध है.

Posted in Harshad Ashodiya

क्षुद्र


बड़े दुःख की बात है की क्षुद्र ही आपने आप को अछूत मानता है . जहॉ जाओ वहां अपने आप को साबित करता है . आरक्षण के नाम पर या फिर कुछ और . समाज से संस्कृत भाषा और उनमे लिखा साहित्य गया की लोग बेवकूफ पैदा होने लगे. मनुस्मुर्ति पढ़ेंगे तो पता चलेगा की परिचर्मात्मक कर्म को क्षुद्र कहा जाता है अर्थात जो सेवा कार्य हो वो . जैसे डॉक्टर , वकील , रिक्शा चलने वाला इत्यादि . हम समझते है सिर्फ सफाईवाला …ये बिलकुल गलत है. डॉक्टर भी क्षुद्र है
मई एक बचपन की बात बताता हु. मैंने पहलीबार उनके साथ नास्ता का डिब्बा खोला तो उसने बताया तुम मेरा खाना नहीं खा सकते मई अछूत हु . दुःख की बात ये नहीं की वो अछूत है . दुःख की बात ये है की वो अपने आप को अछूत समाजता है . मैंने कहा उनसे तुम अस्व्छ हो सकते हो लेकिन अछूत नहीं . मैंने उनके साथ नास्ता किया .
नहेरु वर्ण व्यवस्था के खिलाफ था, कांग्रेस पहलेसे ही divide and rule फॉलो करती थी . गोरो की औलाद . बाद में आरक्षण के नाम पर और भी भेद बढ़ता गया .
भारत में कभी वर्ण भेद नहीं था . प्रभु राम भील जाती की सबरी के जूते बेर खाए . अमिताभ बच्चन के खानदान में आज भी होली के दिन उन क्षुद्र के गर जा के पहले उनके कदमो पे रंग उड़ाके फिर होली खेलते है .
लोगो से निवेदन है . मनुस्मुर्ति तटस्थ ता से पढ़े .अपनी बुद्धि का प्रदसन् न करे .

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए,


मोहनदास करमचन्द ने तो यहाँ तक कहा था की पूरा पंजाब पाकिस्तान में जाना चाहिए, बहुत कम लोगों को ज्ञात है की 1947 के समय में पंजाब की सीमा दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र तक होती थी …
यानी की पाकिस्तान का बोर्डर दिल्ली के साथ होना तय था … मोहनदास करमचन्द के अनुसार l
नवम्बर 1968 में पंजाब में से दो नये राज्यों का उदय हुआ .. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा

पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्र पाने के बाद भी जिन्ना और मुस्लिम लीग चैन से नहीं बैठे उन्होंने फिर से मांग की … की हमको पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं

1. पानी के रास्ते बहुत लम्बा सफर हो जाता है क्योंकि श्री लंका के रस्ते से घूम कर जाना पड़ता है l
2. और हवाई जहाज से यात्राएं करने में अभी पाकिस्तान के मुसलमान सक्षम नही हैं l इसलिए …. कुछ मांगें रखी गयीं 1. इसलिए हमको भारत के बीचो बीच एक Corridor बना कर दिया जाए….
2. जो लाहोर से ढाका तक जाता हो … (NH – 1)
3. जो दिल्ली के पास से जाता हो …
4. जिसकी चौड़ाई कम से कम 10 मील की हो … (10 Miles = 16 KM)
5. इस पूरे Corridor में केवल मुस्लिम लोग ही रहेंगे l

30 जनवरी को गांधी वध यदि न होता, तो तत्कालीन परिस्थितियों में बच्चा बच्चा यह जानता था की यदि मोहनदास करमचन्द 3 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान पहुँच गया तो इस मांग को भी …मान लिया जायेगा l

तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार तो मोहनदास करमचन्द किसी की बात सुनने की स्थिति में था न ही समझने में …और समय भी नहीं था जिसके कारण हुतात्मा नाथूराम गोडसे जी को गांधी वध जैसा अत्यधिक साहसी और शौर्यतापूर्ण निर्णय लेना पडा l

परन्तु ….. अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले मोहनदास करमचन्द के कुछ अहिंसक आतंकवादियों ने 30 जनवरी, 1948 की रात को ही पुणे में 6000 ब्राह्मणों को चुन चुन कर घर से निकाल निकाल कर जिन्दा जलायाl 10000 से ज्यादा ब्राह्मणों के घर और दुकानें जलाए गएl

Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

अगर हिंदू धर्म बुरा है तो क्यो नासा के वैज्ञानीको ने माना की सूरज से ॐ की आवाज निकलती है?


Alok Gupta

अगर हिंदू धर्म बुरा है
तो क्यो नासा के
वैज्ञानीको ने माना की सूरज से ॐ
की आवाज निकलती है?
क्यो अमेरिका ने
भारतीय देशी गौमुत्र पर 4
patent
लिया व कैंसर और
दूसरी बिमारियो के
लिये दवाईया बना रहा है ?
जबकी हम
गौमुत्र का महत्व हजारो साल
पहले से
जानते है
.क्यो अमेरिका के सेटन हाल
यूनिवर्सिटी मे गीता पढाई
जा रही है?
क्यो इस्लामिक देश इंडोनेशिया के
aeroplane का नाम
भगवान नारायण के वाहन गरुड के
नाम
पर
garuda indonesia है जिसमे
garuda
का symbol भी है?
क्यो इंडोनेशिया के
रुपए
पर भगवान गणेश की फोटो है?
क्यो बराक
ओबामा हमेशा अपनी जेब मे
हनुमान
जी की फोटो रखते है? क्यो आज
पूरी दुनिया योग-प्राणायाम
की दिवानी है?
क्यो भारतीय हिंदू वैज्ञानीको ने
हजारो साल पहले
ही बता दिया की धरती गोल है ?
क्यो जर्मनी के aeroplane
का संस्कृत
नाम Lufthansa है ?
क्यो हिंदुओ के
नाम
पर अफगानिस्थान के पर्वत
का नाम
हिंदूकुश है? क्यो हिंदुओ के नाम
पर
हिंदी भाषा, हिन्दुस्तान, हिंद
महासागर
ये
सभी नाम है? क्यो वियतनाम देश
मे
visnu
भगवान की 4000 साल
पुरानी मूर्ति पाई
गई? क्यो अमेरिकी विज्ञानीक
haward ने
शोध के बाद माना की गायत्री मंत्र
मे
110000 freq के कंपन है?
क्यो बागबत
की बडी मस्जिद के इमाम ने
सत्यार्थ-
प्रकाश पढने के बाद हिंदू धर्म
अपनाकर
महेंद्रपाल आर्य बनकर
हजारो मुस्लिमो को हिंदू
बनाया और
वो कई
बार जाकिर नाईक से debate के
लिये
कह
चुके है मगर जाकिर की हिम्म्त
नही हुइ.
अगर हिंदू धर्म मे यज्ञ
करना अंधविश्वास है
तो क्यो भोपाल
गैस
कांड मे जो कुशवाह परिवार
एकमात्र
बचा जो उस समय यज्ञ कर
रहा था ,
गोबर पर घी जलाने से १० लाख
टन
आक्सीजन गैस बनती है .
क्यो julia
roberts (American actress
and
producer) ने हिंदू धर्म
अपनाया और
वो हर रोज मंदिर जाती है. अगर
रामायण
झूठा है तो क्यो दुनियाभर मे केवल
रामसेतू के ही पत्थर आज भी तैरते
है?
अगर महाभारत झूठा है
तो क्यो भीम के
पुत्र ”घटोत्कच” का विशालकाय
कंकाल
वर्ष 2007 में नेशनल
जिओग्राफी की टीम ने
भारतीय सेना की सहायता से
उत्तर
भारत के इलाके में खोजा?
क्यो अमेरिका के सैनिकों को
अफगानिस्तान (कंधार) की एक
गुफा में 5000 साल पहले
का महाभारत के समय
का “विमान”
मिला है? । आगे आप और चीजे
add
करे.
मै कोई मुस्लिम नही जो likes पाने
या मजहब के प्रचार के लिये
झूठी पोस्ट
या झूठी photoshopped
फोटो डालु?
आप खुद google मे search
कर
सकते है . अगर कुछ गलती हो गई
हो तो छोटा भाइ समझकर माफ़
करना.
इसको आगे भी share या copy-
paste करे

Posted in श्री कृष्णा

‘यतो धर्मस्ततो जयः’ अर्थात् जहाँ धर्म है, वहीं विजय है I


विश्व के सबसे बड़े ग्रन्थ महाभारत में पचासों स्थानों पर एक वाक्य आया है : ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ अर्थात् जहाँ धर्म है, वहीं विजय है I
भारत के उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने इस वाक्य को बड़े ही आदर से ग्रहण करके अपना ध्येय-वाक्य बनाया है और अपने प्रतीक-चिह्न की नीचे यह वाक्य अंकित भी किया है. सन 2000 में उच्चतम न्यायालय के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 2 रूपये मूल्य का सिक्का भी जारी किया गया था, उसमें भी यह वाक्य उत्कीर्ण था.
बृहन्मुंबई महानगरपालिका (Brihanmumbai Municipal Corporation) का भी ध्येय-वाक्य ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ है और उसके भवन पर यह वाक्य उत्कीर्ण देखा जा सकता है.
कूचबिहार रियासत (पश्चिम बंगाल) का भी ध्येय-वाक्य ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ है और उसके प्रतीक चिह्न में भी यह अंकित है.
स्वामी विवेकानंद (1863-1902) की शिष्या भगिनी निवेदिता (1867-1911) द्वारा राष्ट्रीय ध्वज जो का प्रारूप तैयार किया गया था, उसमें वज्र और ‘वन्देमातरम’ के साथ ‘यतो धर्मस्ततो जयः’— यह वाक्य भी अंकित था.
जयपुर के अलबर्ट हॉल म्यूजियम (Albert Hall Museum) की दीवार पर भी बड़े गर्व से उत्कीर्ण किया गया है : ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ I
जीवन के सभी क्षेत्रों में धर्म व्याप्त है और धर्म के बिना जीवन जिया ही नहीं जा सकता. इसी “धर्म” ने हम सबको धारण किया हुआ है और हमने जन्म से मृत्युपर्यन्त धर्म को धारण किया हुआ है. इस धर्म से उसी प्रकार अलग नहीं हुआ जा सकता, जिस प्रकार जल आर्द्रता से और अग्नि ऊष्मा से अलग नहीं हो सकती। संक्षेप में “धर्म” से अलग हो जाना असंभव है.
संस्कृत में अर्थग्रथित शब्द बनाने की अद्भुत क्षमता रही है, किन्तु उसका भी जैसा उत्कृष्ट उदाहरण ‘धर्म’ शब्द में मिलता है, वैसा अन्यत्र नहीं मिलता। भारतवर्ष ने जो कुछ सशक्त निर्माण-कार्य युग-युग में संपन्न किया है और कर रहा है, वह सब ‘धर्म’ है। यह धर्म-भाव प्रत्येक हिंदू के हृदय में अनादिकाल से अंकित है। यदि यह प्रश्न किया जाये कि करोड़ों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृति की उपलब्धि क्या है और यहाँ के जनसमूह ने किस जीवन-दर्शन का अनुभव किया था, तो इसका एकमात्र उत्तर यही है कि भारतीय-साहित्य, कला, जीवन, संस्कृति और दर्शन— इन सबकी उपलब्धि ‘धर्म’ है। इन सभी के बाद भी इस देश में धर्म (सनातन जीवन-मूल्य) की उपेक्षा हो रही है और उसे ‘मजहब” (सम्प्रदाय=रिलिजन) से जोड़ा जा रहा है.

विश्व के सबसे बड़े ग्रन्थ महाभारत में पचासों स्थानों पर एक वाक्य आया है : 'यतो धर्मस्ततो जयः' अर्थात् जहाँ धर्म है, वहीं विजय है I
भारत के उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने इस वाक्य को बड़े ही आदर से ग्रहण करके अपना ध्येय-वाक्य बनाया है और अपने प्रतीक-चिह्न की नीचे यह वाक्य अंकित भी किया है. सन 2000 में उच्चतम न्यायालय के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 2 रूपये मूल्य का सिक्का भी जारी किया गया था, उसमें भी यह वाक्य उत्कीर्ण था.
बृहन्मुंबई महानगरपालिका (Brihanmumbai Municipal Corporation) का भी ध्येय-वाक्य 'यतो धर्मस्ततो जयः' है और उसके भवन पर यह वाक्य उत्कीर्ण देखा जा सकता है. 
कूचबिहार रियासत (पश्चिम बंगाल) का भी ध्येय-वाक्य 'यतो धर्मस्ततो जयः' है और उसके प्रतीक चिह्न में भी यह अंकित है.
स्वामी विवेकानंद (1863-1902) की शिष्या भगिनी निवेदिता (1867-1911) द्वारा राष्ट्रीय ध्वज जो का प्रारूप तैयार किया गया था, उसमें वज्र और ‘वन्देमातरम’ के साथ 'यतो धर्मस्ततो जयः'— यह वाक्य भी अंकित था.
जयपुर के अलबर्ट हॉल म्यूजियम (Albert Hall Museum) की दीवार पर भी बड़े गर्व से उत्कीर्ण किया गया है : 'यतो धर्मस्ततो जयः' I 
जीवन के सभी क्षेत्रों में धर्म व्याप्त है और धर्म के बिना जीवन जिया ही नहीं जा सकता. इसी “धर्म” ने हम सबको धारण किया हुआ है और हमने जन्म से मृत्युपर्यन्त धर्म को धारण किया हुआ है. इस धर्म से उसी प्रकार अलग नहीं हुआ जा सकता, जिस प्रकार जल आर्द्रता से और अग्नि ऊष्मा से अलग नहीं हो सकती। संक्षेप में “धर्म” से अलग हो जाना असंभव है.
संस्कृत में अर्थग्रथित शब्द बनाने की अद्भुत क्षमता रही है, किन्तु उसका भी जैसा उत्कृष्ट उदाहरण ‘धर्म’ शब्द में मिलता है, वैसा अन्यत्र नहीं मिलता। भारतवर्ष ने जो कुछ सशक्त निर्माण-कार्य युग-युग में संपन्न किया है और कर रहा है, वह सब ‘धर्म’ है। यह धर्म-भाव प्रत्येक हिंदू के हृदय में अनादिकाल से अंकित है। यदि यह प्रश्न किया जाये कि करोड़ों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृति की उपलब्धि क्या है और यहाँ के जनसमूह ने किस जीवन-दर्शन का अनुभव किया था, तो इसका एकमात्र उत्तर यही है कि भारतीय-साहित्य, कला, जीवन, संस्कृति और दर्शन— इन सबकी उपलब्धि ‘धर्म’ है। इन सभी के बाद भी इस देश में धर्म (सनातन जीवन-मूल्य) की उपेक्षा हो रही है और उसे 'मजहब" (सम्प्रदाय=रिलिजन) से जोड़ा जा रहा है.
Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

बूढा और बेटा


“बूढा और बेटा”

एक बहुत बड़े घर में ड्राइंग रूम में सोफा पर एक 80 वर्षीय
वृद्ध अपने 45 वर्षीय पुत्र के साथ बैठे हुए थे।

पुत्र बहुत
बड़ा विद्वान् था और अखबार पढने में व्यस्त था।

तभी कमरे की खिड़की पर एक कौवा आकर बैठ गया।

पिता ने पुत्र से पूछा – “ये क्या है?”
पुत्र ने कहा – “कौवा है”।

कुछ देर बाद पिता ने पुत्र से दूसरी बार पूछा – “ये
क्या है?”

पुत्र ने कहा – “अभी दो मिनट पहले तो मैंने
बताया था कि ये कौवा है।”

ज़रा देर बाद बूढ़े पिता ने पुत्र से फ़िर से पूछा – “ये
खिड़की पर क्या बैठा है?”

इस बार पुत्र के चेहरे पर खीझ के भाव आ गए और वह
झल्ला कर बोला – “ये कौवा है, कौवा!”

पिता ने कुछ देर बाद पुत्र से चौथी बार पूछा – “ये
क्या है?”

पुत्र पिता पर चिल्लाने लगा – “आप मुझसे बार-बार
एक ही बात क्यों पूछ रहे हैं? चार बार मैंने
आपको बताया कि ये कौवा है!

आपको क्या इतना भी नहीं पता! देख नहीं रहे कि मैं
अखबार पढ़ रहा हूँ!?”

पिता उठकर धीरे-धीरे अपने कमरे में गया और अपने साथ
एक बेहद फटी-पुरानी डायरी लेकर आया।

उसमें से एक
पन्ना खोलकर उसने पुत्र को पढने के लिए दिया। उस
पन्ने पर लिखा हुआ था:

“आज मेरा तीन साल का बेटा मेरी गोद में बैठा हुआ
था तभी खिड़की पर एक कौवा आकर बैठ गया। उसे
देखकर मेरे बेटे ने मुझसे 23 बार पूछा – पापा-पापा ये
क्या है? – और मैंने 23 बार उसे बताया – बेटा, ये
कौवा है। – हर बार वो मुझसे एक ही बात पूछता और
हर बार मैं उसे प्यार से गले लगाकर उसे बताता –
ऐसा मैंने 23 बार किया।”

शुभ रात्रि मित्रों________________

___________नारायण श्री हरिः ____________

"बूढा और बेटा" एक बहुत बड़े घर में ड्राइंग रूम में सोफा पर एक 80 वर्षीय वृद्ध अपने 45 वर्षीय पुत्र के साथ बैठे हुए थे। पुत्र बहुत बड़ा विद्वान् था और अखबार पढने में व्यस्त था। तभी कमरे की खिड़की पर एक कौवा आकर बैठ गया। पिता ने पुत्र से पूछा – “ये क्या है?” पुत्र ने कहा – “कौवा है”। कुछ देर बाद पिता ने पुत्र से दूसरी बार पूछा – “ये क्या है?” पुत्र ने कहा – “अभी दो मिनट पहले तो मैंने बताया था कि ये कौवा है।” ज़रा देर बाद बूढ़े पिता ने पुत्र से फ़िर से पूछा – “ये खिड़की पर क्या बैठा है?” इस बार पुत्र के चेहरे पर खीझ के भाव आ गए और वह झल्ला कर बोला – “ये कौवा है, कौवा!” पिता ने कुछ देर बाद पुत्र से चौथी बार पूछा – “ये क्या है?” पुत्र पिता पर चिल्लाने लगा – “आप मुझसे बार-बार एक ही बात क्यों पूछ रहे हैं? चार बार मैंने आपको बताया कि ये कौवा है! आपको क्या इतना भी नहीं पता! देख नहीं रहे कि मैं अखबार पढ़ रहा हूँ!?” पिता उठकर धीरे-धीरे अपने कमरे में गया और अपने साथ एक बेहद फटी-पुरानी डायरी लेकर आया। उसमें से एक पन्ना खोलकर उसने पुत्र को पढने के लिए दिया। उस पन्ने पर लिखा हुआ था: “आज मेरा तीन साल का बेटा मेरी गोद में बैठा हुआ था तभी खिड़की पर एक कौवा आकर बैठ गया। उसे देखकर मेरे बेटे ने मुझसे 23 बार पूछा – पापा-पापा ये क्या है? – और मैंने 23 बार उसे बताया – बेटा, ये कौवा है। – हर बार वो मुझसे एक ही बात पूछता और हर बार मैं उसे प्यार से गले लगाकर उसे बताता – ऐसा मैंने 23 बार किया।” शुभ रात्रि मित्रों________________ ___________नारायण श्री हरिः ____________
Posted in Love Jihad

लव जेहाद


भारत में लव जेहाद का शुरुआत नेहरु और
गाँधी की प्रेरणा से हुआ था … भारत
छोडो आन्दोलन के शुरुआत में आसफ अली .. और
अरुणा देशमुख शामिल थे … आसफ अली ने
अरुणा को प्रेम जाल में फंसाया .. अरुणा के
पिता ने गाँधी जी से कहा की उनकी बेटी के
सर से एक मुस्लिम आसिफ अली का भूत उतार
दे … उलटे गाँधी ने कहा की इससे हिन्दू और
मुस्लिम और करीब आयेंगे .. और बाद में नेहरु
और गाँधी की उपस्थिति में दोनों ने निकाह
कर लिया और अरुणा आज अरुणा आसफ अली के
नाम से जानी जाती है …

Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

सिरदर्द के लिए घरेलू चिकित्सा


 

सिरदर्द के लिए घरेलू चिकित्सा ——-
________________________________________________

कई बार सिर में ऐसा दर्द होता है जो असहनीय हो जाता है। सिरदर्द कई कारणों से होता है, जिनमें तनाव और थकान प्रमुख हैं। हालांकि, कई बार गैस के कारण भी सिर में दर्द होता है। जब पेट की गैस ऊपर चढती है और पास नहीं हो पाती है तो यह दिल और दिमाग पर असर करती है, जिसके कारण सिरदर्द होता है। आइए हम आपको सिरदर्द से बचने के घरेलू उपाय के बारे में बताते हैं।

सिरदर्द से बचने के घरेलू उपचार –

सिरदर्द होने पर बिस्तर पर लेटकर दर्द वाले हिस्से को बेड के नीचे लटका दीजिए। सिर के जिस हिस्से में दर्द हो रहा हो उस तरफ वाले नाक में सरसों के तेल की कुछ बूंदें डाल दीजिए, उसके बाद जोर से सांसों को ऊपर की तरफ खींचिए इससे सिरदर्द से राहत मिलेगी।
सिरदर्द होने पर दालचीनी को पानी के साथ महीन पीसकर माथे पर पतला लेप कर लगा लीजिए। लेप सूख जाने पर उसे हटा लीजिए। 3-4 लेप लगाने पर सिरदर्द होना बंद हो जाएगा।

पुष्कर मूल को चंदन की तरह घिसकर उसके लेप को माथे पर लगाने से सिर दर्द ठीक होता है।
मुलहठी को कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण को नाक के पास ले जाकर सूंघने से सिरदर्द में राहत मिलती है।
सिरदर्द होने पर पीपल, सोंठ, मुलहठी, सौंफ, कूठ इन सबको लगभग 10-10 ग्राम लेकर पीसकर चूर्ण बना लीजिए। उसके बाद इस चूर्ण में एक चम्मुच पानी मिलाकर गाढा लेप बना बना लीजिए। इस लेप को माथे पर लगाइए। सिरदर्द होना बंद हो जाएगा।
गोदन्ती भस्म व प्रवाल भस्म और छोटी इलायची के दाने। तीनों को पीसकर महीन चूर्ण बना लीजिए। सुबह उठकर खाली पेट थोडा सा चूर्ण लेकर दही और पानी के साथ पीजिए। इससे सरदर्द की समस्या से निजात मिलेगी।
तौलिये को हल्केक गर्म पानी में डालकर उस तौलिये से दर्द वाले हिस्सों की मालिश कीजिए। इससे सिरदर्द में फायदा होगा।

सिरदर्द कई बार अचानक शुरू होता है और अक्सर अपने आप ठीक भी हो जाता है। सिरदर्द में हाथों के स्पर्श से मिलने वाला आराम किसी भी दवा से ज्यादा असरदायक होता है। अगर इन नुस्खों को अपनाने के बावजूद भी सिरदर्द से राहत न मिले तो चिकित्सक से संपर्क अवश्य कीजिए।

 

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

दुनिया का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर कम्बोडिया का अंगकोरवाट


दुनिया का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर कम्बोडिया का अंगकोरवाट

क्या आप जानते है की दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर कहाँ है..??

एक हिन्दुराष्ट्र देश जिसका नाम कम्बोडिया है जिसका राष्ट्र चिन्ह भी हिन्दू मंदिर है बहुत कम ही लोगो पता होगा इसके बारे में इसलिए में आपको इस देश के बारे में बताना चाहता हूँ|

कम्बोडिया का राष्ट्रीय चिह्न अंगकोरवाट का प्राचीन हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर अपने आकार के कारण दुनिया का सबसे बड़ा धर्मस्थल है। इसका चित्र वहाँ के ध्वज के बीच में लगा है। अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के शासनकाल में हुआ था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है।राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में स्थान दिया गया है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच अमृत मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहाँ केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। सनातनी लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।

अंगकोरवाट मंदिर की भारत में बनने जा रही प्रतिकृति को प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका टाइम ने दुनिया की पांच सबसे आश्चर्यजनक प्रतिकृतियों की सूची में अव्वल माना है। पत्रिका के अनुसार विश्व धरोहर अंगकोरवाट मंदिर की प्रतिकृति बिहार में पवित्र गंगा नदी के किनारे बनाई जा रही है। करीब 40 एकड़ भूमि पर सौ करोड़ रुपए की लागत से भारतीय मंदिर ट्रस्ट इसका निर्माण कराएगा। पत्रिका के अनुसार 222 फीट की यह प्रतिकृति दुनिया में सबसे ऊंचा हिंदू मंदिर हो सकता है। इसका नाम विराट अंगकोरवाट राम मंदिर होगा। इसे भगवान विष्णु की बजाय रामचंद्र को समर्पित किया जाएगा। जिस जगह इसे बनाया जा रहा है वहां के बारे में मान्यता है कि अयोध्या के वनवासी राजा रामचंद्र वहां भी गए थे। इस परियोजना के नियोजक और पूर्व पुलिस अधिकारी किशोर कुणाल के अनुसार जो लोग कंबोडिया जाकर अंगकोरवाट मंदिर नहीं देख पाते, वे यहीं पर असली मंदिर की भव्यता और वैभव के दर्शन कर पाएंगे।

दुनिया का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर कम्बोडिया का अंगकोरवाट

क्या आप जानते है की दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर कहाँ है..??

एक हिन्दुराष्ट्र देश जिसका नाम कम्बोडिया है जिसका राष्ट्र चिन्ह भी हिन्दू मंदिर है बहुत कम ही लोगो पता होगा इसके बारे में इसलिए में आपको इस देश के बारे में बताना चाहता हूँ|

कम्बोडिया का राष्ट्रीय चिह्न अंगकोरवाट का प्राचीन हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर अपने आकार के कारण दुनिया का सबसे बड़ा धर्मस्थल है। इसका चित्र वहाँ के ध्वज के बीच में लगा है। अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53ई.) के शासनकाल में हुआ था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है।राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में स्थान दिया गया है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच अमृत मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहाँ केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। सनातनी लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं।

अंगकोरवाट मंदिर की भारत में बनने जा रही प्रतिकृति को प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका टाइम ने दुनिया की पांच सबसे आश्चर्यजनक प्रतिकृतियों की सूची में अव्वल माना है। पत्रिका के अनुसार विश्व धरोहर अंगकोरवाट मंदिर की प्रतिकृति बिहार में पवित्र गंगा नदी के किनारे बनाई जा रही है। करीब 40 एकड़ भूमि पर सौ करोड़ रुपए की लागत से भारतीय मंदिर ट्रस्ट इसका निर्माण कराएगा। पत्रिका के अनुसार 222 फीट की यह प्रतिकृति दुनिया में सबसे ऊंचा हिंदू मंदिर हो सकता है। इसका नाम विराट अंगकोरवाट राम मंदिर होगा। इसे भगवान विष्णु की बजाय रामचंद्र को समर्पित किया जाएगा। जिस जगह इसे बनाया जा रहा है वहां के बारे में मान्यता है कि अयोध्या के वनवासी राजा रामचंद्र वहां भी गए थे। इस परियोजना के नियोजक और पूर्व पुलिस अधिकारी किशोर कुणाल के अनुसार जो लोग कंबोडिया जाकर अंगकोरवाट मंदिर नहीं देख पाते, वे यहीं पर असली मंदिर की भव्यता और वैभव के दर्शन कर पाएंगे।
Posted in Love Jihad

लव जिहाद


आज मैं फिर एक बार एक गंभीर विषय पर आप सबका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा , मुद्दे हैं लव जिहाद और उत्तरप्रदेश में हिन्दू महिलाओं के साथ मुस्लिम पुरुषो द्वारा बलात्कार और निष्क्रिय प्रशासन । लेख थोड़ा लम्बा है किन्तु आप सभी से अनुरोध है केवल पांच मिनिट का टाइम जरूर निकालें ।

महाभारत में वर्णित पांडव-कौरवों के युद्ध की समाप्ति के बाद राजा युधिष्ठिर सरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह से राजकार्य संबंधी नीतिवचन प्राप्त करते हैं । राजा के लिए क्या कृत्य है क्या नहीं इस बाबत अनेकानेक बातें भीष्म बताते हैं । उसी प्रकरण में वे यह भी कहते हैं कि उस राजा को प्रजा ने मृत्युदंड दे देना चाहिए जो उनकी सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लेता है । मैं तत्संबंधित तीन श्लोकों की चर्चा यहां पर कर रहा हूं । ये तीनों महाभारत के अनुशासनपर्व (अध्याय ६१) से उद्धृत किए जा रहे हैं ।

क्रोश्यन्त्यो यस्य वै राष्ट्राद्ध्रियन्ते तरसा स्त्रियः ।
क्रोशतां पतिपुत्राणां मृतोऽसौ न च जीवति ॥३१॥

(महाभारत, अनुशासनपर्व, अध्याय ६१)

(यस्य वै राष्ट्रात् क्रोशताम् पतिपुत्राणाम् क्रोश्यन्त्यः स्त्रियः तरसा ध्रियन्ते असौ मृतः न च जीवति ।)

अर्थ – जिस राजा के राज्य में चीखती-चिल्लाती स्त्रियों का बलपूर्वक अपहरण होता है और उनके पति-पुत्र रोते-चिल्लाते रहते हैं, वह राजा मरा हुआ है न कि जीवित ।

जो राजा अपहरण की जा रही स्त्रियों की सुरक्षा के लिए समुचित कदम नहीं उठाता और उनके दुःखित बंधु-बांधवों की विवशता से विचलित नहीं होता वह जीते-जी मरे हुए के समान है । उसके जीवित होने की कोई सार्थकता नहीं रह जाती ।

ध्यान रहे कि आज के लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था में जो सत्ता के शीर्ष पर हो वही राजा की भूमिका निभाता है । इसलिए राजा के संदर्भ में जो बातें कही गई हैं वह आज के शासकों पर यथावत लागू होती हैं । अपने देश के कुछ राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, में इस समय स्त्रियों के प्रति दुष्कर्म के मामले चरम पर हैं, किंतु शासकीय व्यवस्था इतनी गिरी हुई है कि किसी को दंडित नहीं किया जा रहा है । ऐसे शासकों को वस्तुतः डूब मरना चाहिए!

अरक्षितारं हर्तारं विलोप्तारमनायकम् ।
तं वै राजकलिं हन्युः प्रजाः सन्नहा निर्घृणम् ॥३२॥

(अरक्षितारम् हर्तारम् विलोप्तारम् अनायकम् तम् निर्घृणम् राजकलिम् प्रजाः वै सन्नहा हन्युः ।)

अर्थ – जो राजा अपनी जनता की रक्षा नहीं करता, उनकी धनसंपदा छीनता या जब्त करता है, जो योग्य नेतृत्व से वंचित हो, उस निकृष्ट राजा को प्रजा ने बंधक बनाकर निर्दयतापूर्वक मार डालना चाहिए ।

राजा का कर्तव्य है अपनी प्रजा की रक्षा करना, उसको सुख-समृद्धि के अवसर प्रदान करना | तभी वह जनता से कर वसूलने का हकदार बन सकता है । अपने कर्तव्यों का निर्वाह न करने वाला राजा जब कर वसूले तो उसको लुटेरा ही कहा जाएगा । नीति कहती है कि ऐसे राजा को निकृष्ट कोटि का मानना चाहिए । उसके प्रति दयाभाव रखे बिना ही परलोक भेज देना चाहिए ।

आज की शासकीय स्थिति कुछ राज्यों में अति दयनीय है । परंतु दुर्भाग्य से सत्तासुख भोग रहे वहां के शासकों को दंडित करने वाला कोई नहीं । लोग कहते हैं कि पांच-पांच सालों में होने वाले चुनावों द्वारा जनता उन्हें सत्ता से बेदखल कर देती है । लेकिन ध्यान दें कि न चुना जाना कोई दंड नहीं होता है । किसी भी चुनाव में कई प्रत्याशी भाग लेते हैं जिनमें से एक चुना जाता है । “अन्य सभी को दंडित कर दिया” ऐसा क्या कहा जा सकता है ? सवाल असल में दंडित किये जाने का है जो वास्तव में होता नहीं ।

अहं वो रक्षितेत्युक्त्वा यो न रक्षति भूमिपः ।
स संहत्य निहंतव्यः श्वेव सोन्मादः आतुरः ॥३३॥

(अहम् वः रक्षिता इति उक्त्वा यः भूमिपः न रक्षति सः स-उन्मादः आतुरः श्व-इव संहत्य निहंतव्यः ।)

अर्थ – मैं आप सबका रक्षक हूं यह वचन देकर जो राजा रक्षा नहीं करता, उसे रोग एवं पागलपन से ग्रस्त कुत्ते की भांति सबने मिलकर मार डालना चाहिए ।

इस श्लोक में कटु शब्दों का प्रयोग हुआ है । शासक का पहला कर्तव्य है कि वह भयमुक्त समाज की रचना करे – भयमुक्त निरीह-निरपराध प्रजा के लिए, न कि अपराधियों के लिए । आज की स्थिति उल्टी है । अपराधी निरंकुश-स्वच्छंद विचरण करते हुए और सामान्य जन डरे-सहमे दिखते हैं । जिस शासक के राज्य में ऐसा हो उसे ग्रंथकार ने पागल कुत्ते की संज्ञा दी है । ऐसे कुत्ते का एक ही इलाज होता है, मौत । दुर्भाग्य से हमारे शासक सबसे पहले अपनी सुरक्षा का इंतजाम करते हैं । कोई सामान्य व्यक्ति उनके पास पहुंच तक नहीं सकता, आगे कुछ करने का तो सवाल ही नहीं ।

ये नीतिश्लोक दर्शाते हैं कि महाभारत ग्रंथ में कर्तव्यों में विफल शासक को पतित और निकृष्ट श्रेणी का कहा गया है ।

आज मैं फिर एक बार एक गंभीर विषय पर आप सबका ध्यान आकर्षित करना चाहूँगा , मुद्दे हैं लव जिहाद और उत्तरप्रदेश में हिन्दू महिलाओं के साथ मुस्लिम पुरुषो द्वारा बलात्कार और निष्क्रिय प्रशासन । लेख थोड़ा लम्बा है किन्तु आप सभी से अनुरोध है केवल पांच मिनिट का टाइम जरूर निकालें । महाभारत में वर्णित पांडव-कौरवों के युद्ध की समाप्ति के बाद राजा युधिष्ठिर सरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह से राजकार्य संबंधी नीतिवचन प्राप्त करते हैं । राजा के लिए क्या कृत्य है क्या नहीं इस बाबत अनेकानेक बातें भीष्म बताते हैं । उसी प्रकरण में वे यह भी कहते हैं कि उस राजा को प्रजा ने मृत्युदंड दे देना चाहिए जो उनकी सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लेता है । मैं तत्संबंधित तीन श्लोकों की चर्चा यहां पर कर रहा हूं । ये तीनों महाभारत के अनुशासनपर्व (अध्याय ६१) से उद्धृत किए जा रहे हैं । क्रोश्यन्त्यो यस्य वै राष्ट्राद्ध्रियन्ते तरसा स्त्रियः । क्रोशतां पतिपुत्राणां मृतोऽसौ न च जीवति ॥३१॥ (महाभारत, अनुशासनपर्व, अध्याय ६१) (यस्य वै राष्ट्रात् क्रोशताम् पतिपुत्राणाम् क्रोश्यन्त्यः स्त्रियः तरसा ध्रियन्ते असौ मृतः न च जीवति ।) अर्थ – जिस राजा के राज्य में चीखती-चिल्लाती स्त्रियों का बलपूर्वक अपहरण होता है और उनके पति-पुत्र रोते-चिल्लाते रहते हैं, वह राजा मरा हुआ है न कि जीवित । जो राजा अपहरण की जा रही स्त्रियों की सुरक्षा के लिए समुचित कदम नहीं उठाता और उनके दुःखित बंधु-बांधवों की विवशता से विचलित नहीं होता वह जीते-जी मरे हुए के समान है । उसके जीवित होने की कोई सार्थकता नहीं रह जाती । ध्यान रहे कि आज के लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था में जो सत्ता के शीर्ष पर हो वही राजा की भूमिका निभाता है । इसलिए राजा के संदर्भ में जो बातें कही गई हैं वह आज के शासकों पर यथावत लागू होती हैं । अपने देश के कुछ राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, में इस समय स्त्रियों के प्रति दुष्कर्म के मामले चरम पर हैं, किंतु शासकीय व्यवस्था इतनी गिरी हुई है कि किसी को दंडित नहीं किया जा रहा है । ऐसे शासकों को वस्तुतः डूब मरना चाहिए! अरक्षितारं हर्तारं विलोप्तारमनायकम् । तं वै राजकलिं हन्युः प्रजाः सन्नहा निर्घृणम् ॥३२॥ (अरक्षितारम् हर्तारम् विलोप्तारम् अनायकम् तम् निर्घृणम् राजकलिम् प्रजाः वै सन्नहा हन्युः ।) अर्थ – जो राजा अपनी जनता की रक्षा नहीं करता, उनकी धनसंपदा छीनता या जब्त करता है, जो योग्य नेतृत्व से वंचित हो, उस निकृष्ट राजा को प्रजा ने बंधक बनाकर निर्दयतापूर्वक मार डालना चाहिए । राजा का कर्तव्य है अपनी प्रजा की रक्षा करना, उसको सुख-समृद्धि के अवसर प्रदान करना | तभी वह जनता से कर वसूलने का हकदार बन सकता है । अपने कर्तव्यों का निर्वाह न करने वाला राजा जब कर वसूले तो उसको लुटेरा ही कहा जाएगा । नीति कहती है कि ऐसे राजा को निकृष्ट कोटि का मानना चाहिए । उसके प्रति दयाभाव रखे बिना ही परलोक भेज देना चाहिए । आज की शासकीय स्थिति कुछ राज्यों में अति दयनीय है । परंतु दुर्भाग्य से सत्तासुख भोग रहे वहां के शासकों को दंडित करने वाला कोई नहीं । लोग कहते हैं कि पांच-पांच सालों में होने वाले चुनावों द्वारा जनता उन्हें सत्ता से बेदखल कर देती है । लेकिन ध्यान दें कि न चुना जाना कोई दंड नहीं होता है । किसी भी चुनाव में कई प्रत्याशी भाग लेते हैं जिनमें से एक चुना जाता है । “अन्य सभी को दंडित कर दिया” ऐसा क्या कहा जा सकता है ? सवाल असल में दंडित किये जाने का है जो वास्तव में होता नहीं । अहं वो रक्षितेत्युक्त्वा यो न रक्षति भूमिपः । स संहत्य निहंतव्यः श्वेव सोन्मादः आतुरः ॥३३॥ (अहम् वः रक्षिता इति उक्त्वा यः भूमिपः न रक्षति सः स-उन्मादः आतुरः श्व-इव संहत्य निहंतव्यः ।) अर्थ – मैं आप सबका रक्षक हूं यह वचन देकर जो राजा रक्षा नहीं करता, उसे रोग एवं पागलपन से ग्रस्त कुत्ते की भांति सबने मिलकर मार डालना चाहिए । इस श्लोक में कटु शब्दों का प्रयोग हुआ है । शासक का पहला कर्तव्य है कि वह भयमुक्त समाज की रचना करे – भयमुक्त निरीह-निरपराध प्रजा के लिए, न कि अपराधियों के लिए । आज की स्थिति उल्टी है । अपराधी निरंकुश-स्वच्छंद विचरण करते हुए और सामान्य जन डरे-सहमे दिखते हैं । जिस शासक के राज्य में ऐसा हो उसे ग्रंथकार ने पागल कुत्ते की संज्ञा दी है । ऐसे कुत्ते का एक ही इलाज होता है, मौत । दुर्भाग्य से हमारे शासक सबसे पहले अपनी सुरक्षा का इंतजाम करते हैं । कोई सामान्य व्यक्ति उनके पास पहुंच तक नहीं सकता, आगे कुछ करने का तो सवाल ही नहीं । ये नीतिश्लोक दर्शाते हैं कि महाभारत ग्रंथ में कर्तव्यों में विफल शासक को पतित और निकृष्ट श्रेणी का कहा गया है ।