महान आक्रान्ता क्यों ? गौरवपुरुष क्यों नहीं ?
भारत के अतीत के गौरवशाली पृष्ठ देश की युवा पीढी के सामने न आयें इसलिए इन पृष्टों पर कालिख पोतने का सुनियोजित षड्यंत्र आजादी के बाद से लगातार कुछ इतिहासकारों द्बारा किया गया । आज तक हमें जो इतिहास पढाया गया है उसके तथ्य सत्य की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं । गुलामी के दिनों में जो इतिहास विकृत किया गया वह आज भी पढ़ना पड़ता है – इससे बढ़कर बिडम्बना और क्या होगी ? आजादी के बाद इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़कर उन्हें घातक तुष्टीकरण की नीति के अनुरूप ढाला गया । राष्ट्र के गौरवशाली महापुरुषों और संस्कृति के पुरोधाओं के प्रति वितृष्णा का जहर घोला गया । भारत की गौरवशाली हिंदू संस्कृति ,सनातन परम्परा व् देश के राष्ट्रपुरुषों जिन्होंने विधर्मी आक्रान्ताओं के साथ संघर्ष किया उनको लांछित करना ,कलंकित करना ,हेय और त्याज्य मानना अक्षम्य भूल है । क्योंकि हिन्दुस्तान के इतिहास में गर्व करने लायक बहुत कुछ है ।इतिहास ही समाज के लिए प्रेरक होता है।इतिहास राष्ट्र का जीवन -चरित्र और संस्कृति-प्राण होता है । इसमे कोई संदेह नहीं कि इतिहास बीती हुई गाथा है ,लेकिन इतिहास अतीत से प्रेरणा ,सबक और शक्ति प्राप्त करने का साधन भी है। हम इतिहास से सीखकर वर्तमान को बदल सकते हैं ,परन्तु वर्तमान की वैयक्तिक स्वार्थी महत्वाकांक्षाओं के कारण इतिहास को नही बदला जा सकता ।अपने देश के तथाकथित सेकुलर नेताओं का चरित्र ऐसा है कि राम ,शिवाजी और महाराणा प्रताप में इन्हें साम्प्रदायिकता की बू आती है ,अकबर और औरंगजेब में सेकुलर छवि नजर आती है। बलिहारी है इन तथाकथित सेकुलरों की वोटपरस्त विकृत मानसिकता को ! विचारणीय प्रश्न यह है कि वर्तमान पीढी की श्रद्धा ,उसका आदरभाव किन लोगों के प्रति होना चाहिए ? क्या वर्तमान पीढी की श्रद्धा के केन्द्र वे मुस्लिम आक्रान्ता उस्मान , उबैदुल्ला , मोहम्मद बिन कासिम , महमूद गजनबी ,मसूद सालार , मोहम्मद गौरी , कुतुबुद्दीन , अल्तमस , बलवन , अलाउद्दीन खिलजी , मोहम्मद तुगलक ,इब्राहिम लोदी , शेरशाह शूरी ,बाबर, अकबर, औरंगजेब होने चाहियें जिन्होंने इस्लामी झंडा फहराने के लिए ,समूल हिंदू-राष्ट्र रूपी वटवृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया, हिंदू ग्रामों को जलाया, बहू-बेटियों का बलात्कार किया और अपहरण किया, ज्ञान के भंडार संस्कृत-साहित्य को नष्ट किया, मंदिरों-देवालयों का विध्वंस किया और बलात् धर्मान्तरण कर भारत के सांस्कृतिक-राष्ट्रभाव को तिरोहित करने का प्रयास किया ? नहीं ,कदापि नहीं !देश की वर्तमान पीढी के आदर्श ,उनके प्रेरणा-स्त्रोत वो मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम होने चाहिए जिन्होंने जात-पात का बंधन तोडा ,केवट को गले लगाया । देश की वर्तमान पीढी का आदरभाव उन महाराणा प्रताप के प्रति होना चाहिए जिनके जीवन में स्वदेश और स्वधर्म के प्रति अविचल अनुराग था , देश-रक्षा के महान वृत से भरा हुआ अदम्य साहस था , मातृभूमि के प्रति अविचल निष्ठा थी ,आत्माहुति थी ,जिन्होंने कष्ट और बलिदान का कंटकाकीर्ण पथ चुनकर मेवाड़ की सत्ता और सम्मान को समाप्त करने के अकबर के सपनों को ही नहीं तोडा बल्कि कई संभावनाओं को उनके जन्म से पहले ही ख़त्म कर दिया । देश की वर्तमान पीढी की श्रृद्धा , उसके प्रेरणा-पुंज वे छत्रपति शिवाजी महाराज होने चाहियें जो राष्ट्रीय-स्वाभिमान और स्वराज के लिए अपने प्राणों पर खेलने से भी नहीं हिचकिचाए। देश की वर्तमान पीढी की श्रद्धा ,उसका आदरभाव उन रानी दुर्गावती के प्रति होना चाहिए जिन्होंने अपने युग की प्रचंड शक्ति अकबर से लोहा लिया .देश की वर्तमान पीढी के नायक, हीरो वे स्वामी विवेकानंद होने चाहियें जिन्होंने अखिल विश्व में भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की विजय-पताका फहरायी ।आज की पीढी का रोल मॉडल वह शहीद-ऐ-आजम भगत सिंह होना चाहिए जिसने भारत की आजादी का पहला सूरजदेखने के लिए हँसते-हँसते फांसी का फंदा चूम लिया ।देश और धर्म की रक्षा और विजय के लिए तिल-तिल जीना और फ़िर उसके लिए अपना सर्वस्व लुटा देना एक प्रकार की कठोर कर्म-साधना है। महाराणा-प्रताप,छत्रपति शिवाजी महाराज,रानी दुर्गावती, स्वामी विवेकानंद ,गुरु गोविन्द सिंह, वीर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद ,शहीद भगत सिंह, लोकमान्य तिलक, सुभाष चंद्र बोस ,चाफेकर बंधुओं, जैसे देश के कई राष्ट्रपुरुषों का जीवन ऐसी ही कठोर कर्म-साधना में बीता, तो फ़िर ऐसे प्रेरणास्पद जीवन-चरित्रों के बारे में आज हमारे देश की पाठ्यपुस्तकों में क्यों नहीं पढाया जाता ? जिन्होंने राष्ट्रभाव की विरोधी प्रत्येक सत्ता का हमेशा प्रतिकार किया उनका प्रेरक इतिहास क्यों नहीं देश के भावी कर्णधारों को बताया जाना चाहिए?पाठ्यक्रम का उद्देश्य सकारात्मक शिक्षा होना चाहिए । हमारी पाठ्यपुस्तकों में राष्ट्र के गौरवपुरुषों की चर्चा होनी चाहिए । इतिहास का पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जिसमे भारत का अपना प्राचीन गौरवशाली अतीत ,भारत की आत्मा ,भारत का स्व अर्थात अपनापन झलके । स्वधर्म, स्वसंस्कृति, स्वजीवन-मूल्य, स्वश्रद्धा व मानबिंदुओं का जिसमे यथोचित समावेश हो।आज समाज और राष्ट्र की सोयी अस्मिता जगाने के लिए ,उसका मनोबल ऊंचा करने के लिए ताकि वह प्रखर,तेज व कठोर कर्तव्य-बोध से सिद्ध हो सके, उसके लिए भारतीय इतिहास में भरे पड़े बलिदान व पराक्रम के गौरवशाली तेजस्वी प्रसंगों व दृष्टांतों को बड़े गर्वीले अंदाज में युवा-पीढी के समक्ष रखने की नितांत आवश्यकता है।भारत के इतिहास को उसकी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति और आध्यात्मिक पहचान के साथ जोड़कर देखना साम्प्रदायिकता नहीं है।परन्तु हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि राष्ट्र, राष्ट्रीयता ,और संस्कृति के गौरवगान की जब भी बात की जाती है हमारे देश के सेकुलर योद्धाओं के पेट में मरोड़ उठने लगती है ,क्योंकि इन सेकुलर शिखंडियों के लिए तो अकबर महान है, औरंगजेब जिन्दा पीर है ,किंतु महाराणा प्रताप और शिवाजी का नाम लेना फिरकापरस्ती हैsecularism के नाम पर देश के अन्दर यह क्या चल रहा है? ‘ सेकुलर’ शब्द का अर्थ केवल और केवल ‘हिंदू-विरोध’ तक सीमित कर दिया गया है । यदि हिंदू अपनी पूजा-अर्चना करता है,अपने राष्ट्रपुरुषों का पुण्य-स्मरण करता है, तो वह साम्प्रदायिक है ! पर मुसलमान मस्जिदों में ध्वनिवर्धकों द्वारा जहरीली हिंसा की आग भड़काने वाली तकरीरें देता है, जिन मुग़ल आक्रान्ताओं ने हिंदुस्तान के धर्म, संस्कृति और शिक्षा को नष्ट किया -यहाँ के नागरिकों पर नृशंस अत्याचार किए ,उनका गौरवगान -उनकी प्रशंसा करता है तो उसमें इन सेकुलरों को राष्ट्रीयता नजर आती है ? यह हिंदुस्तान की वोटपरस्त राजनीति की बिडम्बना नहीं तो और क्या है?वोट और कुर्सी की खातिर सेकुलर जमात देश के अन्दर कैसा सेकुलर पाठ्यक्रम लागू कराना चाहती है? ऐसा पाठ्यक्रम जिसमे छात्रों को पढाया जाए कि प्रथ्वीराज चौहान कायर और मोहम्मद गौरी वीर योद्धा था ! शिवाजी लुटेरे थे ,औरंगजेब जिन्दा पीर था !महाराणा प्रताप भगोडे थे, अकबर महान था ! रानी लक्ष्मीबाई अपनी झांसी छिन जाने की वजह से अंग्रेजों से लड़ीं ! वीर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, लोकमान्य तिलक, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ -ये सब आतंकवादी थे !सुभाषचंद्र बोस का तो स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान ही नहीं था ! देश को आजादी किसने दिलवाई -गांधी नेहरू खानदान ने ! स्वातंत्र्य प्रेम की खातिर जिन असंख्य हुतात्माओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया ;उनका त्याग कोई त्याग नहीं ! सच तो यह है कि देश की आजादी के इतिहास के नाम पर अब तक कांग्रेस पार्टी का इतिहास ही देश के नौनिहालों को पढाया गया है। इतिहास की ये विकृत धारणाएं देशकाल और देश की भावी पीढीयों के प्रति अन्याय हैं। परिणाम आत्मसम्मान और स्वाभिमान से वंचित वर्तमान पीढी के रूप में हमारे सामने है।हमें सोचना होगा कि क्या हमने आजादी इसलिए हासिल की थी कि गुलामी के दौर का वह स्वभाव, वह मानसिकता बनी रहे?सच पूछिए तो हम मनसा-वाचा-कर्मणा आज भी स्वतंत्र इसलिए नहीं हैं ,क्योंकि जिन महापुरुषों -गौरवपुरुषों के आचरण से,उनके व्यक्तित्व-कृतित्व और जीवन-चरित्र से हमें प्रेरणा मिल सकती थी उनके बारे में देश की वर्तमान पीढी को बताया ही नहीं गया। हमें आजाद हुए ६२ वर्ष बीत गए लेकिन आज भी स्वदेशी ,स्वाभिमान और राष्ट्रभाव तिरोहित है। इतिहास की भूलों से भी हमनें कोई सीख नहीं ली है और गलतियाँ आज पुनः दोहरायीं जा रहीं हैं।देश की चिंताएं और शिक्षा की चिंताएं कभी भी अलग-अलग नहीं हो सकतीं। देश के युवाओं को अब महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराजा छत्रसाल , रानी दुर्गावती ,पृथ्वीराज चौहान, स्वमीविवेकानंद, रानी लक्ष्मीबाई , तात्या टोपे, वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक, गुरु गोविन्द सिंह, चंद्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस आदि के विषय में बताया जाना चाहिए ,जिन्होंने भारतीयता और सांस्कृतिक-मूल्यों की रक्षा के लिए ;राष्ट्र की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया,ताकि उनमें राष्ट्राभिमान व् देशभक्ति की भावना बढे।”हम कौन थे ? क्या हो गए ?और क्या होंगे अभी ?आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी ॥”:-गुप्त जी की इन पंक्तियों में अन्तर्निहित मूल भावना को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में समझने की आज महती आवश्यकता है।