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१५ अगस्त : उपगणराज्य दिवस कहिये ना कि स्वतंत्रता दिवस


प्रगतिशील शुक्ल

१५ अगस्त : उपगणराज्य दिवस कहिये ना कि स्वतंत्रता दिवस

१५ अगस्त ही क्यों ?

६ अगस्त को हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया गया | जापान के राजा ने सिहासन नहीं छोड़ा | ९ अगस्त को दूसरा नगर नागासाकी पूर्णतः विध्वंस कर दिया गया | इस बार सन्देश और स्पष्ट था के यदि राजतंत्र हटा कर लोकतंत्र नहीं लाये जापान मे तो कोई जनता ही नही रहेगी राजा के पास हम एक के बाद एक आपके नगर विध्वंस कर देंगे | जापान के राजा ने अपने सामर्थ्य अनुसार प्रजा कि रक्षा का कर्तव्य निभाया और १५ अगस्त को समर्पण कर दिया | १५ अगस्त को जापान के राजा द्वारा समर्पण के साथ ही द्वतीय विश्व युद्ध का अंत हुआ | असंख्य नागरिको को मारने वालो ने मानवाधिकार का गठन किया | आंग्ल लोगो के लिए भी ये दिन विशेष हों गया |

१९४६ का नेवी,एयरफोर्स एवं क्षेत्रिय पुलिस का विद्रोह

१८ फरबरी १९४६ को उस काल मे कही जाने वाली रोयल इंडियन नेवी के जवानो ने विद्रोह कर दिया | अनेको कारण थे पर सबसे बड़ा कारण ये था सेना के जवानो को कांग्रेस का स्वराज्य प्राप्ति का आडम्बर पता चल गया था | आजाद हिंद फ़ौज के सिपाहियों के विरुद्ध लाल किले मे अभीयोग तो चल ही रहा था वो भी असंतोष का कारण था और आजाद हिंद फ़ौज के सिपाही प्रेरणा श्रोत बन गए थे | एक दम स्पष्ट था के अब अगर कांग्रेस पर छोड़ दिया तो कभी भी स्वतंत्रता नही मिलेगी |मुंबई से प्रारंभ हुआ ये विद्रोह हड़ताल के रूप मे था | पर शीघ्र ही ये सभी जगह फ़ैल गया था | देश भर के २० किनारों पर ७८ जहाज और २०००० नाविक इसमें सम्मलित हुए | ब्रिटिश रोयल नेवी ने इनके विरुद्ध कार्यवाही कि | इसमें सरकारी तौर पर ७ जवान बलिदान हों गए | ये विद्रोह बढ़ गया और २० फरबरी को कानपुर से कराची तक रोयल इंडियन एयरफ़ोर्स के ६० हवाई अड्डों पर ५०००० कर्मचारी भी साथ जुड गए | क्षेत्रिय पुलिस भी सम्मलित हों गई | जनता तो जुडी थी ही जब जहाजों पर रसद का अभाव हुआ तो भिखारियो ने चंदा जमा कर के उनकी सहायता करी | पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही इस विद्रोह कि निंदा करी | अब समझिए के ये दोनों दल किसके हित चाहने वाले थे ? श्री मोहनदास गाँधी ने तो यहाँ तक कहा के यदि जवानो को समस्या थी तो वे अपना त्यागपत्र दे देते | ध्यान देने योग्य बात है के ये सब वीर सावरकर कि तैयारियो का परिणाम था जो शुरू से कहते आरहे थे के हथियार तो पकड़ो समय आने पर बन्दुक कि नोक किस तरफ मोडनी है समझ आजाएगा | इसी कारण आजाद हिंद फ़ौज खड़ी हों पाई, वीर सवारकर का ही सुझाव था श्री शुभाष चन्द्र वसु जी को के श्री रास बिहारी वसु जी जापान मे तैयार बैठे है | जिसका श्री शुभाष जी ने रेडियो पर अपने अंतिम भाषण मे आभार भी व्यक्त किया |

श्री वल्लभ पटेल और मोहम्मद अली जिना के नेतृत्व मे अधिकारियो से बात कर के हड़ताल खत्म कराइ गई | जो के बाद मे उन अधिकारियों ने अपने साथ छलावा ही कहा | अब नेहरु और गांधी तो साहस करते नहीं सेना के अधिकारियो से मिलने के लिए क्यों के लोग जान चुके थे इनके बारे मे | पर हुआ वही जो नेहरु और गांधी करते | कोर्ट मार्शल का दौर चला | आंग्ल लोगो के जाने के बाद भी किसी को वापस सेवा मे नहीं रखा गया | यानी जिनके कारण आंग्ल लोगो के हाथ पाँव फुले और जिन्होंने १८५७ कि क्रान्ति कि पुनार्विभिसिका कि संभवाना आंग्ल लोगो को समझा दी हमारी कथित स्वंतत्र भारत कि सरकार ने उन्ही वीरो को प्रताड़ित किया गया | ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त था के काले अंग्रेज गोरो के लिए अत्याधिक निष्ठावान रहेंगे इन्डियन डोमिनियन मे यानी भारतीय उपगणराज्य मे |

१८५७ कि क्रान्ति का भय

आंग्ल लोग ये तो शुरू से ही जानते थे के वे अधिक दिनों तक यहाँ नही रह सकते अतः उन्होंने इंडियन एजुकेशन एक्ट १८३५ मे बनाया था | पर इसके उपरान्त भी पीढ़ी दर पीढ़ी सहस्त्रो वर्षों से गुरुकुल शिक्षा के संस्कारो को कैसे खत्म करे उन्हें नही पता था | जब १८५७ कि क्रान्ति हुई आंग्ल लोगो का जडमूल से नाश कर दिया गया | उंगलियो पर गिने जाने लायक अंग्रेज बचे थे | भारतीय राजाओ ने चिठ्ठी लिख कर उन्हें सहायता और अभय रहने का आश्वासन दिया और गोरो को २ साल लग गए युद्ध खत्म करने मे, तात्या टोपे जैसा शूरवीर सेना नायक जिसने धुल चटा दी, अंग्रेज जनरल आते थे और मरते थे और हमारा सेनापति वही का वही रहता था | उन्हें भी धोखे से पकड़ा गया और फ़ासी पर टांग दिया गया | नाना साहब पेशवा कि लड़की को जीवित जला दिया गया स्त्रियों को जीवित जलाने मे तो अंग्रेजो को सैकडो वर्षों का अनुभव है | पर उस वीरंगना से वे कुछ भी ना जान पाए | नाना साहब पेशवा कभी पकडे नहीं गए | वीर कुवर सिंह ८५ वर्ष कि आयु मे अद्भुत सैन्य नेतृत्व कर्ता थे पर हाथ मे क्षेपणी(गोली) लगने के कारण उन्होंने खुद ही तलवार से अपना हाथ काट डाला | संभवतः उन्हें गैंग्रीन हुआ होगा जिसके कारण उनका देहांत हों गया | १८६० से आंग्ल लोगो ने व्यापक परिवर्तन किए उन्हें समझ आगया के उनको तरीके बदलने होंगे अन्यथा अगली बार के विद्रोह मे इंग्लैंड मे पीढ़ी बढाने को कोई ना बचेगा | उन्होंने इन्डियन पुलिस एक्ट बनाया, सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया, इंडियन पीनल कोड बनाया, सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट बनाया इत्यादि अनेको अनेक कानून बनाये जो आज दिन भी वैसे के वैसे ही थे |

योगी का आगमन

परमात्मा कि कृपा सदैव से रही है जब हर स्तर पर हमारे समाज पर हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने वाला हमला हों रहा था तब ऐसा व्याकरण का महापंडित जो बाद मे सिद्ध योगी हुआ का प्रादुर्भाव हुआ जिसने ऋषि परंपरा को फिर से जीवित कर दिया | जैसे अगस्तस्य ऋषि के सामने रावण का भी साहस नहीं होता था ऐसे ही एक मुमुक्षु सन्यासी जो स्वामी और फिर महर्षि दयानंद कहलाया | १९०० के बाद के लगभग सभी क्रांतिकारीयो के मूल मे ऋषि दयानंद थे जिन्हें सब गर्व से स्वीकार करते थे | लगभग ८० प्रतिशत क्रन्तिकारी आर्य समाज से जुड़ा हुआ था | इस बात के अनेको प्रमाण मिलते है के महर्षि दयानंद ने सीधे १८५७ कि क्रान्ति मे सशस्त्र विद्रोह मे भाग लिया था | वास्तव मे ये सन्यासीयो द्वारा प्रायोजित विद्रोह ही था जिसकी तैयारी १८५४ से चल रही थी | परिणाम भी उसी अनुरूप मिले पर जैसा के ऋषि ने कहा ही है के भाइयो कि फूट | विरजानंद के आश्रम से निकलने के बाद स्वामी दयानंद ने ५ वर्षों मे लगभग ९ गुरुकुल खुलवाए पर वो अर्थाभाव मे चले नहीं | कारण था, अंग्रेजो को यही तो तोडना था गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था | उन्होंने और तप किया | शनैः-शनैः उनकी विद्वता और प्रसिद्धि सर्वत्र थी | महर्षि दयानंद कि लिखी “आर्याभिविनय” क्रांतिकारियों कि गीता कही जाने लगी |

१८७५ मे आर्य समाज कि स्थापना हुई | वाइसरॉय से महर्षि दयानंद कि चर्चा के बाद से ऋषि पर बराबर जासूसी कि जाने लगी क्यों के अंग्रेजो का कैसा भी प्रयास काम नही किया | और “सत्यार्थ प्रकाश” मे स्वराज्य कि बात इतने खुल कर लिखना | विदेशी शासन का स्थान-२ पर विरोध अंग्रेजो के लिए खतरे कि घंटी था | राज व्यवस्था को इतने सूक्ष्म स्तर पर समझने वाले ऋषि दयानंद ने वैदिक राज व्यवस्था का ना केवल वेद से प्रमाण दिया वेदों मे विमान विद्या,तार विद्या, परमाणु विज्ञान अपने ग्रन्थ “ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका” मे दिखा कर अंग्रेजो के झूठ वेद गडरियो के गीत इस बात कि धज्जिया उड़ा दी | उनके रहते आर्य बाहर से आये अधिक प्रचारित ना कर पाए क्यों के ऋषि ने राष्ट्रवादी संघठन “आर्य समाज” कि स्थापना कि | १८८३ मे जब आंग्ल लोगो ने उनकी हत्या कराई वे गौ रक्षा के लिए १ करोड लोगो के हस्ताक्षरी अभियान चला रहे थे | उनकी मृत्यु के बाद तो आंग्ल लोगो कि तो जैसे चांदी हों गई | उन्होंने अपने विचारों को स्थापित करने के लिए शैतानी संघठन फ्री मेसनरी से जुड़े व्यक्ति को १८९३ मे शिकागो पंहुचाया | सेक्युलारिस्म कि नीव डलवाने का प्रयास किया, वैदिक धर्म मे गौ मांस, राम कृष्ण कभी हुए नहीं इन बातो को सिद्ध करना चाहते थे भगवाधारी के मुख से कहला कर पर उस समय ये चल नहीं पाया | इधर आर्य समाज मे जो गुरुकुलो कि स्थापना का विचार चल रहा तथा उसका विरोध आंग्ला लोगो से सहानभूति रखने वालो ने किया और देखिये आंग्ला का विरोध करने वाले दयानंद के नाम के बाद एंग्लो और वेद का विरोध करने वालो को वैदिक से पहले एंग्लो इस प्रकार “दयानंद एंग्लो वैदिक” जो संछेप मे डी.ए.वी कहा गया कि स्थापना कि गई जो आज सरकार द्वारा अधिगृहित है सहायता के नाम पर |

कांग्रेस कि स्थापना

ह्यूम कि जिस रिपोर्ट मे सन्यासी विद्रोह का वर्णन आता है जिसके कारण वो कांग्रेस कि स्थापना कि संस्तुति कर रहा था उसके पीछे ऋषि दयानंद का ही हाथ था | निश्चित तौर पर अन्य साधू सन्यासी भी पूर्ण सहयोग दे रहे होंगे क्यों के सबसे अधिक जनबल महर्षि दयानंद के पास ही था | और महर्षि दयानंद कि ऋतम्भरा बुद्धि केवल अध्यात्म तक सिमित ना थी | इंग्लैण्ड मे इण्डिया हाउस कि स्थापना करने वाले श्याम जी कृष्ण वर्मा ऋषि दयानंद कि उत्तराधिकारी सभा के सदस्य थे | इण्डिया हाउस क्रांतिकारियों का गड था वही से वीर सावरकर ने १८५७ कि स्वातंत्रता समर लिख कर और फ्रेंच मे अनुवादित कर के फैलाई थी | तो अंग्रेजो को ऐसा मंच चाहिए था जिसमे जनता का विश्वास हों सके और जिसके कारण जनता सशस्त्र विद्रोह ना करे | कांग्रेस का ध्येय गोरो के प्राण बचाना था और अंग्रेजो को उस समय तक डोमिनियन व्यवस्था का सिद्धांत भी समझ आने लगा था |

डोमिनियन का विचार अच्छे से १८८८ तक उनके विचार मे आगया था प्रमाण स्वरुप डफरिन के विचार वाला ये दस्तावेज देखे जो मैं बगल मे दे रहा हू, इंडियन आशा से अधिक गुलाम निकले कर प्रणाली का कभी विरोध ही नहीं किया चोरी के नए तारिक अवश्य निकाले | वापस विषय पर आते है, कांग्रेस ने वही किया, जब भी कोई छलावे मे आया देशभक्त नेता कांग्रेस से जुड कर वास्तविक स्वराज्य कि मांग कर्ता तो वर्षों के लिए जेल मे डाल दिया जाता | श्री तिलक, श्री अरबिंदो इसके उदारहण थे | प्रफुल चाकी और खुदीराम वसु के चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड को मारने के प्रयास को तिलक ने सही ठहराया | जिसके कारण उन्हें जेल मे ६ वर्ष १९०८ से १९१४ तक डाल दिया गया | जेल काट के निकले तो कांग्रेस मे दुबारा मुश्किल से जगह बना पाए क्यों के जो बैठे थे वो अंग्रेजो के चाटुकार थे | १९१५ तक गोखले के जीवित रहते उनका कांग्रेस मे वापस आना मुश्किल ही रहा | १ अगस्त १९२० को मरते ही मोहनदास गाँधी का भाग्य चमक गया और कांग्रेस कि कमान उनके हाथ मे आगई | असहयोग आन्दोलन चला और २ वर्षों मे अंग्रेज डोमिनियन देने कि सोचने लगे | पर वैसे ही ५ फरबरी चौरी चौरा कि घटना हुई | कांग्रेस इसी को रोकने के लिए तो बनी थी गांधी ने अपना कर्तव्य निभाया १ सप्ताह मे यानी १२ फरबरी को आंदोलन वापस ले लिया | फिर चितरंजनदास और मोतीलाल ने १९२३ मे स्वराज्य पार्टी बनाई तो क्रांतिवीर सचिंद्रनाथ सान्याल और अमर बलिदानी क्रांतिवीर पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी ने १९२४ मे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाई क्यों के कांग्रेस का ध्येय लोग समझ चुके थे | यहाँ तक के चौरी चौरा कांड के लिए २२८ लोगो पर आरोप लगे १७२ क्रांतिकारियो को फ़ासी कि सजा हुई | मदन मोहन मालवीय जी ने जो के अधिवक्ता के तौर पर सन्यास ले चुके थे उनका केस लड़ा और १५० के करीब लोगो को फ़ासी के फंदे से बचाया पर फिर भी गोरो ने हमारे १९ क्रांतिवीरो को फ़ासी पर टांग दिया और ६ लोगो को पुलिस ने अपने अत्याचारों से मार दिया था | अंगेज भारतीयों का खून चूस रहे थे और समय काट रहे थे | कांग्रेस के साथ अनविज्ञता मे शुरू मे देशभक्त जुड़ते और फिर इसे समझते ही या तो निकाल दिए जाते या खुद छोड़ देते | बहुत से देश भक्त लम्बे समय तक इस खेल को समझ ही ना पाए | वीर सावरकर ने तो जेल मे रह कर ही कांग्रेस कि कालिख लगने से स्वयं को बचा लिया और कांग्रेस मे सम्मलित होने के प्रस्ताव को ठुकरा कर हिंदू महासभा का चयन किया | लाला लाजपत राय और मदन मोहन मालवीय जी हिंदू महासभा ही विकल्प है ये समझ चुके थे और खुद शुभाष चन्द्र वसु जी को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से मोहन दास गांधी ने त्यागपत्र देने को बाध्य किया | १९४२ कि अगस्त क्रांति मे १३-१४ के बच्चे-बच्चिया मारे गए पुलिस थानों मे अहिंसा का पालन करते हुए तिरंगा लगाने मे | यदि यही सशस्त्र विद्रोह होता तो १९४२ मे काले अंग्रेज भी मारे जाते |

गणतंत्र और चुनाव

१९११-१२ से जो चुनाव प्रक्रिया आरम्भ हुई जिसका सबने विरोध किया | १९३७ के प्रांतीय चुनावो को कांग्रेस शुरुआती नखरे दिखाते हुए स्वीकार कर लेती है | अर्थात १९३५ के बने गवर्मेंट आफ इंडिया एक्ट पर सहमत हों गए और जिसे गांधी ने कभी वैश्या तंत्र कहा था आज कांग्रेसी उसी मे तैरने के लिए लालायित थे | १९४७ का इन्डियन इंडिपेंडेंस एक्ट १९३५ के कानून के अंतर्गत है बस डोमिनियन के घोषणा के साथ [श्रोत: देखे बर्तानिया विधि पुस्तकालय] | बाद मे जो संविधान बना वो तो पूरी कि पूरी आंग्ल शासन पद्धति कि नकल रहा | नकल भी ऐसी है के कॉमा और फुल स्टॉप भी वैसे के वैसे ही है | स्वतंत्रता कि खुशी मना रहे वो भोले-भाले क्रांतिकारी जिन्हें कोई मूल्य नही चाहिए था | जिन्होंने जान दी शरीर पर ही नहीं आत्मा पर भी वार झेले | वो ब्राह्मण क्रन्तिकारी जो साफ़ सफाई का विशेष ख्याल रखते थे उन्हें विशेषकर गोरो ने मु मे मल मूत्र तक ठुसे और उन्होंने वो भी सरलता से झेल लिया पर टूटे नहीं | चमड़े के चाबुक और बर्फ कि सिल्लिया मजाक थी, क्रांतिकारियो के लिए उस से भी बड़ा मजाक बना रखा था फ़ासी का | किस मिट्टी से बने है इस देश एक बालक और बालिकाए ये अंग्रेज कभी समझ ना पाए | पर इसका मूल्य देना स्वतंत्रता संग्रामी पेंशन, क्या वे किसी मूल्य के लिए लड़े थे वे ? लाभ उन्होंने उठाया जिन्होंने कभी एक डंडा भी नही खाया और कांग्रेसी कार्यालय मे नारेबाजी कि | अंग्रेज चाहते थे हम चारित्रिक तौर पर गिरते चले जाए इसके लिए उन्होंने वर्षों से सोच रखा था गणतंत्र बनने पर वैसा ही हुआ | हम गिरते गए आज हमने भ्रष्टाचार के सर्वोच्च शिखर पर पहुच गए | हमने दासता कि पराकाष्ठा पार कर दी | आज ६७ वर्ष बाद भी हमारे प्रधान मंत्री संध्या के समय सूर्यास्त के बाद प्रधानमंत्री कि शपथ लेते है | क्यों के साढ़े ५ घंटे पहले इंग्लैंड मे संसद का समय हुआ कर्ता था | लोकतंत्र ने फूट मे फूट डाली दी | पहले फुटन कोढ़ थी, तो अब खाज हों गई |

२६ जनवरी का ढोंग

यदि सरदार पटेल ने उन क्रांतिकारियो को ना रोका होता और काश सशस्त्र विद्रोह हों जाता तो भारत मे आज डोमिनियन शासन ना होता | पर फिर शायद किसी कांग्रेसी को सत्ता सुख ना मिलता | और जो राज्य अंग्रेज नहीं जीत पाए थे वो भी आज श्री पटेल के प्रयासों से राज्यों का संघ मे बर्तानिया डोमिनियन मे सम्मलित है | संभवतः इसीलिए कुछ राजा मिलना नहीं चाहते थे राज्य संघ मे क्यों के वो जानते थे के भारत मे सत्ता किन काले अंग्रेजो के हाथ मे जा रही है | फिर भी सयुक्त होना अधिक उत्तम है जब सीमाए विधर्मी राज्यों से लगी हों | कांग्रेस खुद डोमिनियन कि मांग करती रही पर जब पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी कि बनाई एच.आर.ए (बाद मे एस.एस.आर.ए) के पूर्ण स्वराज्य कि मांग के कारण जन समर्थन पाने लगी जब के उसके कार्यकर्ता सशस्त्र क्रांति कर ही स्वराज्य लेना चाहते थे और फासियो पर चढ़ रहे थे | कांग्रेस को भी पूर्ण स्वराज्य पर आना पड़ा २६ जनवरी १९३० को पूर्ण स्वराज्य कि मांग करी | १५ अगस्त का कारण हम लिख चुके तो कांग्रेस ने अपना सम्मान बचाने के लिए २६ जनवरी १९५० को गणतंत्र दिवस घोषित किया संविधान को लागू कर के जो के २ मास पूर्व नवम्बर १९४९ मे ही पूर्ण हों गया था | यानी डोमिनियन कि बात दबी रहे और कानून बना कर स्वतंत्रता कैसे मिल सकती है ये आप ना सोच सके क्यों के कानून बना कर स्वतंत्रता अगर मिलने लगी तो कानून बदल कर स्वतंत्रता हट सकती है मजाक है स्वतंत्रता का | ये गणपति का देश है हमे गणतंत्र नहीं चाहिए हमें तो गणपति तंत्र चाहिए | अर्थात वेद कि व्यवस्था चाहिए |

दासता कि पराकाष्ठा

डोमिनियन मे समस्या क्या है ? ये सबसे बड़ा प्रश्न होगा आप के मस्तिष्क मे | हमारी अर्थव्यवस्था आज तक नही पनप पाई | भारत मे पैदा होने वाले को किसी देश मे जाकर काम नही करना पड़ता था | पूरी दुनिया का सोना यहाँ आकार गिरता था | धर्म अध्यात्म समृधि हमारे पास आरम्भ से ही थी कारण २ थे पहला वेदों का ज्ञान दूसरा भौगोलिक सुविधाए | सभी कुछ उत्पादन कि क्षमता और दिव्य जल से युक्त नदिया, हिमालय और समुद्र. मैदानी भाग और रेगिस्तान | अंग्रेज तो शुरू से समझते थे पर खत्म करने के लिए जो उन्होंने किया वो आज जा कर सफल हुए है |

१.प्रथम तो देखे हमारा संविधान उनके तंत्र अनुरूप बना |
२.हमारा राष्ट्रगान उनके राजा कि प्रशंसा वाला आज भी चल रहा है भारत भाग्य विधाता जोर्ज पंचम |
३.हमारा झंडा जो के रामायण से महाभारत तक और महाभारत से सन्यासी विद्रोह और अंत तक भगवा ही रहा | क्रन्तिकारी बसंतीचोला ही रंगने कि प्रार्थना करते रहे | उसे सांप्रदायिक आधार पर बनाया गया और बहाना बनाया गया के फलाना रंग इस बात का प्रतीक है |
४.आंग्ल जिसकी हमें कोई आवयश्कता नही थी उसे हटाने के स्थान पर और बढ़ा दिया गया |
५.पहले हमारा विज्ञान और राजाओ का इतिहास छुपाया गया अब तो हमारे क्रांतिकारियो का इतिहास भी नही ढूंढे मिलता है | ६.उच्चतम न्यायालय कि आज तक अधिकारिक भाषा आंग्ल है | ७.धोती कुर्ता सभी का छूट गया और हम सभी पैंट शर्ट मे आगये |
८.हमारी राजव्यवस्था मूर्खो वाली दी गई | एक समय था जब ऋषि राजा होते थे या राजा चुनते थे आज एक बलात्कारी और एक संत दोनों का मतदान का एक ही महत्व है |
९.विकेन्द्रित व्यवस्था के स्थान पर केंद्रित एवं कंपनी निकाय फ़ैल गया नौकरी करना जहा निकृष्ट माना जाता था आज लोगो के पास कोई विकल्प नही है १०.किसान अभी भी ऐसा एक मात्र उत्पादक है जो अपने उत्पादित पदार्थ का मूल्य निर्धारण का अधिकार नहीं रखता |
११.३५०० से ऊपर कानून वैसे के वैसे ही है |
१२.किसान छोड़ कोई भी भोगवाद या तंत्र से जुड़ा कार्य करने वाला वेतन से सामान्य या सामान्य से ऊपर जीवन जी लेगा | इस कारण लोगो मे आत्मनिर्भरता के विचार का शिक्षा के माध्यम से लोप करा दिया गया |
१३.हर क्षेत्र मे विदेशी निवेश खोलते चले गए और क्रम चालु है |
१४.कॉमन वेल्थ मे अभी भी हम जुड़े हुए है |
१५.आरक्षण का जो विष बीज अंग्रेज बो गए वो आज वृक्ष रूप मे हों गया है | १६.हमारी समृद्ध अर्थव्यवस्था का केन्द्र रहने वाली गौ कि हत्या के निषेध का आज भी केन्द्र मे कानून नही बन सका | अभी भी यहाँ से गौ मांस निर्यात होता है | १७.अभी भी इतिहास कि पुस्तके नहीं बदली अभी भी हम नह जानते बाप्पा रावल कौन थे, बंदा वैरागी ने क्या किया था | चाफेकर बंधू,जतिन बघा, रासबिहारी, गेंदालाल दीक्षित इत्यादि अनगिनत नाम है | मरने वालो ने आह नही कि और हमें समय नही उनके बारे मे पढ़ने तक का |
१८.महर्षि दयानंद और आर्य समाज के कार्यों को बताने के बजाये आर्य समाजो का दमन नेहरु सरकार का पहला दायित्व रहा | आज आर्य समाजो पर अधिकतर कब्जे ही हों चुके है जो कभी क्रांतिकारियो का अड्डा होते थे |
१९.अभी भी हम स्टैम्प ड्यूटी(जिसका ऋषि दयानंद ने विरोध किया था), कोर्ट फीस, मे फसे है |
२०.आज भी नाम नहीं बदले गए भवनों के, जिलो के | अंग्रेजो के कब्रिस्तान स्मारक वैसे ही खड़े है |
२१.कर प्रणाली सुधरने के बजाये बिगड़ती चली गई |
२२.भारत दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जिसका आंग्ला मे नाम का भी अनुवाद होता है भारतवर्ष का इंडिया |

क्या क्या लिखे और कितना लिखे विचार करिये तो समझ आजाएगा के उन्होंने हमारी विवेकशीलता को खत्म करने वाली शिक्षा प्रणाली दे रखी है | हम धर्म अर्थात सुख के मार्ग से कोशो दुर है इस व्यवस्था मे |

एक ही विकल्प : वैदिक प्रजतंत्र व्यवस्था

इसका विकल्प यही है के देश मे दासता के स्तर को समझा जाए और क्रान्ति आये | वैदिक त्रयीसंसदीय व्यवस्था को पुनः लागू किया जाए | राजार्य सभा, विद्यार्य सभा, धर्मार्य सभा द्वारा राष्ट्र का नियंत्रण हों | समय-२ पर अश्वमेध कर के हम सीमाओं का विस्तार करे | परमात्मा का “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” का आदेश हम पूरा करे | हमारे लोग पुनः योग के मार्ग का अनुसरण कर के मोक्ष कि सिद्धि मे लग जाए | किसान समृद्ध हों जाए | और फिर से पूरी दुनिया का सोना यहाँ आकार गिरने लगे | ये कोई बहुत बड़ी चीज नही है हम इसके अधिकारी है हम ऋषियों कि संतान है शासन के लिए ही पैदा हुए है | पर संघठन के बिना कोई शक्ति नहीं होती | पहला चरण तो लोगो को बताये के पूर्ण स्वराज्य कि लड़ाई अभी बाकी है | स्वयं के ज्ञान को बढाए और दूसरों को भी बताये जो खुद को पता चलता जाए | क्रांतिकारियों का बलिदान यू बेकार नहीं जाने दें सकते | हम अपने सामर्थ्य, ज्ञान और संघठन को योगबल से बढाए परमात्मा हमें स्वराज्य का मार्ग अपने आप दिखायेगा |
लेख पश्चात : लिखने को इतना है के एक पुस्तक मे ही पूरा हों पाए परन्तु एक लेख मे अति संछेप मे इतना पर्याप्त लगा | कृपया पढ़े और दूसरों को पढाये और कहने को जो स्वतंत्रता दिवस कि छुट्टी मिलती है उसे जागरूकता और स्वराज्य प्राप्ति के प्रयासों के लिए प्रयोग करे | शमित्योम्

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अमरनाथ


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भगवान शिव के अनेक रूप हैं। वह कभी भी कहीं भी किसी रूप में हो सकते हैं। लेकिन एक स्थान ऐसा है जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ कबूतर रूप में निवास करते हैं। यह स्थान अमरनाथ गुफा है।

अमरनाथ जी की गुफा में हर साल आषाढ़ पूर्णिमा से अपने आप बर्फ से शिवलिंग बनने लगता है। यहां चमत्कार की बात यह है कि इसके आस-पास जमी बर्फ कच्ची होती है जबकि शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है। श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन इस शिवलिंग का अंतिम दर्शन होता है। इसके बाद साल के बाद ही शि़वलिंग बनता है।

इसी पवित्र गुफा में भगवान शिव और माता पार्वती कई युगों से कबूतर के रूप में विराजमान हैं। इस संदर्भ में कथा यह हैं कि एक समय माता पार्वती द्वारा अमर होने की कथा सुनने की जिद्द करने पर भगवान शिव शंकर पार्वती को लेकर इस स्थान पर आए।

अमरत्व की कथा माता पार्वती के अलावा कोई अन्य ना सुन सके इसके लिए शिव भगवान जी ने मार्ग में अपने गले में सुशोभित नाग, माथे पर सजे हुए चंदन को उतार कर रख दिया। इसके बाद पार्वती जी को साथ लेकर गुफा में प्रवेश किया।

शिव जी से अमर होने की कथा सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई। इस दौरान उस गुफा में कबूतर के दो बच्चों ने जन्म लिया और उसने शिव जी से पूरी कथा सुन ली। जब शिव जी को इस बात का ज्ञान हुआ कि अमर होने की कथा कबूतरों ने सुन ली है तब उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े।

कबूतरों ने शिव जी से कहा कि अगर आपने हमें मार दिया तो अमर होने की कथा झूठी साबित हो जाएगी। शिव जी ने तब उन कबूतरों को वरदान दिया कि तुम युगों-युगों तक इस स्थान पर शिव-पार्वती के प्रतीक बनकर निवास करोगे। अमरनाथ की गुफा में जिसे भी तुम्हारे दर्शन होंगे उन्हें शिव-पार्वती के दर्शन का पुण्य मिलेगा।

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भगवान शिव के अनेक रूप हैं। वह कभी भी कहीं भी किसी रूप में हो सकते हैं। लेकिन एक स्थान ऐसा है जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ कबूतर रूप में निवास करते हैं। यह स्थान अमरनाथ गुफा है।

अमरनाथ जी की गुफा में हर साल आषाढ़ पूर्णिमा से अपने आप बर्फ से शिवलिंग बनने लगता है। यहां चमत्कार की बात यह है कि इसके आस-पास जमी बर्फ कच्ची होती है जबकि शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है। श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन इस शिवलिंग का अंतिम दर्शन होता है। इसके बाद साल के बाद ही शि़वलिंग बनता है।

इसी पवित्र गुफा में भगवान शिव और माता पार्वती कई युगों से कबूतर के रूप में विराजमान हैं। इस संदर्भ में कथा यह  हैं कि एक समय माता पार्वती द्वारा अमर होने की कथा सुनने की जिद्द करने पर भगवान शिव शंकर पार्वती को लेकर इस स्थान पर आए।

अमरत्व की कथा माता पार्वती के अलावा कोई अन्य ना सुन सके इसके लिए शिव भगवान जी ने मार्ग में अपने गले में सुशोभित नाग, माथे पर सजे हुए चंदन को उतार कर रख दिया। इसके बाद पार्वती जी को साथ लेकर गुफा में प्रवेश किया।

शिव जी से अमर होने की कथा सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई। इस दौरान उस गुफा में कबूतर के दो  बच्चों ने जन्म लिया और उसने शिव जी से पूरी कथा सुन ली। जब शिव जी को इस बात का ज्ञान हुआ कि अमर होने की कथा कबूतरों ने सुन ली है तब उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े।

कबूतरों ने शिव जी से कहा कि अगर आपने हमें मार दिया तो अमर होने की कथा झूठी साबित हो जाएगी। शिव जी ने तब उन कबूतरों को वरदान दिया कि तुम युगों-युगों तक इस स्थान पर शिव-पार्वती के प्रतीक बनकर निवास करोगे। अमरनाथ की गुफा में जिसे भी तुम्हारे दर्शन होंगे उन्हें शिव-पार्वती के दर्शन का पुण्य मिलेगा।
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उत्तर प्रदेश में डेढ़ साल में 250 लड़कियों ने मजहब बदला लव जिहाद चरम पर


उत्तर प्रदेश में डेढ़ साल में 250 लड़कियों ने मजहब बदला लव जिहाद चरम पर

– 2013 में धर्मातरण के कुल 337 मामलों में 130 महिलाओं के

– 2014 में धर्मातरण के कुल 261 मामलों में 120 महिलाओं के

– अब उठ रहे सवाल, ये स्वाभाविक है या सिस्टेमेटिक

रूद्गद्गह्मह्वह्ल : खरखौदा गैंगरेप केस की आई नेक्स्ट की तफ्तीश के सिलसिले में सनसनीखेज जानकारी सामने आई है. महज डेढ़ साल में 250 लड़कियों ने कागजी लिखापढ़ी करके धर्म बदल लिया. साल 2014 में ये रफ्तार और ज्यादा तेज हुई है. चूंकि धर्मातरण को लेकर तमाम सवाल हवाओं में तैर रहे हैं, ये आंकड़ा चौंकाता भी है और सवाल भी खड़े करता है.

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बड़ी तादात में धर्मपरिवर्तन : ये स्वाभाविक है या साजिश?

– तेजी से महिला धर्मातरण मे उठ रहे हैं कई सवाल

– केरल हाईकोर्ट ने शादी के लिए धर्मातरण को माना था अवैध

मेरठ. हम मोहब्बत में मजहब की दीवार नहीं मानते हैं. ये भी मानते हैं कि धर्म निजी स्वतंत्रता का मामला है. लेकिन जब मजहब बदलने के उद्देश्यों और तौर-तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं, तो इस तेजी से होने वाला धर्मातरण चौंकाता है. खरखौदा गैंगरेप केस में ही आई नेक्स्ट की तफ्तीश के क्रम में सरकारी दस्तावेजों को खंगाला गया. पिछले डेढ़ सालों में सैंकड़ों महिलाओं ने अपने धर्म को परिवर्तित कर लिया. चौंकाने वाली बात तो ये भी है कि पिछले वर्ष जितनी महिलाओं ने अपना धर्म परिवर्तित किया, वो आंकड़ा इस साल अगस्त में ही छूने को है.

तो 250 ने कराया धर्मातरण

सरकारी आंकड़ों पर बात करें तो पिछले डेढ़ वर्ष में 250 महिलाओं को बदल लिया. 2013 की करें तो 130 महिलाओं ने मजहब बदला. 2014 में ये आंकड़ा अगस्त में छूता हुआ नजर आ रहा है. जुलाई तक 120 महिलाएं धर्म बदल चुकी हैं. माहवार बात करें तो जून में 23 महिलाओं ने धर्म बदला. फरवरी में ये आंकड़ा 20 महिलाओं का था. जबकि मई में 15 महिलाओं ने इस तरह का कदम उठाया.

क्या धर्मातरण सिस्टमैटिक हैं?

तेजी से बढ़ते महिला धर्मातरण की बात करें तो ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इस तरह के धर्मातरण पूरी तरह से सिस्टमैटिक हैं? मौजूदा समय में अब ये मुद्दा स्थानीय नहीं राष्ट्रीय बन चुका है. इसमें सरकारी तंत्र कितनी पैनी नजर रखता है. उसके पास आने वाले आवेदनों की कितनी बारीकी से जांच होती है? धर्मातरण की वजहों के बारे में पूछा जाता है या नहीं? अगर बात शादी की है तो दोनों पक्षों के बयान होते हैं या नहीं? ये तमाम बातें सवालों के घेरे में हैं.

2014 में तेजी?

क्या वजह है कि 2013 में पूरे साल 130 का आंकड़ा था, वो 2014 में जुलाई में 120 के आंकड़े को छू लिया, जो पूरा साल होने तक पिछले साल के आंकड़ें को पार कर जाएगा. सवाल ये है कि क्या इस साल ये तेजी स्वाभाविक है. इस सवाल का जवाब केरल हाईकोर्ट के फैसले से आसानी से दिया जा सकता है. कोर्ट के अनुसार धर्मातरण का असली मकसद शादी को आसान बनाना है. कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद ये बात साबित होती है कि धर्मातरण का प्रयोग शादी के लिए किया जा रहा है. जो कि काफी आसान प्रक्रिया है. इसलिए ये आंकड़े भी बढ़ रहे हैं.

धर्म परिवर्तन की जरुरत क्यों?

आखिर धर्म परिवर्तन की जरुरत क्यों, ये अपने आप में बड़ा सवाल है. अगर बात बात शादी की है तो इसके लिए भी देश के कानून में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के अंदर ये प्रावधान है. जिसमें दोनों पक्षों को एक कानूनी प्रकिया से गुजरना पड़ता है. साथ ही कई ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां शादी के लिए महिला या पुरुष ने अपने धर्म को परिवर्तित करने की जरुरत महसूस नहीं की. शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान ने अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया. हाल ही जेनेलिया डिसूजा ने भी रितेश देशमुख के साथ शादी की और अपने धर्म को परिवर्तित करने की कोई जरुरत महसूस नहीं की. क्या इन तमाम बातों के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है?

क्या है धर्मातरण की प्रकिया

– कोई भी किसी भी धार्मिक स्थल मे जाकर धर्म परिवर्तित का सर्टिफिकेट लेता है.

– उस सर्टिफिकेट के साथ डीएम ऑफिस में एप्लीकेशन लगाई जाती है.

– डीएम उसे एडीएम को सौंपता है.

– एडीएम जांच के लिए सिटी मजिस्ट्रेट को भेजता है.

– उसकी एलआईयू और पुलिस की रिपोर्ट लगाई जाती है.

– उसके बाद वही पूरा प्रोसेस होता है. डीएम उसके बाद उस सर्टिफिकेट को हरी झंडी देता है.

………

केरल हाईकोर्ट ने बताया अवैध

दिसंबर 2012 में केरल हाई कोर्ट ने आनन-फानन में धमरंतरण के बाद की शादी को अवैध करार दिया था. कोर्ट ने कहा था कि ऐसे धर्मातरण का मकसद शादी को आसान बनाना भर है, जो कानून की नजर में अवैध है. कोर्ट ने एक और विवादित फैसला दिया था कि महिला तब तक अपने माता-पिता के घर रह सकती है, जब तक की उसकी शादी स्पेशल मैरेज ऐक्ट के तहत नहीं होती है. गौरतलब है कि मुस्लिम लड़के के धर्मातरण के बाद हिन्दू लड़की से हुई शादी के मामले की सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट ने ये फैसला दिया था. यह शादी विश्व हिन्दू परिषद ने मुस्लिम लड़के को हिन्दू धर्म में परिवर्तित कर करवाई थी. वीएचपी ने लड़के को धर्मातरण सर्टिफिकेट दिया था और मैरेज सर्टिफिकेट प्रसिद्ध मंदिर कलूर की तरफ से जारी किया गया था. कोर्ट ने शादी के लिए धमरंतरण को मानने से इनकार कर दिया. जस्टिस सी. कुरिअकोस और बाबू मैथ्यू पी. जोसफ की बेंच ने कपल से कहा था कि शादी स्पेशल मैरेज ऐक्ट के मुताबिक रजिस्टर करवानी होगा. कोर्ट ने पूरा मामला सुनने के बाद कहा था कि हम इस तरह के धर्मातरण पर भरोसा नहीं कर सकते, वह भी तब जब किसी संगठन ने करवाया हो.

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बॉक्स

क्या स्पेशल मैरीज एक्ट 1954?

विशेष विवाह अधिनियम 1954 जम्मू-कश्मीर को छोड़कर शेष भारत में लागू है, लेकिन यह देश के उन नागरिकों पर लागू होता है जो जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं. जिन व्यक्तियों पर यह अधिनियम लागू होता है, वे इस अधिनियम के तहत विवाह का रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, भले ही वे अलग-अलग धर्मो के मानने वाले क्यों न हों. इस अधिनियम की अपेक्षाओं के अनुरूप है तो ऐसे विवाह को विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत किया जा सकता है.

इन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है

– डीएम ऑफिस से मैरिज एप्लीकेशन लेकर भरना होगा.

– ये एप्लीकेशन एडीएम के पास जाएगी.

– एडीएम इसमें दोनों पक्षों को एक महीने बाद आने का नोटिस देगा.

– इस एक महीने में दोनों पक्षों की पुलिस और एलआईयू जांच होती है.

– जिसकी रिपोर्ट एडीएम के पास आती है.

– दोनों पक्षों के बयान एडीएम के सामने होते हैं.

– नोटिस जारी होने के एक माह बाद की डेट को दोनों को क्लीनचिट देकर डीएम की ओर स्पेशल मैरिज सर्टिफिकेट जारी हो जाता है.

………….

क्या हुआ धर्म परिवर्तन के बाद

रिवाजों से हूं काफी परेशान

नौचंदी के पास रहने वाली सलमा (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि उसकी तीन साल पहले शादी हुई थी. शादी से पहले नाम रेखा (बदला हुआ नाम) था. मैंने लव मैरिज की. अपना धर्म बदला. लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि शादी के बाद मेरे ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा. जिन रीति रिवाजों के बारे में मैंने कभी सुना भी नहीं था, आज उन्हें निभाने में बड़ी मुश्किल हो रही है. मेरे शौहर के परिजन इस बात को लेकर ताना भी देते हैं. जिन त्योहारों को मैंने बचपन से बड़े ही शौक से मनाया था उन्हें सेलब्रेट करने को तरस गई हूं.

काश न उठाती वो कदम

जैदी फॉर्म में रहने वाली शायला (बदला हुआ नाम) का शादी से पहले नाम शशि (बदला हुआ नाम) था. दो पहले शादी करने वाली शायला कहती है कि काश मैं वो कदम कभी न उठाती. जिंदगी नर्क से भी बद्तर हो गई है. रोज मारते हैं. शराब पीते हैं. घर से बाहर जाने नहीं देते हैं. न ही मुझे मेरे घर जाने देते हैं. घर में पड़े-पड़े सड़ रही हूं. अगर मुझे शादी से पहले इतनी कांप्लीकेशन के बारे में पता होता तो मैं ये कदम कभी न उठाती.

न पढ़ सकती हूं न कर सकती हूं

शाहीन (बदला हुआ नाम) मैंने अपना धर्म चेंज कर शादी की. अपनी पढ़ाई की भी परवाह नहीं की. सोचा था कि शादी के बाद अपनी पढ़ाई पूरी कर लूंगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. उन्होंने पढ़ाई करने से इनकार कर दिया. जब मैंने नौकरी की बात की तो वो मुझपर बरस पड़े. मेरा पूरा करियर चौपट हो गया. अब मुझे अफसोस हो रहा है.

…………

वकीलों का वर्जन

धर्मातरण और धर्मातरण से उठे विवादों के लिए अलग से कोर्ट होने चाहिए. ये काफी सेंसीटिव मुद्दे हैं. इन्हें सामान्य केसों की तरह नहीं लेना चाहिए.

– वीके शर्मा, एडवोकेट

धर्मातरण जैसा विषय काफी सेंसीटिव है. ये सबका निजी फैसला होता है. लेकिन इसे करने से पहले काफी सोच विचार करना काफी जरूरी है. ताकि बाद में कोई पछतावा न हो.

– नीतू रस्तोगी, एडवोकेट

दो साल पहले केरल हाईकोर्ट में धर्मातरण के मुद्दे पर कोर्ट ने जो टिप्पणी की थी उसे कौन भूल सकता है. स्थिति स्पष्ट है. हमारे संविधान में स्पेशल मैरिज एक्ट हैं. वो ही मान्य हो तो बेहतर है.

– रामकुमार शर्मा, एडवोकेट

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देश में चल रहे गुप्त षड्यंत्र को समझने के लिए कृपया पांच मिनट हमें दीजिए !


देश में चल रहे गुप्त षड्यंत्र को समझने के लिए कृपया पांच मिनट हमें दीजिए !

लेख से पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ।

हमारे देश में एक महान वैज्ञानिक हुए हैं प्रो. श्री जगदीश चन्द्र बोस। भारत को और हम भारत वासियों को उन पर बहुत गर्व है। इन्होने सबसे पहले अपने शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि मानव की तरह पेड़ पौधों में भी भावनाएं होती हैं। वे भी हमारी तरह हँसते खिलखिलाते और रोते हैं। उन्हें भी सुख दुःख का अनुभव होता है। और श्री बोस के इस अनुसंधान की तरह इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।

श्री बोस ने शोध के लिये कुछ गमले खरीदे और उनमे कुछ पौधे लगाए। अब इन्होने गमलों को दो भागों में बांटकर आधे घर के एक कोने में तथा शेष को किसी अन्य कोने में रख दिया। दोनों को नियमित रूप से पानी दिया, खाद डाली। किन्तु एक भाग को श्री बोस रोज़ गालियाँ देते कि तुम बेकार हो, निकम्मे हो, बदसूरत हो, किसी काम के नहीं हो, तुम धरती पर बोझ हो, तुम्हे तो मर जाना चाहिए आदि आदि। और दूसरे भाग को रोज़ प्यार से पुचकारते, उनकी तारीफ़ करते, उनके सम्मान में गाना गाते। मित्रों देखने से यह घटना साधारण सी लगती है। किन्तु इसका प्रभाव यह हुआ कि जिन पौधों को श्री बोस ने गालियाँ दी वे मुरझा गए और जिनकी तारीफ़ की वे खिले खिले रहे, पुष्प भी अच्छे दिए।

तो मित्रों इस साधारण सी घटना से बोस ने यह सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से गालियाँ खाने के बाद पेड़ पौधे नष्ट हो गए। अर्थात उनमे भी भावनाएं हैं।

मित्रों जब निर्जीव से दिखने वाले सजीव पेड़ पौधों पर अपमान का इतना दुष्प्रभाव पड़ता है तो मनुष्य सजीव सदेह का क्या होता होगा?

वही होता है जो आज हमारे भारत देश का हो रहा है।

500 -700 वर्षों से हमें यही सिखाया पढाया जा रहा है कि तुम बेकार हो, खराब हो, तुम जंगली हो, तुम तो हमेशा लड़ते रहते हो, तुम्हारे अन्दर सभ्यता नहीं है, तुम्हारी कोई संस्कृती नहीं है, तुम्हारा कोई दर्शन नहीं है, तुम्हारे पास कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, तुम्हारे पास कोई ज्ञान विज्ञान नहीं है आदि आदि। मित्रों अंग्रेजों के एक एक अधिकारी भारत आते गए और भारत व भारत वासियों को कोसते गए। अंग्र जों से पहले ये गालियाँ हमें फ्रांसीसी देते थे, और फ्रांसीसियों से पहले ये गालियाँ हमें पुर्तगालियों ने दीं। इसी क्रम में लॉर्ड मैकॉले का भी भारत में आगमन हुआ। किन्तु मैकॉले की नीति कुछ अलग थी। उसका विचार था कि एक एक अंग्रेज़ अधिकारी भारत वासियों को कब तक कोसता रहेगा? कुछ ऐसी परमानेंट व्यवस्था करनी होगी कि हमेशा भारत वासी खुद को नीचा ही देखें और हीन भावना से ग्रसित रहें।

इसलिए उसने जो व्यवस्था दी उसका नाम रखा Education System. सारा सिस्टम उसने ऐसा रचा कि भारत वासियों को केवल वह सब कुछ पढ़ाया जाए जिससे वे हमेशा गुलाम ही रहें। और उन्हें अपने धर्म संस्कृती से घृणा हो जाए। इस शिक्षा में हमें यहाँ तक पढ़ाया कि भारत वासी सदियों से गौमांस का भक्षण कर रहे हैं। अब आप ही सोचे यदि भारत वासी सदियों से गाय का मांस खाते थे तो आज के हिन्दू ऐसा क्यों नहीं करते? और इनके द्वारा दी गयी सबसे गंदी गाली यह है कि हम भारत वासी आर्य बाहर से आये थे। आर्यों ने भारत के मूल द्रविड़ों पर आक्रमण करके उन्हें दक्षिण तक खदेड़ दिया और सम्पूर्ण भारत पर अपना कब्ज़ा ज़मा लिया। और हमारे देश के वामपंथी चिन्तक आज भी इसे सच साबित करने के प्रयास में लगे हैं।

इतिहास में हमें यही पढ़ाया गया कि कैसे एक राजा ने दूसरे राजा पर आक्रमण किया। इतिहास में केवल राजा ही राजा हैं प्रजा नदारद है, हमारे ऋषि मुनि नदारद हैं। और राजाओं की भी बुराइयां ही हैं अच्छाइयां गायब हैं। आप जरा सोचे कि अगर इतिहास में केवल युद्ध ही हुए तो भारत तो हज़ार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता। और राजा भी कौन कौन से गजनी, तुगलक, ऐबक, लोदी, तैमूर, बाबर, अकबर, सिकंदर जो कि भारतीय थे ही नहीं। राजा विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान गायब हैं। इनका ज़िक्र तो इनके आक्रान्ता के सम्बन्ध में आता है। जैसे सिकंदर की कहानी में चन्द्रगुप्त का नाम है। चन्द्रगुप्त का कोई इतिहास नहीं पढ़ाया गया। और यह सब आज तक हमारे पाठ्यक्रमों में है।

इसी प्रकार अर्थशास्त्र का विषय है। आज भी अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले बड़े बड़े विद्वान् विदेशी अर्थशास्त्रियों को ही पढ़ते हैं। भारत का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री चाणक्य तो कही है ही नहीं। उनका एक भी सूत्र किसी स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता। जबकि उनसे बड़ा अर्थशास्त्री तो पूरी दुनिया में कोई नहीं हुआ।

दर्शन शास्त्र में भी हमें भुला दिया गया। आज भी बड़े बड़े दर्शन शास्त्री अरस्तु, सुकरात, देकार्ते को ही पढ़ रहे हैं जिनका दर्शन भारत के अनुसार जीरो है। अरस्तु और सुकरात का तो ये कहना था कि स्त्री के शरीर में आत्मा नहीं होती वह किसी वस्तु के समान ही है, जिसे जब चाहा बदला जा सकता है। आपको पता होगा १९५० तक अमरीका और यूरोप के देशों में स्त्री को वोट देने का अधिकार नहीं था। आज से २०-२२ साल पहले तक अमरीका और यूरोप में स्त्री को बैंक अकाउंट खोलने का अधिकार नहीं था। साथ ही साथ अदालत में तीन स्त्रियों की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती थी।

इसी कारण वहां सैकड़ों वर्षों तक नारी मुक्ति आन्दोलन चला तब कहीं जाकर आज वहां स्त्रियों को कुछ अधिकार मिले हैं। जबकि भारत में नारी को सम्मान का दर्जा दिया गया। हमारे भारत में किसी विवाहित स्त्री को श्रीमति कहते हैं। कितना सुन्दर शब्द हैं श्रीमती जिसमे दो देवियों का निवास है। श्री होती है लक्ष्मी और मति यानी बुद्धि अर्थात सरस्वती। हम औरत में लक्ष्मी और सरस्वती का निवास मानते हैं। किन्तु फिर भी हमारे प्राचीन आचार्य दर्शन शास्त्र से गायब हैं। हमारा दर्शन तो यह कहता है कि पुरुष को सभी शक्तियां अपनी माँ के गर्भ से मिलती हैं और हम शिक्षा ले रहे हैं उस आदमी की जो यह मानता है कि नारी में आत्मा ही नहीं है।

चिकत्सा के क्षेत्र में महर्षि चरक, शुषुक, धन्वन्तरी, शारंगधर, पातंजलि सब गायब हैं और पता नहीं कौन कौन से विदेशी डॉक्टर के नाम हमें रटाये जाते हैं। आयुर्वेद जो न केवल चिकित्सा शास्त्र है अपितु जीवन शास्त्र है वह आज पता नहीं चिकित्सा क्षेत्र में कौनसे पायदान पर आता है?

बच्चों को स्कूल में गणित में घटाना सिखाते समय जो प्रश्न दिया जाता है वह कुछ इस प्रकार होता है-

पापा ने तुम्हे दस रुपये दिए, जिसमे से पांच रुपये की तुमने चॉकलेट खा ली तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे?

यानी बच्चों को घटाना सिखाते समय चॉकलेट कम्पनी का उपभोगता बनाया जा रहा है। हमारी अपनी शिक्षा पद्धति में यदि घटाना सिखाया जाता तो प्रश्न कुछ इस प्रकार का होता-

पिताजी ने तुम्हे दस रुपये दिए जिसमे से पांच रुपये तुमने किसी गरीब लाचार को दान कर दिए तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे?

जब बच्चा बार बार इस प्रकार के सवालों के हल ढूंढेगा तो उसके दिमाग में कभी न कभी यह प्रश्न जरूर आएगा कि दान क्या होता है, दान क्यों करना चाहिए, दान किसे करना चाहिए आदि आदि? इस प्रकार बच्चे को दान का महत्त्व पता चलेगा। किन्तु चॉकलेट खरीदते समय बच्चा यही सोचेगा कि चॉकलेट कौनसी खरीदूं कैडबरी या नेस्ले?

अर्थ साफ़ है यह शिक्षा पद्धति हमें नागरिक नहीं बना रही बल्कि किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का उपभोगता बना रही है। और उच्च शिक्षा के द्वारा हमें किसी विदेशी यूनिवर्सिटी का उपभोगता बनाया जा रहा है या किसी वेदेशी कम्पनी का नौकर।

मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में कभी यह नहीं सीखा कि कैसे मै अपने तकनीकी ज्ञान से भारत के कुछ काम आ सकूँ, बल्कि यह सीखा कि कैसे मै किसी Multi National Company में नौकरी पा सकूँ, या किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिला ले सकूँ।

तो मित्रों सदियों से हमें वही सब पढ़ाया गया कि हम कितने अज्ञानी हैं, हमें तो कुछ आता जाता ही नहीं था, ये तो भला हो अंग्रेजों का कि इन्होने हमें ज्ञान दिया, हमें आगे बढ़ना सिखाया आदि आदि। यही विचार ले कर लॉर्ड मैकॉले भारत आया जिसे तो यह विश्वास था कि स्त्री में आत्मा नहीं होती और वह हमें शिक्षा देने चल पड़ा। हम भारत वासी जो यह मानते हैं कि नारी में देवी का वास है उसे मैकॉले की इस विनाशकारी शिक्षा की क्या आवश्यकता है?

हमारे प्राचीन ऋषियों ने तो यह कहा था कि दुनिया में सबसे पवित्र नारी है और पुरुष में पवित्रता इसलिए आती है क्यों कि उसने नारी के गर्भ से जन्म लिया है। जो शिक्षा मुझे मेरी माँ से जोडती है उस शिक्षा को छोड़कर मुझे एक ऐसी शिक्षा अपनानी पड़ी जिसे मेरी माँ समझती भी नहीं। हम तो हमारे देश को भी भारत माता कहते हैं। किन्तु हमें उस व्यक्ति की शिक्षा को अपनाना पड़ा जो यह मानता है कि मेरी माँ में आत्मा ही नहीं है। और एक ऐसी शिक्षा पद्धति जो हमें नारी को पब, डिस्को और बीयर बार में ले जाना सिखा रही है, क्यों?

आज़ादी से पहले यदि यह सब चलता तो हम मानते भी कि ये अंग्रेजों की नीति है, किन्तु आज क्यों हम इस शिक्षा को ढो रहे हैं जो हमें हमारे भारत वासी होने पर ही हीन भावना से ग्रसित कर रही है? आखिर कब तक चलेगा यह सब?आभार : दिवस दिनेश गौड़स्त्रोत : स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी (व्याख्यान)

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क्या आप जानते हैं कि….. हमारे हिन्दू सनातन धर्मग्रंथों में उल्लेखित 84 लाख योनि … का रहस्य क्या हैक्या आप जानते हैं कि….. हमारे हिन्दू सनातन धर्मग्रंथों में उल्लेखित 84 लाख योनि … का रहस्य क्या हैक्या आप जानते हैं कि….. हमारे हिन्दू सनातन धर्मग्रंथों में उल्लेखित 84 लाख योनि … का रहस्य क्या हैक्या आप जानते हैं कि….. हमारे हिन्दू सनातन धर्मग्रंथों में उल्लेखित 84 लाख योनि … का रहस्य क्या हैक्या आप जानते हैं कि….. हमारे हिन्दू सनातन धर्मग्रंथों में उल्लेखित 84 लाख योनि … का रहस्य क्या है84 लाख योनियों का रहस्य (Secret of 8.4 million species of life)84 लाख योनियों का रहस्य (Secret of 8.4 million species of life)84 लाख योनियों का रहस्य (Secret of 8.4 million species of life)84 लाख योनियों का रहस्य (Secret of 8.4 million species of life)


84 लाख योनियों का रहस्य (Secret of 8.4 million species of life)

84 लाख योनियों का रहस्य (Secret of 8.4 million species of life)

 

क्या आप जानते हैं कि….. हमारे हिन्दू सनातन धर्मग्रंथों में उल्लेखित 84 लाख योनि … का रहस्य क्या है

क्योंकि…. इस उल्लेखित 84 योनि को लेकर हम हिन्दुओं में ही काफी भ्रम की स्थिति बनी रहती है और हर लोग सुनी-सुनाई ढंग से इसकी व्याख्या करने की कोशिश में लगा रहता है….!

 

दरअसल… हमारे धर्म ग्रंथों में 84 लाख योनि … विशुद्ध रूप से जीव विज्ञान एवं उसके क्रमिक विकास के सम्बन्ध में उल्लेखित है….!

इसका तात्पर्य यह हुआ है कि…. हमारे सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि…. सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है… और, इसी की अभिव्यक्ति हमारे अनेक ग्रंथों में हुई है।

श्रीमद्भागवत पुराण में इस बात के इस प्रकार वर्णन आता है-

सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया
वृक्षान्‌ सरीसृपपशून्‌ खगदंशमत्स्यान्‌।
तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
व्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)

अर्थात….. विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई ….और, इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ…. परन्तु , उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई…..अत: मनुष्य का निर्माण हुआ …..जो उस मूल तत्व का साक्षात्कार कर सकता था।

दूसरी मुख्य बात यह कि , भारतीय परम्परा में जीवन के प्रारंभ से मानव तक की यात्रा में 84 लाख योनियों के बारे में कहा गया……।

इसका मंतव्य यह है कि…… पृथ्वी पर जीवन एक बेहद सूक्ष्म एवं सरल रूप से गुजरता हुआ ….. धीरे धीरे संयुक्त होता गया…. और, 84 लाख योनि ( चरण ) के बाद ही मानव जैसे बुद्धिमान प्राणी का विकास संभव हो पाया …!

आज आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि….. अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में चेतना लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियों से गुजरी है…।

हमारे धर्मग्रंथों और आधुनिक विज्ञान में ये गिनती का थोडा अंतर इसीलिए हो सकता है कि….. हमारे धर्म ग्रन्थ लाखों वर्ष पूर्व लिखे गए हैं…. और, लाखों वर्ष बाद … क्रमिक विकास के कारण प्रजातियों की संख्या में कुछ वृद्धि हो गयी हो…. !

परन्तु…. आज से हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने यह साक्षात्कार किया… वो बेहद आश्चर्यजनक है….। अनेक आचार्यों ने इन ८४ लाख योनियों का वर्गीकरण किया है।

हमारे धर्म ग्रंथों ने इन 84 लाख योनियों का सटीक वर्गीकरण किया है… और, समस्त प्राणियों को दो भागों में बांटा गया है, योनिज तथा आयोनिज…!

अर्थात… दो के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए…. तथा, अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होने वाले प्राणी आयोनिज कहे गए….!

इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को तीन भागों में बांटा गया:-

1. जलचर – जल में रहने वाले सभी प्राणी।

2. थलचर – पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।

3. नभचर – आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।

इसके अतिरिक्त भी…. प्राणियों की उत्पत्ति के आधार पर 84 लाख योनियों को इन चार प्रकार में वर्गीकृत किया गया……

1. जरायुज – माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।

2. अण्डज – अण्डों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अण्डज कहलाये।

3. स्वदेज- मल, मूत्र, पसीना आदि से उत्पन्न क्षुद्र जन्तु स्वेदज कहलाते हैं।

4. उदि्भज- पृथ्वी से उत्पन्न प्राणियों को उदि्भज वर्ग में शामिल किया गया।

सिर्फ इतना ही नहीं…..
पदम् पुराण में हमें एक श्लोक मिलता है

जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः – (78 :5 पदम् पुराण)

अर्थात –

1. जलज/ जलीय जिव/जलचर (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)

2. स्थिर अर्थात पेड़ पोधे (Immobile implying plants and trees) – 20 लाख (2.0 million)

3. सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े (Reptiles) – 11 लाख (1.1 million)

4. पक्षी/नभचर (Birds) – 10 लाख 1.0 मिलियन

5. स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)

6. शेष मानवीय नस्ल के

कुल = 84 लाख ।

इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है ।

इसी प्रकार ……शरीर रचना के आधार पर भी प्राणियों वर्गीकरण हुआ…..।

इसका उल्लेख विभिन्न आचार्यों के वर्गीकरण के सहारे ‘प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प‘ ग्रंथ में किया गया है।
जिसके अनुसार

(1) एक शफ (एक खुर वाले पशु) – खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि।

(2) द्विशफ (दो खुल वाले पशु)- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि।

(3) पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु- सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृगाल आदि। (प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प-page no. 107-110)

इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है ।

इस से सम्बंधित लेख 23 अगस्त 2011 के The New York Times में भी छपा था…. जिसका लिंक ये है…

http://www.nytimes.com/2011/08/30/science/30species.html?_r=1&

खैर….

उपरोक्त वर्णन से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हमारे ग्रंथों में वर्णित ये जानकारियाँ हमारे पुरखों के हजारों-लाखों वर्षों की खोज है… और, उन्होंने न केवल धरती पर चलने वाले अपितु आकाश में व् अथाह समुद्रों की गहराइयों में रहने वाले जीवों का भी अध्ययन किया ।

परन्तु… पर्याप्त जानकारी एवं उसे ठीक से ना समझ पाने के कारण …. हम हिन्दू आज अन्धविश्वास से ग्रसित होते जा रहे हैं

Posted in भारतीय मंदिर - Bharatiya Mandir

Similarity between Hindus and Egyptians


Similarity between Hindus and Egyptians

Egyptians started building these temples around 2500 BC. These people worshiped a number of gods and goddesses in these temples. Each of Egypt’s cities had a temple built to its own god, so there are a large number of these temples all across the country.

There are so many similarities in the picture
1.The pillars structures
2.Hall way
3.Ceiling paintings
4.Wall paintings
5.Entrance

No doubt the whole world was practicing the same religion till the establishment of Islam in the middle east and Christianity in Europe.
We have lost many of our histories. We are still loosing our histories.
All of us should work hard to preserve our ancestor’s history for the future generation.

Similarity between Hindus and Egyptians 

Egyptians started building these temples around 2500 BC. These people worshiped a number of gods and goddesses in these temples. Each of Egypt’s cities had a temple built to its own god, so there are a large number of these temples all across the country.

There are so many similarities in the picture
1.The pillars structures
2.Hall way
3.Ceiling paintings
4.Wall paintings
5.Entrance

No doubt the whole world was practicing the same religion till the establishment of Islam in the middle east and Christianity in Europe.
We have lost many of our histories. We are still loosing our histories.
All of us should work hard to preserve our ancestor's history for the future generation.
Posted in AAP

AAP


माफ करना कल की बासी खबर के लिए

14 अगस्त को मौलाना ख़ासी उद्दीन ने नापकबाद में पाकिस्तानी झण्डा फहराया।

इस नापाक मौके पर ख़ासी उद्दीन ने 27 पागलो की विशाल पागलसभा को संबोधित करते हुए कहा की हमे स्वराज चाहिए , हम अभी भी गुलाम हैं,

हम आम आदमी हैं जी । अंबानी – अदानी और आम जनता मिले हुए हैं जी ।
हम बहुत छोटे आदमी हैं जी। हमरी कोई औकात नहीं है जी।

लोकपाल पकोड़ा के बिना हम “पकोड़ा with भगोड़ा” का आयोजन कैसे कर सकते हैं जी । हम मोदी जी से मांग करते हैं की हमे पकोड़ा बना कर दें ।

आज 15 अगस्त को हम इटली का झण्डा फहराएँगे । ये लोकतन्त्र है हम कुछ भी कर सकते हैं। हमे स्वराज चाहिए ।

[एक बंगला बने न्यारा !!! ]

इस बार आम आदमी पार्टी की बारी है जी। बस एक बंगला का सवाल है जी ।

आम आदमी पार्टी को vote दें हम कश्मीर पाकिस्तान को देने की मांग करते हैं। अरुणाचल चीन को देने की मांग करते हैं । आतंकवादीयों को सुख सुविधा और आधुनिक हथियार की मांग करते हैं ।

जय सोनिया, जय राहुल
जय पापिस्तान
जय चंदा , जय झाड़ू
‪#‎बाप_जी‬

माफ करना कल की बासी खबर के लिए

14 अगस्त को मौलाना ख़ासी उद्दीन ने नापकबाद में पाकिस्तानी झण्डा फहराया। 

इस नापाक मौके पर ख़ासी उद्दीन ने 27 पागलो की विशाल पागलसभा को संबोधित करते हुए कहा की हमे स्वराज चाहिए , हम अभी भी गुलाम हैं,

हम आम आदमी हैं जी । अंबानी - अदानी और आम जनता मिले हुए हैं जी ।
हम बहुत छोटे आदमी हैं जी। हमरी कोई औकात नहीं है जी। 

लोकपाल पकोड़ा के बिना हम "पकोड़ा with भगोड़ा" का आयोजन कैसे कर सकते हैं जी । हम मोदी जी से मांग करते हैं की हमे पकोड़ा बना कर दें ।

आज 15 अगस्त को हम इटली का झण्डा फहराएँगे । ये लोकतन्त्र है हम कुछ भी कर सकते हैं। हमे स्वराज चाहिए । 

[एक बंगला बने न्यारा !!!  ]

इस बार आम आदमी पार्टी की बारी है जी। बस एक बंगला का सवाल है जी । 

आम आदमी पार्टी को vote दें हम कश्मीर पाकिस्तान को देने की मांग करते हैं। अरुणाचल चीन को देने की मांग करते हैं । आतंकवादीयों को सुख सुविधा और आधुनिक हथियार की मांग करते हैं ।

जय सोनिया, जय राहुल 
जय पापिस्तान
जय चंदा , जय झाड़ू
#बाप_जी
Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

Eliminate these traitors.


Eliminate these traitors.

 
जम्‍मू-कश्‍मीर और तेलंगाना को अलग देश बताने वाली सीएम की बेटी पर देशद्राेह का मुकदमा दर्ज 

फाइल फोटो: तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव की बेटी के. कव‍िता

हैदराबाद. तेलंगाना के मुख्‍यमंत्री चंद्रशेखर राव की बेटी और टीआरएस सांसद कविता पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है। बता दें कि बीते महीने ही कविता ने तेलंगाना और कश्‍मीर के मुद्दों की तुलना करते हुए दलील दी थी कि दोनों अलग देश हैं लेकिन उन्‍हें आजादी के बाद जबरन भारत में मिला दिया गया। लोगों ने इस संदर्भ में अदालत में शिकायत की, जिसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया। बता दें कि आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना भारत का 29वां राज्य घोषित किया गया था और इसके पहले मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव हैं। 

हुई थी तीखी आलोचना

कविता ने कथित तौर पर कहा था, 'जम्मू कश्मीर और तेलंगाना भारत के हिस्से ही नहीं हैं। जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से हमारे नहीं हैं। आजादी मिलने के बाद हमने जबरन अपना अधिकार जमाया था और इसे अपने में मर्ज कर लिया। हमें अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का नए सिरे से गठन करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।' कविता के बयान पर कांग्रेस ने गंभीर आपत्‍ति दर्ज कराई थी। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है और हमेशा रहेगा। सिंघवी ने कहा था कि चूंकि कविता चुनी हुई प्रतिनिधि हैं, इसलिए उनके दिए हुए किसी भी बयान से विदेशी नेताओं के सामने गलत उदाहरण पेश होता है, लिहाजा उन्हें इस तरह के बयानों से बचना चाहिए।

पहले भी दर्ज हो चुका है मुकदमा 

कविता पर 2010 में तेलंगाना मुद्दे पर बनी फिल्‍म 'अदुरस' की स्‍क्रीनिंग रोकने की धमकी देने का मामला दर्ज किया गया था। 'अदुरस' में जूनियर एनटीआर बतौर हीरो थे।

जम्‍मू-कश्‍मीर और तेलंगाना को अलग देश बताने वाली सीएम की बेटी पर देशद्राेह का मुकदमा दर्ज

फाइल फोटो: तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव की बेटी के. कव‍िता

हैदराबाद. तेलंगाना के मुख्‍यमंत्री चंद्रशेखर राव की बेटी और टीआरएस सांसद कविता पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया है। बता दें कि बीते महीने ही कविता ने तेलंगाना और कश्‍मीर के मुद्दों की तुलना करते हुए दलील दी थी कि दोनों अलग देश हैं लेकिन उन्‍हें आजादी के बाद जबरन भारत में मिला दिया गया। लोगों ने इस संदर्भ में अदालत में शिकायत की, जिसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया। बता दें कि आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना भारत का 29वां राज्य घोषित किया गया था और इसके पहले मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव हैं।

हुई थी तीखी आलोचना

कविता ने कथित तौर पर कहा था, ‘जम्मू कश्मीर और तेलंगाना भारत के हिस्से ही नहीं हैं। जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्से हमारे नहीं हैं। आजादी मिलने के बाद हमने जबरन अपना अधिकार जमाया था और इसे अपने में मर्ज कर लिया। हमें अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का नए सिरे से गठन करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।’ कविता के बयान पर कांग्रेस ने गंभीर आपत्‍ति दर्ज कराई थी। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है और हमेशा रहेगा। सिंघवी ने कहा था कि चूंकि कविता चुनी हुई प्रतिनिधि हैं, इसलिए उनके दिए हुए किसी भी बयान से विदेशी नेताओं के सामने गलत उदाहरण पेश होता है, लिहाजा उन्हें इस तरह के बयानों से बचना चाहिए।

पहले भी दर्ज हो चुका है मुकदमा

कविता पर 2010 में तेलंगाना मुद्दे पर बनी फिल्‍म ‘अदुरस’ की स्‍क्रीनिंग रोकने की धमकी देने का मामला दर्ज किया गया था। ‘अदुरस’ में जूनियर एनटीआर बतौर हीरो थे।

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas, हिन्दू पतन

Is it true


Is it true that Fakhruddin Ali Ahmed, a member of the Assam Pradesh Congress Committee from 1936 who was installed as the 5th President of India was picked as the 5th President of India by the Prime Minister, Indira Gandhi, in 1974, and on 20 August 1974, he became the 2nd Muslim President; aided/ abetted/ instigated/ provoked/ leaded Muslim mobs against Hindus during Noakhali Riots, October–November 1946?
The massacre of the Hindu population started on 10 October, on the dayof Kojagari Lakshmi Puja, and continued unabated for about a week. It is estimated that over 5,000 Hindus were killed, hundreds of Hindu women were raped and thousands of Hindu men and women were forcibly converted to Islam. Around 50,000 to 75,000 survivors were sheltered in temporary relief camps in Comilla, Chandpur, Agartala and other places. Apart from that, around 50,000 Hindus that remained marooned in the affected areas were under the strict surveillance of the Muslims, where the administration had to say. In some areas, the Hindus had to obtain permits from the Muslim leaders in order to travel outside their villages. The forcibly converted Hindus were coerced to give written declaration that they have converted to Islam on their own free will. Sometimes they were confined in houses not their own and only allowed to be in their own house, when an official party came for inspection. The Hindus were forced to pay subscription to the Muslim League and pay jiziyah, the protection tax paid by zimmis in an Islamic state.
Haran Chandra Ghosh Choudhuri, the only Hindu representative to Bengal Legislative Assembly from the district of Noakhali, described the incidents as the organised fury of the Muslim mob. Syama Prasad Mookerjee, the former Vice-Chancellor of the University of Calcutta and the former Finance Minister of Bengal, dismissed the argument that the Noakhali incidents were ordinary communal riots. He described the events as a planned and concerted attack by the majority community on the minority community.
The Congress leadership accepted the Partition of India and the peace mission and other relief camps were abandoned. The majority of the survivors migrated to West Bengal, Tripura and Assam.
http://en.wikipedia.org/wiki/Noakhali_genocide

The Noakhali riots also known as the Noakhali genocide or the Noakhali Carnage, was a series of massacres, rapes, abductions and forced conversions of Hindus and looting and arson of…
EN.WIKIPEDIA.ORG
Posted in आयुर्वेद - Ayurveda

बरगद का पेड़ है बहुत सारी बीमारियों की दवा, आजमाएं ये देहाती नुस्खे —


 
 
बरगद का पेड़ है बहुत सारी बीमारियों की दवा, आजमाएं ये देहाती नुस्खे ---
_____________________________________________________

बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है।

बरगद के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।

बरगद की जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है। ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।

लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़न, बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफ़ेद होते हैं। प्रति दिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।

पेशाब में जलन होने पर बरगद की जड़ों (10 ग्राम) का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची (2-2ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।

पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।

बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए। इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रति दिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।

बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते हैं और सूती कपड़े से घाव पर पट्

बरगद का पेड़ है बहुत सारी बीमारियों की दवा, आजमाएं ये देहाती नुस्खे —
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बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं। बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। बरगद के वृक्ष की शाखाएं और जड़ें एक बड़े हिस्से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है।

बरगद के संदर्भ में रोचक जानकारियों और परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।

बरगद की जड़ों में एंटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है। ताजी जड़ों के सिरों को काटकर पानी में कुचला जाए और रस को चेहरे पर लेपित किया जाए तो चेहरे से झुर्रियां दूर हो जाती हैं।

लगभग 10 ग्राम बरगद की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सड़न, बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफ़ेद होते हैं। प्रति दिन कम से कम दो बार इस चूर्ण से मंजन करना चाहिए।

पेशाब में जलन होने पर बरगद की जड़ों (10 ग्राम) का बारीक चूर्ण, जीरा और इलायची (2-2ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ मिलाकर लिया जाए तो अति शीघ्र लाभ होता है। यही फार्मूला पेशाब से संबंधित अन्य विकारों में भी लाभकारी होता है।

पैरों की फटी पड़ी एड़ियों पर बरगद का दूध लगाया जाए तो कुछ ही दिनों फटी एड़ियां सामान्य हो जाती हैं और तालु नरम पड़ जाते हैं।

बरगद की ताजा कोमल पत्तियों को सुखा लिया जाए और पीसकर चूर्ण बनाया जाए। इस चूर्ण की लगभग 2 ग्राम मात्रा प्रति दिन एक बार शहद के साथ लेने से याददाश्त बेहतर होती है।

बरगद के ताजे पत्तों को गर्म करके घावों पर लेप किया जाए तो घाव जल्द सूख जाते हैं। कई इलाकों में आदिवासी ज्यादा गहरा घाव होने पर ताजी पत्तियों को गर्म करके थोडा ठंडा होने पर इन पत्तियों को घाव में भर देते हैं और सूती कपड़े से घाव पर पट्