अखण्ड भारत महज सपना नहीं, श्रद्धा है, निष्ठा है। जिन आंखों ने भारत को भूमि से अधिक माता के रूप में देखा हो, जो स्वयं को इसका पुत्र मानता हो, जो प्रात: उठकर “समुद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शं क्षमस्वमे।” कहकर उसकी रज को माथे से लगाता हो, वन्देमातरम् जिनका राष्ट्रघोष और राष्ट्रगान हो, ऐसे असंख्य अंत:करण मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं, अखण्ड भारत के संकल्प को कैसे त्याग सकते हैं? किन्तु लक्ष्य के शिखर पर पहुंचने के लिए यथार्थ की कंकरीली-पथरीली, कहीं कांटे तो कहीं दलदल, कहीं गहरी खाई तो कहीं रपटीली चढ़ाई से होकर गुजरना ही होगा।
15 अगस्त को हमें आजादी मिली और वर्षों की परतंत्रता की रात समाप्त हो गयी। किन्तु स्वातंत्र्य के आनंद के साथ-साथ मातृभूमि के विभाजन का गहरा घाव भी सहन करना पड़ा। 1947 का विभाजन पहला और अन्तिम विभाजन नहीं है। भारत की सीमाओं का संकुचन उसके काफी पहले शुरू हो चुका था। सातवीं से नवीं शताब्दी तक लगभग ढाई सौ साल तक अकेले संघर्ष करके हिन्दू अफगानिस्तान इस्लाम के पेट में समा गया। हिमालय की गोद में बसे नेपाल, भूटान आदि जनपद अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण मुस्लिम विजय से बच गए। अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता का मार्ग अपनाया पर अब वह राजनीतिक स्वतंत्रता संस्कृति पर हावी हो गयी है। श्रीलंका पर पहले पुर्तगाल, फिर हालैंड और अन्त में अंग्रेजों ने राज्य किया और उसे भारत से पूरी तरह अलग कर दिया। किन्तु मुख्य प्रश्न तो भारत के सामने है। तेरह सौ वर्ष से भारत की धरती पर जो वैचारिक संघर्ष चल रहा था उसी की परिणति 1947 के विभाजन में हुई। पाकिस्तानी टेलीविजन पर किसी ने ठीक ही कहा था कि जिस दिन आठवीं शताब्दी में पहले हिन्दू ने इस्लाम को कबूल किया उसी दिन भारत विभाजन के बीज पड़ गए थे।
इसे तो स्वीकार करना ही होगा कि भारत का विभाजन हिन्दू-मुस्लिम आधार पर हुआ। पाकिस्तान ने अपने को इस्लामी देश घोषित किया। वहां से सभी हिन्दू-सिखों को बाहर खदेड़ दिया। अब वहां हिन्दू-सिख जनसंख्या लगभग शून्य है। भारतीय सेनाओं की सहायता से बंगलादेश स्वतंत्र राज्य बना। भारत के प्रति कृतज्ञतावश चार साल तक मुजीबुर्रहमान के जीवन काल में बंगलादेश ने स्वयं को पंथनिरपेक्ष राज्य कहा किन्तु एक दिन मुजीबुर्रहमान का कत्ल करके स्वयं को इस्लामी राज्य घोषित कर दिया। विभाजन के समय वहां रह गए हिन्दुओं की संख्या 34 प्रतिशत से घटकर अब 10 प्रतिशत से कम रह गई है और बंगलादेश भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बन गया है। करोड़ों बंगलादेशी घुसपैठिए भारत की सुरक्षा के लिए भारी खतरा बन गए हैं।
विभाजन के पश्चात् खंडित भारत की अपनी स्थिति क्या है? ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के अन्धानुकरण ने हिन्दू समाज को जाति, क्षेत्र और दल के आधार पर जड़मूल तक विभाजित कर दिया है। पूरा समाज भ्रष्टाचार की दलदल में आकंठ फंस गया है। हिन्दू समाज की बात करना साम्प्रदायिकता है और मुस्लिम कट्टरवाद व पृथकतावाद की हिमायत करना सेकुलरिज्म। अनेक छोटे-छोटे राजनीतिक दलों में बिखरा हिन्दू नेतृत्व सत्ता के कुछ टुकड़े पाने के लाभ में मुस्लिम वोटों को रिझाने में लगा है।
देश फिर से एक करने के लिए जिन कारणों से मनों में दरार पैदा होती है, उन कारणों को दूर करना आवश्यक है। यह आसान काम नहीं है। धार्मिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय शक्तियां सभी बाधाओं के रूप में खड़ी हैं। लेकिन क्या मुसलमानों और हिन्दुओं में सांस्कृतिक एकता का कोई प्रवाह है? हिन्दुओं और मुसलमानों के पुरखे एक हैं, उनका वंश एक है। ये मुसलमान अरबी, तुर्की या इराकी नहीं हैं। हिन्दू एक जीवन-पद्धति है और इसे पूर्णत: त्यागना हिन्दू से मुसलमान बने आज के मुसलमानों के लिए भी संभव नहीं है।
सैन्य सामर्थ्य भारत के पास है। लेकिन क्या पाकिस्तान पर जीत से अखंड भारत बन सकता है? जब लोगों में मनोमिलन होता है, तभी राष्ट्र बनता है। अखंडता का मार्ग सांस्कृतिक है, न की सैन्य कार्रवाई या आक्रमण। देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं के मन में इस संदर्भ में सुस्पष्ट धारणा आवश्यक है। भारत की अखंडता का आधार भूगोल से ज्यादा संस्कृति और इतिहास में है। खंडित भारत में एक सशक्त, एक्यबद्ध, तेजोमयी राष्ट्रजीवन खड़ा करके ही अखंड भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ना संभव होगा।
