Posted in नहेरु परिवार - Nehru Family

कायरता की पराकाष्ठा


कायरता की पराकाष्ठा

जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक भारत के राजनेता सीमाओं से छेड़छाड़ आराम से सहन करते आए है। महाभारत में भीष्म पिता ने कहा है कि,”राष्ट्र की सीमाएं माता के वस्त्रों के सामान होती है,कोई भी बेटा जिनसे छेड़छाड़ सहन नही कर सकता.”हमारे देश के नेतागण चाहे चीन हो या बांग्लादेश ,कोई भी कितना ही अतिक्रमण करले वे उसे सहन तो करते ही है साथ ही उसे भारतीय जनता से छुपाते भी है।

पिछले साल अकेले चीन ने ही भारत में घुसपैठ का लगभग २२५ बार दुस्साहस किया है। चीन ने १९५० में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद जब लद्दाख में ओक्सिचीन पर अतिक्रमण करके निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया था तो जानकारी के बावजूद नेहरू ने न केवल कोई कार्यवाही की बल्कि इस तथ्य को भारतीय जनता से छुपाने की पूरी कोशिश भी की। ओक्सिचीन के आलावा चीन ने शिप्कला,बारहोती,तवांग व नेफा में भी घुसपैठ करके अपने अड्डे बना लिए थे। भारत का ३८००० वर्ग किलोमीटर का भाग चीन १९५५ तक कब्जा चुका था।

बाद में संसद में हंगामा होने पर नेहरू ने जवाब दिया कि ,”वहाँ तो घास तक भी नही उगती।” नेहरू की इस बात का जवाब उस समय के रक्षा मंत्री रहे महावीर सिंह त्यागी ने जब अपनी टोपी उतारकर दिया कि, “देखो मेरे गंजे सर पर भी एक बाल नही उगता ,इसे भी काटकर चीन को सोप दो।” इस उत्तर को सुनकर नेहरू झल्लाकर संसद से बहार चले गए । इसी वर्ष भी सिक्किम से चीनियों को खदेड़ने में कई भारतीय सैनिको ने वीरगति प्राप्त की है।

आज चीन की तरफ़ से जो लगातार अतिक्रमण हो रहा है उसकी चेतावनी १९५० में ही सरकार को वीर सावरकर ने देते हुए कहा था कि, ” भारत को असली खतरा चीन से है,इसलिए भारत की उत्तरी सीमा को सबसे पहले सुरक्षित किया जाय।” सावरकर की इस बात का समर्थन उस समय रहे सेना के सर्वोच्च अधिकारी जनरल करिअप्पा ने भी किया था। परन्तु सत्ता के मद में चूर नेहरू ने सावरकर की उस बात को अनसुनी कर दिया । नेहरू की वही निति आजतक जारी है । चीन बार बार भारतीय छेत्र में रोज अतिक्रमण कर रहा है, और भारत का रक्षा मंत्री लगातार कह रहा है कि चिंता की कोई बात नही। इस निति को अहिंसा नही बल्कि कायरता कहते है।

कायरता की पराकाष्ठा

जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक भारत के राजनेता सीमाओं से छेड़छाड़ आराम से सहन करते आए है। महाभारत में भीष्म पिता ने कहा है कि,"राष्ट्र की सीमाएं माता के वस्त्रों के सामान होती है,कोई भी बेटा जिनसे छेड़छाड़ सहन नही कर सकता."हमारे देश के नेतागण चाहे चीन हो या बांग्लादेश ,कोई भी कितना ही अतिक्रमण करले वे उसे सहन तो करते ही है साथ ही उसे भारतीय जनता से छुपाते भी है।

पिछले साल अकेले चीन ने ही भारत में घुसपैठ का लगभग २२५ बार दुस्साहस किया है। चीन ने १९५० में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद जब लद्दाख में ओक्सिचीन पर अतिक्रमण करके निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया था तो जानकारी के बावजूद नेहरू ने न केवल कोई कार्यवाही की बल्कि इस तथ्य को भारतीय जनता से छुपाने की पूरी कोशिश भी की। ओक्सिचीन के आलावा चीन ने शिप्कला,बारहोती,तवांग व नेफा में भी घुसपैठ करके अपने अड्डे बना लिए थे। भारत का ३८००० वर्ग किलोमीटर का भाग चीन १९५५ तक कब्जा चुका था।

बाद में संसद में हंगामा होने पर नेहरू ने जवाब दिया कि ,"वहाँ तो घास तक भी नही उगती।" नेहरू की इस बात का जवाब उस समय के रक्षा मंत्री रहे महावीर सिंह त्यागी ने जब अपनी टोपी उतारकर दिया कि, "देखो मेरे गंजे सर पर भी एक बाल नही उगता ,इसे भी काटकर चीन को सोप दो।" इस उत्तर को सुनकर नेहरू झल्लाकर संसद से बहार चले गए । इसी वर्ष भी सिक्किम से चीनियों को खदेड़ने में कई भारतीय सैनिको ने वीरगति प्राप्त की है। 

आज चीन की तरफ़ से जो लगातार अतिक्रमण हो रहा है उसकी चेतावनी १९५० में ही सरकार को वीर सावरकर ने देते हुए कहा था कि, " भारत को असली खतरा चीन से है,इसलिए भारत की उत्तरी सीमा को सबसे पहले सुरक्षित किया जाय।" सावरकर की इस बात का समर्थन उस समय रहे सेना के सर्वोच्च अधिकारी जनरल करिअप्पा ने भी किया था। परन्तु सत्ता के मद में चूर नेहरू ने सावरकर की उस बात को अनसुनी कर दिया । नेहरू की वही निति आजतक जारी है । चीन बार बार भारतीय छेत्र में रोज अतिक्रमण कर रहा है, और भारत का रक्षा मंत्री लगातार कह रहा है कि चिंता की कोई बात नही। इस निति को अहिंसा नही बल्कि कायरता कहते है।
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इंडियन नेशनल कांग्रेस के राष्ट्रद्रोह


इंडियन नेशनल कांग्रेस के राष्ट्रद्रोह का मुखर विरोध करनेवाले बड़े-बड़े भाजपा-नेता दुनिया से हमेशा के लिए उठा दिए गए हैं.
जिस भारतीय जनसंघ की नीव पर भाजपा आज खड़ी है, उस जनसंघ के ३-३ राष्ट्रीय अध्यक्ष- १९५३ में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, १९६३ में प्रख्यात प्राच्यविद डा. आचार्य रघुवीर और १९६८ में प्रख्यात चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय मौत के घाट उतार दिए गए.
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रीनगर जेल की एक छोटी कोठरी में ठूंसकर मार दिया गया; डा. आचार्य रघुवीर को सड़क-एक्सीडेंट में उड़ा दिया गया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तो बड़ी नृशंस हत्या हुई. उनके तो हाथ-पैर मरोड़कर तोड़ डाले गए थे और चेहरे को भी विकृत कर दिया गया था ताकि उनकी पहचान न हो सके. यहाँ तक कि उनका मृत शरीर मुगलसराय रेलवे स्टेशन के यार्ड में लावारिस पड़ा मिला था. बड़ी मुश्किल से (नानाजी देशमुख की घड़ी से) उनकी पहचान हो पाई. परम पूज्यनीय श्री गुरुजी दीनदयाल जी की मृत्यु पर रो पड़े थे.
उक्त तीनों महान विभूतियों में से किसी की भी हत्या का रहस्य आज तक नहीं खुल पाया है.
श्री नरेन्द्र मोदी से अपेक्षा है कि उनके कार्यकाल में इन नेताओं की मृत्यु के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए सार्थक प्रयास किया जाएगा.

इंडियन नेशनल कांग्रेस के राष्ट्रद्रोह का मुखर विरोध करनेवाले बड़े-बड़े भाजपा-नेता दुनिया से हमेशा के लिए उठा दिए गए हैं. 
जिस भारतीय जनसंघ की नीव पर भाजपा आज खड़ी है, उस जनसंघ के ३-३ राष्ट्रीय अध्यक्ष- १९५३ में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, १९६३ में प्रख्यात प्राच्यविद डा. आचार्य रघुवीर और १९६८ में प्रख्यात चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय मौत के घाट उतार दिए गए.
डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रीनगर जेल की एक छोटी कोठरी में ठूंसकर मार दिया गया; डा. आचार्य रघुवीर को सड़क-एक्सीडेंट में उड़ा दिया गया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तो बड़ी नृशंस हत्या हुई. उनके तो हाथ-पैर मरोड़कर तोड़ डाले गए थे और चेहरे को भी विकृत कर दिया गया था ताकि उनकी पहचान न हो सके. यहाँ तक कि उनका मृत शरीर मुगलसराय रेलवे स्टेशन के यार्ड में लावारिस पड़ा मिला था. बड़ी मुश्किल से (नानाजी देशमुख की घड़ी से) उनकी पहचान हो पाई. परम पूज्यनीय श्री गुरुजी दीनदयाल जी की मृत्यु पर रो पड़े थे. 
उक्त तीनों महान विभूतियों में से किसी की भी हत्या का रहस्य आज तक नहीं खुल पाया है.
श्री नरेन्द्र मोदी से अपेक्षा है कि उनके कार्यकाल में इन नेताओं की मृत्यु के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए सार्थक प्रयास किया जाएगा.
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भारत को अपने आधीन करने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी


भारत को अपने आधीन करने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेज अधिकारियों ने भारत का ‘इतिहास’ लिखा।

अंग्रेजो ने जगह-जगह लिखा कि भारत पर अंग्रेजों से पहले मुसलमानों का राज था। उन्होंने अपनी इस शरारत के जरिये मुसलमानों के दिमाग में एक गलत धारणा बैठा दी, जिसका नतीजा अंतत: यह निकला कि मुसलमान घमंड, हठधर्मिता और अदम्य महत्वाकांक्षा का शिकार बने । इसकी परिणति 1947 में भारत-विभाजन के रूप में सामने आई।

ब्रिटिश हुक्मरानों ने कहा कि उन्होंने मुसलमानों के हाथों से हुकूमत ली। इससे बड़ा झूठ तो कोई हो ही नहीं सकता। उन्हें सत्ता हथियाने के लिए मराठों, सिखों और गोरखाओं से खूनी जंगें लडऩी पड़ी थीं। लेकिन सर सैयद अहमद जैसे कई लोगों को ब्रिटिश हुक्मरानों की यह फंतासी खूब रास आई।

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राहुल गांधी


राहुल गांधी का डी.एन.ए. कराना चाहिए कि उसका (असली) पिता कौन है. उसके संभावित पिता हैं: संजय गांधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, राजीव गांधी इत्यादि.
सोनिया का भारत में आगमन एक विषकन्या के रूप में हुआ है. जिन-जिन कांग्रेस नेताओं को सोनिया की सच्चाई के बारे में पता लगा, उन-उनको सोनिया ने चुन-चुनकर अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा दिया.
सोनिया भारत में रोमन कैथोलिक चर्च (वेटिकन सिटी) के प्रधान पोप (पाप के मसीहा) के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है. भारतीय राजनीति में आने के बाद सोनिया ने महाभारत के शकुनि की तरह कांग्रेस (कुरु) वंश को भीतर-भीतर समाप्त करना शुरू किया. क्रमश: १. संजय गांधी, २. इंदिरा गांधी, ३. राजीव गांधी, ४. ज्ञानी जैल सिंह, ५. राजेश पायलट और ६. माधवराव सिंधिया- ये सभी नेता सोनिया के आने के बाद येन-केन-प्रकारेण या तो एक्सीडेंट से मरे या मार दिए गए. कुछ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक परमपूज्य श्री कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन जी ने कहा था कि सोनिया ने इंदिरा गांधी की हत्या करवाई तो कॉंग्रेसी घबड़ा गए थे. इतनी सारी मौत महज एक संयोग नहीं हो सकती I

राहुल गांधी का डी.एन.ए. कराना चाहिए कि उसका (असली) पिता कौन है. उसके संभावित पिता हैं: संजय गांधी, माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, राजीव गांधी इत्यादि. 
सोनिया का भारत में आगमन एक विषकन्या के रूप में हुआ है. जिन-जिन कांग्रेस नेताओं को सोनिया की सच्चाई के बारे में पता लगा, उन-उनको सोनिया ने चुन-चुनकर अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा दिया. 
सोनिया भारत में रोमन कैथोलिक चर्च (वेटिकन सिटी) के प्रधान पोप (पाप के मसीहा) के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है. भारतीय राजनीति में आने के बाद सोनिया ने महाभारत के शकुनि की तरह कांग्रेस (कुरु) वंश को भीतर-भीतर समाप्त करना शुरू किया. क्रमश: १. संजय गांधी, २. इंदिरा गांधी, ३. राजीव गांधी, ४. ज्ञानी जैल सिंह, ५. राजेश पायलट और ६. माधवराव सिंधिया- ये सभी नेता सोनिया के आने के बाद येन-केन-प्रकारेण या तो एक्सीडेंट से मरे या मार दिए गए. कुछ वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक परमपूज्य श्री कुप्पहल्ली सीतारमैया सुदर्शन जी ने कहा था कि सोनिया ने इंदिरा गांधी की हत्या करवाई तो कॉंग्रेसी घबड़ा गए थे. इतनी सारी मौत महज एक संयोग नहीं हो सकती I
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अकबर महान और उसके नवरत्न


Part -2

अकबर महान और उसके नवरत्न
४६. अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौ रत्नों की कहानी घड़ी है. असलियत यह है कि अकबर अपने सब दरबारियों को मूर्ख समझता था. उसने कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि इसको योग्य दरबारी नहीं मिले वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं वह खुद नहीं.
४७. प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था. इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना.
४८. एक और नवरत्न अबुल फजल अकबर का अव्वल दर्जे का चाटुकार था. बाद में जहाँगीर ने इसे मार डाला.
४९. फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था जिसकी कलम अपने शहंशाह को प्रसन्न करने के लिए ही चलती थी. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वह अपने समय का भारत का सबसे बड़ा कवि था. आश्चर्य इस बात का है कि यह सर्वश्रेष्ठ कवि एक अनपढ़ और जाहिल शहंशाह की प्रशंसा का पात्र था! यह ऐसी ही बात है जैसे कोई अरब का मनुष्य किसी संस्कृत के कवि के भाषा सौंदर्य का गुणगान करता हो!
५०. बुद्धिमान बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया. बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं. ध्यान रहे कि ऐसी कहानियाँ दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम से भी प्रचलित हैं.
५१. अगले रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों सबसे बड़े रत्न अकबर के आदेश पर मार डाले गए!
५२. मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बहन जहांगीर को दी. और बाद में इसी जहांगीर ने मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया. यही मानसिंह अकबर के आदेश पर जहर देकर मार डाला गया और इसके पिता भगवान दास ने आत्महत्या कर ली.
५३. इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लडकियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें. और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है.
५४. रत्न टोडरमल अकबर का वफादार था तो भी उसकी पूजा की मूर्तियां अकबर ने तुडवा दीं. इससे टोडरमल को दुःख हुआ और इसने इस्तीफ़ा दे दिया और वाराणसी चला गया.
अकबर और उसके गुलाम
५५. अकबर ने एक ईसाई पुजारी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया. इससे पता चलता है किअकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था.
५६. कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने १५८१-८२ में इसकी किसी नीति का विरोध किया था. बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए.
५७. जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह सोने के पिंजरों में बंद कर दी जाती थीं.
५८. वैसे भी इस्लाम के नियमों के अनुसार युद्ध में पकडे गए लोग और उनके बीवी बच्चे गुलाम समझे जाते हैं जिनको अपनी हवस मिटाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है. अल्लाह ने कुरान में यह व्यवस्था दे रखी है.
५९. अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था. उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देते थे. फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे, या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी क़ुबूल करे.
कुछ और तथ्य
६०. जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरे के किले में थीं. इसी तरह के और खजाने छह और जगह पर भी थे. इसके बावजूद भी उसने १५९५-१५९९ की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया.
६१. अकबर ने प्रयागराज (जिसे बाद में इसी धर्म निरपेक्ष महात्मा ने इलाहबाद नाम दिया था) में गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो लोग उसके इस्तकबाल करने की जगह घरों में छिप गए. यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है.
६२. एक बहुत बड़ा झूठ यह है कि फतेहपुर सीकरी अकबर ने बनवाया था. इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है. बाकी दरिंदे लुटेरों की तरह इसने भी पहले सीकरी पर आक्रमण किया और फिर प्रचारित कर दिया कि यह मेरा है. इसी तरह इसके पोते और इसी की तरह दरिंदे शाहजहाँ ने यह ढोल पिटवाया था कि ताज महल इसने बनवाया है वह भी अपनी चौथी पत्नी की याद में जो इसके और अपने सत्रहवें बच्चे को पैदा करने के समय चल बसी थी!
तो ये कुछ उदाहरण थे अकबर “महान” के जीवन से ताकि आपको पता चले कि हमारे नपुंसक इतिहासकारों की नजरों में महान बनना क्यों हर किसी के बस की बात नहीं. क्या इतिहासकार और क्या फिल्मकार और क्या कलाकार, सब एक से एक मक्कार, देशद्रोही, कुल कलंक, नपुंसक हैं जिन्हें फिल्म बनाते हुए अकबर तो दीखता है पर महाराणा प्रताप कहीं नहीं दीखता. अब देखिये कि अकबर पर बनी फिल्मों में इस शराबी, नशाखोर, बलात्कारी, और लाखों हिंदुओं के हत्यारे अकबर के बारे में क्या दिखाया गया है और क्या छुपाया. बैरम खान की पत्नी, जो इसकी माता के सामान थी, से इसकी शादी का जिक्र किसी ने नहीं किया. इस जानवर को इस तरह पेश किया गया है कि जैसे फरिश्ता! जोधाबाई से इसकी शादी की कहानी दिखा दी पर यह नहीं बताया कि जोधा असल में जहांगीर की पत्नी थी और शायद दोनों उसका उपभोग कर रहे थे. दिखाया यह गया कि इसने हिंदू लड़की से शादी करके उसका धर्म नहीं बदला, यहाँ तक कि उसके लिए उसके महल में मंदिर बनवाया! असलियत यह है कि बरसों पुराने वफादार टोडरमल की पूजा की मूर्ति भी जिस अकबर से सहन न हो सकी और उसे झट तोड़ दिया, ऐसे अकबर ने लाचार लड़की के लिए मंदिर बनवाया, यह दिखाना धूर्तता की पराकाष्ठा है. पूरी की पूरी कहानियाँ जैसे मुगलों ने हिन्दुस्तान को अपना घर समझा और इसे प्यार दिया, हेमू का सिर काटने से अकबर का इनकार, देश की शान्ति और सलामती के लिए जोधा से शादी, उसका धर्म परिवर्तन न करना, हिंदू रीति से शादी में आग के चारों तरफ फेरे लेना, राज महल में जोधा का कृष्ण मंदिर और अकबर का उसके साथ पूजा में खड़े होकर तिलक लगवाना, अकबर को हिंदुओं को जबरन इस्लाम क़ुबूल करवाने का विरोधी बताना, हिंदुओं पर से कर हटाना, उसके राज्य में हिंदुओं को भी उसका प्रशंसक बताना, आदि ऐसी हैं जो असलियत से कोसों दूर हैं जैसा कि अब आपको पता चल गयी होंगी. “हिन्दुस्तान मेरी जान तू जान ए हिन्दोस्तां” जैसे गाने अकबर जैसे बलात्कारी, और हत्यारे के लिए लिखने वालों और उन्हें दिखाने वालों को उसी के सामान झूठा और दरिंदा समझा जाना चाहिए.
चित्तौड़ में तीस हजार लोगों का कत्लेआम करने वाला, हिंदू स्त्रियों को एक के बाद एक अपनी पत्नी या रखैल बनने पर विवश करने वाला, नगरों और गाँवों में जाकर नरसंहार कराकर लोगों के कटे सिरों से मीनार बनाने वाला, जिस देश के इतिहास में महान, सम्राट, “शान ए हिन्दोस्तां” लिखा जाए और उसे देश का निर्माता कहा जाए कि भारत को एक छत्र के नीचे उसने खड़ा कर दिया, उस देश का विनाश ही होना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ जो ऐसे दरिंदे, नपुंसक के विरुद्ध धर्म और देश की रक्षा करता हुआ अपने से कई गुना अधिक सेनाओं से लड़ा, जंगल जंगल मारा मारा फिरता रहा, अपना राज्य छोड़ा, सब साथियों को छोड़ा, पत्तल पर घास की रोटी खाकर भी जिसने वैदिक धर्म की अग्नि को तुर्की आंधी से कभी बुझने नहीं दिया, वह महाराणा प्रताप इन इतिहासकारों और फिल्मकारों की दृष्टि में “जान ए हिन्दुस्तान” तो दूर “जान ए राजस्थान” भी नहीं था! उसे सदा अपने राज्य मेवाड़ की सत्ता के लिए लड़ने वाला एक लड़ाका ही बताया गया जिसके लिए इतिहास की किताबों में चार पंक्तियाँ ही पर्याप्त हैं. ऐसी मानसिकता और विचारधारा, जिसने हमें अपने असली गौरवशाली इतिहास को आज तक नहीं पढ़ने दिया, हमारे कातिलों और लुटेरों को महापुरुष बताया और शिवाजी और राणा प्रताप जैसे धर्म रक्षकों को लुटेरा और स्वार्थी बताया, को आज अपने पैरों तले रौंदना है. संकल्प कीजिये कि अब आपके घर में अकबर की जगह राणा प्रताप की चर्चा होगी. क्योंकि इतना सब पता होने पर यदि अब भी कोई अकबर के गीत गाना चाहता है तो उस देशद्रोही और धर्मद्रोही को कम से कम इस देश में रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए.

Posted in गौ माता - Gau maata

गाय


1) कान दर्द होनेपर धतुरे का रस कान में डालें आराम मिलेगा I
2) अनार की सुखी छाल व थोड़ी-सी फीटकरी मिलाकर बारीक चूर्ण बनायें व मंजन की तरह सुबह-शाम इस्तेमाल करने से दाँतों के रोग ठिक होते है I
3) मूँह के छाले होनेपर गुल्लर का दूध छालों पर लगायें आराम मिलेगा I
4) गिलोय और शतावर को समान मात्रा में लेकर सेवन करने से श्वेत पदर में आराम मिलता है I
5) नींबू, ककडी तथा खीरे का रस समान मात्रा में मिलाकर स्नान से पूर्व चेहरेपर मलें तथा कुछ समय बाद स्नान करें I चेहरे की रौनक बढ़ेगी I
6) देसी गाय के गोबर से लिपे हुये घर में प्लेग, हैजा जैसे भयंकर बिमारी नहीं होती है I
7) देसी गाय का सूखा हुआ गोबर जलाने से मच्छर नहीं होते है I
8) देसी गाय का गोमूत् पाणी मिलाकर 1-2 थेंब आँखो में डालने से आँखो की शक्ती बढ़ती है I
9) देसी गाय के गोमूत्र में नमक और शक्कर समभाग मिलाकर सेवन करने से उदर रोग में आराम मिलता है I
10) देसी गाय के गरम दूध में घी मिलाकर सेवन करने से वीर्यवृध्दी होती है I
www.krishnapriyagoshala.org

Krishnapriya Goshala's photo.
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Posted in जीवन चरित्र

Shambhaji


 
 
Learn from History - Part 1

Sambhaji Bhosale (14 May 1657 – 11 March 1689) was the eldest son of Chhatrapati Shivaji, the founder of the Maratha Empire, and his first wife Saibai. He was successor of the empire after Shivaji's death. Sambhaji's rule was largely shaped by the ongoing wars between the Maratha kingdom and the Mughal Empire, as well as other neighbouring powers such as the Siddis, Mysore and the Portuguese in Goa. Sambhaji was captured, tortured, and executed by the Mughals

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a) KAFIR-KUSHI A LA SURAH VIII, VERSE 12

Around 1689 A.D. the Hindu king Shambhaji, son of Shivaji, was captured by Aurangzib's men. The Hindu king was murdered along with his minister Kavi Kalash. There are many ways of killing a defeated foe. Freeing a defeated foe after the battle, like the Hindu kings used to do or the Indian government did when they freed without trial the criminal elements of the Moslem Pakistani prisoners captured in the then East Pakistan (now Bangladesh), was of course unthinkable in Islamic ethics and more so if the foe was a kafir, an enemy of Allah and the prophet Mohammed. Kafirs were killed in a more sophisticated way, the way prescribed by the Koran. Chopping a kafir's head off at a single stroke of the sword or crushing his head in a single blow was considered too mild. The idea was to make the pain last, as long as possible. Thus in Islam's hell, a kafir burns but his skin goes on growing to be burnt continuously so that the pain becomes everlasting. Death is the termination of all pains and so it must be delayed to teach a lesson and to prove without fail the greatness of Allah's religion.

SHAMBHAJl WAS FIRST BLINDED AND KAVI KALASH'S TONGUE WAS PULLED OUT. ON MARCH ll, 1689, THEY WERE PUT TO A CRUEL AND PAINFUL DEATH. THEIR LIMBS WERE HACKED OFF ONE BY ONE AND THEIR FLESH THROWN TO THE DOGS.

It was in the year 1669 A.D. that the Hindu king Gokla was Captured by Aurangzib. THE HINDU KING'S LIMBS WERE HACKED OFF ONE BY ONE ON THE PLATFORM OF THE POLICE STATION OF AGRA, THE CITY OF TAJ MAHAL. HIS WHOLE FAMILY WAS FORCIBLY CONVERTED TO ISLAM.

One might think that such gruesome murders committed in accordance with the injunctions of the Koran are a thing of the past. But it is not so. The following incident proves it.

Bengal in pre-partition India was then being ruled by Suhrawardy, the Muslim League leader. Suhrawardy had laid a diabolical plan to destroy the Hindu city of Calcutta. One Mr. Haren Ghosh, a music teacher who used to give lessons in music to the girls of Suhrawardy's family, came to know of the plot and he informed the authorities. Calcutta was saved at the nick of time and eventually Suhrawardy came to know that his plans were divulged by his music teacher. Mr. Ghosh was kidnapped, his limbs were hacked off one by one and his cut up body was found in a box that was left in a Calcutta street. And this happened in the 1940's. Islam has not changed and those who think otherwise only fool themselves.

Even today the Sheikhs of Arabia make sick jokes when they ask their non-Moslem friends if they had a choice which one would they choose for their death: death by a single stroke severing the head or death by chopping their limbs off one by one.

Learn from History – Part 1

Sambhaji Bhosale (14 May 1657 – 11 March 1689) was the eldest son of Chhatrapati Shivaji, the founder of the Maratha Empire, and his first wife Saibai. He was successor of the empire after Shivaji’s death. Sambhaji’s rule was largely shaped by the ongoing wars between the Maratha kingdom and the Mughal Empire, as well as other neighbouring powers such as the Siddis, Mysore and the Portuguese in Goa. Sambhaji was captured, tortured, and executed by the Mughals

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a) KAFIR-KUSHI A LA SURAH VIII, VERSE 12

Around 1689 A.D. the Hindu king Shambhaji, son of Shivaji, was captured by Aurangzib’s men. The Hindu king was murdered along with his minister Kavi Kalash. There are many ways of killing a defeated foe. Freeing a defeated foe after the battle, like the Hindu kings used to do or the Indian government did when they freed without trial the criminal elements of the Moslem Pakistani prisoners captured in the then East Pakistan (now Bangladesh), was of course unthinkable in Islamic ethics and more so if the foe was a kafir, an enemy of Allah and the prophet Mohammed. Kafirs were killed in a more sophisticated way, the way prescribed by the Koran. Chopping a kafir’s head off at a single stroke of the sword or crushing his head in a single blow was considered too mild. The idea was to make the pain last, as long as possible. Thus in Islam’s hell, a kafir burns but his skin goes on growing to be burnt continuously so that the pain becomes everlasting. Death is the termination of all pains and so it must be delayed to teach a lesson and to prove without fail the greatness of Allah’s religion.

SHAMBHAJl WAS FIRST BLINDED AND KAVI KALASH’S TONGUE WAS PULLED OUT. ON MARCH ll, 1689, THEY WERE PUT TO A CRUEL AND PAINFUL DEATH. THEIR LIMBS WERE HACKED OFF ONE BY ONE AND THEIR FLESH THROWN TO THE DOGS.

It was in the year 1669 A.D. that the Hindu king Gokla was Captured by Aurangzib. THE HINDU KING’S LIMBS WERE HACKED OFF ONE BY ONE ON THE PLATFORM OF THE POLICE STATION OF AGRA, THE CITY OF TAJ MAHAL. HIS WHOLE FAMILY WAS FORCIBLY CONVERTED TO ISLAM.

One might think that such gruesome murders committed in accordance with the injunctions of the Koran are a thing of the past. But it is not so. The following incident proves it.

Bengal in pre-partition India was then being ruled by Suhrawardy, the Muslim League leader. Suhrawardy had laid a diabolical plan to destroy the Hindu city of Calcutta. One Mr. Haren Ghosh, a music teacher who used to give lessons in music to the girls of Suhrawardy’s family, came to know of the plot and he informed the authorities. Calcutta was saved at the nick of time and eventually Suhrawardy came to know that his plans were divulged by his music teacher. Mr. Ghosh was kidnapped, his limbs were hacked off one by one and his cut up body was found in a box that was left in a Calcutta street. And this happened in the 1940’s. Islam has not changed and those who think otherwise only fool themselves.

Even today the Sheikhs of Arabia make sick jokes when they ask their non-Moslem friends if they had a choice which one would they choose for their death: death by a single stroke severing the head or death by chopping their limbs off one by one.

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हनुमान जी ने सूर्य को क्यों निगला….


हनुमान जी ने सूर्य को क्यों निगला….

सुमेरु नाम के स्वर्ण पर्वत पर वानरराज केसरी राज्य करते थे। माता अंजनी और केसरी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शिव उपासना की तथा भगवान शंकर की आज्ञा अनुसार पवनदेव ने शिव प्रसाद के रूप में माता अंजना के गर्भ में हनुमान जी की स्थापना की। हनुमान जी रुद्रावतार थे। जब उन्होंने जन्म लिया तब प्रभात का उगता हुआ सूर्यबिम्ब दर्शित हो रहा था। उन्होंने उगते हुए सूर्य को देखा मानो वो जैसे कोई बूंदी लड्डू का लड्डू यां मीठा फल जान पड़ता हो और उसे पकड़ने के लिए छलांग लगा दी।

जुग सहस्त्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

अर्थात जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजारों युग लगते हैं। उस हजारों योजन दूरी पर स्थित सूर्य को हनुमान जी ने एक मीठा फल (बूंदी का लड्डू) समझकर निगल लिया था। कुछ कवियों और लेखकों ने इस विषय पर अनेक रुपक लिखे हैं।

कुछ लेखकों का कहना है की: फल सोचकर ही सहज स्वभाव के अनुसार हनुमान जी कुदे थे।

कवि भारवि द्वारा संस्कृत में रचित महाकाव्य किरातार्जुनीयम् अनुसार ये छंद कुछ यही प्रमाणित करते है।

“किमपेक्ष्य फलं परोधरान् ध्वनत: प्रार्थयते मृगाधिप:। प्रति: खलु सा महियसां सहते नान्यसमुन्नतिं यया।।”

अर्थात बादलों की गड़़गडाहट सुनकर सिंह गुफा के बाहर आता है और ऊपर देखता है कि उससे बड़ा कौन है? बडे लोग जन्म से ही शौर्यवान और कतृ‍र्त्ववान होते हैं। हनुमान जी ने इसलिए ही सूर्यबिम्ब देखते ही छलांग मारी दी थी।

सूर्यग्रास का आध्यात्मिक रहस्य: इस विषय से संबंधित पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान के छलांग मारते ही सूर्य को बचाने के लिए इंद्रदेव ने हनुमान पर वज्रप्रहार किया, जिसके फलस्वरुप हनुमान जी मुर्छित हो गए। अपने सुत को मूर्छित देख पवनदेव को क्रोध आ जाता है। जीवन अन्न और जल के बिना तो फिर भी कुछ दिन चल सकता है परन्तु प्राण वायु बिना कैसे चल सकता है। पवन देव ने क्रोध में आकार संसार से प्राण वायु ही विलुप्त कर दी थी तदुपरांत इंद्र देव ने वायु देव को मनाया और हनुमान जी को शक्ति प्रदान की गई। सूर्य ने अपने अंश का तेज हनुमान जी को प्रदान किया जिससे वे प्रखर बुद्धिमान हुए यम, वरुण इत्यादि प्रत्येक देवता ने कुछ न कुछ दिया। इस प्रकार सबके पास दिव्य बातें लेकर शक्ति संपन्न और बुद्धि संपन्न हो जाने वाली विभूति कहलाए हनुमान जी।

हनुमान जी ने सूर्य को क्यों निगला....

सुमेरु नाम के स्वर्ण पर्वत पर वानरराज केसरी राज्य करते थे। माता अंजनी और केसरी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शिव उपासना की तथा भगवान शंकर की आज्ञा अनुसार पवनदेव ने शिव प्रसाद के रूप में माता अंजना के गर्भ में हनुमान जी की स्थापना की। हनुमान जी रुद्रावतार थे। जब उन्होंने जन्म लिया तब प्रभात का उगता हुआ सूर्यबिम्ब दर्शित हो रहा था। उन्होंने उगते हुए सूर्य को देखा मानो वो जैसे कोई बूंदी लड्डू का लड्डू यां मीठा फल जान पड़ता हो और उसे पकड़ने के लिए छलांग लगा दी। 

जुग सहस्त्र योजन पर भानू। 
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। 

अर्थात जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजारों युग लगते हैं। उस हजारों योजन दूरी पर स्थित सूर्य को हनुमान जी ने एक मीठा फल (बूंदी का लड्डू) समझकर निगल लिया था। कुछ कवियों और लेखकों ने इस विषय पर अनेक रुपक लिखे हैं। 

कुछ लेखकों का कहना है की: फल सोचकर ही सहज स्वभाव के अनुसार हनुमान जी कुदे थे। 

कवि भारवि द्वारा संस्कृत में रचित महाकाव्य किरातार्जुनीयम् अनुसार ये छंद कुछ यही प्रमाणित करते है।

 "किमपेक्ष्य फलं परोधरान् ध्वनत: प्रार्थयते मृगाधिप:। प्रति: खलु सा महियसां सहते नान्यसमुन्नतिं यया।।"

अर्थात बादलों की गड़़गडाहट सुनकर सिंह गुफा के बाहर आता है और ऊपर देखता है कि उससे बड़ा कौन है? बडे लोग जन्म से ही शौर्यवान और कतृ‍र्त्ववान होते हैं। हनुमान जी ने इसलिए ही सूर्यबिम्ब देखते ही छलांग मारी दी थी।

सूर्यग्रास का आध्यात्मिक रहस्य: इस विषय से संबंधित पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान के छलांग मारते ही सूर्य को बचाने के लिए इंद्रदेव ने हनुमान पर वज्रप्रहार किया, जिसके फलस्वरुप हनुमान जी मुर्छित हो गए। अपने सुत को मूर्छित देख पवनदेव को क्रोध आ जाता है। जीवन अन्न और जल के बिना तो फिर भी कुछ दिन चल सकता है परन्तु प्राण वायु बिना कैसे चल सकता है। पवन देव ने क्रोध में आकार संसार से प्राण वायु ही विलुप्त कर दी थी तदुपरांत इंद्र देव ने वायु देव को मनाया और हनुमान जी को शक्ति प्रदान की गई। सूर्य ने अपने अंश का तेज हनुमान जी को प्रदान किया जिससे वे प्रखर बुद्धिमान हुए यम, वरुण इत्यादि प्रत्येक देवता ने कुछ न कुछ दिया। इस प्रकार सबके पास दिव्य बातें लेकर शक्ति संपन्न और बुद्धि संपन्न हो जाने वाली विभूति कहलाए हनुमान जी।
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वीर दुर्गादास राठौड़


वीर दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)
.
मारवाड़ के राठौड़ वंश के शासक थे। 17वीं शताब्दी में महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु के उपरान्त उन्होने मुगल शासक औरंगजेब से लोहा लिया और मारवाड़ को अपने अधीन बनाए रखने में सफल रहे।
.
आज भी मारवाड़ के गाँवों में बड़े-बूढ़े लोग बहू-बेटी को आशीर्वाद स्वरूप यही दो शब्द कहते हैं कि
.
“माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”
.
अर्थात्
हे माता! तू वीर दुर्गादास जैसा पुत्र जन्म दे जिसने मरुधरा (मारवाड़) को बिना किसी आधार के संगठन सूत्र में बांध कर रखा था।
.
क्षिप्रा नदी के तट पर बनी दुर्गादास की छत्री (समाधि) गर्व के साथ आज भी उस महान पुरुष की वीरता और साहस की कहानी कह रही है। वह ऐसे कठोर तप की श्रेष्ठ कहानी है जो शिशु दुर्गादास व उसकी माँ को घर से निकालने से शुरू होती है।
.
दुर्गादास को वीर दुर्गादास बनाने का श्रेय उसकी माँ मंगलावती को ही जाता है जिसने जन्मघुट्टी देते समय ही दुर्गादास को यह सीख दी थी कि “बेटा, मेरे धवल (उज्ज्वल सफेद) दूध पर कभी कायरता का काला दाग मत लगाना।”
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शत शत नमन वीर को…।
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जय राजपुताना।।

वीर दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 - 22 नवम्बर 1718) 
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मारवाड़ के राठौड़ वंश के शासक थे। 17वीं शताब्दी में महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु के उपरान्त उन्होने मुगल शासक औरंगजेब से लोहा लिया और मारवाड़ को अपने अधीन बनाए रखने में सफल रहे।
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आज भी मारवाड़ के गाँवों में बड़े-बूढ़े लोग बहू-बेटी को आशीर्वाद स्वरूप यही दो शब्द कहते हैं कि 
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"माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश" 
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अर्थात् 
हे माता! तू वीर दुर्गादास जैसा पुत्र जन्म दे जिसने मरुधरा (मारवाड़) को बिना किसी आधार के संगठन सूत्र में बांध कर रखा था।
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क्षिप्रा नदी के तट पर बनी दुर्गादास की छत्री (समाधि) गर्व के साथ आज भी उस महान पुरुष की वीरता और साहस की कहानी कह रही है। वह ऐसे कठोर तप की श्रेष्ठ कहानी है जो शिशु दुर्गादास व उसकी माँ को घर से निकालने से शुरू होती है।
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दुर्गादास को वीर दुर्गादास बनाने का श्रेय उसकी माँ मंगलावती को ही जाता है जिसने जन्मघुट्टी देते समय ही दुर्गादास को यह सीख दी थी कि "बेटा, मेरे धवल (उज्ज्वल सफेद) दूध पर कभी कायरता का काला दाग मत लगाना।"
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शत शत नमन वीर को...।
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जय राजपुताना।।