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मनुस्मृति :12220 वर्ष से अधिक प्राचीन है


मनुस्मृति :12220 वर्ष से अधिक प्राचीन है

वेदों के पश्चात सर्वमान्य महर्षि मनु द्वारा रचित ग्रन्थ मनुस्मृति की आयु क्या है अर्थात यह लगभग कितना पुराना है ?

यह सिद्धांत अत्यंत सहज तर्क पर कार्य करेगा जैसे की कोई व्यक्ति पिता बनने से पूर्व अपने पुत्र वा पुत्री के बारे में नही जान सकता किन्तु पुत्र अपने पिता के बारे में सदैव जनता है ।

अतः इस लेख में हम पर्याप्त तर्कों व् प्रमाणों से सिद्ध करेंगे की मनु महाराज की पुस्तक मनुस्मृति महाभारत काल तथा रामायण काल से भी अधिक प्राचीन है अर्थात कम से कम 12220 वर्ष पूर्व तक विधमान थी । यहाँ हमने कम से कम 12220 वर्ष पूर्व लिखा है अतः ये उससे भी अधिक प्राचीन है किन्तु निश्चित समय बता पाना अभी के लिए सम्भव नही ।

महाभारत काल –

सभी को विदित है की महाभारत का समय लगभग 3000 ईसा पूर्व का था अर्थात आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व ।
महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक –

महर्षि वेदव्यास (कृष्णद्वेपायन ) रचित महाभारत में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में महाभारत वा व्यास जी का नाम तक नही ।

महाभारत में मनु महाराज की प्रतिष्ठा –
मनुनाSभिहितम् शास्त्रं यच्चापि कुरुनन्दन ! महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७ – श ० ३ ५
तैरेवमुक्तोंभगवान् मनु: स्वयम्भूवोSब्रवीत् । महाभारत शांतिपर्व , अ० ३ ६ – श ० ५
एष दयविधि : पार्थ ! पूर्वमुक्त : स्वयम्भूवा । महाभारत अनुशासन पर्व , अ० ४ ७ – श ० ५ ८
सर्वकर्मस्वहिंसा हि धर्मात्मा मनुरब्रवीत् । महाभारत शांतिपर्व , मोक्षधर्म आदि ।

अतः सिद्ध होता है कि मनु महाभारत के समय उपस्थित थी तभी महाभारत रचयिता ने स्वयं राजसी मनु के कथनो को प्रमाण स्वरुप लिखा है ।

अब प्रतिवादी तर्क कर सकता है कि मनु महाभारत में थी ये तो स्पष्ट हो गया परन्तु श्लोकबद्ध मनु उस समय उपलब्ध थी वा नही ? ये स्पष्ट नही हुआ ।

अतः अब ये देखें –

अद्भ्योSग्निब्रार्हत: क्षत्रमश्मनो लोहमुथितं ।
तेषाम सर्वत्रगं तेजः स्वासु योनिशु शाम्यति ।। – मनु अ० ९ – ३ २ १

ठीक यही मनु का श्लोक महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६ – श २ ४
में आया है और महाभारत के इस श्लोक से ठीक पूर्व २ ३ वें श्लोक में आया है –
“मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना”
अर्थात हे राजेंद्र ! मनु नाम महात्मा ने इन श्लोकों को कहा है !

इसी प्रकार मनु के जो जो श्लोक ज्यों के त्यों महाभारत में है ;
मैं यहाँ अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ

मनु ० १ १ /७ – महा० शांति अ ० १६५ – श ० ५
मनु ० १ १ /१२ – महा० शांति अ ० १६५ – श ० ९
मनु ० १ १ /१८ ० – महा० शांति अ ० १६५ – श ० ३ ७
मनु ० ६ /४५ – महा० शांति अ ० २४५ – श ० १५
मनु ० २ /१२० – महा०अनु ० अ ०१०४ – श ० ६४

अब वो श्लोक लिखते है जो मनु के है परन्तु कुछ परिवर्तन के साथ आयें है –

यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
यश्च विप्रोSनधियान स्त्रयते नाम बिभ्रति । । – मनु २ /१५७

यथा दारुमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग: ।
ब्राह्मणश्चानधियानस्त्रयते नाम बिभ्रति । । -महा शांति ३६/४७

अब केवल उनके श्लोक नम्बर ही लिखा रहा हूँ जो कुछ परिवर्तन के साथ आयें है –

मनु ० १ १ /४ – महा० शांति अ ० १६५ – श ० ४
मनु ० १ १ /१२ – महा० शांति अ ० १६५ – श ० ७
मनु ० १ १ /३७ – महा० शांति अ ० १६५ – श ० २ २
मनु ० ८ /३७२ – महा० शांति अ ० १६५ – श ० ६३
मनु ० २ /२३१ – महा० शांति अ ० १०८ – श ० ७
मनु ० ९ /३ – महा० अनु अ ० ४६ – श ० १४
मनु ० ३ /५५ – महा० अनु अ ० ४६ – श ० ३

लगभग मनु के ५ ० ऐसे श्लोक है जो ज्यों के त्यों वा कुछ परिवर्तन के साथ महाभारत में आये है ।

इतने प्रमाणो के रहते कोण कह सकता है कि मनु महाभारत समय में श्लोकबद्ध अवस्था में न थी ?

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 5000 वर्ष तो पुरानी है ही !!

रामायण काल –
रामायण काल का समय लगभग 7300 ईसा पूर्व का माना जाता है अर्थात आज से लगभग 9300 वर्ष पूर्व ।

वाल्मीकि रामायण में मनुस्मृति के श्लोक –

महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही ।

वाल्मीकि रामायण में मनु महाराज की प्रतिष्ठा –

किष्किन्धा काण्ड में जब श्री राम अत्याचारी बाली को घायल कर उसके आक्षेपों के उत्तर में अन्यान्य कथनो के साथ साथ यह भी कहते है कि तूने अपने छोटे भाई सुग्रीव कि स्त्री को बलात हरण कर और उसे अपनी स्त्री बना अनुजभार्याभिमर्श का दोषी बन चूका है , जिसके लिए (धर्मशास्त्र ) में दंड कि आज्ञा है ।
इस पृथिवी के महाराज भरत है (अतः तू भी उनकी प्रजा है ) ; मैं उनकी आज्ञापालन करता हुआ विचरता हूँ फिर में तुझे यथोचित दंड कैसे ना देता ? जैसे –

श्रूयते मनुना गीतौ श्लोकौ चारित्र वत्सलौ ||
गृहीतौ धर्म कुशलैः तथा तत् चरितम् मयाअ || वाल्मीकि ४-१८-३०

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

उपरोक्त श्लोक ३० में मनु का नाम आया है और श्लोक ३१ , ३२ भी मनु महाराज के ही है !
उपरोक्त श्लोक किंचित पाठभेद (परन्तु जिससे अर्थ में कुछ भी भेद नही आया ) मनु अध्याय ८ के है ! जिनकी संख्या कुल्लूकभट्ट कि टिकावली में ३१८ व् ३१९ है –

राजभिः धृत दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || वाल्मीकि ४-१८-३१

राजभिः धूर्त दण्डाः च कृत्वा पापानि मानवाः |
निर्मलाः स्वर्गम् आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा || मनु ८ / ३१८

शसनात् वा अपि मोक्षात् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते |
राजा तु अशासन् पापस्य तद् आप्नोति किल्बिषम् || वाल्मीकि ४-१८-३२

शसनाद्वा अपि मोक्षाद्वा स्तेनः स्तेयाद विमुच्यते |
अशासित्वा तू तं राजा स्तेनस्याप्नोति किल्बिषम् ॥ मनु ८/३१६

अतः यह सिद्ध हुआ कि श्लोकबद्ध मनु रामायण के पूर्व भी विधमान थी । यदि कोई कहे ये क्यों न माना
जाये कि उपरोक्त दोनो श्लोक वाल्मीकि से मनु में आयें हो ?
इसका उत्तर यह है कि महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण में मनुस्मृति के श्लोक व् मनु महाराज कि प्रतिष्ठा अनेकों स्थानो पर आयी है किन्तु मनु में वाल्मीकि , राम जी आदि का नाम तक नही और रामायण में स्पष्टतः मनु के श्लोकों (मनुना गीतौ श्लोकौ) कि प्रशंसा विधमान है ठीक उसी प्रकार जैसे महाभारत में थी “मनुना चैव राजेंद्र ! गीतो श्लोकों महात्मना” – महाभारत शांतिपर्व अ० ५ ६ – श २ ३

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु कम से कम 9000 वर्ष तो पुरानी है ही !!

किन्तु –
चीन से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाण –
विदेशी प्रमाणो मनुस्मृति के काल तथा श्लोको कि संख्या की जानकारी कराने वाला एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रमाण चीनी मिला है । सन १९३२ में जापान ने बम विस्फोट द्वारा चीन कि ऎतिहासिक दीवार को तोडा तो उसमे से एक लोहे का ट्रंक मिला जिसमे चीनी भाषा कि प्राचीन पांडुलिपियां भरी थी । वे हस्तलेख Sir Augustus Fritz George के हाथ लग गये वो उन्हें लंदन ले गया और ब्रिटिश म्युजियम में रख दिया ।
उन हस्तलेखों को Prof. Anthony Graeme ने चीनी विद्वानो से पढ़वाया तो जानकारी मिली –
चीन के राजा Chin-Ize-Wang ने अपने शासनकाल में यह आज्ञा दी कि सभी प्राचीन पुस्तकों को नष्ट कर दिया जावे जिससे चीनी सभ्यता के सभी प्राचीन प्रमाण नष्ट हो जावे । तब किसी विद्याप्रेमी ने पुस्तकों को ट्रंक में छिपाया और दीवार बनते समय चिनवा दिया । संयोग से ट्रंक विस्फोट से निकल आया ।
चीनी भाषा के उन हस्तलेखों मेसे एक में लिखा है –
‘मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और दस हजार वर्ष से अधिक पुराना है’
तथा इसमें मनु के श्लोकों कि संख्या 630 भी बताई गई है किन्तु वर्त्तमान में मनु में 2400 के आस पास श्लोक है ।

The wording is such as to pay high tribute to the genius and influence of the Emperor, but it also proves that many hundreds of years ago this Emperor and his people were possessed of knowledge and ideals, laws, and principles which we are apt to think are quite modern. For instance, The manuscript shows that the Chinese emperor and his people had adopted the Laws of Manu which were written in the Vedic language ten thousand years ago.

यह विवरण मोटवानी कि पुस्तक ‘मनु धर्मशास्त्र : ए सोशियोलॉजिकल एंड हिस्टोरिकल स्टडीज’ पेज २३२ पर भी दिया है ।

इस दीवार के बनने का समय लगभग 220–206 BC बताया जाता है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220BC से पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा 220+10000 = 10220 ईसा पूर्व ; आज से 12,220 वर्ष पूर्व कम से कम तक मनुस्मृति उपलब्ध थी ।

अतः अब सिद्ध हुआ कि मनु अब से कम से कम 12220 वर्ष पूर्व से और प्राचीन हो चुकी है !

साथ साथ ही यदि वेदों कि बात करें तो

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम ।
दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु : समलक्षणम् ॥ मनु १/१३
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारो ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये उस ब्रह्मा ने अग्नि , वायु, आदित्य और [तु अर्थात ] अंगिरा से ऋग , यजुः , साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया ।

वेदोSखिलो धर्ममूलम् । मनु २/६
वेद सम्पूर्ण धर्म (कानून Law) का मूल है ।

यः कश्चित्कस्यचिधर्मो मनुना परिकीर्तित : ।
स सर्वोSभिहितो वेदे सर्वज्ञानमयो हि सः ॥ मनु २/९
मनु ने जिस किसी को जो कुछ भी धर्म कहा है वह सब वेद के अनुकूल ही है , क्योकि वेद सर्वमान्य है ।

नास्तिको वेदनिंदकः । मनु २/११
वेद कि निंदा करने वाले नास्तिक (अनीश्वरवादी) है

इत्यादि अनेक वचन है जो वेद के सन्दर्भ में मनु में आये है बल्कि यह कहना उचित होगा मनुस्मृति वेद सार ही है । अतः वेद मनु से प्राचीन है इसमें लेशमात्र भी संदेह नही ।

मनु में जहाँ कहीं भी वेद विरुद्ध आचरण दिखे वो प्रक्षेप (मिलावट ) है अतः त्याज्य है ।

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यह तस्वीर हमारे कश्मीर की


यह तस्वीर हमारे कश्मीर की है जहाँ कुछ मूर्ख ईराक में हिंसा कर रहे सुन्नियों के समर्थन में और आतंकी संगठन ISIS के समर्थन में कुछ अनपढ़ मूर्ख लोग हिंसा कर रहे हैं।।
यह सब इसलिए है क्यूंकि धारा 370 के लगे होने की वजह से कोई भी उद्योग धंधे हहिं नहीं जिससे रोजगार हो , रोजगार की कमी की वजह से बेरोजगारी है और पैसा नहीं है।। पैसा ना होने की वजह से प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा भी नहीं ले पाते यहाँ के बच्चे , सिर्फ मदरसों में जाकर रह जाते हैं जहाँ उन्हें सिर्फ धार्मिक शिक्षा और कट्टरता सिखाई जाती है जिससे उनके दिमाग में वाही घूमता रहता है और अंततः ये मूर्ख बिना किसी मुद्दे के धर्म और मजहब के नाम पर सड़कों पर हिंसा करते पाए जाते हैं, चाहें वो किसी भी देश से सम्बंधित हो।।
यही कारण है इनके पिछड़ेपन का ।। इसलिए हम सभी इनके विकास , शिक्षा, रोजगार और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए धारा 370 हटाने की मांग लगातार कर रहे हैं ताकि इनकी जिन्दगी में सुधार हो सके और हमारे हिन्दू कश्मीरी पंडित भी पनी स्वयं की जमीन पर रह सकें जिसका नेशनल कोंफ्रेंस और कांग्रेस लगातार विरोध कर रही है सिर्फ कुछ वोट बेंक और समाज में वैमनस्यता फैलाने के उद्देश्य से।।
यह बात कश्मीरियों के निचले स्तर तक पहुंचना बहुत जरूरी है ताकि उनको सही सोच और दिशा मिल सके।।
वन्दे मातरम्।।

यह तस्वीर हमारे कश्मीर की है जहाँ कुछ मूर्ख ईराक में हिंसा कर रहे सुन्नियों के समर्थन में और आतंकी संगठन ISIS के समर्थन में कुछ अनपढ़ मूर्ख लोग हिंसा कर रहे हैं।।
यह सब इसलिए है क्यूंकि धारा 370 के लगे होने की वजह से कोई भी उद्योग धंधे हहिं नहीं जिससे रोजगार हो , रोजगार की कमी की वजह से बेरोजगारी है और पैसा नहीं है।। पैसा ना होने की वजह से प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा भी नहीं ले पाते यहाँ के बच्चे , सिर्फ मदरसों में जाकर रह जाते हैं जहाँ उन्हें सिर्फ धार्मिक शिक्षा और कट्टरता सिखाई जाती है जिससे उनके दिमाग में वाही घूमता रहता है और अंततः ये मूर्ख बिना किसी मुद्दे के धर्म और मजहब के नाम पर सड़कों पर हिंसा करते पाए जाते हैं, चाहें वो किसी भी देश से सम्बंधित हो।।
यही कारण है इनके पिछड़ेपन का ।। इसलिए हम सभी इनके विकास , शिक्षा, रोजगार और पिछड़ेपन को दूर करने के लिए धारा 370 हटाने की मांग लगातार कर रहे हैं ताकि इनकी जिन्दगी में सुधार हो सके और हमारे हिन्दू कश्मीरी पंडित भी पनी स्वयं की जमीन पर रह सकें जिसका नेशनल कोंफ्रेंस और कांग्रेस लगातार विरोध कर रही है सिर्फ कुछ वोट बेंक और समाज में वैमनस्यता फैलाने के उद्देश्य से।।
यह बात कश्मीरियों के निचले स्तर तक पहुंचना बहुत जरूरी है ताकि उनको सही सोच और दिशा मिल सके।।
वन्दे मातरम्।।
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HIROSHIMA-GEDENKTAG


Marina Soral added 3 new photos.
7 hrs ·

HEUTIGE MEHR ODER WENIGER WICHTIGE GEDENKTAGE UND KURIOSITÄTEN

HIROSHIMA-GEDENKTAG
Der 6. August ist der Tag des Gedenkens an den Atombombenabwurf auf Hiroshima im Jahr 1945. Am 6. August 1945 um 8:15 Uhr Ortszeit klinkte der US-Bomber Enola Gay die Bombe in 9.450 Metern Höhe aus. Um 8:16 Uhr detonierte sie in 580 Metern Höhe über der Innenstadt. 43 Sekunden später hatte die Druckwelle 80 Prozent der Innenstadtfläche dem Erdboden gleich gemacht. Es entstand ein Feuerball mit einer Innentemperatur von über einer Million Grad Celsius. Die Hitzewirkung von mindestens 6.000 Grad ließ noch in über zehn Kilometer Entfernung Bäume in Flammen aufgehen. Von den 76.000 Häusern der Großstadt wurden 70.000 zerstört oder beschädigt.Die Bombe tötete 90 Prozent der Menschen in einem Radius von 0,5 Kilometern um das Explosionszentrum und immer noch 59 Prozent im weiteren Umkreis von 0,5 bis 1 Kilometern. Bis heute sterben damalige Einwohner Hiroshimas an Krebserkrankungen als Langzeitfolge der Strahlung. Nimmt man diese Spätfolgen hinzu, starben über 240.000 der damaligen Einwohner (bis zu 98 Prozent). Die Überlebenden der Atombomben werden in Japan als Hibakusha bezeichnet.
Seit dem 6. August 1947 gedenkt Hiroshima alljährlich der Opfer des Atombombenabwurfs mit einer großen Gedenkfeier. In der Nachkriegszeit waren alle Bürgermeister von Hiroshima und Nagasaki aktive Fürsprecher für nukleare Abrüstung. Am 6. August 2006 bekräftigte Japans Ministerpräsident Koizumi Junichir?, dass sein Land die Anti-Atom-Politik fortsetzen werde. Mit Aufrufen zu einer nuklearwaffenfreien Welt hatten in Hiroshima Menschen der Opfer gedacht. Überlebende, Angehörige von Opfern, Bürger und Politiker legten unter Glockengeläut eine Schweigeminute ein.Die Atombombenabwürfe auf Hiroshima am 6. und Nagasaki am 9. August 1945 wurden von US-Präsident Harry S. Truman am 16. Juli 1945 – unmittelbar nach Bekanntwerden des ersten Atomtests – beschlossen und am 25. Juli angeordnet. Die Atombombenexplosionen töteten insgesamt etwa 92.000 Menschen sofort. Weitere 130.000 Menschen starben bis Jahresende an den Folgen des Angriffs, zahlreiche weitere an Folgeschäden in den Jahren danach.

WACKEL-MIT-DEN-ZEHEN-TAG
Am 6. August geht es um die Gelegenheit, seinen Zehen etwas Freiraum zu verschaffen und diesen gemäß des heutigen imperativischen Mottos Wackel-mit-den-Zehen auch zum Zehenwackeln zu nutzen.Und warum sollte man mit den Zehen wackeln? Die einen machen es aus Erregung, andere aus Nervosität und wieder andere sehen darin die höchste Form körperlicher Ertüchtigung bei hochsommerlichen Temperaturen. Aber egal ob alleine, zu zweit oder in der Gruppe, heute ist die perfekte Gelegenheit, seinen Zehen etwas Bewegung und Frischluft zu verschaffen.

NETZKULTURTAG
Bereits zum dritten Mal wird am heutigen 6. August der Netzkulturtag gefeiert. Ins Leben gerufen wurde dieser Aktionstag vom Blogger Philip Czupras und den Usern des IT-Security Forum’s mbITsec bereits im letzten Jahr. Ziel und Intention des Netzkulturtages ist es, all denjenigen zu danken, die das Internet in seiner heutigen Form geschaffen, erhalten und ausgestaltet haben. Ähnlich wie z. B. am Sys Admin Day sollen heute also vor allem denen gedankt werden, die als Administratoren, Designer, Programmierer, SEOs, Webmaster usw. im Hintergrund arbeiten und die Entwicklung des Internets voran treiben bzw. voran getrieben haben. Dabei ist es den Initiatoren aber in erster Linie wichtig, dass der Netzkulturtag keine exklusive Veranstaltung ist, sondern eine möglichst breite Öffentlichkeit bekommt. Die Wahl des 6. August als Datum für den Netzkulturtag ergibt sich durch den Bezug auf das Jahr 1991, denn am 06.08.1991 wurde das Hypertext-Projekt World Wide Web (www) durch den britischen Physiker und Informatiker Tim Berners-Lee veröffentlicht. Dies war zugleich die Geburtsstunde des Internets in seiner heute bekannten Form.

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भारत सरकार की नीतियाँ –


भारत सरकार की नीतियाँ –

1.अगर भारत का किसान कॉटन निर्यात करता है तो सरकार टैक्स लगाती है और अगर आप ‘मटन’ निर्यात करो तो सब्सिडी देती है |

2.अगर कोई व्यापारी अपना गेहूं, चावल दूसरे प्रदेश में बेचने जाता है तो टैक्स लगता है और अगर मटन बेचने वाला मांस ले जाता है तो सरकार उसे प्रति टन प्रति किलोमीटर ट्रांसपोर्टेसन सब्सिडी देती है |

3.अगर आप कोई कारख़ाना लगाते हैं तो सरकार सब्सिडी नहीं देगी लेकिन अगर आप Slaughter House (कत्लखाना) लगाओ तो भारत सरकार लाखो रुपये देती है |

4.अगर आप मटन निर्यात का काम करते हैं तो सरकार आपको 5 साल तक इनकम टैक्स में छूट देती है और ये सब हो रहा है ।
भगवान श्री राम और श्री कृष्णा के देश में ।।

जागो देश वासियों जागो ।। और गौ माता की रक्षा करो ।। जय श्री राम, श्री कृष्ण

भारत सरकार की नीतियाँ -

1.अगर भारत का किसान कॉटन निर्यात करता है तो सरकार टैक्स लगाती है और अगर आप 'मटन' निर्यात करो तो सब्सिडी देती है |

2.अगर कोई व्यापारी अपना गेहूं, चावल दूसरे प्रदेश में बेचने जाता है तो टैक्स लगता है और अगर मटन बेचने वाला मांस ले जाता है तो सरकार उसे प्रति टन प्रति किलोमीटर ट्रांसपोर्टेसन सब्सिडी देती है |

3.अगर आप कोई कारख़ाना लगाते हैं तो सरकार सब्सिडी नहीं देगी लेकिन अगर आप Slaughter House (कत्लखाना) लगाओ तो भारत सरकार लाखो रुपये देती है |

4.अगर आप मटन निर्यात का काम करते हैं तो सरकार आपको 5 साल तक इनकम टैक्स में छूट देती है और ये सब हो रहा है ।
भगवान श्री राम और श्री कृष्णा के देश में ।।

जागो देश वासियों जागो ।। और गौ माता की रक्षा करो ।। जय श्री राम, श्री कृष्ण