Posted in हिन्दू पतन

Japan is a country keeping Islam at bay


The Japanese are a very evolved race.

Have you ever read in the newspaper that a political leader or a prime minister from an Islamic nation has visited Japan?
Have you ever come across news that the Ayatollah of Iran or the King of Saudi Arabia or even a Saudi Prince has visited Japan?

Japan is a country keeping Islam at bay.
Japan has put strict restrictions on Islam and ALL Muslims.
The reasons are:

a) Japan is the only nation that does not give citizenship to Muslims.

b) In Japan permanent residency is not given to Muslims.

c) There is a strong ban on the propagation of Islam in Japan.

d) In the University of Japan, Arabic or any Islamic language is not taught.

e) One cannot import a ‘Koran’ published in the Arabic language.

f) According to data published by the Japanese government, it has given temporary residency to only 2 lakhs, Muslims, who must follow the Japanese Law of the Land. These Muslims should speak Japanese and carry their religious rituals in their homes.

g) Japan is the only country in the world that has a negligible number of embassies in Islamic countries.
h) Japanese people are not attracted to Islam at all.

I) Muslims residing in Japan are the employees of foreign companies.

j) Even today, visas are not granted to Muslim doctors, engineers or
managers sent by foreign companies.

k) In the majority of companies it is stated in their regulations that no Muslims should apply for a job.

l) The Japanese government is of the opinion that Muslims are fundamentalist and even in the era of globalization they are not willing to change their Muslim laws.
m) Muslims cannot even think about renting a house in Japan.

n) If anyone comes to know that his neighbor is a Muslim then the wholeneighborhood stays alert.
o) No one can start an Islamic cell or Arabic ‘Madrasa’ in Japan

p) There is no Sharia law in Japan.

p) There is no Sharia law in Japan.

q) If a Japanese woman marries a Muslim then she is considered an outcast forever.

r) According to Mr. Kumiko Yagi, Professor of Arab/Islamic Studies at Tokyo University of Foreign Studies, “There is a mind frame in Japan that Islam is a very narrow minded religion and one should stay away from it.”

s) Freelance journalist Mohammed Juber toured many Islamic countries after 9/11 including Japan. He found that the Japanese were confident that extremists could do no harm in Japan.

Posted in Sai conspiracy

Sai


साईं की एक तस्वीर में उन्हें सीधे विष्णु के रूप में चित्रित कर दिया गया है, अर्थात शेषनाग पर बैठे हुए. हो सकता है कि कल किसी साईं भक्त का “दिमाग”(??) और आगे चले तो वह लक्ष्मी जी को साईबाबा के पैर दबाते हुए भी चित्रित कर दे… किसी दूसरे “साईं भक्त के दिमाग”(?) में घुसे तो वह श्रीकृष्ण के स्थान पर साईं के हाथ में सुदर्शन चक्र थमा दे…

जब कोई विरोध करने वाला ना हो तथा संस्कृति और धर्म की मामूली सी समझ भी ना हो, तो ऐसे ‘हादसे’ अक्सर होते रहते हैं. साईं को महिमामंडित करने के लिए राम-कृष्ण और अब विष्णु का भौंडा उपयोग करना सही नहीं है, लेकिन वे बेचारे भी क्या करें, “बिजनेस” और “मार्केटिंग” के लिए पहले से स्थापित दूसरे प्रोडक्ट का नाम बेशर्मी से उपयोग करना पड़े तो उसे भी वे जायज़ मानते हैं… इसीलिए भगवान राम और कृष्ण के साथ जोड़कर “ओम साईं-राम”, “ओम साईं-कृष्ण” जैसे उदघोष किए जाते हैं. फिर मिशनरी और चर्च द्वारा फैलाए जा रहे “भ्रम” और साईं भक्तों द्वारा फैलाई जा रही “विकृति” में क्या अंतर रह जाएगा?

इसी “मानसिक विकृति” तथा हिंदुओं की तथाकथित “सहिष्णुता” के बारे में कुछ माह पहले लिखे गए इन दोनों लेखों पर भी दृष्टिपात करें…

१) http://blog.sureshchiplunkar.com/2013/06/devi-mother-mary-and-vishnu-saibaba.html

२) http://blog.sureshchiplunkar.com/2013/06/surya-namaskar-or-jesus-namaskar.html

साईं की एक तस्वीर में उन्हें सीधे विष्णु के रूप में चित्रित कर दिया गया है, अर्थात शेषनाग पर बैठे हुए. हो सकता है कि कल किसी साईं भक्त का "दिमाग"(??) और आगे चले तो वह लक्ष्मी जी को साईबाबा के पैर दबाते हुए भी चित्रित कर दे... किसी दूसरे "साईं भक्त के दिमाग"(?) में घुसे तो वह श्रीकृष्ण के स्थान पर साईं के हाथ में सुदर्शन चक्र थमा दे...

जब कोई विरोध करने वाला ना हो तथा संस्कृति और धर्म की मामूली सी समझ भी ना हो, तो ऐसे 'हादसे' अक्सर होते रहते हैं. साईं को महिमामंडित करने के लिए राम-कृष्ण और अब विष्णु का भौंडा उपयोग करना सही नहीं है, लेकिन वे बेचारे भी क्या करें, "बिजनेस" और "मार्केटिंग" के लिए पहले से स्थापित दूसरे प्रोडक्ट का नाम बेशर्मी से उपयोग करना पड़े तो उसे भी वे जायज़ मानते हैं... इसीलिए भगवान राम और कृष्ण के साथ जोड़कर “ओम साईं-राम”, “ओम साईं-कृष्ण” जैसे उदघोष किए जाते हैं. फिर मिशनरी और चर्च द्वारा फैलाए जा रहे “भ्रम” और साईं भक्तों द्वारा फैलाई जा रही “विकृति” में क्या अंतर रह जाएगा?

इसी "मानसिक विकृति" तथा हिंदुओं की तथाकथित "सहिष्णुता" के बारे में कुछ माह पहले लिखे गए इन दोनों लेखों पर भी दृष्टिपात करें...

१) http://blog.sureshchiplunkar.com/2013/06/devi-mother-mary-and-vishnu-saibaba.html

२) http://blog.sureshchiplunkar.com/2013/06/surya-namaskar-or-jesus-namaskar.html
Posted in जीवन चरित्र

चंद्रशेखर आजाद


चंद्रशेखर आजाद के शहीद होने के बाद
उनकी माँ जीवन भर कहती रहीं मेरा शेखर जरूर
आएगा, वह कैसे जा सकता है। वह माँ भिखारिन
सी सडको पर घूमती रही, उनकी मृत्यु से के केवल
चार महीने पहले ही १५ रुपये
महीना पेंशन दी गई। उन्होंने पेंशन
की रोटी भी नहीं खाई।

हमारे देश के बहादुर क्रांतिकारियों के
परिवारों का यह हाल सुनकर कलेजा फटने लगता हैं
आँखे विद्रोही हो जाती हैं झर झर अश्रु धारा बहने
लगती हैं, वो भी तो अपनी माँ के बेटे थे चाहते
तो सुख चैन से जी सकते थे पर नहीं उन्होंने खुद
को तो माँ भारती की सेवा के लिए बलिदान
किया तो उनके परिवार ने भी बड़ी कीमत चुकाई ..
और हमारी सरकारे उन्हें सम्मान भी नहीं दे सकी,
भुला दिया गया उनके बलिदानों को, हमारे छोटे
छोटे बच्चो को उनकी गौरव
गाथा पढाया ही नहीं जाता ..!!
इस माँ के चरणों में कोटि कोटि वंदन,
आपका उपकार यह कृतघ्न राष्ट्र
कभी नहीं भूलेगा जिस दिन भी देश
का सही इतिहास लिखा जाएगा स्वर्ण अक्षरों में
आपका नाम अंकित होगा ……
चंद्रशेखर आजाद के शहीद होने के बाद
उनकी माँ जीवन भर कहती रहीं मेरा शेखर जरूर
आएगा, वह कैसे जा सकता है। वह माँ भिखारिन
सी सडको पर घूमती रही, उनकी मृत्यु से के केवल
चार महीने पहले ही १५ रुपये
महीना पेंशन दी गई। उन्होंने पेंशन
की रोटी भी नहीं खाई।
हमारे देश के बहादुर क्रांतिकारियों के
परिवारों का यह हाल सुनकर कलेजा फटने लगता हैं
आँखे विद्रोही हो जाती हैं झर झर अश्रु धारा बहने
लगती हैं, वो भी तो अपनी माँ के बेटे थे चाहते
तो सुख चैन से जी सकते थे पर नहीं उन्होंने खुद
को तो माँ भारती की सेवा के लिए बलिदान
किया तो उनके परिवार ने भी बड़ी कीमत चुकाई ..
और हमारी सरकारे उन्हें सम्मान भी नहीं दे सकी,
भुला दिया गया उनके बलिदानों को, हमारे छोटे
छोटे बच्चो को उनकी गौरव
गाथा पढाया ही नहीं जाता ..!!
इस माँ के चरणों में कोटि कोटि वंदन,
आपका उपकार यह कृतघ्न राष्ट्र
कभी नहीं भूलेगा जिस दिन भी देश
का सही इतिहास लिखा जाएगा स्वर्ण अक्षरों में
आपका नाम अंकित होगा ......
Posted in जीवन चरित्र

चन्द्रशेखर


पहली रोमांचकारी घटना
१९१९ में हुए अमृतसर के
जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के
नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया।
चन्द्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे।
तभी से उनके मन में एक आग धधक
रही थी। जब गांधीजी ने सन् १९२१ में
असहयोग आन्दोलनका फरमान
जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी
बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य
छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर
भी सडकों पर उतर आये। अपने विद्यालय
के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में
भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार
हुए और उन्हें १५ बेतों की सज़ा मिली।
इस घटना का उल्लेख पं० जवाहरलाल
नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से
लड़के की कहानी के रूप में किया है-

Posted in हिन्दू पतन

Ebooks


सेकुलरों का पर्दाफाश करते इन pdf पुस्तकों को निचे लिंक से डाउनलोड करें और अपने मित्रों को भी शेयर करें !!!
लिंक : http://goo.gl/gya1IB

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Sai


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भगवान् कृष्ण और कलयुग का नया भगवान् जिहादी साईं दोनों का विपरीत आचरण, विपरीत चरित्र,

एक और भगवान् कृष्ण, जिन्होंने पुरे विश्व को गीता का ज्ञान दिया, निस्वार्थ भाव से कर्म करने का सन्देश दिया, जिन्होंने धर्म की स्थापना की और अधर्म का नाश किया उन भगवान् कृष्ण के द्वारा साई जैसे पाखंडियो के पाखंड का खंडन किस प्रकार गीता में किया गया है उसकी एक बानगी हम आपके समक्ष रखते है,

साईं सत्चरित्र अध्याय 1, 5, 7, 11, 14, 23, 28, 38, 40, 42, 43, 44 के अनुसार साई बाबा कभी भी अकारण ही क्रोधित हो जाते थे, कभी कभी क्रोध इतना बढ़ जाता था की वे पास खड़े लोगो को मारने दौड़ते थे, कभी कभी तो वे औरतो को भी डंडो से मार मार कर भगा देते थे,

अब ऐसे आचरण के लिए भगवान् कृष्ण गीता के अध्याय 16 के श्लोक 5 में कहते है – 
दम्भो दर्पिअभिमानश्च क्रोध पारुष्यमेव च | अज्ञानं चाभिजातस्य पर्थ सम्पदमासुरिम ||

अर्थात: हे पर्थ, दंभ क्रोध, और अभिमान, ठाठ क्रोध कठोरता और अज्ञान, ये सब असुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण है,

गीता में भगवान् कृष्ण अध्याय 17 के श्लोक 4 में कहते है की – यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसी राजसा | प्रेतान्भूत गणानश्चान्येयजन्ते तामसा जना: ||
अर्थ: सात्त्विक पुरुष देवो को पूजते है, राजस पुरुष यक्ष और राक्षसों को पूजते है और जो तामस पुरुष है वो प्रेतों और भूत गणों को पूजते है

सनातनी मान्यता के अनुसार साई का नाम किसी देवता या अवतार की श्रेणी में नहीं आता, साई न देवता है और न ही वह विष्णु या भगवान् शिव का कोई अवतार है, अत: साई के भक्त स्वयं सोच ले की वे साईं को राक्षस की तरह पूज रहे है या भुत प्रेत के समान,

साई के मूढ़, अज्ञानी व मुर्ख भक्तो के लिए भगवान् कृष्ण कहते है – प्रवृत्तिम च निवृत्तिम च | न शोचं नापी चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ||
अर्थ: असुर स्वभाव वाले मनुष्य प्रवृत्ति और निवृत्ति इन दोनों को ही नहीं जानते, इसलिए उनमे न तो बाहर भीतर की शुद्धि होती है, न श्रेष्ठ आचरण और न ही सत्यभाषण होता है,

यही कारण है की साई के अंधभक्त अक्सर सत्य से दूर भागते है,

केवल यही नहीं, साई के जो भक्त साईं की पूजा केवल इस लालसा में करते है की उनकी कोई मुराद या मन्नत पूरी हुई है इसलिए साईं ईश्वर है तो उनके लिए भी गीता में वर्णन है,

अध्याय 17 का श्लोक 18 – सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत | क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम ||
जो तप, सत्कार, मान और पूजा अन्य किसी स्वार्थ के लिए, स्वभाव या पाखंड से किया जाता है, वह अनिश्चित या क्षणिक(कुछ समय) फलवाला तप राजस कहलाता है,

आशा करते है की भगवान् कृष्ण के गीता में दिए सन्देश को जानने के बाद साई के अंधभक्त क’साई जैसे नशेडी, गालीगलोच करने वाले, मांस भक्षण करने वाले, औरतो को मारने पीटने वाले, संडास के डिब्बे में पानी पीने वाले नकली कलयुगी भगवान् को पूजना बंद कर के योगेश्वर श्री कृष्ण को पूजेंगे,

जो न समझे उनके लिए सभी द्वार बंद है, और केवल नरक द्वार आपकी प्रतीक्षा कर रहा है,
ॐ

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मित्रो अब आप सभी इस अभियान में अपना सहयोग दे, धर्म की शुद्धि का समय आ गया है, और ये शुद्धि आप सभी को भी करनी होगी क्यूंकि ये आपका भी धर्म है अत: सभी मित्रो से निवेदन है कि इस फोटो के पर्चे छपवा कर इन्हे हर मन्दिर, घर दुकान में वितरित करवा दे और जहॉ सम्भव हो चिपका दे,
जमीनी स्तर पर अब सभी मित्र कार्य करने के लिए आगे आये, जहाँ भी साईं की फोटो या मूर्ति मिले उसोक तोड़ कर फेंक दे, क्यूंकि इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है और साई तो था ही मुस्लिम,
पीडीएफ - 
http://shirdisaiexpose.files.wordpress.com/2014/05/kalyug-ka-andhera-print-h-2.pdf
धन्यवाद
#ExposeShirdiSai
#BhaktiJihad
Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

मदारी मेहतर


मदारी मेहतर – सत्य की मिथ्या ?

मदारी मेहतर असे नाव घेऊनही त्यास सत्य की मिथ्या ? असे संबोधले आहे, वाचकांना थोड़े अजब वाटेल खरे पण याच अनामिक – मदारी मेहतर या व्यक्तिमत्वाचे इतिहासातील स्थान किती खरे आहे हे तपासून पाहणे गरजेचे आहे.
अश्या नावाच्या व्यक्तीचा शिवाजी महाराजांशी आग्रा भेटीच्या वेळी खरच काही संबध आला का ?
सद्य स्थितीत रायगडावर असणारे ठिकाण ज्याला मशीद मोर्चा किंवा मदारी मेहतर मोर्चा असे सांगितले जाते त्यात किती सत्य आहे ?
वाद विवादासाठी आपण खरे मानले तर मदारी मेहतर ही व्यक्ति स्वराज्यात कधी आली ?
त्याचा संबध शिवाजी महाराजांशी परत कधी आला ( खरच आला का ?) या सर्वांचा मागोवा आपण आता घेऊयात.
दि. ५ मार्च १६६६ रोजी पुरंदरच्या ठरल्या तहानुसार शिवाजी महाराज आग्रा येथे औरंगजेबास भेटावयास गेले. या संपूर्ण आग्रा प्रकरणाचा आढावा आपण सविस्तर प्रकरणामधे घेतलेलाच आहे. शिवाजी महाराजांसोबत आग्रा येथे असणाऱ्या कही साथीदारांची नावे आपल्याला मिळतात पण प्रकर्षाने मराठी, राजस्थानी, मुघल सहित्यामधे मदारी मेहतर हे नाव आढळत नाही. याचा खल करताना याची सुरवात नक्की कधी झाली हे पहावे लागेल.
ऐतिहासिक अस्सल संदर्भांची छाननी केली असता मदारी असे नाव असणारा एक व्यक्ति होता ही माहितीच मुळात मिळत नाही. या संबधीचा पहीला उल्लेख आपणास मिळतो तो भारत इतिहास संशोधक मंडळा तर्फे प्रकाशीत केले जाणारे त्रैमासीक वर्ष १९१७ यात. एक लेख प्रसिद्ध झाला आहे, या लेखामधे एक पत्र आणि एक हकीक़त दिली आहे. सदर हकीकत सातारा येथील राजोपाध्ये घराण्यातील कागदपत्रात मिळाली आहे. पण ही हकीकत कुणी आणि कधी लिहली आहे याबद्दल माहिती मिळत नाही.
सदर हक़ीकतिचा अभ्यास केल्यानंतर का्य काय माहिती मिळते ती पाहुयात.
१) शिवाजी महाराजांवर मिर्ज़ा जयसिंग राजे व दिलेल खान चालून आले.
२) त्याच्या ( मिर्ज़ा जयसिंग ) सांगण्यावरून महाराज दिल्लीस गेले.
३) पातशाहची भेट घेऊन त्याने महाराजांना अटकेत ठेवले.
४) महाराजांनी हीरोजीला विचारले – ‘ये समई संकट पडले तर माजे जीवाचे सारथी कोन कोन आहेत ?’
हे उल्लेख वाचल्यानंतर शंकेला पहिली जागा इथेच निर्मांण होते कारण ५ मार्च १६६६ रोजी शिवाजी महाराज राजगडावरून निघाले आणि आग्र्यास ११ मे १६६६ रोजी पोहचले. भेटीच्या प्रसंगानंतर महाराजांना कैद झाली. ३ महिन्याच्या कालानंतर १७ ऑगस्ट १६६६ रोजी महाराज आग्र्याहून निसटले. या सर्व ३ महिन्याच्या कालावधि मधे कैदेत असताना महाराजांनी आपल्या सोबत असणारे सर्व सरदार ( ठराविक सोडून ) पुन्हा स्वराज्यात पाठवले, हे इतर पुराव्यानिशी आपल्याला समजते. जर असे पाउल शिवाजी महाराजांनी उचलले असेल तर त्यांनी हीरोजी फर्जंद यास विचारलेला प्रश्न – माझे सारथ्य कोण करील ? हा प्रश्नच गैरलागु होत नाही का ?
महाराजांच्या वरील मुद्द्यास उत्तर देताना हीरोजी म्हणतो ‘साहेब जे समयी आदन्या करेल ते समयीं हीरोजी फर्जंद व मेदारी मेहतर फरास हजर होउं’
यानंतर हकीकतित येणारा जो उल्लेख आहे तिथे दूसरी शंका उपस्थित होते. तो उल्लेख काय आहे ते आपण पाहुयात.
“…हीरोजी महाराजांच्या जागी निजला होता. बाहेरील दरोग्याने आत विचारले ( मदारिस ) महाराज काय करितात यावर त्याला मदारिने उत्तर दिले राजियाचे जीवास समाधान वाटत नाही. थोड्या वेळाने दरोगा मंडळी आत आली, त्यांनी हीरोजीच्या तोंडावर असलेला पदर काढला तो महाराज नव्हे हीरोजी निघाला. मग त्यास आणि मदारिस पकडून औरंगजेबासमोर नेले. मग औरंगजेबाने हीरोजीस विचारले महाराज़ कुठे आहेत ? हीरोजीने ते आपल्या देशी गेल्याचे सांगितले. यावर औरंगजेबाने हीरोजीची गर्दन मारण्याचा हुकुम केला ( शिक्षा फ़क्त हीरोजीस मदारिस काहीच नाही ?) यावर हीरोजी औरंगजेबास म्हणाला सुखरूप शिरच्छेद करावा हा जीव महाराजांवर ओवाळून टाकला आहे. याहून हास्यास्पद उल्लेख तर पुढें आहे – औरंगजेब हीरोजीस म्हणाला ‘तु इमानी चाकर आहेस मी मेहरबान झालो आहे माग तूला का्य मागायचे ?’ यावर हीरोजी औरंगजेबास म्हणतो – ‘मदारिस आणि मला सोडून द्यावे’, आणि औरंगजेबाने दोघांना सोडून दिले ( कोण विश्वास ठेवेल ह्यावर ? ) सर्वात महत्वाचे म्हणजे हीरोजी पकडले गेले ही नवीनच माहीती अभ्यासकांना मिळते ह्या दिव्य साधनातून !
इतिहास साक्षीदार आहे शिवाजी महाराजांनी ज़ी फजीती औरंगजेबाची केली त्याची सल त्याच्या मनात कायमची राहिली. महाराज निसटले ही बातमी समजताच फौलादख़ान याने शोध मोहीम सुरु केलीँ. यात पकडले गेलेले रघुनाथपंत कोरडे, त्र्यंबकपंत डबीर, कविंद्र परमानंद यांचे उल्लेख आपल्यालाला अस्सल साधनांमधे मिळतात, पण हीरोजी पकडले गेले असा उल्लेख कुठेच मिळत नाही. त्यामुळे हि हकीकत किती विश्वासहार्य आहे हे वाचकानींच ठरवावे.
याच हकीकतिची विश्वासहर्ता अजुन डळमळीत होते ती पुढील उल्लेखावरून –
“…दोघेजण ( हीरोजी आणि मदारी ) काही दिवसांनी रायगडास आले. ( रायगड ?? महाराज राजगडास परत आले याची नोंद जेधे शकावली मधे आहे ) यानंतर या हकीकतिमधे हीरोजीला रायगडाची किल्लेदारी दिल्याचा उल्लेख आहे ( हे कसे काय शक्य आहे ? स्वता शिवाजी महाराज यांचे वास्तव्य रायगडास १६७२ पासून होते तर हीरोजीला किल्लेदारी देण्याचा प्रश्नच येतो कुठे ?? ) नंतर मदारीस पण पोषाख वस्त्रे आणि हक्क वंश परंपरा करून दिला ( म्हणजे काय दिले ? वतन दिले ? जमीन दिली ? ) पण कुठे ? याची काही माहिती मिळत नाही. याउपर शिवाजी महाराजांच्या मृत्यूनंतर संभाजी महाराजांसोबत मदारीचा मुलगा सादुल्ला होता असे म्हटले आहे ( मग मदारीचा मृत्यु कसा झाला ? कुठे झाला ? तो आग्र्यावरून त्याच्या कुटुंबासोबत महाराष्ट्रात आला होता का ? त्याचा मुलगा सादुल्ला खरोखर होता तर आज पर्यँत संभाजी महाराजांवर लिहिलेल्या चरित्रामधे या सादुल्लाचा साधा नाममात्र उल्लेख देखील नाही. याला का्य म्हणावे ? )
वरील सर्व उल्लेखामधील माहितीचा घटनाक्रम पाहता कित्येक मुद्दे हे विश्वासनीय नाहीत. कुठलाच संदर्भ जुळत नाही, यावरून ही हकीकत कशी विश्वासनीय मानवी हा एक मोठा गहन प्रश्न आहे. कल्याणदास आणि परकालदास यांचा पत्रसारसंग्रह हा अभ्यासकांसाठी उपलब्ध आहे. ( Shivaji Visit To Aurangjib At Agra असे या पुस्तकाचे नाव आहे. या अस्सल संदर्भात देखील मदारी मेहतर असे नाव मिळत नाही. या संबधीचा अभ्यास करत असताना काही शिवचरित्रा मधे ( कादंबरी नव्हे ) कल्याणदास आणि परकालदास यांच्या पत्रांचा संदर्भ आहे असे निदर्शनास आले. संबधित पत्र तपासले असता त्यामधे देखील मदारी मेहतर हे नाव मिळाले नाहिं. – संबधित पत्राचा संदर्भ – Shivaji Visit To Aurangjib At Agra – Letter no – 33 असा दिलेला आहे.
वरील सर्व मुद्दे हे उपलबध पुराव्यांवर झालें. आता वर्षानुवषॅ चालत आलेली दंतकथा पाहुयात् –
यामधे अग्रक्रमांक लागतो तो म्हणजे सद्यस्थीती मधे रायगड किल्ल्यावर महाद्वाराजवळ एक ठिकाण दाखवले जाते त्यास मशिद मोर्चा किंवा मदारी मेहतर मोर्चा असे म्हटले जाते त्याचा. मुळताच हे ठिकाण कधी निर्माण झालें याबद्दल आजपर्यंत कोणीही काहीही सांगितलेले नाही. शिवाजी महाराजांना धर्म निरपेक्ष ( Secular ) दाखवताना काही मंडळी सूचकपणे मदारी मेहतरच्या स्मरणार्थ मशिद मोर्चा बांधला असे सांगतात. हा मुददा जरी तात्विक दृष्टया मान्य केला तर मग वरती म्हटल्या प्रमाणे मदारीचा मृत्यू कधी झाला ? आणि महाराजांनी त्याच्या स्मरणार्थ बांधला असेल तर मग मदारीचा मृत्यु हा १६८० च्या अगोदर झाला का ? याचे उत्तर कोण देणार ? स्वराज्याचे बांधकाम व्यवस्थापक हीरोजी इंदुलकर यांना शिवाजी महाराजांनी हे बांधकाम करण्याचे आदेश दिले होते का ? राज्याभिषेकवेळी असणारे रायगडाचे वर्णन उपलब्ध आहे त्यात पण असे काही ठिकाण होते असा उल्लेख मिळत नाही.
शिवचरित्राच्या सर्वात जवळचा असणारा संदर्भ म्हणजे ‘सभासद बखर‘ यामधे आलेला उल्लेख पाहुया –
‘आपला साज सर्व उतरून हीरोजी फरजंद यास घालून आपले पलंगावरी निजवले, हात मात्र उघडा बाहेर दिसू दीला आणि शेला पांघरला व एक पोरगा रगङावयास ठेवाला.’ – इथे उल्लेख एक पोरगा असा केला आहे.
कृष्णाजी अनंत सभासद हे स्वतः राज्यभिषेकवेळी हजर होते. जर असे मशीद/मदारी मेहतर मोर्चा नामक कपोलकल्पित ठिकाण तेथे असेल, तर त्यांनी त्याचा उल्लेख नक्की केला नसता ? मदारी मेहतर या नावाचा कुठलाही अस्सल पुरावा हा मराठी साधनांत तर सोडाच पण मुघल – राजस्थानी साधनांमधे देखील मिळत नाही.याची दूसरी बाजु जर आपण पाहिली तर संभाजी महाराजांच्या मृत्यूनंतर १६८९ ते १७३३ या काळा पर्यंत रायगडावर यावनी राज्य होते. या काळामधे अशी काही ठिकाण रायगडावर अस्तित्वात आली का यांचा शोध घेणे क्रमप्राप्त ठरेल.
सारांश मदारी मेहतर असे नाव असणारा एक इसम होता हे दाखवणारे एकही समकालीन साधन उपलब्ध नाही . एकंदरच मदारी मेहतर हे प्रकरण इतिहासात दंतकथा कश्या निर्माण केल्या जातात ह्याचे मूर्तिमंत उदाहरण आहे !
|| लेखन सीमा ||
विशाल खुळे – marathahistory.com | Email : padmadurg@gmail.com

|| www.dasbodh.com ||