Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक मारवाड़ी रोज़


एक मारवाड़ी रोज़ बैंक जाया करता था, कभी 2 लाख तो कभी 3 लाख और ऐसी बड़ी-बड़ी रकम जमा किया करता था।

बैंक का मैनेजर उसे हमेशा संशय की दृष्टि से देखता था। उसे समझ नहीं आता था कि यह मारवाड़ी रोज़ इतना पैसा कहाँ से लाता है। अंत में एक दिन उसने उस व्यक्ति को बुलाया और कहा- “लाला तुम रोज़ इतना पैसा कहाँ से लाते हो, आखिर क्या काम करते हो तुम ?

मारवाड़ी ने कहा- “भाई मेरा तो बस एक ही काम है, मैं शर्त लगाता हूँ और जीतता हूँ”

मैनेजर को यक़ीन नहीं हुआ तो उसने कहा- “ऐसा कैसे हो सकता है कि आदमी रोज़ कोई शर्ती जीते?”

मारवाड़ी ने कहा- “चलिए मैं आपके साथ एक शर्त लगाता हूँ कि आपके कुल्हे पर एक फोड़ा है, अब शर्त यह है कि कल सुबह मैं अपने साथ दो आदमियों को लाऊँगा और आपको अपनी पैंट उतार कर उन्हें अपने कूल्हे दिखाने होंगे, यदि आपके कुल्हे पर फोड़ा होगा तो आप मुझे 10 लाख दे दीजिएगा, और अगर नहीं हुआ तो मैं आपको 10 लाख दे दूँगा, बताइए मंज़ूर है?”

मैनेजर जानता था कि उसके कूल्हों पर फोड़ा नहीं है, इसलिए उसे शर्त जीतने की पूरी उम्मीद थी, लिहाज़ा वह तैयार हो गया।

अगली सुबह मारवाड़ी दो व्यक्तियों के साथ बैंक आया। उन्हें देखते ही मैनेजर की बाँछें खिल गईं और वह उन्हें झटपट अपने केबिन में ले आया। इसके बाद मैनेजर ने उनके सामने अपनी पैंट उतार दी और मारवाड़ी से कहा- “देखो मेरे कूल्हों पर कोई फोड़ा नहीं है, तुम शर्त हार गए अब निकालो 10 लाख रुपए”।

मारवाड़ी के साथ आए दोनों व्यक्ति यह दृश्य देख बेहोश हो चुके थे। मारवाड़ी ने हँसते हुए मैनेजर को 10 लाख रुपयों से भरा बैग थमा दिया और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा।

मैनेजर को कुछ समझ नहीं आया तो उसने पूछा- “तुम तो शर्त हार गए फिर क्यों इतना हँसे जा रहे हो?”

मारवाड़ी ने कहा- “तुम्हें पता है, ये दोनों आदमी इसलिए बेहोश हो गए क्योंकि मैंने इनसे 40 लाख रूपयों की शर्त लगाई थी कि बैंक का मैनेजर तुम्हारे सामने पैंट उतारेगा, इसलिए अगर मैंने तुम्हें 10 लाख दे भी दिए तो क्या फ़र्क पड़ता है, 30 लाख तो फिर भी बचे न..

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जय वीर पृथ्वी राज चौहा


आज एक बार सभी क्षत्रिय कमेंट में “जय वीर पृथ्वी राज चौहान” जरुर लिखना .. “जय माँ भवानी”..”जय हो ”
7 जून 2014 को महान वीर सम्राट पृथ्वी राज
चौहान
की जयंती की शुभ कामनाऐ……..
युद्धबंदी के रुपमेँ पृथ्वीराजचौहान को जब
मोहम्मद गौरी केसामने लाया गयातो उसने
गौरी को घूर केदेखा, गौरी ने उसेआँखे
नीची करने के लिऐकहा, पृथ्वीराजने कहा कि ”
राजपूतोँ की आँखेकेवलमृत्यु केसमय
नीची होती हैँ…”यह सुनते
ही गौरी आगबबूलाहो गया और उसनेलोहे के
गरम सरियोँ सेपृथ्वीराज कीआँखे फोङने
का आदेश दिया…!
After some days in the
court of
Mohammad Ghauri….
” चार बांस चौबीसगज, अंगुल अष्टप्रमाण ,
ता ऊपर सुल्तानहै, मत चूकेँचौहान ”
कवि चंदरबरदाई काइतना ईशारा पाते
ही आखोँ से अंधेपृथ्वीराज चौहानने मुहम्मद
गौरी पर बाण चला दिया और अपने अपमान
का बदला उसके प्राणोँ से ले लिया….!
जय हो पृथ्वीराज चौहान की।

…….Dev Raj Rathore

आज एक बार सभी क्षत्रिय कमेंट में "जय वीर पृथ्वी राज चौहान" जरुर लिखना .. "जय माँ भवानी".."जय हो "
7 जून 2014 को महान वीर सम्राट पृथ्वी राज
चौहान
की जयंती की शुभ कामनाऐ........
युद्धबंदी के रुपमेँ पृथ्वीराजचौहान को जब
मोहम्मद गौरी केसामने लाया गयातो उसने
गौरी को घूर केदेखा, गौरी ने उसेआँखे
नीची करने के लिऐकहा, पृथ्वीराजने कहा कि "
राजपूतोँ की आँखेकेवलमृत्यु केसमय
नीची होती हैँ..."यह सुनते
ही गौरी आगबबूलाहो गया और उसनेलोहे के
गरम सरियोँ सेपृथ्वीराज कीआँखे फोङने
का आदेश दिया...!
After some days in the
court of
Mohammad Ghauri....
" चार बांस चौबीसगज, अंगुल अष्टप्रमाण ,
ता ऊपर सुल्तानहै, मत चूकेँचौहान "
कवि चंदरबरदाई काइतना ईशारा पाते
ही आखोँ से अंधेपृथ्वीराज चौहानने मुहम्मद
गौरी पर बाण चला दिया और अपने अपमान
का बदला उसके प्राणोँ से ले लिया....!
जय हो पृथ्वीराज चौहान की।

.......Dev Raj Rathore
Posted in Secular

Secular


Conversion with the help of Roman Catholic Sonia Gandhi led UPA Govt, all under the name of "Secularism"!! 

Promoting conversions in name of reservations. This clearly shows how govt. promoting conversion in a country who's constitution doesn't allow any reservation on religion !!

Can the Hindus be given reservation, scholarship in education, Jobs on the name of Hindu religion in USA, UK, Europe, Arab, Iran, Pakistan, or Communist China?

Read Breaking India (Book) by Rajiv Malhotra to understand the Game-Plan of Congress and Left Communists in India.

Conversion with the help of Roman Catholic Sonia Gandhi led UPA Govt, all under the name of “Secularism”!!

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Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

Congress


तारूढ़ पार्टी – कांग्रेस
(5) 1970 महाराष्ट्र में भिवंडी सांप्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने लगभग 80 हिंदु मारे गए – सत्तारूढ़ पार्टी -कांग्रेस
(6) अप्रैल 1979 में मुसलमानों ने जमशेदपुर में साम्प्रदायिक दंगों,में 126 हिंदुओ मार डाला,
पश्चिम बंगाल 125 से अधिक हिंदु मारे गए – सत्तारूढ़ पार्टी -CPIM
(7) अगस्त १९८० मुरादाबाद साम्प्रदायिक दंगों में लगभग मुसलमानों ने 2000 हिंदुओ को मार डाला – सत्तारूढ़ पार्टी – कांग्रेस
(8) मई 1984 भिवंडी में साम्प्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 146 हिंदुओ को मार डाला, – सत्तारूढ़ पार्टी -कांग्रेस, पाटिल मुख्यमंत्री – Vasandada
(9) अक्टूबर 1984 दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगों में मुसलमानों ने 2733हिंदुओ को मार डाला – सत्तारूढ़ कांग्रेस -पार्टी
(10) अप्रैल 1985 में मुसलमानों ने अहमदाबाद में सांप्रदायिक दंगों में 3000 हिंदुओ को मारा गया | – सत्तारूढ़ कांग्रेस – पार्टी
(11) जुलाई 1986 में मुसलमानों ने अहमदाबाद में सांप्रदायिक हिंसा 59 हिंदुओको मार डाला | – सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस
(12) अप्रैल – मई 1987- 81 हिंदु मारे गए सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस मेरठ में साम्प्रदायिक उत्तर प्रदेश, हिंसा |
(13) 1983 फ़रवरी 2000 हिंदु को मार डाला | | Nallie, असम में सांप्रदायिक हिंसा प्रधानमंत्री – इंदिरा गांधी.
(14) कश्मीर हिन्दुओ से खाली हो गया उस का जिम्मेदार कौन है, कांग्रेस सत्ता में और इस का अलावा बहुत कांड है जो कांग्रेस ने किये है, इन को मीडिया क्यों नहीं रोता क्यों सिर्फ गुजरात दीखता है…..
जय हिन्द
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गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त ( Law Of Gravitation )


गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त ( Law Of Gravitation ) :-

वेद और वैदिक आर्ष ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम को समझाने के लिये पर्याप्त सूत्र हैं । परन्तु जिनको न जानकर हमारे आजकल के युवा वर्ग केवल पाश्चात्य वैज्ञानिकों के पीछे ही श्रद्धाभाव रखते हैं । जबकि यह करोड़ों वर्ष पहले वेदों में सूक्ष्म ज्ञान के रूप में ईश्वर ने हमारे लिये पहले ही वर्णन कर दिया है । तो ऐसे मूर्ख लोग जिसको Newton’s Law Of Gravitation कहते फिरते हैं । वह वास्तव में Nature’s Law Of Gravitation होना चाहिये । तो लीजिये हम अनेकों प्रमाण देते हैं कि हमारे ऋषियों ने जो बात पहले ही वेदों से अपनी तपश्चर्या से जान ली थी उसके सामने ये Newton महाराज कितना ठहरते हैं ।

आधारशक्ति :- बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त को आधारशक्ति नाम से कहा गया है ।
इसके दो भाग किये गये हैं :-
(१) ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग :- ऊपर की ओर खिंचकर जाना । जैसे अग्नि का ऊपर की ओर जाना ।

(२) अधःशक्ति या निम्नग :- नीचे की ओर खिंचकर जाना । जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना ।

आर्ष ग्रन्थों से प्रमाण देते हैं :-

(१) यह बृहत् उपनिषद् के सूत्र हैं :-

अग्नीषोमात्मकं जगत् । ( बृ० उप० २.४ )
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः । तथैव निम्नगः सोमः । ( बृ० उप० २.८ )

अर्थात :- सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है । अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति । इन दोनो शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है ।

(२) १५० ई० पूर्व महर्षि पतञ्जली ने व्याकरण महाभाष्य में भी गुरूत्वाकर्षण के सिद्धान्त का उल्लेख करते हुए लिखा :-

लोष्ठः क्षिप्तो बाहुवेगं गत्वा नैव तिर्यक् गच्छति नोर्ध्वमारोहति ।
पृथिवीविकारः पृथिवीमेव गच्छति आन्तर्यतः । ( महाभाष्य :- स्थानेन्तरतमः, १/१/४९ सूत्र पर )

अर्थात् :- पृथिवी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बहुवेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है । वह पृथिवी का विकार है, इसलिये पृथिवी पर ही आ जाता है ।

(३) भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा :-

आकृष्टिशक्तिश्च महि तया यत्
खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
आकृष्यते तत् पततीव भाति
समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।। ( सिद्धान्त० भुवन० १६ )

अर्थात :- पृथिवी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथिवी पर गिरती हुई सी लगती है । पृथिवी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।

(४) वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका में कहा :-

पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः ।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।। ( पंच०पृ०३१ )

अर्थात :- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथिवी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।

(५) आचार्य श्रीपति ने अपने ग्रन्थ सिद्धान्तशेखर में कहा है :-

उष्णत्वमर्कशिखिनोः शिशिरत्वमिन्दौ,.. निर्हतुरेवमवनेः स्थितिरन्तरिक्षे ।। ( सिद्धान्त० १५/२१ )
नभस्ययस्कान्तमहामणीनां मध्ये स्थितो लोहगुणो यथास्ते ।
आधारशून्यो पि तथैव सर्वधारो धरित्र्या ध्रुवमेव गोलः ।। ( सिद्धान्त० १५/२२ )

अर्थात :- पृथिवी की अन्तरिक्ष में स्थिति उसी प्रकार स्वाभाविक है, जैसे सूर्य्य में गर्मी, चन्द्र में शीतलता और वायु में गतिशीलता । दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहे का गोला स्थिर रहता है, उसी प्रकार पृथिवी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है ।

(६) ऋषि पिप्पलाद ( लगभग ६००० वर्ष पूर्व ) ने प्रश्न उपनिषद् में कहा :-

पायूपस्थे – अपानम् । ( प्रश्न उप० ३.४ )
पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापानमवष्टभ्य० । ( प्रश्न उप० ३.८ )
तथा पृथिव्याम् अभिमानिनी या देवता … सैषा पुरुषस्य अपानवृत्तिम् आकृष्य…. अपकर्षेन अनुग्रहं कुर्वती वर्तते । अन्यथा हि शरीरं गुरुत्वात् पतेत् सावकाशे वा उद्गच्छेत् । ( शांकर भाष्य, प्रश्न० ३.८ )

अर्थात :- अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे आता है । पृथिवी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है, अन्यथा वह आकाश में उड़ जाता ।

(७) यह ऋग्वेद के मन्त्र हैं :-

यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे ।
आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ३ )

अर्थात :- सब लोकों का सूर्य्य के साथ आकर्षण और सूर्य्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है । इन्द्र जो वायु , इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं । उनसे सब लोकों का दिन दिन और क्षण क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है । इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं, इधर उधर विचल भी नहीं सकते ।

यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः ।
आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे ।।३।। ( ऋ० अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ५ )

अर्थात :- हे परमेश्वर ! जब उन सूर्य्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं , इसी कारण सूर्य्य और पृथिवी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं । इन सूर्य्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि परमेश्वर सब लोकों का आकर्षण और धारण कर रहा है ।( आचार्य आशीष जी )

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सफलता


एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे.

उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ?

तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों को नहीं तोड़ सकते,और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.”

आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!!

इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं.

याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है ,और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है. यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए…..

Posted in Tejomahal

Tajmahal


पदम्नाभ स्बामी मन्दिर के खजाने को खोला जा सकता है

तो ताजमहल (शिव मन्दिर तेजोम्हालय) को क्योँ नही ?

कई कमरे तो शाहजहाँ के समय से बन्द है
और आज तक उन्हे खोलने की इजाजत नही .?
ये सब जनता से क्योँ छिपा रहे है
इस मामले को आगे बढाने के लिये जल्द अदालत मे मुकदमा दर्ज करुँगा …

डा, सुव्रमण्यम स्बामी

#gaurav

पदम्नाभ स्बामी  मन्दिर के खजाने को खोला जा सकता है

तो ताजमहल (शिव मन्दिर तेजोम्हालय) को क्योँ नही ?

 कई कमरे तो शाहजहाँ के समय से बन्द है 
और आज तक उन्हे खोलने की इजाजत नही  .?
 ये सब जनता से क्योँ छिपा रहे है
इस मामले को आगे बढाने के लिये जल्द अदालत मे मुकदमा दर्ज करुँगा ...

डा, सुव्रमण्यम स्बामी
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नालंदा विश्वविद्यालय


क्या आप जानते हैं कि…. विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को कब, किसके द्वारा और क्यों जलाया गया था……???
लेकिन… ये जानने से पहले….. हम एक झलक नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास पर डाल लेते हैं……. फिर, बात को समझने में आसानी होगी….!
यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था…।
महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे।
यह… वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण–पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।
अनेक पुराभिलेखों और सातवीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था.. तथा, प्रसिद्ध ‘बौद्ध सारिपुत्र’ का जन्म यहीं पर हुआ था।
इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है….. और, इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला।
यहाँ तक कि… गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा… और, इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला… तथा , स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।
आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि… यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था…. और, विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10 ,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2 ,000 थी….।
इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे…. और, नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे।
इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं सदी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी।
उसी समय बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मुस्लिम लूटेरा था ….जो, कुतुबुद्दीन ऐबक नामक लूले का सेनापति था… और वो कुतुबुद्दीन ऐबक नामक लूला …. खुद मुहम्मद गजनवी नामक जेहादी लुटेरे का एक गुलाम था…!
उसी बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी मुस्लिम ने …. 1199 इस्वी में विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।
हुआ कुछ यूँ था कि….. उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था.
और….. एक बार वह बहुत बीमार पड़ा… जिसमे उसके मुस्लिम हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली … मगर वह ठीक नहीं हो सका…! और, मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया….!
तभी उसे किसी ने उसको सलाह दी… नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय….!
हालाँकि…. उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई हिन्दू और भारतीय वैद्य … उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाया जाए…. फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा….!
लेकिन….. उस बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि…. मैं एक मुस्लिम हूँ … इसीलिए, मैं तुम काफिरों की दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा… लेकिन, किसी भी तरह मुझे ठीक करों …वर्ना …मरने के लिए तैयार रहो….!
यह सुनकर…. बेचारे वैद्यराज को रातभर नींद नहीं आई…!
उन्होंने बहुत सा उपाय सोचा ….. और, सोचने के बाद…… वे वैद्यराज अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए…… और, उस बख्तियार खिलजी से कहा कि …इस कुरान की पृष्ठ संख्या … इतने से इतने तक पढ़ लीजिये… ठीक हो जायेंगे…!
बख्तियार खिलजी ने…. वैसे ही कुरान को पढ़ा ….और ठीक हो गया ….. तथा, उसकी जान बच गयी…..!
इस से …. उस पागल को…… कोई ख़ुशी नहीं….. बल्कि बहुत झुंझलाहट हुई …. और, उसे बहुत गुस्सा आया कि….. उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है…??????
और….. उस एहसानफरामोश …. बख्तियार खिलजी ने ……. बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले …उनको पुरस्कार देना तो दूर … उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ……. और. पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया….. ताकि…. फिर कभी कोई ज्ञान ही ना प्राप्त कर सके…..!
कहा जाता है कि…… वहां इतनी पुस्तकें थीं कि …आग लगने के बाद भी …. तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं..!
सिर्फ इतना ही नहीं…… उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाले.
——-
अब आप भी जान लें कि….. वो एहसानफरामोश मुस्लिम (हालाँकि, सभी मुस्लिम एहसानफरामोश ही होते हैं) ….. बख्तियार खिलजी …… कुरान पढ़ के ठीक कैसे हो गया था…..
हुआ दरअसल ये था कि…… जहाँ…हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते… ना ही कभी, थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते हैं….!
जबकि…. मुस्लिम ठीक उलटा करते हैं….. और, वे कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के ही पलटते हैं…!
बस… वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था…
इस तरह….. वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज के दवा को चाट गया… और, ठीक हो गया …!
परन्तु….. उसने इस एहसान का बदला ….. अपने मुस्लिम संस्कारों को प्रदर्शित करते हुए…… नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया…!
हद तो ये है कि…… आज भी हमारी बेशर्म और निर्ल्लज सरकारें…उस पागल और एहसानफरामोश बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं… मानो हमारी सरकारों को उस पागल और एहसानफरामोश तुर्क लुटेरे बख्तियार ख़िलजी पर काफी गर्व हो….!
शर्मिन्दिगी नाम की चीज ही नहीं बची है…. इन तुष्टिकरण में आकंठ डूबी हमारी तथाकथित सेकुलर सरकारों में …!
लेकिन… इस निराशा के हालत में भी…. मोदी सरकार से कुछ उम्मीद बंधी है कि…. मोदी सरकार इस सम्बन्ध में कुछ अच्छा कदम उठाते हुए…. हमारे हिंदुस्तान के माथे पर एक बदनुमा दाग की तरह चमकते “”बख्तियारपुर”” नाम को बदलेगी…. जो आज तक किसी पुरुषार्थयुक्त राजनेता द्वारा … अपने दाग को मिटाने का इंतज़ार कर रही है…!
जय महाकाल…!!!

क्या आप जानते हैं कि.... विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को कब, किसके द्वारा और क्यों जलाया गया था......???
लेकिन... ये जानने से पहले..... हम एक झलक नालंदा विश्वविधालय के अतीत और उसके गौरवशाली इतिहास पर डाल लेते हैं....... फिर, बात को समझने में आसानी होगी....!
यह प्राचीन भारत में उच्च् शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विश्व विख्यात केन्द्र था...।
महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे।
यह... वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण--पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गाँव के पास अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खोजे गए इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के भग्नावशेष इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं।
अनेक पुराभिलेखों और सातवीं सदी में भारत भ्रमण के लिए आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था.. तथा, प्रसिद्ध 'बौद्ध सारिपुत्र' का जन्म यहीं पर हुआ था।
इस महान विश्वविद्यालय की स्थापना व संरक्षण इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त है..... और, इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला।
यहाँ तक कि... गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा... और, इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला... तथा , स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।
आपको यह जानकार ख़ुशी होगी कि... यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था.... और, विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10 ,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2 ,000 थी....।
इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे.... और, नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे।
इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं सदी तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी।
उसी समय बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क मुस्लिम लूटेरा था ....जो, कुतुबुद्दीन ऐबक नामक लूले का सेनापति था... और वो कुतुबुद्दीन ऐबक नामक लूला .... खुद मुहम्मद गजनवी नामक जेहादी लुटेरे का एक गुलाम था...!
उसी बख्तियार खिलजी नामक एक सनकी मुस्लिम ने .... 1199 इस्वी में विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।
हुआ कुछ यूँ था कि..... उसने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था.
और..... एक बार वह बहुत बीमार पड़ा... जिसमे उसके मुस्लिम हकीमों ने उसको बचाने की पूरी कोशिश कर ली ... मगर वह ठीक नहीं हो सका...! और, मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया....!
तभी उसे किसी ने उसको सलाह दी... नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया जाय और उनसे भारतीय विधियों से इलाज कराया जाय....!
हालाँकि.... उसे यह सलाह पसंद नहीं थी कि कोई हिन्दू और भारतीय वैद्य ... उसके हकीमों से उत्तम ज्ञान रखते हो और वह किसी काफ़िर से .उसका इलाज करवाया जाए.... फिर भी उसे अपनी जान बचाने के लिए उनको बुलाना पड़ा....!
लेकिन..... उस बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि.... मैं एक मुस्लिम हूँ ... इसीलिए, मैं तुम काफिरों की दी हुई कोई दवा नहीं खाऊंगा... लेकिन, किसी भी तरह मुझे ठीक करों ...वर्ना ...मरने के लिए तैयार रहो....!
यह सुनकर.... बेचारे वैद्यराज को रातभर नींद नहीं आई...!
उन्होंने बहुत सा उपाय सोचा ..... और, सोचने के बाद...... वे वैद्यराज अगले दिन उस सनकी के पास कुरान लेकर चले गए...... और, उस बख्तियार खिलजी से कहा कि ...इस कुरान की पृष्ठ संख्या ... इतने से इतने तक पढ़ लीजिये... ठीक हो जायेंगे...!
बख्तियार खिलजी ने.... वैसे ही कुरान को पढ़ा ....और ठीक हो गया ..... तथा, उसकी जान बच गयी.....!
इस से .... उस पागल को...... कोई ख़ुशी नहीं..... बल्कि बहुत झुंझलाहट हुई .... और, उसे बहुत गुस्सा आया कि..... उसके मुसलमानी हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है...??????
और..... उस एहसानफरामोश .... बख्तियार खिलजी ने ....... बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले ...उनको पुरस्कार देना तो दूर ... उसने नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दिया ....... और. पुस्तकालयों को ही जला के राख कर दिया..... ताकि.... फिर कभी कोई ज्ञान ही ना प्राप्त कर सके.....!
कहा जाता है कि...... वहां इतनी पुस्तकें थीं कि ...आग लगने के बाद भी .... तीन माह तक पुस्तकें धू धू करके जलती रहीं..!
सिर्फ इतना ही नहीं...... उसने अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाले.
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अब आप भी जान लें कि..... वो एहसानफरामोश मुस्लिम (हालाँकि, सभी मुस्लिम एहसानफरामोश ही होते हैं) ..... बख्तियार खिलजी ...... कुरान पढ़ के ठीक कैसे हो गया था.....
हुआ दरअसल ये था कि...... जहाँ...हम हिन्दू किसी भी धर्म ग्रन्थ को जमीन पर रख के नहीं पढ़ते... ना ही कभी, थूक लगा के उसके पृष्ठ नहीं पलटते हैं....!
जबकि.... मुस्लिम ठीक उलटा करते हैं..... और, वे कुरान के हर पेज को थूक लगा लगा के ही पलटते हैं...!
बस... वैद्यराज राहुल श्रीभद्र जी ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था...
इस तरह..... वह थूक के साथ मात्र दस बीस पेज के दवा को चाट गया... और, ठीक हो गया ...!
परन्तु..... उसने इस एहसान का बदला ..... अपने मुस्लिम संस्कारों को प्रदर्शित करते हुए...... नालंदा को नेस्तनाबूत करके दिया...!
हद तो ये है कि...... आज भी हमारी बेशर्म और निर्ल्लज सरकारें...उस पागल और एहसानफरामोश बख्तियार खिलजी के नाम पर रेलवे स्टेशन बनाये पड़ी हैं... मानो हमारी सरकारों को उस पागल और एहसानफरामोश तुर्क लुटेरे बख्तियार ख़िलजी पर काफी गर्व हो....!
शर्मिन्दिगी नाम की चीज ही नहीं बची है.... इन तुष्टिकरण में आकंठ डूबी हमारी तथाकथित सेकुलर सरकारों में ...!
लेकिन... इस निराशा के हालत में भी.... मोदी सरकार से कुछ उम्मीद बंधी है कि.... मोदी सरकार इस सम्बन्ध में कुछ अच्छा कदम उठाते हुए.... हमारे हिंदुस्तान के माथे पर एक बदनुमा दाग की तरह चमकते ""बख्तियारपुर"" नाम को बदलेगी.... जो आज तक किसी पुरुषार्थयुक्त राजनेता द्वारा ... अपने दाग को मिटाने का इंतज़ार कर रही है...!
जय महाकाल...!!!
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टवा दिए।लेकिन सच छुपता नही छुपाने से।शाजहाँ सभी सबूत नष्ट नही करपाया और अब धीरे धीरे इस झूठसेपर्दा उठ रहा है।डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जी नेताजमहलको लेकर कोर्ट में केसभी फ़ाइल् कियाहै। और अभी तक केस हमहिन्दुओ के पक्ष में है।क्योकि सबूत बोलते है की येतज्मह्ल्न्हि तेजो महालय था। और जल्दही पूरी दुनिया के सामने होगा सचकी दुनिया की सबसे खुबसुरतईमारत मकबरा नही एक शिव मंदिर है। वहा पर गिरने वाली पानी की बुन्द मुमताज का आसु नही नही शिवलिंग पर गिरनेवाला कुदरती जलाभीषेक है भारत के इतिहासको बदला गया है .( जिसे भी ये जानकारी अच्छी लगे शेयरकरे।)जय महादेव जय माँ भारतीदुसरेकी पत्नी को भागकर उसके पैर बांध दिए(ताजमहाल)शाहजंहा के प्रेम को मानने वाले लोगोसीता के लिए राम ने जो रामसेतु बनाया उसे प्रेम कीमूर्त क्यूँ नहीं मानते…?एक बार इसे भी पढ़े …१) मुमताज शहाजहानकी चौथी बीवी थी..२) शहाजहानने मुमताज से शादी करने के लिए उसके पति का खून किया था३) १४ वे बच्चे को जन्म देते हुए मुमताज़ की मौत हुई थी४) मुमताज के मरने के बाद शहाजहानने उसकी बहन से शादीकर ली .इसमें प्रेम कहा है..?Plaza शेयर करे॥
Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

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