ढोल गवार शुद्र पशु नारी ये सब सकल ताडना के अधिकारी |//
अवधि भाषा मे ताडना के कई अर्थ है, लोग़ पीटना अर्थ लेते है और इस अर्थ से तों महाकवि तुलसीदास कोई पागल ही सिद्ध होते है जो अकारण ही पीटने की बात कह रहे है | ताडना के अन्य अर्थ है घूरना या देखते रहना, जासूसी करते वक्त देखते रहना या नजर रखना, समझना | मैं यहाँ समझना अर्थ ही लेता हू क्यों के उसी से सही और सार्थक अर्थ निकलता है |
हर ढोल के कसाव को अलग-२ स्तर पर समायोजित करना होता है | सीधे किसी भी ढोल को या बिना कसे या बिना समझे पीटना चालु कर दिया जाए तों सही ताल नहीं मिलेगी चाहे जितना बड़ा ढोलचि क्यों ना हों | इसलिए ढोल के कसाव को समझना आवश्यक है |
ग्वार व्यक्ति अपेक्षा का शिकार होता है | पर उनसे भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है | तुलसीदास स्वयं उसी श्रेणी मे थे एक समय इसलिए उन्होंने गवार का उल्लेख किया होगा |
शुद्र यानी श्रमिक वर्ग, उस समय ये वर्ग प्रमुखता से खेती मे काम कर्ता था | मुग़ल काल मे कृषि ही अधिक प्रभावित हुई थी | कुम्हार लोहार कृषक ये सब वैश्य मे ही आते थे | इसलिए समझने के अधिकारी थे | ना के अकारण पीटने के |
पशु केवल चतुष्पद के लिए नहीं है, और पशुओ मारने के अधिकारी है समझने के नहीं ये लोगो की समझ पर है | और पशु पीटने के अधिकारी है ये अर्थ ले तों तुलसीदास भक्त नहीं कोई निर्दयी व्यक्ति ही सिद्ध होंगे |
नारी, मंडन मिश्र के समय जो नारी शास्त्रार्थ करती थी वो मुगल काल मे परदे मे पहुच गई थी इसलिए उनको समझने की आवयश्कता सर्वाधिक थी | पुरुष घरों मे कैद नहीं थे के मुस्लमान उठा ले जायेंगे |
ये मेरा अनुमान है, गलत भी हों सकता हू क्यों के कवी की भाषा कवी ही जाने हम सिर्फ अनुमान कर सकते है व्यक्ति के अन्य कार्यों को देख कर | पर ढोल गवार शुद्र पशु नारी ये सब पीटने के अधिकारी है यदि ये लोग़ अर्थ लेते है तुलसीदास जी को भक्त नहीं खलनायक ही कहना होगा क्यों के अकारण बस किसी को पीटा जाए किसी के बस होने पर ये अधिक मूर्खतापूर्ण मान्यता है | आप लोगो के विचार आमंत्रित है |
अवधि भाषा मे ताडना के कई अर्थ है, लोग़ पीटना अर्थ लेते है और इस अर्थ से तों महाकवि तुलसीदास कोई पागल ही सिद्ध होते है जो अकारण ही पीटने की बात कह रहे है | ताडना के अन्य अर्थ है घूरना या देखते रहना, जासूसी करते वक्त देखते रहना या नजर रखना, समझना | मैं यहाँ समझना अर्थ ही लेता हू क्यों के उसी से सही और सार्थक अर्थ निकलता है |
हर ढोल के कसाव को अलग-२ स्तर पर समायोजित करना होता है | सीधे किसी भी ढोल को या बिना कसे या बिना समझे पीटना चालु कर दिया जाए तों सही ताल नहीं मिलेगी चाहे जितना बड़ा ढोलचि क्यों ना हों | इसलिए ढोल के कसाव को समझना आवश्यक है |
ग्वार व्यक्ति अपेक्षा का शिकार होता है | पर उनसे भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है | तुलसीदास स्वयं उसी श्रेणी मे थे एक समय इसलिए उन्होंने गवार का उल्लेख किया होगा |
शुद्र यानी श्रमिक वर्ग, उस समय ये वर्ग प्रमुखता से खेती मे काम कर्ता था | मुग़ल काल मे कृषि ही अधिक प्रभावित हुई थी | कुम्हार लोहार कृषक ये सब वैश्य मे ही आते थे | इसलिए समझने के अधिकारी थे | ना के अकारण पीटने के |
पशु केवल चतुष्पद के लिए नहीं है, और पशुओ मारने के अधिकारी है समझने के नहीं ये लोगो की समझ पर है | और पशु पीटने के अधिकारी है ये अर्थ ले तों तुलसीदास भक्त नहीं कोई निर्दयी व्यक्ति ही सिद्ध होंगे |
नारी, मंडन मिश्र के समय जो नारी शास्त्रार्थ करती थी वो मुगल काल मे परदे मे पहुच गई थी इसलिए उनको समझने की आवयश्कता सर्वाधिक थी | पुरुष घरों मे कैद नहीं थे के मुस्लमान उठा ले जायेंगे |
ये मेरा अनुमान है, गलत भी हों सकता हू क्यों के कवी की भाषा कवी ही जाने हम सिर्फ अनुमान कर सकते है व्यक्ति के अन्य कार्यों को देख कर | पर ढोल गवार शुद्र पशु नारी ये सब पीटने के अधिकारी है यदि ये लोग़ अर्थ लेते है तुलसीदास जी को भक्त नहीं खलनायक ही कहना होगा क्यों के अकारण बस किसी को पीटा जाए किसी के बस होने पर ये अधिक मूर्खतापूर्ण मान्यता है | आप लोगो के विचार आमंत्रित है |